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रविवार, 01 अक्तूबर, 2006 को 10:38 GMT तक के समाचार
 
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बूढ़े हो चुके विमानों का आख़िरी पड़ाव
 

 
 
बोइंग 747
बोइंग 747 विमानों की पहली खेप 38 वर्ष पहले तैयार हुई थी

सुरक्षित हवाई यात्रा शुरू से ही विमान कंपनियों और उड्डयन पेशे से जुड़े लोगों के लिए चुनौती भरा काम रहा है लेकिन दिनोंदिन विमानों की बढ़ती जा रही संख्या से अब एक नई तरह की चुनाती से रू-ब-रू होना पड़ रहा है.

यह चुनौती है बूढ़े यानी पुराने हो चले विमान और सवाल यह है कि इनका क्या किया जाए. इनको कहाँ रखा जाए.

सबसे बड़ी चुनौती है कि जो विमान अब उपयोग में नहीं लाए जा सकते हैं, उन्हें सुरक्षित तरीके से नष्ट करना और इनके उपयोगी सामानों की रिसाइक्लिंग करना यानी फिर से इस्तेमाल के लायक बनाना.

विमान बनाने वाली दुनिया की दो सबसे बड़ी कंपनियों बोइंग और एयरबस ने इस दिशा में प्रयास शुरू कर दिए हैं.

1970 के दशक में हवाई यात्रियों की संख्या तेज़ी से बढ़ी और बढ़ती ज़रूरतों को पूरा करने के लिए कंपनियों ने विमानों की उत्पादन संख्या के साथ-साथ इसके आकार भी बढ़ा दिए.

बोइंग का पहला बोइंग 747 विमान 38 साल पहले वाशिंगटन के एवरेट स्थित कारख़ाने में बनकर तैयार हुआ था.

इसके बाद तो आकाश में जंबो जेट के नाम से मशहूर ये विमान छा गए लेकिन एक विमान की औसत आयु लगभग 30 साल होती है, लिहाजा पहली पीढ़ी के बोइंग 747 विमान की बड़ी संख्या अब किसी काम के नहीं रह गई है.

पर्यावरण की चिंता

बोइंग के व्यावसायिक विमान मामलों के पर्यावरण निदेशक बिल ग्लोवर कहते हैं कि ऐसे में चिंता अब इन विमानों को सुरक्षित तरीके से नष्ट करने की है. विमान के निर्माण में इस्तेमाल कई पदार्थ विषैले भी होते हैं इसलिए इन्हें खुले मैदान अथवा समुद्र में नष्ट करना खतरनाक है. दुर्भाग्य से ऐसा ही हो रहा है.

 बेहतर तरीके से रिसाइक्लिंग करने के लिए हमें कुछ और क़दम उठाने की ज़रूरत महसूस हुई इसलिए हमने नई तकनीक विकसित की है
 
बिल ग्लोवर, पर्यावरण निदेशक, बोइंग

इससे चिंतित बोइंग ने एयरक्राफ़्ट फ़्लीट रिसाइक्लिंग एसोसिएशन यानी अफ़्रा बनाया है. इसमें विमानों की रिसाइक्लिंग करने वाली कंपनियों के अलावा दो हवाई अड्डे- मध्य फ्रांस का शतोरो और अरीज़ोना का एवरग्रीन एयर सेंटर शामिल है.

शतोरो हवाई अड्डा के संचालक और अफ़्रा के कार्यकारी निदेशक मार्टिन फ़्रैसिजेन्स कहते हैं कि अगले दशक में लगभग 8000 विमान रिटायर हो जाएंगे.

इस हवाई अड्डे पर विमानों को नष्ट करने और फिर से उपयोग में लाए जाने लायक कल-पुर्जों को अलग किए जाने का काम भी होता है.

विमान का 50 फ़ीसदी हिस्सा कार्बन फाइबर का बना होता है. बिल ग्लोवर कहते हैं कि इसके चलते रिसाइक्लिंग का काम काफ़ी चुनौती भरा है.

ग्लोवर ने कहा, "बेहतर तरीके से रिसाइक्लिंग करने के लिए हमें कुछ और क़दम उठाने की ज़रूरत महसूस हुई इसलिए हमने नई तकनीक विकसित की है."

नए प्रयास

पश्चिमी ब्रोमविच की मिल्ड कार्बन फैक्टरी में कार्बन फ़ाइबर को रिसाइकिल किया जाता है. महज 20 मिनटों के भीतर यहाँ कार्बन फ़ाइबर की रिसाइक्लिंग हो जाती है.

एक विमान
विमानों में कुछ विषाक्त पदार्थ भी होते हैं.

बोइंग का कहना है कि रिसाइक्लिंग से तैयार उत्पाद की गुणवत्ता काफ़ी अच्छी होती है और इसे फिर से नए विमानों में प्रयोग में लाया जा सकता है.

मिल्ड कार्बन को जॉन डेविडसन चलाते हैं और वह अफ़्रा के निदेशक होने के साथ-साथ संस्थापक सदस्य भी हैं.

अफ़्रा के दूसरे संस्थापक सदस्य और एवरग्रीन एयर सेंटर को चलाने वाले जिम टूमे बताते हैं कि यह एक सराहनीय प्रयास है.

इसकी वजह बताते हुए वे कहते हैं, "इस दिशा में सरकार की ओर से कोई निर्देश या नियम तय नहीं है फिर भी हम एक मानक बनाकर काम कर रहे हैं. इसके लिए हम इस वक्त उपलब्ध सबसे बेहतरीन तकनीक का इस्तेमाल कर रहे हैं."

जिम टूमे कहते हैं, "सरकार हमसे कहती इससे पहले ही हमने यह पहल कर दी."

बोइंग की अफ़्रा परियोजना के बाद अब उसकी प्रतिद्वंद्वी कंपनी फ्रांस की एयरबस भी इसी तरह की परियोजना पर काम कर रही है.

एयरबस का कहना है कि उसकी परियोजना बोइंग से अलग है. बोइंग के उलट उसकी परियोजना अनुसंधान पर अधारित है. एयरबस इस अनुसंधान परियोजना पर लगभग 10 करोड़ 50 लाख रूपए ख़र्च कर रही है.

 
 
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