तालिबान, भारत और रूस की बातचीत से क्या हासिल होगा?

    • Author, टीम बीबीसी हिंदी
    • पदनाम, नई दिल्ली

अफ़ग़ानिस्तान में शांति बहाली के लिए रूस शुक्रवार को एक बहुपक्षीय सम्मेलन का आयोजन कर रहा है.

कई देशों के प्रतिनिधि इस सम्मेलन में शिरकत करने के लिए मॉस्को पहुचे हैं. लेकिन इस सम्मेलन में तीन पक्षों पर सबसे ज़्यादा लोगों की नज़र है.

पहला है भारत, जिसने कहा है कि वो इस सम्मेलन में ग़ैर आधिकारिक तौर पर शामिल होगा.

दूसरा है अफ़ग़ानिस्तान और वो भी सीधे तौर पर इस सम्मेलन में शामिल नहीं हो रहा. अफ़ग़ान सरकार ने एक स्वतंत्र प्रतिनिधिमंडल मॉस्को भेजा है.

तीसरा पक्ष है तालिबान, जिसके कुछ 'सबसे वरिष्ठ नेताओं' का प्रतिनिधिमंडल क़तर से मॉस्को पहुंच रहा है.

साल 2001 में तालिबान की सरकार के बहिष्कार के बाद ये पहली बैठक है जिसमें अफ़ग़ानिस्तान में शांति बहाली के पैरोकार तालिबान के साथ हिस्सा ले रहे हैं.

वहीं भारत भी पहली बार ग़ैर आधिकारिक तौर पर इस बैठक में शामिल होगा और तालिबान से सीधी बात करेगा.

भारत की भूमिका क्या होगी?

गुरुवार को इस बैठक में भारत के शामिल होने से जुड़े सवालों के जवाब में भारतीय विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता रवीश कुमार ने कहा कि भारत अनौपचारिक रूप से शिरकत कर रहा है और तालिबान से कोई बात नहीं होगी.

उन्होंने कहा, "हम इससे वाकिफ़ हैं कि रूस 9 नवंबर को मॉस्को में अफ़ग़ानिस्तान पर एक बैठक की मेज़बानी कर रहा है. भारत अफ़ग़ानिस्तान में शांति और सुलह के सभी प्रयासों का समर्थन करता है."

"भारत की हमेशा ये नीति ये रही है कि इस तरह के प्रयास अफ़ग़ान-नेतृत्व में, अफ़ग़ान-स्वामित्व वाले और अफ़ग़ान-नियंत्रित तथा अफ़ग़ानिस्तान सरकार की भागीदारी के साथ होने चाहिए. इस बैठक में हमारी भागीदारी ग़ैर आधिकारिक तौर पर होगी."

भारत की ओर से इस बैठक में पूर्व राजदूतों का शिष्टमंडल हिससा लेगा.

लेकिन बैठक हो क्यों रही है?

इस सम्मेलन को रूस द्वारा अफ़ग़ानिस्तान की शांति प्रक्रिया में अपनी भागीदारी बढ़ाने के प्रयास के तौर पर देखा जा रहा है.

रूसी-इसराइली लेखक इसराइल शामीर ने एक रूस समर्थक मीडिया संस्थान के लिए अपनी रिपोर्ट में लिखा है कि "रूस ने अफ़ग़ानिस्तान की मदद करने का फ़ैसला किया है ताकि दोनों देशों के बीच एक समझौता हो सके और लंबे समय से चले आ रहे युद्ध पर विराम लगे."

हालांकि अफ़ग़ानिस्तान में लोगों को इस बैठक से बहुत ज़्यादा उम्मीदें नहीं हैं क्योंकि अफ़ग़ानिस्तान के लोगों की नज़र में रूस तालिबान को हथियार और फ़ंडिंग देने का आरोपी है.

अफ़ग़ानिस्तान के एक स्वतंत्र टीवी समाचार चैनल, टोलो न्यूज़ से बात करते हुए अफ़ग़ान सांसद सालेह मोहम्मद सालेह ने कहा, "रूस और अमरीका, इन दोनों महाशक्तियों के बीच तनाव है. रूस नहीं चाहता कि अफ़ग़ानिस्तान में सिर्फ़ अमरीका की मौजूदगी रहे. ऐसे हालात में यही कहा जा सकता है कि ये शांति वार्ता नहीं हैं."

क्या हैं उम्मीदें?

पहले इस सम्मेलन को 4 सितंबर को होना था. लेकिन इसे दो बार टाला गया. 9 नवंबर से पहले इस सम्मेलन को 1 नवंबर को आयोजित किया जाना था.

