जम्मू कश्मीर: परिसीमन को लेकर क्यों मचा है सियासी घमासान

फ़ारूक़ अब्दुल्लाह

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    • Author, रियाज़ मसरूर
    • पदनाम, कश्मीर से बीबीसी हिंदी के लिए

भारत प्रशासित कश्मीर में विधानसभा क्षेत्रों को दोबारा निर्धारित करने (परिसीमन) के प्रस्ताव पर कश्मीर के कई राजनीतिक दलों ने नाराज़गी ज़ाहिर की है.

कई राजनीतिक दलों ने इसे 'कश्मीर विधानसभा पर एक और हमला' बताया है. उनके मुताबिक पहला हमला 5 अगस्त 2019 को हुआ जब केंद्र सरकार ने कश्मीर को विशेष दर्जा देने वाले संविधान के अनुच्छेद 370 को हटाया.

परिसीमन आयोग की सोमवार को दिल्ली में मीटिंग हुई. आयोग की अध्यक्ष सुप्रीम कोर्ट की पूर्व जज हैं. इस बैठक में पांच सांसद मौजूद थे. इनमें से तीन सांसद कश्मीर और दो जम्मू से हैं.

इस बैठक में जम्मू क्षेत्र में छह नई सीटें और कश्मीर घाटी के लिए एक नई सीट जोड़ने का प्रस्ताव रखा गया.

प्रस्ताव के मुताबिक अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के लिए कम से कम 16 सीटें आरक्षित रहेंगी.

इस प्रस्ताव के साथ 83 सीटों वाली जम्मू-कश्मीर विधानसभा में जम्मू क्षेत्र की सीटें 37 से बढ़कर 43 और कश्मीर घाटी की सीटें 46 से बढ़कर 47 हो जाएंगी.

मोदी और कश्मीर के नेता

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इसके पूर्व जम्मू-कश्मीर विधानसभा में कुल 87 सीटें थीं जिनमें चार लद्दाख़ की सीटें शामिल थीं लेकिन अगस्त 2019 के पुर्नगठन विधेयक के बाद लद्दाख़ को अलग कर दिया गया था.

सोमवार को दिल्ली में हुई बैठक में नेशनल कॉन्फ्रेंस नेता और सांसद फ़ारुक़ अब्दुल्लाह मौजूद थे. उनकी पार्टी के दो और सांसद मीटिंग में आए थे लेकिन नेशनल कॉन्फ्रेंस और भारत समर्थक दूसरे राजनीतिक दलों ने इस फ़ैसले को एक 'मज़ाक' बताया है.

ड्राफ़्ट में जो सिफ़ारिशों की गई हैं, उन पर परिसीमन आयोग अगले साल की शुरुआत में अंतिम मुहर लगाएगा. इस साल के अंत तक जम्मू-कश्मीर के सांसदों से इस संदर्भ में 'प्रतिक्रिया' मांगी गयी है.

फ़ारुक़ अब्दुल्लाह के बेटे और नेशनल कॉन्फ्रेंस के उपाध्यक्ष उमर अब्दुल्लाह ने ड्राफ़्ट पर सधी प्रतिक्रिया दी है. उन्होंने कहा है कि वो सिफ़ारिशों से 'संतुष्ट नहीं' हैं.

अलगाववादी नेता

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तीखी प्रतिक्रिया

वहीं पूर्व मंत्री और पीपुल्स कॉन्फ्रेंस के अध्यक्ष सज्जाद लोन ने कहा कि 'ये शर्मनाक है.' उन्होंने कहा, "यह उन लोगों पर बदनुमा दाग़ है जिन्होंने भारत के लिए गोली खायी और आज कब्र में हैं."

ड्राफ़्ट की सिफ़ारिशें सामने आने के बाद लोन ने कहा, "मुझे लगता है कि जिस किसी में आत्मसम्मान बचा है उसके लिए यहां (राजनीति में) बने रहना बेहद मुश्किल होगा."

सज्जाद, कश्मीरी नेता अब्दुल ग़नी लोन के बेटे हैं, जिन्होंने 1990 के दशक में भारत समर्थक राजनीति से अलगाववाद की राजनीति का रुख़ कर लिया था. इसके बाद उन्होंने दो सालों तक कश्मीर में अलगाववादी समूहों का नेतृत्व किया. वह साल 2002 तक सक्रिय रहे.

कश्मीर में संदिग्ध चरमपंथी हमले में मौत के बाद उनके बेटे सज्जाद लोन ने ही पीपुल्स कॉन्फ्रेंस को आगे बढ़ाया. साल 2014 में उन्होंने चुनावी राजनीति का रुख़ किया और दो सीटों पर जीत भी दर्ज की.

इसके बाद साल 2016 से 2018 तक वो पीडीपी-बीजेपी गठबंधन वाली महमूबा मुफ़्ती सरकार में मंत्री भी रहे.

बीते साल केंद्र सरकार ने ख़ास जम्मू-कश्मीर के लिए परिसीमन आयोग का गठन किया और उसके बाद आयोग ने जम्मू और कश्मीर के तमाम राजनीतिक दलों के साथ बैठकें कीं.

