क्यों अब भी 'मज़बूत' है इस्लामिक स्टेट की ख़ुरासान शाखा

    • Author, जैनुल आबिद
    • पदनाम, बीबीसी मॉनिटरिंग

चरमपंथी संगठन इस्लामिक स्टेट ने इस साल अफ़ग़ानिस्तान में कई घातक हमले किए.

सीरिया में अपनी तथाकथित राजधानी रक्का से इस्लामिक स्टेट को बाहर हुए अब एक साल हो चुका है. तब से आईएस वहां वापसी नहीं कर पाया है, लेकिन अफ़ग़ानिस्तान और पाकिस्तान को कवर करते इलाके ख़ुरासन प्रांत में उसे अपने लिए कुछ उम्मीद दिखती है.

2015 की जनवरी में स्थापित की गई इस्लामिक स्टेट की ख़ुरासान शाखा बीते कुछ वर्षों में आईएस की सबसे शक्तिशाली शाखा के तौर पर उभरी है. हाल ही में संगठन ने अपनी इस शाखा के भौगोलिक नियंत्रण वाले इलाकों में ईरान और कश्मीर को भी जोड़ा है.

इस साल आईएस ने अफ़ग़ानिस्तान में अधिकांश हाई प्रोफ़ाइल हमलों का दावा किया है. इसके हमलावर वहां लगातार राजधानी काबुल में हमले कर रहे हैं, इनमें अक्सर सरकारी इमारतों को निशाना बनाया जाता है. अन्य आईएस शाखाओं के लिए ऐसा सोच पाना भी लगभग असंभव है.

तालिबान और सुरक्षाबलों के हमले

इसके बावजूद, आईएस को अफ़ग़ानिस्तान में अपने प्रतिद्वंद्वी जिहादी संगठन तालिबान के साथ ख़ूनी लड़ाई और अमरीकी और अफ़ग़ानी सुरक्षा बलों के लगातार हमलों के कारण मुश्किलों का सामना करना पड़ा है.

बीबीसी मॉनिटरिंग के जुटाए आंकड़ों के विश्लेषण से दक्षिण एशिया में इस्लामिक स्टेट की सूरत-ए-हाल के बारे में पता चलता है.

आंकड़े यह भी बताते हैं कि अफ़-पाक शाखा की गतिविधियां भी फिलहाल थमी हुई हैं.

यह विश्लेषण आईएस के आधिकारिक मीडिया आउटपुट से जनवरी 2017 और 1 अक्तूबर 2018 के बीच लिए गए आंकड़ों को दर्शाता है. दूसरे शब्दों में कहें तो यह अफ़ग़ानिस्तान में खुद आईएस के दावों पर आधारित है.

हमलों में 100 फ़ीसदी इज़ाफ़ा

खुद उनके दावों के अनुसार, 2018 के पहले नौ महीनों में आईएस ने पूरे देश में 259 हमले किए. यह पिछले साल की तुलना में 100 फ़ीसदी अधिक है.

इनमें मारे गए क़रीब आधे लोगों को चरमपंथी संगठन तालिबान और अफ़ग़ान राष्ट्रीय सेना (एएनए) के सुरक्षा बलों का बताया गया.

अन्य मारे गए लोगों में सरकारी अधिकारी, सरकार समर्थक मिलिशिया और आम आदमी शामिल हैं. इस्लामिक स्टेट के निशाने पर ख़ास कर शिया मुसलमान रहते हैं, जिन्हें आईएस विश्वासघाती मानता है.

इसकी तुलना में, आईएस ने ये भी कहा है कि उसने पिछले साल 139 हमले किए जिसमें 1,856 लोग मारे गए.

अगर दोनों सालों में किए गए हमलों की तुलना करें तो 2017 में औसतन प्रति महीने 11 हमलों की तुलना में इस साल अब तक यह संख्या हर माह 29 हमले की रही है.

2018 में किया गया सबसे बड़ा हमला काबुल में था. आईएस ने 30 अप्रैल को नाटो मुख्यालय और अमरीकी दूतावास के पास दो आत्मघाती हमले किए जिसमें नौ पत्रकारों समेत कम से कम 29 लोग मारे गए थे. हालांकि, आईएस ने दावा किया कि 115 से ज़्यादा लोग या तो मारे गए या घायल हुए.

आईएस ने एक और दावा किया कि उसने 9 मार्च को काबुल में एक मस्जिद परिसर के पास शिया मुसलमानों पर आत्मघाती बम हमला किया जिसमें मृतकों और घायलों की कुल संख्या 200 रही.

