जम्मू-कश्मीर: परिसीमन आयोग की रिपोर्ट में बड़े बदलाव का प्रस्ताव- प्रेस रिव्यू

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परिसीमन आयोग ने जम्मू-कश्मीर के चुनावी नक्शे में कई मौजूदा निर्वाचन क्षेत्रों का पुनर्निर्धारण करते हुए महत्वपूर्ण बदलाव करने का प्रस्ताव दिया है.
इसकी मसौदा रिपोर्ट जम्मू-कश्मीर के पाँच सहयोगी सदस्यों को सौंपी गई है. इन पाँच सदस्यों में पाँच लोकसभा सांसद शामिल हैं, जिनमें तीन नेशनल कॉन्फ्रेंस से और दो बीजेपी से हैं.
लेकिन, नेशनल कॉन्फ्रेंस ने इस मसौदे को ख़ारिज कर दिया है. पार्टी का कहना है कि वो आयोग को जल्द ही इस पर विस्तृत प्रतिक्रिया भेजेगी.
परिसीमन आयोग ने सहयोगी सदस्यों से राय देने के लिए कहा है जिसके बाद मसौदे को सार्वजनिक किया जाएगा. अंग्रेज़ी अख़बार द इंडियन एक्सप्रेस ने ख़बर को प्रमुखता से जगह दी है.

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बदलाव के प्रस्ताव
इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के अनुसार, नए मसौदे में आयोग ने कश्मीर संभाग के बारामूला, कुपवाड़ा, श्रीनगर, कुलगाम और अनंतनाग ज़िलों में बदलाव किया है. वहीं, कुपवाड़ा एकमात्र ऐसा ज़िला है, जिसमें विधानसभा क्षेत्र जोड़ा गया है.
त्रेहगाम की नई सीट में केरान, करालपोरा तहसील के हिस्सों को भी शामिल किया जाएगा.
पाँच विधानसभा क्षेत्र वाले बारामूला में गुलमर्ग को विभाजित करके और संग्रामा निर्वाचन क्षेत्र को मिलाकर कुंजर और तंगमर्ग निर्वाचन क्षेत्रों को बनाया गया है.
परिसीमन के मसौदे के अनुसार, 2014 के विधानसभा चुनाव में पीडीपी के पास गए संग्रामा और गुलमर्ग निर्वाचन क्षेत्रों का अस्तित्व समाप्त हो गया है.
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दक्षिण कश्मीर में शंगुस तहसील को अनंतनाग पूर्व और लारनू विधानसभा क्षेत्रों के बीच बाँट दिया गया है. पहले पीडीपी की सीट रही कोकेरनाग को डोरू और लारनू में विभाजित कर दिया गया है. डोरू पर कांग्रेस की मज़बूत पकड़ मानी जाती है.
मसौदे के अनुसार, कुलगाम में पहले की चार सीटों के मुकाबले तीन सीटें होंगी और वर्तमान होम शाली बुघ निर्वाचन क्षेत्र के इलाक़ों को देवसर के तहत शामिल किया जाएगा.
छानपोरा इलाक़े में श्रीनगर ज़िले की अलग विधानसभा होगी. इस निर्वाचन क्षेत्र का निर्माण करने के लए कई ज़िलों के कई निर्वाचन क्षेत्रों का पुनर्निर्धारण किया गया है.

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पहली बार एससी-एसटी के लिए आरक्षित सीटें
पीटीआई की एक रिपोर्ट में बिना पहचान बताए अधिकारियों के हवाले से बताया गया है कि मसौदे में जम्मू क्षेत्र से राजौरी और पुंछ को शामिल करके अनंतनाग संसदीय सीट के पुनर्निर्धारण का प्रस्ताव दिया गया है. इसके अलावा कश्मीर संभाग में बड़े पैमाने पर बदलाव किए गए हैं.
पिछले साल दिसंबर में सुप्रीम कोर्ट की सेवानिवृत्त न्यायाधीश रंजना देसाई, मुख्य चुनाव आयुक्त सुशील चंद्र और जम्मू-कश्मीर चुनाव आयुक्त के के शर्मा वाले आयोग ने सात अतिरिक्त विधानसभा सीटों का प्रस्ताव रखा था, जिनमें छह जम्मू संभाग में और एक कश्मीर घाटी में थी.
पहली बार आयोग ने जनसंख्या के आधार पर अनुसूचित जनजाति के लिए नौ सीटें आरक्षित रखने का प्रस्ताव दिया है. अनुसूचित जाति के लिए सात सीटें आरक्षित रखी गई हैं.

