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मंगलवार, 19 दिसंबर, 2006 को 08:09 GMT तक के समाचार
 
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एसईजेड को बढ़ावा देने में महाराष्ट्र आगे
 

 
 
फाइल फोटो
एसईजेड के मामले में महाराष्ट्र अग्रणी राज्यों में है
मुंबई के उपनगर अंधेरी ईस्ट में एक ऐसी जगह है जिसे विदेश की ज़मीन का दर्जा ख़ुद भारत सरकार ने दिया हुआ है.

चारदीवारी से घिरे इस क्षेत्र के अंदर आम अदमी नहीं जा सकता. जैसे विदेश जाने के लिए पासपोर्ट चाहिए वैसे ही इन दीवारों के अंदर जाने के लिए एक पास चाहिए. यह अपने आपमें एक संपूर्ण शहर है. यहाँ बैंक, स्कूल, बाज़ार और घर है. यहाँ बिजली और पानी का अलग से इंतज़ाम है.

आप सोच रहे होंगे मैं मज़ाक कर रहा हूँ. लेकिन यह सच है. यह भारत का अटूट अंग ज़रूर है लेकिन इसे दर्जा दिया गया है ‘विदेश’ का. कुछ वर्षों में पूरे महाराष्ट्र में इस तरह की 72 जगहें और होंगी

असल में भारत सरकार ने व्यापार और निर्यात को बढ़ाने और विदेशी निवेशकों को लुभाने के लिए वर्ष 2000 में एक क़ानून बनाया था, जिसके अंतर्गत विशेष आर्थिक जोन यानी एसईजेड के निर्माण की योजना बनाई गई.

एसईजेड को विदेश का दर्जा इसलिए दिया गया ताकि वहाँ से चीज़ें बाहर भेजने या कच्चा माल लाने में कोई टैक्स न लगे. वहाँ निवेश करने वालों के लिए शुरुआती पाँच वर्षो तक आयकर में पूरी छूट दी गई और उसके अगले पाँच वर्ष के लिए 50 फ़ीसदी की छूट दी गई.

यहाँ विदेशी निवेश सौ फ़ीसदी तक करने की इजाज़त भी दी गई है.

एसईजेड में आगे

महाराष्ट्र उन कुछ राज्यों में से एक है जहाँ एसईजेड सबसे पहले स्थापित किया गया. यह एक ऐसा राज्य है जो एसईजेड को बढ़ावा देने में सबसे आगे है. राज्य सरकार ने 72 एसईजेड के निर्माण को मंज़ूरी दे दी है.

 ज़्यादातर एसईजेड के लिए वो ज़मीनें खरीदी जा रही है जिन्हें उनके मालिक ख़ुद बेचना चाहते हैं. अगर आप ज़मीन बेचना चाहते और हम खरीदते हैं, तो इसमें विवाद कहाँ ?
 
वीके जैरथ

इनमें सबसे बड़ा एसईजेड रिलायंस इंडस्ट्रीज नवी मुंबई में बना रही है. यह एसईजेड तैयार होने के बाद आकार में एक शहर के बराबर होगा, जहाँ आपको हर चीज़ मिलेगी, लेकिन आप वहाँ की बनी चीज़े नहीं खरीद सकते क्योंकि वो निर्यात के लिए होंगी.

72 एसईजेड में से अधिकतर सिंगल प्रोडक्ट यूनिट (एकल उत्पाद इकाई) होंगे, जैसे पुणे में आईटी पार्क बनाए जा रहे हैं. वहाँ और दूसरी चीज़ें नहीं बनाई जाएंगी.

लेकिन इन बड़ी-बड़ी निर्माण इकाइयों को बनाने के लिए ज़मीन भी खूब चाहिए. उदाहरण के तौर पर रिलायंस के मल्टी प्रोडक्ट एसईजेड के लिए 12 हज़ार हेक्टेयर ज़मीन चाहिए. ज़ाहिर है इसमें वो ज़मीन भी खरीदी जाएंगी जिसमें खेती होती है. इसको देखते हुए राज्य के किसान परेशान हैं. उन्होंने इसके ख़िलाफ़ सितंबर और अक्तूबर में काफ़ी रैलियाँ भी निकाली. लेकिन प्रोजेक्ट को अब रोका नहीं जा सकता.

