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शनिवार, 05 अगस्त, 2006 को 18:29 GMT तक के समाचार
 
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'कड़ी मेहनत का बड़ा अच्छा अंजाम'
 

 
 
मानवजीत संधू
विश्व ट्रैप निशानेबाज़ी प्रतियोगिता 2006 भारत के विजेता मानवजीत सिंह के साथ मलय नीरव की विस्तृत बातचीत.

आप ये बताइए कि शुरूआत आपकी ठीक नहीं हुई और जिस तरह से आप क्वालिफाई हुए और छठे स्थान से पहले स्थान पर पहुंचे तो किस तरह ये तय किया जीत का ये सफर?

देखिए हमारे फाइनल राउंड में छह शूटर की जगह होती है. 123 अंकों पर लीडर था और मैं था 121 अंकों पर तो दो अंकों का फासला था. फाइनल में एक कारतूस से चिड़ियां तोड़ी जाती है, अन्य प्रतियोगिताओं में दो कारतूस की इजाज़त होती है पर फाइनल में सिर्फ़ एक. मुझे मालूम था कि जोन सा लीडर है वो तो इस बात पर प्रेशर खाएगा कि एक कारतूस में कुछ भी हो सकता है इसलिए मैंने मन बनाया कि निडर होकर निशाना साधना है तो राउंड के शुरूआत में ही जो लीडर था उसने मिस करना शुरू कर दिया तो मेरा हौसला और बुलंद हुआ और मैं आक्रामक रहा. अंत में गोल्ड मैडल मिला.

फ्रास्का और एरिक्शन जो दोनों थे, वो कहां चूक गए?

जिस लेबल पर हम शूट करते हैं, मैं समझता हूं उस लेबल पर मेंटल गेम बहुत है, मेंटल मेकअप बहुत अहम चीज़ है.

आपने मेंटल गेम खेला क्या उनके साथ?

मैं मेंटल गेम ख़ुद के साथ खेला था. मैंने सोचा था कि वर्ल्ड चैंपियन होने का मत सोचो. अभी जो काम कर रहे हैं उसी पर पूरा ध्यान रखा और अगर अंत में जब सब अंक जुड़ेंगे और वर्ल्ड चैंपियन रहे तो बहुत अच्छा है, नहीं तो आदमी को यह भरोसा होना चाहिए और हमने पूरा ज़ोर लगा दिया था.

विश्व चैंपियन बनने का सौभाग्य प्राप्त हुआ है ज़गरेब में और 150 में से 143 सही निशानों के साथ आपने स्वर्ण पदक जीता. निशानेबाजी में जो आप प्रदर्शन कर रहे हैं उसके लिए कब से तैयारी कर रहे हैं कितने दिन हुए आपको.

1994 में भारतीय टीम का सदस्य बन गया था तब से कड़ी मेहनत चल रही है. 1998 में मुझे अर्जुन पुरस्कार दिया गया. 10-12 साल का अनुभव आवश्यक होता है वर्ल्ड लेबल पर शूटिंग रेंज जीत पाने के लिए. अब मेरा रैंकिंग भी नम्बर वन पर है तो मैं समझता हूं कि अनुभव और फार्म का करेक्ट कंबिनेशन है.

भारत में परंपरागत रूप से ये समझा जाता है कि शूटिंग अमीर साहबज़ादों का खेल है और इसमें आम आदमी नहीं आ सकता. भारत का आम आदमी क्या कर सकता है?

यह बात सही है कि ट्रैप शूटिंग एक ख़र्चीला गेम है. इसके उपकरण बहुत महंगे होते हैं. लेकिन जैसे शूटिंग में एयर राइफल हैं या एयर पिस्टल हैं, मैं समझता हूं अब कई स्कूलों में शूटिंग रेंज खुल गए हैं. जूनियर शूटर शूटिंग करना चाहें तो अपने ज़िला स्तर पर क्लब में शामिल हो सकते हैं, अपने स्कूल से संपर्क करे क्योंकि अगर 10 मीटर का इवेंट है उसमें किसी भी स्कूल में बल्कि घर में अपना रेंज बन सकता है लेकिन मैं समझता हूं ट्रैप में अभी थोड़ा समय लगेगा. फिलहाल मेट्रो ट्रैप और स्किट की शूटिंग रेंज हैं. एसोसिएशन हैं जिनसे बंदूकें ली जा सकती है और जब हुनर प्राप्त हो जाए तो अपनी ख़ुद की बंदूकें खरीदें.

जब से राज्यवर्द्धन सिंह राठौर ने एथेंस ओलंपिक में रजत पदक जीता, तबसे और लोगों का ध्यान शूटिंग की ओर गया और एक छोटे बच्चे में भी चाहत जगी है कि हमें शूटिंग में आगे निकलना चाहिए. आप किस आधार पर कह रहे हैं कि भारत में शूटिंग का भविष्य है?

