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पाकिस्तान के ख़िलाफ़ 1971 के युद्ध में जब भारतीय पायलट का विमान 'नो मैन्स लैंड' में गिरा - विवेचना
- Author, रेहान फ़ज़ल
- पदनाम, बीबीसी संवाददाता
4 दिसंबर, 1971 को आदमपुर हवाई ठिकाने पर 101 स्क्वार्डन के फ़्लाइट लेफ़्टिनेंट गुरदीप सिंह सामरा मेट ब्रीफ़िंग लेने के लिए सुबह चार बजे ही उठ गए थे.
ऐसा नहीं था कि वो रात भर सो पाए थे क्योंकि एक दिन पहले ही पाकिस्तानी विमानों ने भारतीय ठिकानों पर हमला कर युद्ध की शुरुआत कर दी थी.
करीब सुबह 9 बजकर 15 मिनट पर गुरदीप सिंह सामरा ने आदमपुर एयरबेस से अपने सुखोई 7 विमान में टेक ऑफ़ किया. उनको छंब सेक्टर में बढ़ रहे पाकिस्तानी टैंकों को बरबाद करने का काम सौंपा गया था.
दो महीने पहले ही उनकी मनिंदर कौर से शादी हुई थी. जैसे ही उन्होंने नीचे पाकिस्तानी टैंकों पर अपने 57 एमएम के रॉकेट दागे, उन्हें अपने विमान से किसी चीज़ के टकराने की आवाज़ सुनाई दी. ये नीचे से विमानभेदी तोपों द्वारा दागे गए गोले थे.
अचानक कॉकपिट में कई लाल बत्तियाँ जलने लगीं और सीट के सामने लगे मीटर बताने लगे कि उनके इंजन ने काम करना बंद कर दिया है और विमान में आग लग गई है.
उस समय वो जिस तरह उड़ रहे थे, उनका विमान उन्हें पाकिस्तान के क्षेत्र में ले जा रहा था, लेकिन उनके सहज बोध ने उन्हें अपना विमान भारत की सीमा की ओर मोड़ने के लिए प्रेरित किया.
वो अपने विमान को बहुत ऊपर ले गए ताकि वो जितना संभव हो उतना भारत की सीमा की तरफ़ ग्लाइड कर सकें. यदि वो तुरंत इजेक्ट कर (विमान से बाहर निकल) जाते तो वो पाकिस्तानी क्षेत्र में गिरते और उनका युद्धबंदी बनना तय हो जाता.
ग्रुप कैप्टन गुरदीप सिंह सामरा याद करते हैं, ''मैं एक तरफ तो रेडियो संपर्क के द्वारा अपनी इमरजेंसी और विमान से कूदने के इरादे के बारे में सूचित करने की कोशिश कर रहा था. दूसरी तरफ़ अपने विमान के इंजन को फिर से चालू करने की कोशिश में भी लगा हुआ था ताकि मैं अपने विमान को सबसे नज़दीक हवाई ठिकाने पठानकोट ले जाकर उसकी इमरजेंसी लैंडिंग करा सकूँ.''
वो कहते हैं, ''मैंने 'मे डे कॉल' (जान का ख़तरा होने पर की जाने वाली इमरजेंसी कॉल) करने की भी कोशिश की लेकिन वो सफल नहीं हो पाई. अचानक मैंने अपने विमान को पेड़ की ऊँचाई पर उड़ता हुआ पाया. मैंने ये सोचकर कि अब नहीं तो कभी नहीं, दोनों इजेक्शन बटन दबा दिए. जैसे ही बटन दबा मैं कुछ सेकेंडों के लिए बिल्कुल ब्लैंक हो गया. उस समय एयर स्पीड इंडीकेटर करीब-करीब शून्य बतला रहा था. और समय था दिन के सवा दस बजे.''
पैराशूट आग की लपटों से घिरा
जैसे ही गुरदीप सिंह सामरा पैराशूट से नीचे गिरे, उसी समय उनका विमान भी ज़मीन पर गिरा और क्रैश हो गया.
सामरा क्रैश हुए विमान से उठ रही आग की लपटों से घिरे हुए थे, इसलिए उन्हें दिख नहीं रहा था कि उनका पैराशूट कहाँ लैंड करने वाला है.