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हालांकि नेशनल कॉन्फ्रेंस और कांग्रेस ने इस पूरी प्रक्रिया पर ही संदेह जताया था और इन बैठकों में बीजेपी सरकार के अनुच्छेद 370 को रद्द करने का मुद्दा उठाया.

नेशनल कॉन्फ्रेंस और कांग्रेस पार्टी ने सवाल उठाया था कि जब देश में निर्वाचन क्षेत्रों के परिसीमन को साल 2026 तक के लिए रोक दिया गया तो जम्मू और कश्मीर में अभी ऐसा क्यों हो रहा है.

हालांकि घाटी की प्रमुख पार्टियों में से एक पीडीपी ने परिसीमन आयोग के साथ बैठक में हिस्सा नहीं लिया था.

उन्होंने बैठक में नहीं आने के पीछे तर्क देते हुए कहा था कि क्योंकि केंद्र सरकार ने आम लोगों के जीवन को बेहतर बनाने के लिए कोई क़दम नहीं उठाया है. उन्होंने परिसीमन की प्रकिया के नतीजों को 'व्यापक तौर' पर पहले से तय बताया था.

पूर्व जज रंजना प्रकाश देसाई, मुख्य चुनाव आयुक्त सुशील चंद्र शर्मा और राज्य चुनाव आयुक्त केके शर्मा इस आयोग के प्रमुख सदस्य हैं.

परिसीमन से एतराज़ जताने वाले राजनीतिक दलों ने आशंका जताते हुए कहा है कि यह परिसीमन आयोग जम्मू-कश्मीर के मुस्लिम बहुमत के ख़िलाफ़ काम करेगा और उन्हें राजनीतिक तौर पर अल्पसंख्यक में बदल देगा.

महबूबा

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मिलीभगत का आरोप

जम्मू-कश्मीर की प्रमुख राजनीतिक पार्टी नेशनल कांफ्रेंस इस संबंध में काफी सावधानीपूर्वक प्रतिक्रिया दे रही है और उनके इस व्यवहार से ऐसी अटकलें लगायी जा रही हैं कि केंद्र की बीजेपी सरकार ने इस मुद्दे पर नेशनल कॉन्फ्रेंस को अपने पक्ष में कर लिया है.

सज्जाद लोन ने आरोप लगाते हुए कहा, "वो जो कर रहे हैं वह बीजेपी-ए और बीजेपी-बी की तरह है. उन्हें चुनाव का मज़ा लेने दीजिए और एक-दूसरे को चुनौती देने का नाटक जो वे कर रहे हैं, उन्हें करने दीजिए. उन्हें पता नहीं है कि वे क्या कर रहे हैं. वे कश्मीरियों की ताक़त छीन रहे हैं."

वहीं पूर्व मुख्यमंत्री महबूबा मुफ़्ती लंबे समय से इस प्रक्रिया को लेकर संदेह ज़ाहिर करती रही हैं.

सोमवार को ड्राफ़्ट की सिफ़ारिशें सार्वजनिक होने के बाद उन्होंने ट्वीट करके अपनी प्रतक्रिया दी.

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उन्होंने ट्वीट किया, "मेरा संदेह ग़लत नहीं था. वे लोगों को एक-दूसरे के ख़िलाफ़ खड़ा करना चाहते हैं."

बीते वर्ष पूर्व विदेश मंत्री यशवंत सिन्हा की अध्यक्षता में दिल्ली स्थित ग्रुप ऑफ़ कन्सर्न्ड सिटिज़न्स ने परिसीमन आयोग को एक ज्ञापन सौंपा था. इसमें कहा गया कि 2011 में हुई जनगणना का संदर्भ लेते हुए 'परिसीमन' किया जाना है. इसमें आगे कहा गया, "2011 में हुई जनगणना के मुताबिक तत्कालीन राज्य की जनसंख्या 1,25,41,302 थी. लद्दाख की जनसंख्या (2,74,289) निकलने के बाद ये घटकर 1,22,67,013 हो जाएगी. परिसीमन का निर्धारण करने वाले भारतीय संविधान के अनुच्छेद 170(2) के मुताबिक "हर राज्य को क्षेत्रीय चुनाव इलाकों में ऐसे बांटा जाएगा कि हर क्षेत्र की जनसंख्या और इसे आवंटित की जाने वाली सीटों की संख्या का अनुपात (अब तक जैसा होता रहा है) पूरे राज्य में एक सा रहे. "

कुछ जानकारों का मानना है कि इस क़दम से भारत-समर्थक राजनीति कमजोर होगी.

राजनीतिक टिप्पणीकार हारून रेशी ने बीबीसी से कहा कि यह कश्मीर में भारत समर्थक राजनीति में आख़िरी कील के जैसा है. कोई यह तय तौर पर नहीं बता सकता है कि आख़िर दिल्ली ऐसा क्यों चाहती है कि राजनीति सिर्फ़ जम्मू में ही बढ़े, जबकि कश्मीर में अगर कोई भारत समर्थित भी है तो उसे धकेल दिया जाता है.

वह आगे कहते हैं कि सभी को मालूम है कि अनुसूचित जाति और जनजाति मुख्य रूप से जम्मू में हैं और इसका मतलब यह हुआ कि जम्मू को लगभग 60 सीटें मिलेंगी.

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