मानवजीत संधू

पहली बात तो यह है कि अगर ट्रैक रिकॉर्ड देखा जाए तो इकलौता स्पोर्ट्स है शूटिंग जिसमें इतने शूटर टॉप टेन वर्ल्ड रैंक में है. और इस बात के संकेत है कि हम भारतीय बहुत प्रतिभाशाली हैं और हमारे अंदर हुनर है कि हम शूटर बने. मैं समझता हूं कि ब्राज़ील में बच्चे छोटी उम्र से ही फुटबॉल खेलते हैं उसी प्रकार भारत में, मैं समझता हूं हमारी एक प्रतिभा है शूटिंग की तरफ. एक स्किल है शूटिंग की तरफ जैसे चेस में है. इसलिए मैं भारतीय लोगों से कहूंगा कि जिस तरफ ज्यादा टैलेंट है उसे शूटिंग में डालिए. एक बार मौक़ा दीजिए. आने वाले दिनों में सरकार भी शूटिंग को सहयोग देगी क्योंकि जो शूटिंग इतने मेडल ला रही है लाज़मी है सरकार उसे सहयोग देगी.

सरकार से कारतूस के बारे में जिस तरह के सहयोग मिलने चाहिए उस तरह से सहयोग नहीं मिल पा रहे हैं. इस बार भी सुना गया कि ज़गरेब में अभ्यास के दौरान कारतूस ख़त्म हो गए तो कहां-कहां अड़चन आती है आपको?

अड़चने तो हैं लेकिन काफी हद तक इसे दूर किया गया है. सरकार शूटिंग के मामले में बहुत गंभीर है. भारतीय दल बाहर जाता है कॉमनवेल्थ खेल में, एशियन गेम्स में तो भारत की इज़्ज़त शूटरों के हाथ में होती है इतने मेडल लाते हैं. फिर कारतूस एक ऐसी चीज़ है जिसके आयात में समस्या आ जाती है. फिर सरकार से अपना पक्ष रखती हैं, तालमेल रखते हैं ऐसी अड़चन आगे न आने पाए.

आपकी प्रतिस्पर्धा है जिसको ट्रैप कहते हैं. व्यक्तिगत प्रतियोगिता है जिसमें आपने एक में स्वर्ण और दूसरे में रजत जीता है. भारत का सबसे मज़बूत प्रतिद्वंद्वी कौन है?

मेरा इवेंट जो ट्रैप है इसका बेस इटली में रहा है. इसलिए मेरे कोच इतालवी हैं और अभ्यास करने के लिए भी मैं इटली जाता हूं इसिलए हमारा ज़्यादा मुक़ाबला इटली से रहा है. पिछले ओलंपिक में मिस एलपॉप हैं, रशिया की वो जीती थी. वे वर्ल्ड नंबर वन थी और मैं वर्ल्ड नंबर टू था. लेकिन इस वर्ल्ड चैंपियनशिप के बाद जो अंक मिलेंगे उसके बाद मैं वर्ल्ड नंबर वन बन जाऊंगा और वे वर्ल्ड नंबर टू.

राष्ट्रमंडल खेलों में भारत को कई पदक मिले थे तब कुछ हलकों में चर्चा थी कि वहाँ वास्तविक प्रतियोगिता नहीं थी. अब तो आप विश्व चैंपियनशिप जीत कर आए हैं और भारत के निशानेबाजों ने सिद्ध किया है. तो क्या मुश्किलें आ सकती हैं आपको.

इसमें कोई शक नहीं कि राष्ट्रमंडल खेल का स्टेंडर्ड वर्ल्ड लेबल का नहीं है लेकिन इसका ये मतलब नहीं है कि हम वहां से बिना जीते लौट आएं. जहां तक व्यक्तिगत फॉर्म का सवाल है तो हर शूटर का ग्राफ होता है. प्रदर्शन अबी अच्छा तो कभी ख़राब होता रहता है. हमारा यही प्रयास होता है कि जो बड़े टूर्नामेंट होते हैं उनमें बढ़िया प्रदर्शन किया जाए.

अब एशियाई खेल दिसंबर में दोहा में होने वाले हैं. दोहा के लिए कैसी तैयारी है

एशियन गेम मेरे लिए बहुत महत्वपूर्ण है. मैं दो बार सिल्वर जीत चुका हूं तो मैं चाहता हूं एशियन गेम में गोल्ड मैडल लेकर ले आऊं. पूरी कोशिश और पूरी मेहनत रहेगी. मैं समझता हूं कि शूटिंग में मैं खुद या मेरे टीम के सहयोगी ज़रूर गोल्ड लेकर आएंगे.

ओलंपिक में पदक पाने की इच्छा हर खिलाड़ी हर एथलीट को रहती है आपकी भी होगी और भारत के दूसरे निशानेबाजों की भी होगी तो किस तरह तैयारी और योजना है

ओलंपिक में दो साल रह गए हैं. सरकार के साथ और कोच के साथ विस्तार से चर्चा चल रही है. कैसा ट्रेनिंग शिड्यूल हो, कैसी तैयारी हो. कोचिंग कैंप लगेंगे, बाहर प्रतिस्पर्द्धाएं आयोजित होंगी. काफी डिटेल में ट्रेनिंग होगी. मैं समझता हूं कि 2008 की समर ओलंपिक हैं तो 10 -12 बीजिंग ओलंपिक के लिए क्वालिफाइ होंगे. हममें से कोई न कोई भारत के लिए मैडल जीत कर लाएंगे.

हमारे पाठकों को इस चैंपियनशिप के बारे में कोई ऐसी बात बताएं जो दूसरे किसी को न बताए हों

जब फाइनल राउंड खत्म होने को होता है तो सब शूटरों को तनाव होता है और मुझे भी था. और अंत में जब जीत गए तो एक आत्मविश्वास सा हुआ कि इतनी कड़ी मेहनत का बड़ा अच्छा अंजाम हुआ है. बहुत गर्व महसूस हुआ.

 
 
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