ये इलाका एक तरह से 'नो मैन्स लैंड' था. सामरा बताते हैं, ''उसी समय मेरे कपड़ों ने आग पकड़ ली. मेरे चेहरे पर इतनी तपिश पड़ रही थी कि मेरी भौंहें उससे जल गईं और मेरी आँखें अपने आप मुंदती चली गईं. मैंने इतने नीचे से इजेक्ट किया था कि मुझे परफ़ेक्ट लैंडिंग के लिए अपने दोनों पैर जोड़ने तक का मौका नहीं मिल पाया था.''
वो कहते हैं, ''तेज़ लपटों और गर्मी के चलते मेरा पैराशूट उलझ गया था और मैं ज़मीन पर उतनी तेज़ी से गिरा था, जिस तरह आसमान से पत्थर गिरता है. जैसे ही मैं चारों तरफ़ फैली आग के बीच गिरा मैंने खड़े होकर सुरक्षित जगह पर जाने की कोशिश की पर तभी मुझे महसूस हुआ कि मेरे पैर की हड़्डी कई जगह से टूट गई है. मैं चलना तो दूर अपने पैरों पर खड़ा तक नहीं हो सकता था.''
150 मीटर दूर एक एंबुलेंस दिखी
सामरा बहुत दर्द में थे और उन्हें आग से बचने के लिए तुरंत कुछ न कुछ करना था. तभी विमान में रखे बम फटने लगे लेकिन सौभाग्य से उसकी दिशा दूसरी तरफ़ थी.
इतने ख़तरनाक ढंग से इजेक्ट करने के बाद इससे बड़ी विडंबना क्या होती कि सामरा अपने ही हथियारों के शिकार हो जाते. सामरा ने अपना मास्क उतारा और जहाज़ के मलबे से दूर अपने पीछे पेड़ों की तरफ़ लुढ़कना शुरू कर दिया. उन्हें प्यास लगी थी. वो पसीने से तरबतर थे. करीब 15 या 20 मिनट बाद उन्हें एक एंबुलेंस आती दिखी.
सामरा याद करते हैं, ''वो एंबुलेंस मुझसे करीब 150 मीटर की दूरी पर थी. लेकिन मुझे ये अंदाज़ा नहीं था कि वो एंबुलेंस हमारे देश की है या पाकिस्तान की. घायल होने और चलने में अक्षम होने के कारण मुझे अपने आप को बचाने के लिए किसी दूसरे पर निर्भर होना ज़रूरी था, चाहे वो मेरा दुश्मन हो या दोस्त. लेकिन इससे पहले कि मैं कुछ और सोच पाता वो एंबुलेंस मेरी आँखों से ओझल हो गई. मेरी समझ में नहीं आया कि क्या वो मरीचिका थी.''
घटनास्थल पर विली जीप पहुंची
इस बीच गुरदीप सिंह सामरा ये सोचने लगे कि उन्हें आगे क्या करना है? उन्होंने सोचा कि वो अपना ओवरऑल (पायलट के पूरे बदन को ढंकने वाला जैकेट) जलती हुई आग में फेंक दें, क्योंकि उन्होंने उसके नीचे सिविल कपड़े पहने हुए थे.
उनके पास ज़रूरत पड़ने पर अपने बाल काटने की एक कैंची और कुछ पाकिस्तानी करेंसी भी थी.
करीब 45 मिनट बाद उन्हें अपनी तरफ़ एक और वाहन आता दिखा. वो एक विली जीप थी.
सामरा याद करते हैं, ''मुझे बाद में पता चला कि वहाँ एक एंबुलेंस वाकई आई थी और उसमें सवार लोग ये सोचकर वापस लौट गए कि आग की लपटें इतनी ऊँची हैं कि वहाँ किसी के ज़िंदा बचने की उम्मीद नहीं है. छोटा वाहन होने के कारण वो जीप बिल्कुल मेरे पास तक चली आई. मैंने सीटी बजाकर और हाथ हिलाकर उनका ध्यान अपनी तरफ़ आकर्षित करने की कोशिश की. थोड़ी देर में कुछ सैनिकों ने मुझे घेर लिया.''