रणनीति में बदलाव

आईएस ने अपनी रणनीति में बदलाव किया है. अब वो अक्सर आत्मघाती हमले करता है. इसके लिए उसके लड़ाकों को खास ट्रेनिंग दी जाती है. आत्मघाती हमलों में हमलावर के बचने की कम ही उम्मीद होती है.

आईएस ने दावा किया कि उसने 2017 में 24 आत्मघाती हमले किए थे, जबकी 2018 में 37 आत्मघाती हमले किए.

उसकी इस रणनीति से पता चलता है कि उसके पास मैन पावर की कमी नहीं है. इसके उलट सीरिया और इराक़ में आईएस के आत्मघाती हमलों में कमी आई है. पिछले सालों के मुकाबले इस साल वहां मानव बम का इस्तेमाल कम रहा. इससे पता चलता है कि सीरिया और इराक़ में आईएस के पास ज़्यादा लड़ाके नहीं बचे हैं.

वहां इस साल ज़्यादा हमलों को आईईडी बम के ज़रिए अंजाम दिया गया.

आंकड़े दिखाते हैं कि 2018 में जिहादी समूहों ने 49 आईईडी हमले किए. जबकि 2017 में इस तरह के सिर्फ 20 हमले हुए थे.

आईएस के प्रमुख युद्धक्षेत्र

देश के पूर्व में स्थित नंगरहार प्रांत आईएस का गढ़ है. वहां होने वाला ज़्यादातर हमलों की ज़िम्मेदारी आईएस ने ली है.

आईएस ने इस साल नंगरहर प्रांत में कुल 169 हमले किए. पिछले साल के मुकाबले इस साल इन हमलों में 100 फीसदी की बढ़ोतरी हुई है.

प्रांत की राजधानी जलालाबाद 56 हमलों से दहली. जिसके साथ ये देश की सबसे ख़तरनाक जगह बन गई.

इस साल इस्लामिक स्टेट ने देश के दूसरे इलाकों में भी अपना प्रसार किया है.

समूह ने इस साल अफ़ग़ानिस्तान के पूर्वी कुनार प्रांत में भी कई हमले किए. पिछले साल आईएस ने यहां दो हमले किए थे, लेकिन इस साल इन हमलों की संख्या बढकर 32 हो गई.

जोज़जान प्रांत में अप्रैल 2017 में आईएस ने एक हमला किया था, लेकिन जुलाई में ही तालिबान ने आईएस को वहां से खदेड़ दिया.

इसके अलावा भी अफ़ग़ानिस्तान के ऐसे कई इलाके हैं जहां आईएस ने अपनी दहशत फैलाई है.

आईएस के निशाने

आईएस की ख़ुरासान शाखा उसकी बाकी शाखाओं में सबसे खतरनाक इसलिए भी है, क्योंकि वो जानती है कि सॉफ्ट और हार्ड टारगेट पर कैसे निशाना लगाना है.

सॉफ्ट टारगेट के तौर पर वो अफ़ग़ानिस्तान की शिया अल्पसंख्यक आबादी को निशाने पर लेती रही है.

आईएस ने पिछले महीने ही काबुल के एक रेस्लिंग क्लब पर दोहरे बम हमले किए थे. मीडिया में आई खबरों के मुताबिक इस हमले में दो पत्रकारों समेत 20 लोगों की मौत हो गई थी.

इससे पहले अगस्त महीने में उसने काबुल के एक विश्वविद्यालय को निशाना बनाया था, जिसमें 48 लोगों की मौत हो गई थी. मरने वालों में अधिकतर यूनिवर्सिटी के छात्र थे.

आईएस की ख़ुरासान शाखा अक्सर स्कूलों को भी धमकियां देती रही है. जबकि आईएस की दूसरी शाखाएं कभी भी मुस्लिम देशों के स्कूलों को निशाने पर नहीं लेती.

आईएस ने ब्रिटिश चैरिटी संस्था 'सेव द चिल्ड्रन' के मुख्यालय, दाइयों के ट्रेनिंग सेंटर और चुनाव दफ़्तरों पर भी हमले किए हैं.

इन सॉफ्ट टारगेट्स के अलावा आईएस ने कई बड़े हमलों को भी अंजाम दिया है. उसने काबुल और जलालाबाद में भारी सुरक्षा वाली सरकारी इमारतों पर बड़े हमले किए. इन हमलों के ज़रिए उसने अफ़ग़ानिस्तान में अपनी ताकत का प्रदर्शन करने की कोशिश की है.

