अंतरिक्ष में रूस पर कितना निर्भर है अमरीका

ओरियन

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    • Author, रिचर्ड हॉलिंगम
    • पदनाम, बीबीसी फ़्यूचर

छुट्टियों के दिन हैं. सब लोग सैर पर जा रहे हैं. ऐसे में चलिए आज आप को ले चलते हैं अंतरिक्ष की सैर पर.

इसके लिए पहली ज़रूरत होती है, अंतरिक्ष यान की. तो, अमरीकी स्पेस एजेंसी नासा बना रही है, अंतरिक्ष जाने के लिए नया स्पेसक्राफ्ट. इसका नाम है ओरियन.

यूं तो ओरियन तकनीक की तरक़्क़ी का शानदार उदाहरण है. मगर, इसमें एक दिक़्क़त है. वो है, जगह की कमी.

असल में अपने नए स्पेस मिशन के लिए नासा तैयारी इस बात की कर रहा है कि उसके अंतरिक्ष यात्री या एस्ट्रोनॉट लंबे वक़्त तक अंतरिक्ष में रहें.

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कैसा था नासा का पहला स्पेस शिप?

अब ज़्यादा वक़्त बिताना है, तो रहने खाने और वर्ज़िश जैसे रोज़मर्रा के कामों के लिए भी स्पेसक्राफ्ट में जगह चाहिए होगी.

लेकिन, नासा के नए अंतरिक्षयान में जगह की कमी है. हालांकि, ये कोई नई चुनौती नहीं है.

जब 1959 में नासा के पहले सात अंतरिक्ष यात्रियों ने मर्करी स्पेस कैप्सूल को देखा था, तो उनके दिल टूट गए थे.

उन्हें लगा था कि इस कैप्सूल में न तो खिड़कियां हैं, न ही उड़ान को नियंत्रित करने का कोई ज़रिया.

अंतरिक्ष यात्रियों ने मर्करी को देखकर कहा कि वो तो इस कैप्सूल में वैसे ही होंगे, जैसे किसी डिब्बे में कीड़े-मकोड़े हों.

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हॉलीवुड की फ़िल्म

तो, अंतरिक्ष यात्रियों की खुले-खुले माहौल में अंतरिक्ष की सैर करने की ख़्वाहिश की स्पेस इंजीनियरों की इंसान को अंतरिक्ष में भेजने के इरादे से टक्कर बहुत पुरानी है.

इस झगड़े पर तो हॉलीवुड में एक फ़िल्म भी बनी थी, 'द राइट स्टफ़'.

इसमें एक असली घटना के हवाले से दिखाया गया था कि कैसे अंतरिक्ष यात्री जॉन ग्लेन, स्पेस सूट पहनकर बात कर रहे हैं.

वो धमकी दे रहे हैं कि अगर उनके स्पेस के सफ़र को और आरामदायक नहीं बनाया गया, तो वो बाहर इंतज़ार कर रहे मीडिया के लोगों के सामने जाकर अंतरिक्ष इंजीनियरों की पोल खोल देंगे.

आज क़रीब 60 साल बाद फिर वैसा ही मंज़र नासा के ह्यूस्टन स्थित स्पेस सेंटर में दोहराया जा रहा है. वो भी हक़ीक़त में.

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कैसा होगा नासा का नया यान ओरियन?

असल ज़िंदगी में नासा के लिए चुनौती वाले सवाल उठा रहे हैं, अमरीका के पूर्व पनडुब्बी कमांडर स्टीव बोवेन.

वो कहते हैं कि ओरियन वाक़ई बहुत संकरा सा लगता है. चार लोगों के लिए रहने की बात करें तो बहुत कम जगह है.

ऊपर से देखें तो ओरियन अंतरिक्ष यान नासा के सत्तर के दशक के स्पेसक्राफ्ट अपोलो जैसा दिखता है. वही अपोलो जो तीन अंतरिक्ष यात्रियों को चांद तक ले गया था.

हालांकि, अपोलो के मुक़ाबले ओरियन काफ़ी बड़ा है. ये आगे की तरफ़ से नुकीला है और पीछे की तरफ़ से गोल.

क्योंकि इसे रॉकेट में फिट करके अंतरिक्ष में भेजा जाएगा. अपोलो मिशन तो कुछ दिनों के लिए होते थे. मगर ओरियन में अंतरिक्ष यात्रियों को कई हफ़्ते गुज़ारने होंगे.

स्टीव बोवेन कहते हैं कि ओरियन में उड़ने का मतलब है कि आपको बेहद कम जगह में काम चलाने की आदत होनी चाहिए.

किसी भी स्पेसक्राफ्ट में अंतरिक्ष यात्रियों के बैठने और लेटने के अलावा फ्लाइट कंट्रोल के लिए मशीनें और कंट्रोल बोर्ड लगाने के लिए जगह चाहिए.

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मंगल ग्रह तक भेजने की योजना...

फिर इतने दिनों तक अंतरिक्ष में रहने के लिए वर्ज़िश और मनोरंजन की जगह और टॉयलेट भी बनाना होता है.

इतनी जगह हो कि लोग ठूंसा हुआ न महसूस करें. फिर स्पेसक्राफ्ट को हल्का भी रखना होता है, ताकि रॉकेट उसे सही तरीक़े से अंतरिक्ष में छोड़ आए.

ओरियन के ज़रिए ही नासा अंतरिक्ष यात्रियों को मंगल ग्रह तक भेजने की योजना भी बना रहा है. मंगल पर जाने वाले ओरियन के वैरियंट में और जगह होगी.

फिर भी कुल मिलाकर ये जगह 316 क्यूबिक फुट से ज़्यादा नहीं होगी. यानी एक छोटे से कमरे में चार लोगों को रहना-खाना, सोना और वर्ज़िश करना होगा.

