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सोमवार, 08 मई, 2006 को 12:21 GMT तक के समाचार
 
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प्रभावहीन रही मिस्ट्रेस ऑफ़ स्पाइसेस
 

 
 
ऐश्वर्या राय
गुरिंदर की ब्राइड एंड प्रेज्यूडिस में भी ऐश्वर्या ने काम किया था
पिछले महीने ब्रिटेन और भारत में रिलीज़ हुई ऐश्वर्या राय की फ़िल्म मिस्ट्रेस ऑफ़ स्पाइसेस दर्शकों पर ख़ास प्रभाव नहीं छोड़ पाई है.

गुरिंदर चड्ढा के पति पॉल मायेदा बर्गस निर्देशित इस फ़िल्म का विषय जहाँ लोगों के गले नहीं उतर रहा, वहीं प्रमुख भूमिका में ऐश्वर्या रॉय भी निराश करती हैं.

निर्देशन की दुनिया में पॉल का ये पहला क़दम है. लेकिन फ़िल्म निर्माण में हर क़दम उनका साथ निभाया उनकी पत्नी और चर्चित निर्देशक गुरिंदर चड्ढा ने. गुरिंदर ने इस फ़िल्म की पटकथा भी लिखी है.

ये पहली बार नहीं है कि गुरिंदर ने भारतीय संस्कृति से जुड़ी कहानी पर पटकथा लिखी हो. उनकी क़ामयाब फ़िल्में बेन्ड इट लाइक बेकम, ब्राइड एंड प्रेज़्यूडिस और भाजी ऑन द बीच में भारतीयता कूट-कूट कर भरी थी, लेकिन इन फ़िल्मों की कहानी गढ़ी गई विदेश में.

मिस्ट्रेस ऑफ़ स्पाइसेस चित्रा दिवाकरुणी की एक क़िताब पर आधारित है. कहानी टीलो नाम की एक लड़की की है जो अमरीका में मसाले बेचती है. न केवल खाना पकाने के लिए बल्कि लोगों की मदद के लिए भी.

ताना-बाना

फ़िल्म में टीलो का जादुई किरदार निभाती हैं ऐश्वर्या राय जो मसालों का अजीबोग़रीब इस्तेमाल करती हैं. कभी रिश्तों के ताने-बाने में उलझी अफ़्रीकी जोड़ी के बीच प्यार बढ़ाने के लिए तो कभी पराए देश में कश्मीरी टैक्सी ड्राइवर को अपनी पहचान बनाने के लिए.

 मैं भारत के बारे में ज़्यादा जानने की कोशिश करता हूँ इसलिए ये फ़िल्म देखने आया, क्या भारत जा कर ऐसी किसी मिस्ट्रेस ऑफ़ स्पाइसेस से मैं भी मानसिक तनाव के लिए मदद ले सकता हूँ?"
 
एक अंग्रेज़ दर्शक

लेकिन टीलो ख़ुद बंदिशों में है. मसालों का जादू असरदार रहे- इसलिए वो न तो किसी के साथ संबंध रख सकती है, न ही अपनी दुकान के बाहर क़दम रख सकती है. कहानी तब मोड़ लेती है, जब टीलो को एक अमरीकी से प्यार हो जाता है.

इस फ़िल्म का प्रचार करते हुए गुरिंदर ने बीबीसी से बातचीत में कहा था कि अमरीका और यूरोप में बसे तीसरी पीढ़ी के भारतीयों के लिए ये फ़िल्म भारतीय परंपराओं के बारे में नए दरवाज़े खोल देगी और इसे देखने के बाद वो अपनी नानी-दादी से मसालों के बारे में ज़्यादा जानने के लिए बात करेंगे.

गुरिंदर ने ये भी कहा इस फ़िल्म को विदेशियों के मुक़ाबले भारतीय ज्यादा आसानी से समझ पाएँगें.

लेकिन लंदन के कुछ सिनेमा घरों से फ़िल्म देख कर निकल रहे लोगों की प्रतिक्रिया से ऐसा नहीं लगा. ये बात भले ही हर भारतीय को पता हो कि भारत में सदियों से मसालों और जड़ी-बूटियों का इस्तेमाल किया जाता है.

लेकिन दर्शक फ़िल्म में पेश किए गए मसालों के जादू को हज़म नहीं कर पाए.

सुनीता चोपड़ा गुरिंदर की फ़िल्मों की प्रशंसक हैं. इस फ़िल्म से काफ़ी उम्मीदें लेकर आईं थी लेकिन धीमी गति से बढ़ने वाली इस फ़िल्म की कहानी से वे निराश रहीं.

वहीं फ़िल्म देखने आए अंशुमन लहरिया ने कुछ यूँ अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त की, "मैं ऐश्वर्या राय को पसंद करता हूं इसीलिए ये फ़िल्म देखने आया , लेकिन टीलो का किरदार इतनी नीरस और सादा है कि ऐश्वर्या उसमें जँची नहीं"

पसंद-नापसंद

भारतीय इस फिल्म की उतनी सराहना नहीं कर पाए और विदेशी इसे देख भारत के बारे में विचित्र धारणा बनाने लगे.

गुरिंदर ने इस फ़िल्म की पटकथा लिखी है

एक अंग्रेज़ दर्शक मार्क पेयटन का कहना था, "मैं भारत के बारे में ज़्यादा जानने की कोशिश करता हूँ इसलिए ये फ़िल्म देखने आया, क्या भारत जा कर ऐसी किसी मिस्ट्रेस ऑफ़ स्पाइसेस से मैं भी मानसिक तनाव के लिए मदद ले सकता हूँ?"

ऐश्वर्या राय भले ही इस दौर की अंतरराष्ट्रीय स्तर पर सबसे प्रख्यात भारतीय अभिनेत्री क्यूं न हों. लेकिन टीलो के किरदार की कश्मकश को प्रभावी ढंग से दर्शकों तक नहीं पहुँचा पाईं.

कई लोकप्रिय पुस्तकों पर आधारित फ़िल्में अक्सर बनाई जाती हैं. गॉडफ़ादर और हैरी पॉटर शायद इसका सबसे क़ामयाब उदाहरण है.

लेकिन परदे पर उतारी गई हर कहानी में क़िताब का जादू नहीं आ पाता. मिस्ट्रेस ऑफ़ स्पाइसेस में यही कमी सबसे पहले दर्शकों को खली.

 
 
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