अफ़ग़ान के ग्रामीण विकास मंत्रालय पर दो महीने में उसने दो हमले किए. इसमें सैकड़ों लोगों की मौत हो गई थी.

इसके अलावा आईएस ने जुलाई में अफ़ग़ानिस्तान के उप राष्ट्रपति अब्दुल रशीद पर हुए हाई-प्रोफाइल हमले की भी जिम्मेदारी ली थी. इस हमले में 14 लोगों की मौत हुई थी और 50 से ज़्यादा लोग घायल हुए थे.

हालांकि आईएस ने 115 मौतों का दावा किया था.

टॉप टारगेट

हाल के महीनों में आईएस को तालिबान से कड़ी चुनौती मिली है. अपने प्रतिद्वंदी को बाहर करने के लिए तालिबान पूरी कोशिश कर रहा है.

दोनों समूहों के बीच झड़पों की खबरें भी आती रही हैं, जिनमें दोनों ओर से जानें जा रही हैं.

आईएस ने अफ़ग़ान सुरक्षाबलों के बाद तालिबान को अपना सबसे बड़ा दुश्मन बताया है.

आईएस ने इस साल तालिबान पर 70 हमले करने का दावा किया है. 2017 के 30 हमलों के मुकाबले इस साल के हमलों में 130 फीसदी का इज़ाफा देखा गया है.

ये भी दिलचस्प है कि अफ़ग़ानिस्तान में ज़्यादातर आईएस लड़ाके तालिबान के पूर्व सदस्य हैं.

जुलाई में जारी किए गए एक वीडियो में आईएस ने अपने आत्मघाती हमलावरों का महिमामंडन किया है.

अमरीकी और अफ़ग़ान सुरक्षाबलों के अलावा तालिबान की ओर से लगातार हो रहे हमलों से आईएस को काफी नुकसान हुआ है.

आईएस को सबसे बड़ा झटका जुलाई में उस वक्त लगा, जब तालिबान ने उसे जोज़जान प्रांत से उखाड़ फेंका और आईएस के सैंकड़ो चरमपंथियों, कई प्रमुख कमांडरों को सरकार के सामने आत्मसमर्पण करना पड़ा.

उस वक्त आईएस ने तालिबान और सेना के बीच मिलीभगत होने के आरोप लगाए थे.

इस हार से आईएस के अभियानों पर साफ तौर पर असर दिखने लगा था. तब से आईएस ने पहले के मुकाबले कम हमलों की ज़िम्मेदारी ली है.

जुलाई में आईएस ने 35 हमले किए, लेकिन महज़ 25 हमलों की ही ज़िम्मेदारी ली. इससे साफ तौर पर देखा जा सकता है कि इलाके में आईएस कमज़ोर पड़ा है.

हालांकि इस जिहादी समूह ने हाल ही में उत्तरी कुनदुज़ प्रांत में हुए पहले हमले की ज़िम्मेदारी ली थी. इससे समझा जा रहा है कि आईएस अफ़ग़ानिस्तान में अपने अस्तित्व को बचाए रखने के लिए नए कदम उठा रहा है.

हाल ही में आईएस को एक और झटका उस वक्त लगा जब उसके दो प्रमुख नेता इस साल हुए हवाई हमलों में मारे गए. हालांकि 2016 में भी उसने अपने एक प्रमुख नेता हाफिज़ सईद खान को गंवाया था.

इन झटकों के बावजूद आईएस अमरीका और अफ़ग़ान सुरक्षाबलों को चेतावनी देता रहा है कि वो उसे अफ़ग़ानिस्तान में हरा नहीं पाएंगे.

अनोखा मीडिया ऑपरेशन

अफ़ग़ानिस्तान में आईएस की ख़ुरासान शाखा का मीडिया अभियान भी इसकी दूसरी शाखाओं से बिल्कुल अलग है. इस शाखा का अपना खुद का रेडियो स्टेशन है.

दिसंबर 2015 में इसने एफएम रेडियो की भी शुरूआत की थी. आईएस अपने प्रचार प्रसार के लिए इस एफएम रेडियो का इस्तेमाल करता है.

ख़ुरासान शाखा लगातार ऐसे वीडियो भी जारी करती है जिसमें वो अपने 'शहीद' लड़ाकों और आत्मघाती हमलावारों की ट्रेनिंग की झलकियां दिखाती है.

आईएस अफ़ग़ानिस्तान में बयान जारी करने और प्रचार प्रसार के लिए वीडियो और रेडियो के अलावा मैसेजिंग ऐप टेलिग्राम का भी इस्तेमाल करता है.

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