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रविवार, 30 जुलाई, 2006 को 13:33 GMT तक के समाचार
 
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खेल अधिकारी अपना रवैया बदलें: बिंद्रा
 
अभिनव
अभिनव बिंद्रा राजीव गांधी खेल रत्न सम्मान पा चुके हैं
भारत के अभिनव बिंद्रा ने जागरेब में विश्व निशानेबाज़ी चैम्पियनशिप में स्वर्ण पदक पाया है. पहली बार किसी भारतीय निशानेबाज़ ने यह उपलब्धि हासिल की है.

बीबीसी संवाददाता अमनप्रीत सिंह ने अभिनव से उनकी जीत के साथ-साथ अन्य विषयों पर बातचीत की. प्रस्तुत हैं बातचीत के मुख्य अंश-

अभिनव आप लंबे समय से पीठ की चोट से जूझ रहे है. उसके बावजूद आपने एकाग्रता का परिचय देते हुए यह चैम्पियनशिप जीती. क्या आप स्वयं भी ऐसे प्रदर्शन की उम्मीद कर रहे थे?

मुझे काफ़ी उम्मीद थी कि मैं किसी भी तरह के हालात मे अच्छा प्रदर्शन कर सकता हूँ. मुझे मालूम था कि यह काफ़ी मुश्किल होगा और मैं कड़ी परीक्षा के लिए पहले से ही तैयार था.

मुझे ख़ुशी है कि वो दिन मेरा था और मैं जीत सका. इस चैम्पियनशिप के लिए मैने ख़ास तैयारी की हुई थी.

इस चैम्पियनशिप में आप के प्रतिद्वंद्वी वो खिला़ड़ी थे जो ओलंपिक में खेले थे. क्या किसी तरह का मानसिक दबाव भी था उनसे पार पाने में?

वर्ल्ड चैंपियनशिप निशानेबाज़ी की सबसे बड़ी प्रतियोगिता होती है. इसमें 150 निशानेबाज़ भाग लेते हैं जबकि ओलंपिक में 40 निशानेबाज़ ही शिरकत करते हैं.

यह एकल प्रतियोगिता है जिसमें आपको लगातार अपने स्कोर का ख्याल रखना पड़ता है. मैं अपने प्रतिद्वंद्वियों के बारे मे ना सोच कर स्कोर का ही ख्याल रख रहा था.

एथेंस ओलंपिक्स और जागरेब चैम्पियनशिप की तुलना करें तो दोनो मे ही आपका स्कोर लगभग बराबर है. आप इन दोनो मे से किसे बेहतर प्रदर्शन मानते हैं?

प्रदर्शन तो दोनो ही प्रतियोगिताओं मे बराबर था लेकिन निजी तौर पर मुझे एथेंस ओलंपिक्स का प्रदर्शन ज्यादा प्रिय है क्योंकि उसके लिए मैने खास तैयारी और कड़ी मेहनत की थी.

ये दुर्भाग्यपूर्ण था कि मैं उस दिन जीत नही सका. सब कुछ प्रतियोगिता वाले दिन पर निर्भर करता है जैसे जागरेब में मेरा दिन था.

आपको जब राजीव गांधी खेल रत्न सम्मान से सम्मानित किया गया था तो कहा गया था कि आपको ये सम्मान जल्दी दे दिया गया है. इस प्रदर्शन के बाद क्या आलोचकों का बंद मुंह हो जाएगा?

हर व्यक्ति को निजी राय रखने का अधिकार है. मैं इसमे कुछ नही कह सकता. मैं तो इतना जानता हूं कि जब मुझे राजीव गांधी खेल रत्न दिया गया था उस वर्ष मैने दो विश्व कप पदक जीते थे, एक विश्व रिकार्ड भी बनाया था.

वो एक सपनों का वर्ष था. मैं सबकी राय का सम्मान करता हूं. मुझे खुशी है कि मैं अपने लक्ष्य को प्राप्त कर सका.

निशानेबाज़ी एक ऐसा खेल है जो काफी मंहगा है और साधारण व्यक्ति की पहुंच से बाहर है, ऐसे में इस खेल को कैसे लोकप्रिय बनाया जा सकता है?

मेरा मानना है कि सरकार और खेल संस्थाओं को युवा प्रतिभाओं का ढूँढना चाहिए. उन्हे शुरुआत से ही अच्छी बंदूकें, अच्छे प्रशिक्षक और अच्छे तकनीकी उपकरण उपलब्ध करवाने चाहिए.

भारतीय इस खेल में काफी उम्दा प्रदर्शन कर दिखाने की काबिलियत रखते हैं. ज़रूरत है तो सिर्फ़ एक योजनाबद्ध तरीक़े से चलने की.

अभी तक जो सरकार की नीतियां हैं उनसे आप कितना सहमत हैं? अभी भी बंदूको की आयात नीति के तहत 30 से 40 प्रतिशत शुल्क चुकाना पढ़ता है.

मै यही कहना चाहता हूं कि सरकार काफ़ी कुछ कर रही है परंतु अभी काफ़ी कुछ किया जाना बाक़ी है. सरकार को सबसे पहले तो यह समझना चाहिए कि निशानेबाज़ी एक प्राथमिक खेल है और विश्व मंच पर अन्य खेलों की तुलना में निशानेबाज़ी ने ज़्यादा उपलब्धियाँ हासिल की हैं.

सबसे ज़्यादा ज़रूरत तो इस की बात है कि खेल अधिकारी अपना रवैया बदलें. खिलाड़ियों को उनके हिस्से का सम्मान जरूर मिलना चाहिए.

 
 
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