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गुरुवार, 15 नवंबर, 2007 को 14:47 GMT तक के समाचार
 
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दीवाली पर 'मीठी-मीठी' सलाह
 

 
 
युवावर्ग
युवावर्ग में कभी-कभी धैर्य की कमी और जल्दबाज़ी देखने में आती है
दीवाली पर आमतौर पर लोग घर आते ही हैं मिलने-मिलाने, लेकिन उसी दौरान दो ऐसे अनुभव हुए हैं जो मैं आप से बांटना चाहती हूँ.

चलिए पहले से शुरुआत करती हूँ:

दीवाली के दिन सुबह-सुबह मेरी एक पुरानी मित्र मुझसे मिलने आईं और उनके साथ एक युवती थी जो बहुत उत्साहित नज़र आ रही थी.

मेरी मित्र ने बताया कि वह लड़की उनकी धेवती है जो एक बहुत ही प्रतिभावान छात्रा है और शहर के एक मशहूर कॉलेज में पढ़ाई कर रही है.

औपचारिकताएँ पूरी होने के बाद लड़की ने मुझसे कहा कि उसके विश्विद्यालय के संस्थापक राष्ट्रीय स्तर का एक अख़बार निकालना चाह रहे हैं. फिर उसने मुझसे पूछा कि क्या वह उसके लिए मेरा इंटरव्यू ले सकती है.

 मैंने फिर पूछा कि आमतौर पर छात्र ऐसे विषयों की तैयारी किस तरह करते हैं? क्या वे संदर्भ सामग्री का इस्तेमाल करते हैं या उपयुक्त वेबासइट पर जा कर सामग्री जुटाते हैं? और, क्या अध्यापक इस बारे में उनका मार्गदर्शन करते हैं कि शोध कैसे किया जाए? इत्यादि...
 

मैंने कहा, "ठीक है. लेकिन कब"? लड़की ने जवाब दिया, "अभी फ़ौरन". मैं थोड़ा चौंकी. यह एक विशिष्ट दिन था और मेहमान लगातार आ रहे थे.

मुझे कुछ अजीब सा भी लगा कि इस लड़की पहले से ही यह कैसे सोच कर आ गई कि मैं उसे इतना समय दे पाऊँगी.

मैं हालाँकि उसका उत्साह समझ पा रही थी और यह भी समझ रही थी कि वह इन मामलों में अनुभवी नहीं है, फिर भी मैंने पूछ लिया कि क्या उसके दिमाग़ में कोई सवाल हैं.

लड़की ने तुरंत अपने बैग से एक सूची निकाल ली.

यह निस्संदेह काफ़ी लंबी सूची थी और उसके साथ पूरा न्याय करने के लिए एक घंटे का समय दरकार था. फिर सवाल भी बहुत बुनियादी थे. ऐसे सवाल जिनके बारे में सूचना इंटरनेट और मेरी वेबसाइट पर पहले से ही उपलब्ध है.

ऐसे ही जिज्ञासावश मैं ने उससे पूछा कि उसने इन सवालों की तैयारी कैसे की है?

"बस यूँही", लड़की ने जवाब दिया.

तैयारी कैसे करते हैं छात्र

मैंने फिर पूछा कि आमतौर पर छात्र ऐसे विषयों की तैयारी किस तरह करते हैं? क्या वे संदर्भ सामग्री का इस्तेमाल करते हैं या उपयुक्त वेबासइट पर जा कर सामग्री जुटाते हैं? और, क्या अध्यापक इस बारे में उनका मार्गदर्शन करते हैं कि शोध कैसे किया जाए? इत्यादि...

लड़की ने कहा, "जी, हमें सलाह दी जाती है".

मैंने पूछा, "तो इसका मतलब यह कि तुमने इस बार भी सवाल तैयार करते समय कुछ तैयारी तो ज़रुरी की होगी"?

उसने जवाब दिया, "नहीं मैंने ऐसा तो कुछ नहीं किया".

दीवाली
दीवाली का प्रकाश अपने जीवन तक लाने के लिए युवाओं को स्वयं मेहनत करनी होगी

मैं व्यक्तिगत तौर पर उसके लिए मुश्किल नहीं पैदा करना चाहती थी. बस यही जानना चाहती थी कि वह एक कॉलेज छात्रा के तौर पर ऐसे विषय (इस मामले में मेरा इंटरव्यू) से पहले कुछ बुनियादी रिसर्च करने की इच्छुक थी या नहीं?

