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हिरासत में मौत पर महेश भट्ट की फ़िल्म | |||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||
कई विवादित विषयों पर फ़िल्म बना चुके बॉलीवुड के मशहूर फ़िल्मकार महेश भट्ट ने अब अपनी नई फ़िल्म का विषय चुना है- कश्मीर में पुलिस हिरासत में होने वाली मौतों को. 'धोखा' नाम की इस फ़िल्म का निर्देशन करेंगी उनकी बेटी पूजा भट्ट. बीबीसी के साथ विशेष बातचीत में महेश भट्ट ने कहा कि वे आम मुसलमान के नज़रिए से हिंदुस्तान के मौजूदा दौर को देखना चाहते थे. साथ ही वे पुलिस अत्याचार और सरकार समर्थित आतंकवाद को भी लोगों तक पहुँचाना चाहते थे. उन्होंने कहा कि 11 सितंबर, सात जुलाई, बाबरी मस्जिद विध्वंस और गुजरात दंगों के बाद भारत का माहौल भी बदल गया है और वे किसी पीड़ित मुस्लिम मानसिकता से भारत को देखना और समझना चाहते थे. महेश भट्ट ने कहा, "मेरी फ़िल्म का मुख्य किरदार एक मुस्लिम पुलिसवाला है. जो एक मुसलमान होने के नाते अपने आप पर गर्व भी महसूस करता है." महेश भट्ट की इस फ़िल्म में मुख्य किरदार निभाएँगे कश्मीरी मॉडल मुज़म्मिल इब्राहिम. महेश भट्ट ने कहा कि उन्होंने कई बार कश्मीर की यात्रा की थी और जब वे वहाँ जाते थे, तो वहाँ की जनता उन्हें ताने देती थी. ताने उन्होंने कहा, "वहाँ की जनता हमसे ये कहती थी कि भइया आप तो अपने को सच का पुजारी कहते हैं. आप तो निडर होकर अपनी बात बुलंद करते हैं. लेकिन यहाँ के मामले पर आपको साँप सूँघ जाता है." यह पूछे जाने पर किसी ख़ास घटना ने उन्हें ये फ़िल्म बनाने के लिए प्रेरित किया. महेश भट्ट ने कहा- ऐसी ख़बर आई थी कि एक पुलिसवाले ने एक कश्मीरी युवक को आतंकवादी कहकर इसलिए मार दिया कि उसे आर्थिक लाभ होगा और तरक्की होगी. लेकिन उसकी पोल खुल गई और उसे गिरफ़्तार भी कर लिया गया. महेश भट्ट ने कहा कि सरकार समर्थित आतंकवाद दस गुना ज़्यादा ख़तरनाक है. उन्होंने बताया कि फ़िल्म की शूटिंग मई में पूरी हो जाएगी और अगस्त तक इस फ़िल्म को रिलीज़ करने की योजना है. इस फ़िल्म की ज़्यादातर शूटिंग मुंबई में होगी और कुछ हिस्सा कश्मीर में भी फ़िल्माया जाएगा.
फ़िल्म की कहानी लिखी है शगुफ़्ता रफ़ीक ने. शगुफ़्ता महेश भट्ट की चर्चित फ़िल्म 'वो लम्हे' भी लिख चुकी है और 'आवारापन' पर काम कर रही हैं. बीबीसी से बातचीत में उन्होंने कहा कि वो दो-तीन साल पहले से महेश भट्ट के साथ इस फ़िल्म पर काम कर रही थी. उन्होंने कहा, "जितनी भी फ़िल्म आतंकवाद को लेकर बनती है. उन सबमें आतंकवादियों को ही दोषी ठहराया जाता है. लेकिन अगर इतने व्यापक रूप में आतंकवाद बढ़ा है तो उसके पीछे कोई वजह भी तो होगी." शगुफ़्ता ने बताया कि ये फ़िल्म आतंकवाद का कारण जानने की कोशिश है और इस फ़िल्म में एक ऐसे आदमी के माध्यम से यह जानने की कोशिश की गई है जो आम आदमी से आतंकवादी बन जाता है. उन्होंने बताया कि इस कहानी को पूरा करने के क्रम में पूरी दुनिया के कई आतंकवादी गुटों और आतंकवादियों के बारे में अध्ययन किया गया और कई चीज़ों को समेटने की कोशिश की गई. यह पूछे जाने पर कि कहीं लोगों को इस फ़िल्म से ये तो नहीं लगेगा कि फ़िल्म में आतंकवाद को महिमामंडित करने की कोशिश की गई है, शगुफ़्ता ने कहा कि उन्हें इसका अंदाज़ा था कि कहीं इस फ़िल्म में आतंकवाद का महिमामंडन ना हो जाए और उन्होंने इस फ़िल्म में इसका पूरा ख़्याल रखा है. उन्होंने बताया कि फ़िल्म में दो चरित्र हैं. एक जो आतंकवाद का समर्थन करता है और दूसरा जो उसका विरोध करता है और अंत में जीत आतंकवाद का विरोध करने वाले की ही होती है. | इससे जुड़ी ख़बरें बिग ब्रदर विवाद में आपराधिक आरोप नहीं10 मार्च, 2007 | पत्रिका आख़िरकार भारत में रिलीज़ हुई वाटर09 मार्च, 2007 | पत्रिका नायर ने हर्ली संग सात फेरे लिए09 मार्च, 2007 | पत्रिका मणिरत्नम की फ़िल्म में पहली बार आमिर08 मार्च, 2007 | पत्रिका शहंशाह अमिताभ हैं 'सुपर भगवान'08 मार्च, 2007 | पत्रिका औरंगज़ेब के काल का क़ुरान बरामद08 मार्च, 2007 | पत्रिका पुरुषों के नज़रिए से गढ़े जाते हैं महिला किरदार06 मार्च, 2007 | पत्रिका क्या वापस आएँगी रूप की रानी?03 मार्च, 2007 | पत्रिका | |||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||
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