सामरा ने सौंपे नक्शे और अपने रिवॉल्वर
सामरा आगे बताते हैं, ''उनकी राइफ़लें मेरी तरफ़ तनी हुई थीं. ये बिल्कुल हॉलीवुड फ़िल्म जैसा दृश्य था. इस तरह कुछ सेकेंड बीते पर मुझे वो अनंतकाल की तरह लगे. चारों तरफ़ सन्नाटा छाया हुआ था. हाँ, कुछ दूरी पर टैंकों के फ़ायर करने की आवाज़ें ज़रूर सुनाई दे रही थीं.''
उन्होंने कहा, ''उसी समय सैनिकों के कैप्टन अपय्या ने मुझसे पूछा तुम कौन हो? मैंने जवाब दिया, मैं भारतीय हूँ. उनके चेहरे पर न कोई भाव आए और न कोई मुस्कान. अचानक उनमें से एक ने कहा कि तुम्हारे पास कोई हथियार है? अगर है, तो उसे हमारी तरफ़ फेंक दो. मैंने ऐसा ही किया.''
वो कहते हैं, ''उसके बाद उन्होंने मुझसे नक्शे, दूसरे दस्तावेज़ और कोड वर्ड माँगा. मैंने सब कुछ उनके हवाले कर दिया. लेकिन इस पर भी जब उनकी तरफ़ से मुझे बचाने का कोई प्रयास होता नहीं दिखा तो मैं थोड़ा परेशान हो गया. मैंने उस ब्रिगेड का नाम बताया जिसकी मदद के लिए हमने उड़ान भरी थी. फिर मैंने उनसे वो सवाल पूछा जो मुझे काफ़ी देर से परेशान कर रहा था. 'आप लोग कौन हैं?' कुछ देर के बाद कैप्टन का जवाब आया हम 'भारतीय' हैं.''
सामरा को भूमिगत बंकर में रखा गया
थोड़ी देर बाद सामरा को भारतीय सैनिकों ने उठाया और उन्हें उस छोटी सी जीप में लाद दिया. जिन लोगों को विली जीप के आकार का अंदाज़ा है, वो ये समझ सकते हैं कि जिस जीप में तीन लोग सवार हों और ऊपर से उसमें एक मरीज़ लेटा हो और उसके पैरों की हड्डी तीन जगह टूट चुकी हो, उसे कैसा महसूस हो रहा होगा?
सामरा ने उस दर्द में भी उनसे पूछा कि आप एंबुलेंस क्यों नहीं बुला लेते? तब कैप्टन अपय्या ने थोड़ी दूर खड़े पाकिस्तानी टैंकों की तरफ़ इशारा करते हुए कहा कि हम यहाँ बहुत देर तक नहीं रुक सकते, क्योंकि वो टैंक हमें निशाना बनाने का कोई अवसर नहीं चूकेंगे.
सामरा को कुछ दूरी तक जीप से ले जाया गया और फिर उन्हें एक भूमिगत बंकर में डाल दिया गया. वो बंकर एक पेड़ के बगल में था, जहाँ एक भारतीय टैंक खड़ा था और थोड़ी-थोड़ी देर पर पाकिस्तानी टैंकों पर फ़ायरिंग कर रहा था. ये महज़ संयोग था कि पाकिस्तानी टैंकों ने उसे अपना निशाना नहीं बनाया.
जौरियाँ के अस्पताल में चढ़ा प्लास्टर
सामरा की परेशानियों का अंत हालांकि अभी नहीं हुआ था. जैसे ही टैंक फ़ायर करता तो आसपास की धरती ज़ोर से हिलती और चारों ओर धूल फैल जाती. बंकर के अंदर मेडिकल कोर का एक सैनिक घायलों की मदद के लिए दौड़-भाग कर रहा था.
शाम को सामरा को कुछ घायल सैनिकों के साथ एंबुलेंस में डाल कर जौरियाँ के फ़ील्ड अस्पताल ले जाया गया. अस्पताल पहुंचते-पहुंचते रात के 9 बज गए. लेकिन उस अस्पताल में कोई एक्स-रे मशीन नहीं थी. हालांकि वहाँ मौजूद डाक्टरों ने ऊपर से देखने के बाद सामरा को बता दिया कि उनके एक पैर में हड्डी तीन जगह से टूट चुकी है.