वह क्या इतना भी जानती थी कि जिस व्यक्ति का वह इंटरव्यू करने जा रही है उसके बारे में इंटरनेट पर या अख़बारों में क्या छपा है?

उसने ऐसी कोई तैयारी नहीं की थी. उसके सवालों की सूची से ऐसा साफ़ ज़ाहिर था.

फिर मैंने उसे बताया कि छात्रों को ऐसे मामलों में किस तरह की तैयारी करनी होती है. और इसका सिर्फ़ मुझसे ही संबंध नहीं है. कोई भी काम हाथ में लेने से पहले उसके बारे में पूरी जानकारी जुटानी और रिसर्च करना एक ऐसा नियम है जो लाज़मी है.

मैंने उससे कहा कि वह पूरी तैयारी से आए और फिर मैं उसे इंटरव्यू ज़रूर दूँगी.

मुझे याद आता है कि कैसे मैंने कुछ महीने पहले इसी काम के लिए अपने टीचरों के साथ आई एक स्कूली छात्रों की टीम को वापस लौटा दिया था.

मैंने उनसे कहा कि मैं उन्हें वह रियायत नहीं दूँगी जो उनके हित में नहीं है और बेहतर होगा वे स्वयं पूरी तैयारी करें.

उन छात्रों और टीचरों को बात समझ में आ गई और कुछ दिन बाद वे कुछ अन्य तरह के सवाल ले कर आए. उससे पहले उन्होंने पूरी रिसर्च की थी.

जीवन से हताश

जब मैं इस लड़की से बात कर रही थी उसी समय एक युवक मुझे दीवाली की शुभकामनाएँ देने आया.

उसने बताया कि वह आर्थिक रूप से संपन्न नहीं है लेकिन वह नियमित रूप से पब्लिक लाइब्रेरी जाता है और अच्छी किताबें पढ़ता है.

उसने आगे कहा कि वह बहुत हताश है और अपनी ज़िंदगी ख़त्म करना चाहता है.

मैंने उससे पूछा कि वह ऐसा क्यों महसूस कर रहा है. उसका कहना था इस वजह से क्योंकि वह यह नहीं जानता कि उसे अपने जीवन में क्या करना चाहिए.

मैंने उससे कहा कि वह ऐसे किसी रचनात्मक काम की तलाश क्यों नहीं करता जो उसे दिलचस्प भी लगे और उसे व्यस्त भी रखे. वह कुछ भी हो सकता है. बात छोटे या बड़े काम की नहीं है.

 एक ओर मेरे साथ एक कॉलेज की छात्रा है जो बिना किसी तैयारी के आई है लेकिन तुरंत उसका फल चाहती है. तो दूसरी ओर एक युवक है जो हताश है और अपनी प्रतिभा से अपरिचित है. लेकिन साथ ही यह भी चाहता है कि बिना मेहनत या धैर्य के सब कुछ पका पकाया मिल जाए.
 

यह सवाल है अपनी कमाई से पैदा हुए आत्मसम्मान का और वर्तमान हालात के मद्दे नज़र अपने लक्ष्य को हासिल करने का.

मैंने जिज्ञासा ज़ाहिर की कि क्या तथाकथित शिक्षित लेकिन बेरोज़गार युवा अपने हाथों और दिमाग़ का इस्तेमाल कर मेहनत करने का आदी नहीं रहा है.

मैंने सोचा कि दीवाली की सुबह की शुरुआत का इससे बेहतर और फलदायक इस्तेमाल और क्या हो सकता था.

एक ओर मेरे साथ एक कॉलेज की छात्रा है जो बिना किसी तैयारी के आई है लेकिन तुरंत उसका फल चाहती है. तो दूसरी ओर एक युवक है जो हताश है और अपनी प्रतिभा से अपरिचित है. लेकिन साथ ही यह भी चाहता है कि बिना मेहनत या धैर्य के सब कुछ पका पकाया मिल जाए.

क्या यह एक आम समस्या है या कुछ विशिष्ट लोगों की ही परेशानी? क्या आज के युवाओं के पास धैर्य नहीं है या वे सचमुच जीवन से कुछ ज़्यादा ही चाहते हैं?

दोनों ही दीवाली के मौक़े पर कुछ मीठी सलाह ले कर गए और उम्मीद है वह उनके जीवन को बेहतर बनाने में काम आएगी और यह दीवाली उनके लिए एक यादगार दीवाली रहेगी.

 
 
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