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शनिवार, 02 सितंबर, 2006 को 08:36 GMT तक के समाचार
 
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मन मोहने वाली लगे रहो मुन्नाभाई
 

 
 
विद्या बालन और संजय दत्त
विद्या बालन ने रेडियो जॉकी का किरदार निभाया है
लगे रहो मुन्नाभाई के प्रीमियर पर जुटे नामी-गिरामी सितारों की प्रतिक्रिया बता रही थी कि इस फ़िल्म ने इंडस्ट्री के लोगों को कितना प्रभावित किया है.

प्रीमियर के बाद आमिर ख़ान ने संजय दत्त को जादू की झप्पी दी. फ़िल्म देखते वक़्त आमिर ख़ान और इंडस्ट्री के अन्य कई लोगों ने कई बार तालियाँ बजाई. बोले तो आमिर को ये फ़िल्म बहुत पसंद आई.

क्या लगे रहो मुन्नाभाई लोगों की उम्मीदों पर खरी उतरेगी? क्या विधु विनोद चोपड़ा और राजकुमार हिरानी मुन्नाभाई एमबीबीएस की तरह लोगों को एक अच्छी फ़िल्म दे पाए हैं?

विधु विनोद चोपड़ा और राजकुमार हिरानी के कंधों पर ये बहुत बड़ी ज़िम्मेदारी थी, जो उन्होंने बखूबी निभाई है.

विधु विनोद चोपड़ा की फ़िल्म लगे रहो मुन्नाभाई एक अनोखी कहानी को लेकर बनाई गई है.

इस फ़िल्म की ख़ास बात ये भी है कि इस फ़िल्म में गाँधी जी के दर्शन की याद दिलाई गई है. फ़िल्म में ये भी बताया गया है कि यह दर्शन आज भी कितना प्रासंगिक है.

भावनाप्रधान फ़िल्म

सच मानिए इस फ़िल्म को देखकर जहाँ आप हँसते-हँसते लोप-पोट हो जाएँगे वहीं ये फ़िल्म आपको कई बार रुलाएगी भी.

अरशद वारसी ने दमदार अभिनय किया है

मुन्नाभाई (संजय दत्त) और सर्किट (अरशद वारसी) भाई (गुंडे) हैं जो बिल्डर लकी सिंह (बोमन ईरानी) के लिए काम करते हैं.

मुन्नाभाई को जाह्नवी (विद्या बालन) की आवाज़ से इश्क़ हो गया है, जो एक रेडियो जॉकी हैं. दो अक्तूबर को गांधी जयंती के दिन जाह्नवी अपने रेडियो शो में महात्मा गांधी पर एक प्रतियोगिता का आयोजन करती हैं.

प्रतियोगिता के विजेता को पुरस्कार के तौर पर जाह्नवी से मिलने का मौक़ा मिलेगा. अनपढ़ मुन्नाभाई इस प्रतियोगिता को जीतने के लिए ग़लत तरीक़े अपनाता है.

आख़िरकार उसे जाह्नवी से मिलने का मौक़ा भी मिल जाता है. जाह्नवी को प्रभावित करने के लिए मुन्नाभाई अपने को एक प्रोफ़ेसर बताता है जिसे महात्मा गांधी और उनके दर्शन की अच्छी-ख़ासी समझ है.

उतार-चढ़ाव

जाह्नवी भी उससे प्रभावित हो जाती है और दोनों एक-दूसरे के क़रीब आ जाते हैं. जाह्नवी मुन्नाभाई पर भरोसा करती है.

संजय दत्त अपने को प्रोफ़ेसर बताते हैं

इस बीच लकी सिंह शॉपिंग मॉल बनाने के लिए एक घर को ख़ाली कराना चाहता है. घर ख़ाली कराने के लिए वह सर्किट की सेवा लेता है.

बाद में पता चलता है कि ये घर जाह्नवी का है. जाह्नवी इस घर में अपने दादा और पुराने मित्रों के साथ रहती है, जिन्हें उनके परिवार वालों ने छोड़ दिया है.

जब मुन्नाभाई को लकी सिंह की योजना का पता चलता है तो वह जाह्नवी का साथ देने का फ़ैसला करता है. वह लकी सिंह से लड़ना चाहता है लेकिन गांधीवादी तरीक़े से और फिर मुन्नाभाई करते हैं सत्याग्रह.

ऐसा इसलिए होता है क्योंकि जाह्नवी के सामने अपने को गांधीवादी दर्शन का जानकार बताते-बताते मुन्नाभाई को वाकई अहिंसा पर भरोसा होने लगता है और वह इसे अपना लेता है.