अफ़ग़ानिस्तान के कई वरिष्ठ पत्रकार मानते हैं कि काबुल और अमरीका ने अपना रुख़ कड़ा किया, तो मजबूरन रूस को अपना रवैया बदलना पड़ा.

वहीं रूस का कहना है कि इस बैठक का मक़सद अफ़ग़ानिस्तान में राष्ट्रीय सामंजस्य स्थापित करना है.

रूस के विदेश मंत्री ने अगस्त में एक बयान जारी किया था जिसमें उन्होंने कहा था कि ये सम्मलेन रूस और अफ़ग़ानिस्तान के बीच दिलों की दूरी को कम करने के लिए है.

कौन-कौन होगा शामिल?

रूस ने 12 देशों को इस सम्मेलन में शामिल होने के लिए आमंत्रित किया था.

इसमें भारत समेत ईरान, चीन, पाकिस्तान, तज़ाकिस्तान और तुर्कमेनिस्तान जैसे देशों के नाम शामिल है.

हालांकि ये अभी तक स्पष्ट नहीं हो पाया है कि कितने देशों ने इस सम्मेलन में होने के लिए सहमति दी है.

तालिबान के नेताओं ने 6 नवंबर को एक लिखित बयान जारी किया था जिसमें उन्होंने कहा था कि रूस की तरफ से उन्हें आमंत्रण मिला है और उनका एक प्रतिनिधिमंडल इस सम्मेलन में शामिल होगा.

तालिबान ने अपने बयान में लिखा था, "तालिबान राजनीतिक दूत इस सम्मेलन में हिस्सा लेने के लिए रूस जाएंगे. इसका मतलब ये नहीं कि वो सभी से बात करेंगे. हमारा प्रतिनिधमंडल अफ़ग़ानिस्तान में अमरीका की घुसपैठ पर चर्चा को केंद्रित रखेगा. इसके अलावा क्षेत्रीय शांति पर भी वो चर्चा करेंगे."

हालांकि तालिबान ने अभी तक अफ़ग़ानिस्तान में चरमंपथी हमले बंद नहीं किए हैं. इसी साल गाज़ी, फ़राह, कुंदूज़ और उरुज़गान प्रांत में तालिबान ने कई बड़े हमले किए हैं.

क्या कहते हैं विशेषज्ञ?

अफ़ग़ानिस्तान और तालिबान से जुड़े मामलों की गहरी समझ रखने वाले पाकिस्तान में मौजूद वरिष्ठ पत्रकार रहीमुल्ला यूसुफ़ज़ई ने बीबीसी हिंदी से बात करते हुए कहा इस मॉस्को कॉन्फ्रेंस से बहुत ज़्यादा उम्मीदें नहीं करनी चाहिए.

उन्होंने जो बातें कहीं,वे इस तरह हैं:

भारत, ईरान, चीन, अमरीका आदि के प्रतिनिधि होंगे. मेरे विचार से तालिबान की बात को सुना जाएगा कि वह चाहता क्या है और किस तरह से अफ़ग़ानिस्तान में शांति की स्थापना की जा सकती है. लेकिन यह समझना कि मॉस्को कॉन्फ्रेंस के ज़रिये अफ़ग़ानिस्तान में शांति स्थापित हो जाएगी और मसला हल हो जाएगा, व्यावहारिक नहीं है.

जब तक अमरीका इस मसले का हल नहीं चाहेगा और जब तक अफ़ग़ान हुकूमत, तालिबान और अमरीका के बीच मिलकर वार्ता नहीं होगी, इस मसले का हल मुमकिन नहीं है.

एक बात और भी अहम है कि अमरीका अभी तालिबान से क़तर में वार्ता कर रहा है. जुलाई और अक्तूबर में दो दौर की वार्ता हो चुकी है. उससे भी उम्मीद पैदा हुई है कि अफ़ग़ानिस्तान के दो स्टेकहोल्डर आपस में बात कर रहे हैं.

तालिबान की मांग यही थी कि अमरीका से बात हो क्योंकि उनकी मुख्य मांग है कि विदेशी सेनाओं की वापसी हो. तालिबान कहता है कि सिर्फ़ अमरीका ही इसपर फ़ैसला कर सकता है.

इसलिए तालिबान अफ़ग़ान सरकार से बात नहीं करना चाहता जबकि अमरीका चाहता है कि तालिबान अफ़ग़ान सरकार के ज़रिये बात करे. ये एक रुकावट है लेकिन मॉस्क़ो कॉन्फ्रेंस की तुलना में क़तर में हो रही वार्ता से नतीजे निकलने की संभावनाएं ज़्यादा हैं.

(बीबीसी मॉनिटरिंग के इनपुट्स के साथ)

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