वहीं हरीकेन लैंप की रोशनी में बिना एनेस्थीसिया दिए सामरा के पैर में प्लास्टर चढ़ाया गया. उन्हें इतना कसकर प्लास्टर चढ़ाया गया कि उनका दर्द पहले से भी अधिक बढ़ गया.
पाकिस्तानी विमान का हमला
5 दिसंबर की सुबह होते-होते सामरा को 'मिसिंग इन एक्शन' (लापता सैनिक) घोषित किया जा चुका था. आदमपुर एयरबेस से संपर्क नहीं हो पा रहा था. सामरा के साथी उनके बारे में किसी भी सूचना का बेसब्री से इंतज़ार कर रहे थे.
पूरा दिन बीत जाने के बाद सामरा को रात को बताया गया कि एक एमआई-4 हेलिकॉप्टर आएगा और उन्हें और दूसरे घायलों को लेकर ऊधमपुर अस्पताल जाएगा.
सामरा याद करते हैं, ''हम वहां चार घायल लोग थे. योजना थी कि हेलिकॉप्टर के इंजन को बंद नहीं किया जाएगा. जब वो नीचे उतरेगा तो उसके रोटर्स घूमते रहेंगे और वो घायल सैनिकों को लेकर तुरंत उड़ जाएगा. जब हमें स्ट्रेचर में लिटाकर हेलिकॉप्टर की तरफ़ ले जाया जा रहा था कि पाकिस्तानी वायुसेना का एक मिग-9 विमान अचानक वहाँ आ पहुंचा और बम गिराने लगा.''
वो बताते हैं, ''मुझे नहीं पता कि वो विमान क्या हेलिकॉप्टर के रोटर्स से उड़ने वाली धूल देखकर वहाँ पहुंचा था. लेकिन इसके जवाब में भारतीय हेलिकॉप्टर ने अपना इंजन बंद कर दिया. जो सैनिक हमें स्ट्रेचर पर लेकर हेलिकॉप्टर की तरफ़ बढ़ रहे थे, वो हमारे स्ट्रेचरों को ज़मीन पर खुले आसमान में छोड़कर अपनी जान बचाने के लिए बंकर में जाकर छिप गए.''
सामरा के अनुसार, ''अब हम पाकिस्तानी विमान के सीधे निशाने पर थे. लेकिन शायद वो ये अंदाज़ा नहीं लगा पाए कि हम बुरी तरह से घायल ज़मीन पर लाचार दशा में पड़े हैं. हमारा सौभाग्य था कि भारतीय सेना के एक अफ़सर ने हमारी मदद की. वो स्ट्रेचर उठाने वाले सैनिकों पर हमें उस दशा में छोड़ने के लिए चिल्लाया. उनकी डाँट सुनकर सैनिकों ने हमारे स्ट्रेचर को खुले आसमान से दोबारा उठाकर अपेक्षाकृत सुरक्षित जगह पर पहुंचा दिया.''
ऊधमपुर और दिल्ली के सैनिक अस्पताल में इलाज
जैसे ही पाकिस्तानी हमला समाप्त हुआ सामरा और अन्य घायल सैनिकों को हेलिकॉप्टर में लादकर टेक ऑफ़ किया गया. ऊधमपुर के बेस अस्पताल में शुरुआती इलाज के बाद गुरदीप सिंह सामरा को दिल्ली के सैनिक अस्पताल में शिफ़्ट कर दिया गया.
वहाँ उनका तीन महीनों तक इलाज चलता रहा. जनवरी 1973 से सामरा ने फिर से विमान उड़ाना शुरू कर दिया.
वो 1995 में भारतीय वायुसेना से ग्रुप कैप्टन के पद से रिटायर हुए. बाद में कारगिल युद्ध के दौरान उन्हें कुछ समय के लिए भारतीय वायुसेना के रिज़र्व अफ़सर के तौर पर सेवाएं देने का मौका भी मिला. ग्रुप कैप्टन गुरदीप सिंह सामरा इस समय जालंधर में रहते हैं.
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