जाह्नवी के रेडियो शो पर गांधीवादी दर्शन की शिक्षा देते-देते मुन्नाभाई हिट हो जाता है. लेकिन लोगों की समस्याएँ सुलझाते-सुलझाते मुन्नाभाई ख़ुद समस्याओं में घिर जाता है.

वह जाह्नवी के सामने अपनी असलियत स्वीकार कर लेता है. लेकिन दुखी और हताश-परेशान जाह्नवी उसे छोड़ देती है.

सवाल

क्या मुन्नाभाई जाह्नवी का भरोसा जीतने में सफल होते हैं? क्या लकी सिंह जाह्नवी का घर ख़ाली करा पाता है? फ़िल्म का क्लाइमैक्स इन सब सवालों का जवाब देगा.

फ़िल्म क्रेडिट
निर्माता: विधु विनोद चोपड़ा
निर्देशक: राजकुमार हिरानी
पटकथा: राजकुमार हिरानी, अभिजात जोशी
संगीत: शांतनु मोइत्रा
गीत: स्वानंद किरकिरे

लगे रहो मुन्नाभाई की अनोखी और असाधारण कहानी का सारा श्रेय जाता है राजकुमार हिरानी को, जो इस फ़िल्म के निर्देशक भी हैं.

इस फ़िल्म की पटकथा लिखी है- राजकुमार हिरानी, अभिजात जोशी ने. उनका साथ दिया है विधु विनोद चोपड़ा ने भी. इस फ़िल्म में कॉमेडी और भावना का इतना शानदार संतुलन है कि इससे ज़्यादा किसी को अपेक्षा नहीं हो सकती.

दरअसल फ़िल्म की कहानी और पटकथा इतनी दमदार है कि फ़िल्म में रोमांस की कमी और हिट संगीत की कमी महसूस ही नहीं हो पाती.

संजय दत्त ने इस फ़िल्म में बेहतरीन अभिनय किया है. उनका स्वभाविक और प्यारा अभिनय आपके दिल को छू जाएगा. अरशद वारसी ने तो दिखा दिया है कि वे इस तरह की भूमिका में कितने सफल साबित हो सकते हैं. कमाल का अभिनय है उनका.

उनकी भूमिका आने वाले वर्षों में याद की जाएगी. विद्या बालन ताज़ा हवा के झोंके की तरह हैं. वे ख़ूबसूरत दिखती हैं और उनका अभिनय भी आत्मविश्वास से भरा हुआ है.

संजय दत्त के साथ भावनात्मक दृश्यों में जिमी शेरगिल ने अपनी छाप छोड़ी है. दीया मिर्ज़ा का अभिनय भी प्रभावशाली है.

सरदार बिल्डर की भूमिका में बोमन ईरानी फिर छा गए हैं. फ़िल्म इंडस्ट्री में उनकी कॉमेडी की एक ख़ास जगह है. उनके बात करने और चलने का स्टाइल आपको काफ़ी प्रभावित करेगा.

निर्देशन

गांधी के रूप में दिलीप प्रभावलकर ने भी अपनी छाप छोड़ी है. इनके अलावा फ़िल्म में कुलभूषण खरबंदा, सौरभ शुक्ला, अच्युत पोद्दार ने भी अच्छा अभिनय किया है.

विद्या बालन फ़िल्म में ख़ूबसूरत लगी हैं

राजकुमार हिरानी ने न सिर्फ़ अच्छी स्क्रिप्ट लिखी है बल्कि अपने निर्देशन से भी सबका मन मोह लिया है. उनका निर्देशन इतना अच्छा है कि शायद इस बार उनको कई पुरस्कार भी मिल जाए.

शांतनु मोइत्रा का संगीत और बेहतर हो सकता था. फ़िल्म के कुछ गाने अपील करते हैं. ख़ासकर ऐसी या वैसी और पल पल. हनीफ़ शेख़ का एक्शन फ़िल्म के हिसाब से बहुत बढ़िया है.

कुल मिलाकर लगे रहो मुन्नाभाई का हिट होना तय है. बॉक्स ऑफ़िस पर ये फ़िल्म सफल साबित होगी. इस फ़िल्म को हर वर्ग और उम्र के लोगों की सराहना मिलेगी.

इस फ़िल्म को टैक्स फ़्री भी किया जा सकता है क्योंकि इस फ़िल्म में अहिंसा का संदेश बहुत ख़ूबसूरती से दिया गया है.

(कोमल नाहटा का ये कॉलम आपको कैसा लग रहा है. अपनी राय से ज़रूर अवगत कराएँ [email protected] पर)

 
 

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