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बुधवार, 30 जनवरी, 2008 को 12:29 GMT तक के समाचार
 
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'बदलाव के लिए महिला बनें उत्प्रेरक'
 

 
 
किरण बेदी
महिलाएँ पहले व्यक्तिगत रूप से और फिर सामूहिक रूप से बुराइयों को नकारने का प्रण ले
हाल में ही मैने एक सम्मेलन में भाग लिया जिसका विषय था ‘भारत के बदलाव के लिए महिला बने उत्प्रेरक’.

वहाँ मौजूद बहुत सी वक्ताओं में मैं भी एक थी. ख़ुशकिस्मती से मैं अंतिम वक्ता थी. इसने मुझे सभी वक्ताओं की बातों को सुन कर इस विषय पर अपने विचारों को पिरो सकने में मदद की.

जब मैंने अनुभवी और तीखी वक्ताओं को सुना तो मेरे ज़हन में बहुत से सवाल आए और साथ ही उनके जवाब भी.

मैं पाँच सितारा माहौल में बैठी थी और श्रोता भी ऐसी महिलाएँ थीं जो उच्च आय,शिक्षित और पेशेवर वर्ग से थीं.

वे आत्मविश्वास से भरी हुई, पेशेवर थीं जिन्हें ज़िंदगी में बढ़ने के लिए और भी बहुत कुछ चाहिए था.

प्रश्नचिह्न

मैने पूर्व वक्ताओं की बातों पर उनकी प्रतिक्रिया सुनी. मुझे कुछ-कुछ समझ में आने लगा कि हम कैसे और क्या योगदान दें ताकि देश में सही अर्थों में बदलाव हो सके.

मेरे अवचेतन मन में इसके सुराग थे लेकिन अब यह प्रश्नचिह्न बनकर उभर रहे हैं.

किरण बेदी
महिलाएँ एक नए वर्ग के रूप में नई आशा हैं

मैं आपको बताती हूँ कि अगर महिला को बदलाव के लिए उत्प्रेरक बनना होगा तो मेरे मन में कौन से सवाल आए और कैसे?

पहला सवाल ये कि आज की पेशेवर और शिक्षित महिलाएँ जिस तरह परिवार का पालन पोषण करती हैं उसका समर्थन करती हैं, क्या उसके तरीके में कोई बदलाव आया है?

प्रशासन में ईमानदारी का स्तर ऊपर गया है? समय की कमी और बढ़ती भागदौड़ को देखते हुए क्या महिलाओं के लिबास में अंतर आया है.

ख़रीदारी का अंदाज़ बदला है? महिलाओं को जो आर्थिक आज़ादी मिली है, ऐस में वे पैसे और बचत को किस नज़र को देखती हैं. महिलाएँ कैसी बॉस और सहकर्मी साबित हो रही हैं?

महिलाओं के जीवन की गुणवत्ता कैसी है. बच्चों को वे किस तरह प्रभावित कर रही हैं-क्या माएँ बच्चों के लिए आर्दश बन पा रही हैं?

क्या महिलाएं बेहतर और कायाकल्प नेतागीरी दे रही हैं. क्या वे कोई नई शैली तैयार कर रही हैं. क्या पेशेवर महिलाओं की कोई ख़ास शैली है?

क्या वे एक ज़्यादा रचनात्मक विकल्प साबित हो रही हैं या वे सामूहिक शक्ति का विकल्प बन रही हैं?

क्या जनता के नज़रिए से महिलाएं बेहतर काम कर रही हैं? क्या उन्हें पसंद किया जा रहा है और पुरुषों की तुलना में उन्हें ज़्यादा विश्वसनीय व्यक्ति, ज़्यादा विश्वसनीय अधिकारी और ज़्यादा विश्वसनीय आयोजक माना जा रहा है?

पेशेवर महिलाएँ
पुरुषों की तुलना में महिलाओं को ज़्यादा विश्वसनीय माना जा रहा है

सवालों के जवाब

मेरे जवाब यह थे कि अगर हम महिलाएं यह मानती हैं और लोग भी उम्मीद करते हैं कि हम समाज में बदलाव लाने वाले वर्ग के रूप में सामने आएँ तो कैसे हम बेहतरी कर सकते हैं

क्या शिक्षित महिलाओं ने समाज के उन वर्गों के जीवन की गुणवत्ता में कुछ सुधार किया है जहाँ से वे उठ कर आई हैं. चाहे वह कार्यस्थल हो, घरेलू काम, सामाजिक कार्य, नीति निर्धारण हो, व्यापार हो या सरकार चलाना ही हो.

या फिर महिलाओं के बंधन की ही बात हो या वे किस तरह ख़ुद को संगठित करती हैं या किस तरह वे ख़ुद को नागरिक ज़िम्मेदारियों के साथ जोड़ती हैं.

इनमें हर सवाल शोध और विश्लेषण का विषय है. हमें इसका जवाब इसलिए चाहिए क्योंकि हमें इन्हें जानने की ज़रूरत है.जैसे ये जानना ज़रूरी है कि महिला पंचों में गाँव में क्या योगदान दिया.

क्या उन्होंने बेहतर काम किया. किया तो क्यों और नहीं किया तो क्यों. क्या ये बड़ा बदलाव था या सब कुछ सिर्फ़ कागज़ी रहा?

जागरूकता

मामले का सच और सभी सवालों का निचोड़ तो यह है कि महिलाएँ एक नए वर्ग के रूप में नई आशा हैं.

उनसे की जाने वाली उम्मीद बहुत से मायनों में अलग है.

 हर सवाल शोध और विश्लेषण का विषय है. हमें इसका जवाब इसलिए चाहिए क्योंकि हमें इन्हें जानने की ज़रूरत है
 
किरण बेदी

क्या वे यह जानती हैं कि उनके ऊपर यह एक और ज़िम्मेदारी है. कैसे उन्हें इन उम्मीदों के बारे में पता लगे? उनकी अपनी जागरुकता से या बाहर से?

इस लेख का एक निष्कर्ष यह है कि नेताओं के एक नए वर्ग के रूप में महिलाएँ समाज का कायाकल्प तभी कर सकती हैं जब उन्हें नीतियों, पेशेवर प्रशासन और निजी संबंधों में किए जा रहे ग़लत कामों के बारे में जागरूक किया जाएगा.

ताकि वे पहले व्यक्तिगत रूप से और फिर सामूहिक रूप से इसे नकारने का प्रण लें.

मैं मानती हूँ कि केवल तभी महिलाएँ सभी क्षेत्रों में बेहतरी करते हुए नए भारत के कायाकल्प के लिए एक उत्प्रेरक के रूप में उभर सकती हैं.

घर, पड़ोस, समुदाय, कार्यस्थल और समाज सभी क्षेत्रों में कायाकल्प तभी संभव है.

 
 
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