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अपनी छवि सुधारनी होगी
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मुझे याद है कि बचपन में हम में से कुछ चाहते थे कि क्लास या विश्वविद्यालय के रिज़ल्ट में उनकी हमेशा फ़र्स्ट डिवीज़न आए.
फ़र्स्ट डिवीज़न के लिए कम से कम 60 प्रतिशत अंक जरूर होने चाहिए जबकि सेकेंड डिवीज़न 40 प्रतिशत और थर्ड डिवीज़न 33 प्रतिशत से शुरू होती है. वह समय था पचासवें, साठवें और सत्तरवें दशक का और फ़र्स्ट डिवीज़न लाना बहुत गौरव की बात होती थी, जैसा कि आजकल 90 प्रतिशत पर होता है. महँगाई के साथ यह अब 99 प्रतिशत हो गया है. मेरे स्कूली समय के दौरान अगर कोई 33 प्रतिशत लाता था तो भी खराब नहीं था. यहाँ तक कि अगर कोई कंपार्टमेंट के साथ भी पास हो जाए. तब तक भी जब तक कि वह दूसरी क्लास में न पहुँच जाए. माता-पिता यही कहा करते थे कि कम से कम हमारा बच्चा पास तो हो गया. सिर्फ़ पास होना ही अच्छा था...यह बात महत्व नहीं रखती थी कि वह सीढ़ी के नीचे की ओर से पास हुआ है. संयुक्त राष्ट्र संघ की घोषणा के अनुसार नौ दिसंबर को भ्रष्टाचार निरोधक दिवस के रूप में मनाया जाता है. भारत में भ्रष्टाचार वैश्विक भ्रष्टाचार बैरोमीटर-2007, जो भ्रष्टाचार को आम जनता की आँखों से नापता है को हम भारतीयों के लिए यह कहना पड़ा, चार में से तीन भारतीय यह मानते हैं कि राजनीतिक पार्टियाँ और पुलिस सबसे ज़्यादा भ्रष्ट है.
ऐसे लोगों जिनका पिछले साल पुलिस विभाग से वास्ता पड़ा, में आधे यह कहते हैं कि उनको अपना काम करवाने के लिए रिश्वत देनी पड़ी. यह बर्लिन स्थित वाच डॉग ट्रांसपेरेंसी इंटरनेशनल की हालिया रिपोर्ट के निष्कर्षों का एक हिस्सा भर है. देखते हैं कि वे कौन से देश हैं जो पहले नौ नंबरों में शुमार हैं और जिन्होंने फ़र्स्ट क्लास फ़र्स्ट पाई, या एकता में डिस्टिंक्शन हासिल किया है... इनमें हैं- डेनमार्क (9.4), फ़िनलैंड (9.4), न्यूज़ीलैंड (9.4), सिंगापुर (9.4), स्वीडन (9.4), आइसलैंड (9.4), नीदरलैंड (9.4) और स्विटज़रलैंड (9.4) हैं. इसके बाद कनाडा (8.7), नार्वे (8.7), ऑस्ट्रेलिया (8.6), इंग्लैंड (8.4) और अमरीका (7.2) हैं. अधिक जानकारी के लिए www.ICGG.ORG देखी जा सकती है. अब मैं उन देशों के नाम भी बता दूँ जो भारत (3.5) से भी नीचे हैं और पास होने के लिए मिलने वाले न्यूनतम अंक भी नहीं पा सके हैं (या थर्ड डिवीज़न में पास हुए हैं) इनमें हैं- मालदीव (3.3) (बस पास), श्रीलंका (3.2) (फ़ेल), नेपाल (2.5) (फ़ेल), पाकिस्तान (2.4) (फ़ेल), बांग्लादेश (2.0)(फ़ेल) और बर्मा (1.4) (फ़ेल). जहाँ तक कि हमारे पड़ोसी देशों और पूरे दक्षिण एशियाई क्षेत्र की बात है, इनमें एक ही अपवाद है- भूटान (5.0). आश्चर्यजनक रूप से भारत समेत क्षेत्र के इन सभी देशों में राजनीति में उच्च स्थानों पर कभी-न-कभी महिलाएं विराजमान रही हैं. यह इस भ्रांति को दूर करने के लिए काफ़ी है कि महिलाएं ज़्यादा ईमानदार कार्यप्रणाली उपलब्ध कराती हैं और भ्रष्टाचार को कम करती हैं. सभी जानते हैं कि भ्रष्टाचार का असर गरीबों पर सबसे ज़्यादा पड़ता है. रिश्वत भी अपनी बुनियादी सेवाओं के लिए अक्सर गरीबों को ही देनी पड़ती है.