स्टीव बोवेन कहते हैं कि आख़िर में शायद ओरियन के भीतर हमें कुछ और जगह मिल जाए.

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स्पेस शटल से कैसे अलग है ओरियन?

लेकिन एक बात तो तय है कि किसी भी अंतरिक्ष यात्री को ये जगह पर्याप्त नहीं लगेगी. हां, कोई बहुत शिकायत भी नहीं करेगा.

ओरियन से पहले नासा स्पेस शटल के ज़रिए अंतरिक्ष में एस्ट्रोनॉट भेजता था. ये स्पेस शटल विमानों की तरह हवाई अड्डे पर उतरा करते थे.

स्पेस शटल से सबसे बड़ी शिकायत ये थी कि किसी हादसे की सूरत में शटल से निकलने के लिए अंतरिक्ष यात्रियों के पास न जगह थी, और न ही मौक़ा.

1986 में स्पेस शटल चैलेंजर उड़ान के वक़्त ही धमाके से उड़ गया था. इस हादसे में चैलेंजर में सवार सभी सात अंतरिक्ष यात्री मारे गए थे.

इसके बाद कोलंबिया स्पेस शटल धरती पर वापसी के सफ़र में टुकड़े-टुकड़े हो गया था. तब नासा ने स्पेस शटल के इस्तेमाल को बंद करने का फ़ैसला किया.

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बेसब्री से इंतज़ार

अब अमरीका अंतरिक्ष में सामान और यात्री भेजने के लिए रूस के सोयुज रॉकेट पर निर्भर है.

लेकिन, जल्द ही ओरियन स्पेसक्राफ्ट के ज़रिए नासा रूस पर अपनी निर्भरता ख़त्म करेगा. ओरियन को नासा अपने नए रॉकेट एसएलएस के ज़रिए अंतरिक्ष में भेजेगा.

इस रॉकेट की टिप पर स्पेसक्राफ्ट ओरियन को लगाया जाएगा. अच्छी बात ये है कि ओरियन में एक छोटा सा 'एस्केप रॉकेट' भी होगा.

अगर लॉन्च रॉकेट एसएलएस किसी हादसे का शिकार होता है, तो ऐसी सूरत में अंतरिक्ष यात्रियों के पास इस छोटे से रॉकेट के ज़रिए बच निकलने का मौक़ा होगा.

इस एस्केप रॉकेट का टेस्ट नासा अगले कुछ महीनों में करने वाला है. स्टीव बोवेन को भी उस वक़्त का बेसब्री से इंतज़ार है.

वो कहते हैं कि हमें ये देखना है कि किसी हादसे की सूरत में हमारे पास बचने का कितना चांस होगा.

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जमीन पर कैसे उतरेगा ओरियन?

धरती पर वापसी में ओरियन को समुद्र में किसी जगह गिराया जाएगा.

उस वक़्त इसकी रफ़्तार क़रीब 11 किलोमीटर प्रति सेकेंड या 40 हज़ार किलोमीटर प्रति घंटे होगी.

इतनी रफ़्तार से आ रहे ओरियन को क़ाबू करने के लिए लैंडिंग के वक़्त पैराशूट भी खुलेंगे.

लैंडिंग के बाद इसे किसी जहाज़ की मदद से खींचकर समंदर से बाहर लाया जाएगा.

स्टीव बोवेन ने पनडुब्बी में काफ़ी वक़्त समुद्र के भीतर गुज़ारा है. वो कहते हैं कि 'सी सिकनेस' अच्छे ख़ासे इंसान को दीवाना बना देती है.

ऐसे में अंतरिक्ष यात्रियों के लिए ये वक़्त सबसे चुनौतीपूर्ण रहने वाला है. जब समुद्र में गिरने के बाद उन्हें बाहर निकाले जाने का इंतज़ार करना होगा.

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एसएलएस रॉकेट का टेस्ट

चूंकि ओरियन का वज़न ज़्यादा है इसलिए नासा इसे हेलीकॉप्टर से खींचकर बाहर नहीं निकाल सकेगा.

अब अगर अंतरिक्ष यात्री स्पेस में कुछ हफ़्ते, महीने या साल गुज़ार कर लौटे होंगे, तो वो जल्द से जल्द धरती पर बाहर आना चाहेंगे. लेकिन उनका इंतज़ार लंबा हो सकता है.

ओरियन स्पेसक्राफ्ट की कल्पना आज से क़रीब 10 साल पहले की गई थी.

अब नासा चांद और मंगल पर मिशन भेजने की योजना बना रहा है. इसके लिए एसएलएस रॉकेट का टेस्ट भी शुरू हो गया है.

उम्मीद है कि ओरियन के ज़रिए पहला स्पेस मिशन 2025 में रवाना किया जा सकेगा.

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अंतरिक्ष यात्रियों की लिस्ट

स्टीव बोवेन बताते हैं कि कुछ हफ़्तों पहले ओरियन की वेल्डिंग शुरू की गई है.

ये क़रीब 50 साल बाद ऐसा अंतरिक्ष यान होगा जो एस्ट्रोनॉट्स को धरती की कक्षा से बाहर ले जाएगा. ये बहुत मज़े की बात है.

स्टीव बोवेन कहते हैं कि मुश्किल ज़रूर होगी. जगह भी कम होगी. मगर वो ओरियन पर सवार होकर अंतरिक्ष के सफ़र पर जाना चाहेंगे.

फिलहाल तो उनका नाम भविष्य के अंतरिक्ष यात्रियों की लिस्ट में है. लेकिन 2025 में क्या होगा, पता नहीं.

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