ज़मीन का मसला

महाराष्ट्र सरकार के उद्योग सचिव वीके जैरथ ने बीबीसी को बताया कि जिन ज़मीनों पर खेती होती है वो सरकार एसईजेड या अन्य औद्योगिक कामों के लिए नहीं लेती है. उन्होंने कहा, '‘ज़्यादातर एसईजेड के लिए वो ज़मीनें खरीदी जा रही है जिन्हें उनके मालिक ख़ुद बेचना चाहते हैं. अगर आप ज़मीन बेचना चाहते और हम खरीदते हैं, तो इसमें विवाद कहाँ ?’’

 औद्योगिक हड़ताल होती है तो सरकार इसे आवश्यक सेवाओं की श्रेणी में रख सकती है. मज़दूरों से जुड़े मामलों पर यहाँ तुरंत सुनवाई की सुविधा है. आखिर इस सेक्टर को प्राथमिकता मिली हुई है
 
पीएस रमन

विवादास्पद एसईजेड के आलोचक यह भी कहते हैं कि इससे सड़कों पर दबाव और भी बढ़ेगा. अगर बुनियादी संरचना पर ठीक से ध्यान नहीं दिया गया तो आम जनता को तकलीफ और भी ज़्यादा होगी.

लेकिन सरकार कहती है कि एसईजेड के फायदे इतने हैं कि थोड़ा बहुत नुकसान सहा जा सकता है. जैरथ के अनुसार एसईजेड के आने से लाखों स्थानीय किसानों के बच्चों को नौकरियाँ मिलेंगी. उनका कहना है, '‘हम किसानों के बच्चों को प्रशिक्षित करेंगे उसके बाद वो इन एसईजेड यूनिट में नौकरी हासिल करने के योग्य हो जाएँगे.’’

एसईजेड को लेकर एक और चिंता मज़दूर संगठनों को सती रहा है कि अगर एसईजेड को विदेश का दर्जा दिया जा रहा है तो मज़दूरों के लिए बने भारतीय क़ानून लागू नहीं होंगे. यानी एक मज़दूर को कभी भी नौकरी से निकाला जा सकेगा. लेकिन सरकार ने एसईजेड के लिए मज़दूरों से संबंधित वही क़ानून लागू किए है जो पूरे देश में लागू है.

कार्यप्रणाली

एसईजेड का मॉडल चीन से लिए गया है. इससे चीन में विदेशी निवेश अरबों डॉलर का हुआ है. लेकिन भारत में अब भी विदेशी निवेशक आने से कतराते हैं. इसीलिए सरकार ने उनकी सुविधा के लिए एसईजेड के अंदर विकास आयुक्त नियुक्त किए है.

एसईजेड में निवेश करने वालों की सुविधा के लिए सिंगल विंडो सिस्टम (एकल खिड़की प्रणाली) लागू होगा. मतलब यह हुआ कि अगर कोई विदेशी एसईजेड में निवेश करना चाहता है तो उसके लिए उसे कई सरकारी दफ़्तरों का चक्कर लगाने के बज़ाए केवल विकास आयुक्त के पास जाना होगा. उसके सारे कागज़ात आयुक्त पारित करेंगे.

एसईजेड अंधेरी ईस्ट के उप विकास आयुक्त पीएस रमन कहते हैं, “कांडला के बाद यह देश का दूसरा सबसे पुराना एसईजेड है. औद्योगिक हड़ताल होती है तो सरकार इसे आवश्यक सेवाओं की श्रेणी में रख सकती है. मज़दूरों से जुड़े मामलों पर यहाँ तुरंत सुनवाई की सुविधा है. आखिर इस सेक्टर को प्राथमिकता मिली हुई है.”

अब देखना यह है कि एसईजेड की इस दौड़ में कौन सा राज्य सबसे अधिक विदेशी निवेश आकर्षित कर पाता है.

 
 
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