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बढ़ जाएंगी सीटें
जम्मू संभाग के कठुआ, सांबा, राजौरी, रियासी, डोडा, किश्तवाड़ और कश्मीर घाटी के कुपवाड़ा जिलों में सात अतिरिक्त विधानसभा क्षेत्रों में से एक-एक का प्रस्ताव रखा गया था.
आयोग ने कहा है कि उसने कुछ ज़िलों में एक अतिरिक्त निर्वाचन क्षेत्र बनाने का प्रस्ताव रखा है ताकि अपर्याप्त संचार और सार्वजनिक सुविधाओं की कमी वाले इलाक़ों के प्रतिनिधित्व को संतुलित किया जा सके क्योंकि अंतरराष्ट्रीय सीमा पर वो दूर-दराज़ में स्थित हैं.
दिसंबर की बैठक में सभी पाँच सांसदों फारुख़ अब्दुल्ला, हसनैन मसूदी, मोहम्मद अकबर लोन (नेशनल कांफ्रेंस), जितेंद्र सिंह और जुगल किशोर शर्मा (बीजेपी) ने हिस्सा लिया था.
18 फ़रवरी, 2021 को आयोग की पहली बैठक से दूर रहने वाले नेशनल कॉन्फ्रेंस के सांसदों ने आयोग के मसौदा प्रस्ताव को यह कहते हुए ख़ारिज कर दिया था कि यह कश्मीर को लेकर "पक्षपातपूर्ण" है और इसलिए ये स्वीकार नहीं है.

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सीमा पर मॉडल गांव बनाएगा भारत
दूर-दराज के गाँवों में सामाजिक और वित्तीय बुनियादी ढांचे में सुधार के लिए बजट प्रस्तावों में वाइब्रेंट विलेज प्रोग्राम नाम की सरकारी योजना की घोषणा की गई है.
ये योजना ख़ासतौर पर चीन से लगने इलाक़ों के लिए है. यह मौजूदा सीमा क्षेत्र विकास कार्यक्रम का एक उन्नत संस्करण है.
अंग्रेज़ी अख़बार हिंदुस्तान टाइम्स के मुताबिक़ इस योजना की शुरुआत गृह मंत्रालय ने की है. वित्त मंत्रालय ने योजना की शुरुआत के लिए मौजूदा विकास कार्यक्रम में अतिरिक्त प्रावधान किए हैं जो भारत के लिए महत्वपूर्ण नज़र आ रहा है.
पहचान छुपाने की शर्त पर दो अधिकारियों ने अखबार को बताया है कि वाइब्रेंट विलेज स्कीम के दो लक्ष्य होंगे. एक सीमा पर बुनयादी ढांचे को मजबूत करना और ये सुनिश्चित करना कि लोग रोजगार की तलाश में गांव छोड़कर दूसरे इलाक़ों में ना चले जाएं.
एक अधिकारी ने बताया, ''चीन भारत और भूटान सीमा पर मॉडल गांव बना रहा है. इसे देखते हुए भी इस कार्यक्रम का फ़ैसला लिया गया है.''

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मदरसों को लेकर असम सरकार के पक्ष में फ़ैसला
अंग्रेज़ी अख़बार द हिंदू में ख़बर है कि गुवाहाटी उच्च न्यायालय ने साल 2020 के असम सरकार के उस फ़ैसले को बरकरार रखा है जिसमें सरकार द्वारा वित्त पोषित मदरसों को सामान्य शिक्षण संस्थानों में बदला जाएगा.
न्यायाधीश सुधांशु धूलिया और सौमित्र सैकिया की डिविजन बेंच ने सरकार के आदेश को चुनौती देने वाली याचिका को खारिज कर दिया.
अदालत ने कहा कि मदरसे सरकार से संचालित या वित्त पोषित होने के बाद अल्पसंख्यक समुदाय द्वारा संचालित संस्थान नहीं रह गए हैं और ऐसे स्कूल अब धार्मिक निर्देश नहीं दे सकते हैं.
सरकार का आदेश निजी मदरसों को प्रभावित नहीं करेगा जो अपनी गतिविधियां जारी रख सकते हैं.
ये याचिका 13 लोगों ने दायर की थी जिनमें मदरसा प्रबंध समितियों के अध्यक्ष, दानदाताओं और मुतवल्ली या वक़्फ की जिस ज़मीन पर मदरसे बनाए गए थे उसके केयरटेकर शामिल हैं.
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