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मंगलवार, 05 जून, 2007 को 20:02 GMT तक के समाचार
 
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24 नए आर्थिक क्षेत्रों को मंज़ूरी
 

 
 
कोचीन का एक सेज़
उद्योग विशेष के लिए भी सेज़ बन रहे हैं
भारत सरकार ने देश में 24 नए विशेष आर्थिक क्षेत्रों (एसईज़ेड या सेज़) के निर्माण को मंज़ूरी दे दी है.

जिन कंपनियों को विशेष आर्थिक क्षेत्र निर्माण की अनुमति मिली है, उनमें रिलायंस और विप्रो शामिल हैं.

कोई दो महीनों तक सेज़ के निर्माण पर रोक के बाद वाणिज्य मंत्रालय ने यह फ़ैसला लिया है.

पश्चिम बंगाल सहित कई राज्यों में सेज़ के ख़िलाफ़ हुए प्रदर्शनों के बाद केंद्र की यूपीए सरकार ने सेज़ के निर्माण पर रोक लगा दी थी.

मंगलवार को हुए फ़ैसलों के अनुसार सरकार ने 13 प्रस्तावों को खारिज कर दिया. नौ प्रस्ताव ऐसे हैं जिनको राज्य सरकारों की मंज़ूरी मिलना शेष है.

बड़े निवेश

जिन प्रस्तावों को मंज़ूरी मिली है, उनमें रिलायंस के दो बड़े सेज़ शामिल हैं.

इनमें से एक 440 हेक्टेयर का विशेष आर्थिक क्षेत्र है जो हरियाणा में बनना है और दूसरा महाराष्ट्र में बनाना है.

महाराष्ट्र के रेवास ने बनने वाला सेज़ मुंबई-दिल्ली मार्ग पर होगा और इसे देश के दूसरे व्यावसायिक क्षेत्रों और बंदरगाहों से जोड़ने के लिए दो सौ तेज़ रफ़्तार से चलने वाली मालगाड़ियाँ चलाने का प्रस्ताव है.

सिंगूर
सिंगूर में विरोध अब भी जारी है

टाटा को उड़ीसा में एक सेज़ बनाने की स्वीकृति दी गई है तो विप्रो को आँध्र प्रदेश में इसकी अनुमति मिली है.

भारत सरकार ने पिछले दो सालों में कुल 111 सेज़ को अनुमति दी है.

सरकार का मानना है कि इस तरह के विशेष आर्थिक क्षेत्रों के विकास से बड़े विदेशी निवेश की संभावना बढ़ेगी और बड़ी संख्या मे रोज़गार की संभावनाएँ पैदा होंगी.

इस तरह की परियोजनाओं का जहाँ एक वर्ग ने स्वागत किया है वहीँ किसानों की ओर से इनका विरोध भी हो रहा है.

उल्लेखनीय है कि भारत की दो तिहाई आबादी अभी भी कृषि पर आधारित है.

पश्चिम बंगाल के सिंगूर में किसान अपनी ज़मीन एसईज़ेड के लिए देने से इनकार कर रहे हैं और इसी विरोध के चलते वहाँ पुलिस को गाली चलानी पड़ी थी जिसमें 14 लोगों की मौत हो गई थी.

विरोध

ऐसा नहीं है कि सिर्फ़ किसान सेज़ का विरोध कर रहे हैं.

तथ्य यह है कि प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को वित्त मंत्रालय और रिज़र्व बैंक की ओर से भी इस परियोजना के लिए विरोध का सामना करना पड़ रहा है.

 इसके लिए अभी भी कोई स्पष्ट नीति नहीं है कि कंपनियाँ सेज़ के लिए ज़मीन का अधिग्रहण किस तरह करेंगी
 
एमके वेणु, संपादक, इकॉनॉमिक टाइम्स

उनका कहना है कि सेज़ के लिए टैक्स में छूट देना ठीक नहीं है.

इकॉनॉमिक टाइम्स के संपादक एमके वेणु कहते हैं, "अभी भी मामला सुलझा नहीं है."

उनका कहना है कि 24 नए सेज़ को अनुमति देकर सरकार ने यह तो साफ़ कर दिया है कि वह सेज़ को लेकर प्रतिबद्ध है लेकिन इनमें से एक भी सेज़ ऐसा नहीं है जो विवादित हो या जिसके लिए बड़ी मात्रा में ज़मीन की ज़रूरत हो.

एमके वेणु का कहना है, "इसके लिए अभी भी कोई स्पष्ट नीति नहीं है कि कंपनियाँ सेज़ के लिए ज़मीन का अधिग्रहण किस तरह करेंगी. अभी इसमें समय लगेगा."

 
 
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