ट्रांसपेरेंसी इंटरनेशनल की रिपोर्ट बताती है कि भ्रष्टाचार प्रत्यावर्ती करों के साथ कम आय वाले घरों पर चोट करता है और उनके सीमित संसाधनों को भी निचोड़ लेता है. क्या हम जानते हैं कि विकासशील देशों को मदद के रूप में मिल रहे एक डॉलर के बदले पैसे को वैश्विक वित्तीय केंद्रों में सुरक्षित रखने के लिए मेज़ के नीचे से दस डॉलर विकसित दुनिया की झोली में जा रहे हैं. क्या उनका पैसा लेना चाहेंगे? वापस आता है तो केवल ऋण के रूप में वो भी भारी भरकम ब्याज के साथ. संकल्प लें आश्चर्य होता है कि ऐसे मुद्दे कभी गंभीर विचार का विषय या सार्क देशों जैसे किसी सम्मेलन में बहस का मुद्दा बनेंगे जिन क्षेत्रों में करोड़ों गरीब रहते हैं. इसके लिए हमें ख़ुद ही एक भारतीय की तरह अपनी स्थिति को मज़बूत करना होगा ताकि भारत निवेश के लिए एक पसंदीदा स्थान बन जाए. आने वाले साल में हमें एक होकर यह संकल्प लेना होगा कि फ़र्स्ट आने से पहले हम ‘सिर्फ़ पास’ से कम से कम सेकेंड डिवीज़न तक तो बढ़ें. यह तभी संभव है जब हम सब मन लगाकर बहुत सी बातों में से इन कुछ बातों पर ही अमल करें... अपनी लेखा व्यवस्था को सुधारें. इसे समय से पूरा करें और प्रभावी बनाएं. गलतियों को ढ़ूढ़ने की बजाय उनके बचाव पर ज़्यादा ध्यान केंद्रित करें. हम जानते हैं कि भ्रष्टाचार के मामलों में सफलतापूर्वक सज़ा देना कितना मुश्किल होता है. सूचना के अधिकार का दुरुपयोग नहीं, प्रभावशाली उपयोग करें. सरकारी खर्चों के बारे में चाहे वे छोटे हों या बड़े, सूचना माँगें. सारे खर्च मापने योग्य और उद्देश्यपरक होने चाहिए. इसका अर्थ है अग्रसक्रिय नागरिकता. नागरिकों और मीडिया साझेदार होकर पूंजी संचलन को थाम सकते हैं, भ्रष्टाचार विरोधी जागरुकता के प्रति विशेष अभियान चलाने के साथ लोगों को शिक्षित भी कर सकते हैं.
बड़ी-बड़ी मछलियों की ग़लत तरह से जोड़े गए धन के बारे में कानूनी रूप से प्रमाण मांग सकते है ताकि लोगों का धन लोगों को वापस मिल सके. सबसे महत्वपूर्ण बात है कि ...ट्रांसपेरेंसी इंटरनेशनल एक संस्था की तरह पूरी दुनिया में फैली हुई है ताकि ऐसे वित्तीय संस्थान जहां भ्रष्टाचार का पैसा रुकता हो, या सुरक्षित रूप से रखा जाता हो, को पहचान कर लोगों के सामने लाया जाए. इसके साथ ही हर साल की तरह भ्रष्टाचार के मामले में विभिन्न देशों के स्कोर तय करके एक सूची बनाना भी इस संस्था का काम है. कल्पना करें, अगर भ्रष्टाचार के धन को रुकने के लिए कहीं जगह ही नहीं मिलेगी तो यह धन एक सीमा के बाद केवल कागज की अहमियत रखेगा. पलंग, अलमारी, गद्दों या तकियों और दीवारों तक में कितना धन रखा जा सकता है. संभवतया भ्रष्टाचारी के लिए यही आत्मसीमा हो या यह उसके प्रलोभन को कम करे. संभवतया यह एक बेहतर सोच हो. लेकिन हमें कहीं, कभी तो शुरूआत करनी ही होगी. आख़िर कब तक दुनिया के ईमानदार लोग मुश्किलें झेलेंगे और इंतज़ार करेंगे. |
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