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अमरीकी चुनाव में धनबल का बोलबाला | ||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||
इस बात में ज़रा भी शक नहीं कि अमरीका दुनिया का सबसे अमीर देश है और उसकी ये अमीरी चुनाव में भी साफ़ नज़र आती है. व्हाइट हाउस की चौखट लाँघने के लिए दोनों ही प्रमुख पार्टियों, रिपब्लिकन और डेमोक्रेट ने इस बार चुनाव प्रचार में ख़र्च के सारे रिकॉर्ड तोड़ दिए हैं. हालाँकि असल ख़र्चे का हिसाब तो चुनाव के बाद ही पता चलेगा मगर अभी अनुमान ये है कि दोनों ही पार्टियों ने कुल मिलाकर तीस करोड़ डॉलर केवल प्रचार में फूँक दिए हैं. मुख्य रूप से ये ख़र्च होता है विज्ञापन पर, मार्केटिंग पर और फिर उम्मीदवारो के शाही दौरे पर जो वे प्रचार के लिए करते हैं. डेमोक्रेटिक पार्टी के लिए धन संग्रह करनेवाली तलत हसन बताती हैं, "इसके अलावा उम्मीदवार प्रचार के लिए जाते हैं, उनके साथ पूरा कुनबा होता है, विमान होते हैं, होटलों में रहते हैं तो इन सबका ख़र्चा अलग होता है." अमरीकी चुनाव में होने वाले ख़र्च के बारे में सैन फ्रैंसिस्को सिटी कॉलेज के प्रोफ़ेसर जावेद सैयद कहते हैं,"चुनाव के समय ख़र्चा तो तीसरी दुनिया के देशों में भी होता है मगर यहाँ ख़र्चा ज़्यादा है क्योंकि यहाँ पैसा भी ज़्यादा है." हालाँकि ये आँकड़े केवल इन पार्टियों के उन ख़र्चों के हैं जिनका लिखित प्रमाण है मगर इसके बाद भी कई और ऐसे संगठन भी परोक्ष रूप से प्रचार करते हैं और वह ख़र्च इसमें शामिल नहीं है. कैसे आता है पैसा अमरीकी चुनाव के लिए वैसे तो पैसा सरकार भी देती है मगर मुख्य तौर पर पैसा जुटाया जाता है चंदे से जिसे यहाँ की भाषा में 'फंडरेज़िंग' कहते हैं.
सरकारी तौर पर राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार को प्रचार के लिए सरकारी ख़ज़ाने से साढ़े सात करोड़ डॉलर दिए जाते हैं और इनके अलावा कोई भी नागरिक चंदे के तौर पर हर उम्मीदवार के लिए 2000 डॉलर तक दे सकता है. कॉरपोरेट समूह पहले उम्मीदवारों को बेहिसाब पैसा दे सकते थे मगर चार-पाँच साल पहले एक क़ानून बनाकर इस पर रोक लगा दी गई. इसके अलावा आम नागरिक पार्टियों को 25000 डॉलर तक दे सकते हैं. ये जो पैसे दिए जाते हैं उनका रिकॉर्ड सरकार के पास रहता है और वो सार्वजनिक होता है अर्थात कोई चाहे तो उसकी पूरी जानकारी प्राप्त कर सकता है. क्यों देते हैं पैसा अमरीकी चुनाव के लिए पैसा जुटाने वालों का कहना है कि वे पैसे दो कारण से देते हैं-एक तो विचारधारा के आधार पर और दूसरा अपने किसी हित के लिए.
रिपब्लिकन पार्टी के लिए चंदा जुटाने वाले डॉक्टर रमेश जापरा कहते हैं, "देखिए दोनों बातें हैं. अधिकतर लोग समझेंगे कि पैसा किसी-न-किसी फ़ायदे के लिए दिया जाता है मगर कई लोग यहाँ ऐसे हैं जो मुद्दों और नीतियों के आधार पर पैसा देते हैं." मगर जानकारों की राय में विचारधारा से अधिक, पैसा देने का असल कारण ये है कि लोगों की नज़र होती है फ़ायदे पर. मिसाल के तौर पर इस चुनाव में अमरीका में बसे भारतीयों ने जॉन केरी के लिए भी धन दिए हैं और जॉर्ज बुश के लिए भी. तलत हसन ने बताया कि इस बार अमरीका में रहने वाले भारतीयों ने केरी के लिए 35 लाख डॉलर दिए हैं. उन्होंने बताया कि अमरीका में बसे भारतीयों ने पैसा बनाने में तो सफलता पाई है मगर उन्होंने महसूस किया कि उनके पास राजनीतिक शक्ति नहीं है. उन्होंने कहा, "भारतीयों को लगा कि राजनीतिक ताक़त हासिल करने का एकमात्र तरीक़ा ये है कि पैसे दिए जाएँ ताकि आप कम-से-कम सत्तासीन लोगों से बात तो कर सकें." कुल मिलाकर अमरीकी चुनाव में पैसे का खेल केवल सियासत की बिसात पर बाज़ी लगाने का खेल नज़र आता है. ऐसे में आम लोगों की भूमिका केवल वोट डालने और एक आरामदेह जीवन बसर करने की तमन्ना तक सीमित रह जाती है एक बात तो तय है और वो ये कि पैसा दे वही सकता है जिसके पास पैसा होता है. |
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