लियोनेल मेसी: सारी दुनिया क़दमों में थी, बस वर्ल्ड कप का इंतज़ार था

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जब क्रोएशिया और अर्जेंटीना के बीच फुटबॉल वर्ल्ड कप का सेमीफाइनल खेला जा रहा था. तो, अर्जेंटीना के कप्तान लियोनेल मेसी क़रीब क़रीब दो मिनट तक मैदान के बीचों-बीच खड़े रहकर गेंद का इंतज़ार करते रहे थे.
आख़िर में जब गेंद उन्हें मिली तो वो गेंद लेकर सेंटर बैक जोस्को ग्वार्डियोल के साथ साथ दौड़ने लगे और दूसरे छोर पर बने गोल के क़रीब जाने की कोशिश करने लगे. दौड़ते हुए जब मेसी ने पीछे मुड़कर देखा, तो 20 बरस के डिफेंडर उनके बेहद क़रीब पहुंच चुके थे.
जैसे ही मेसी बाई-लाइन के क़रीब पहुंचे, वो पलटे और ऐसा लगा कि वो वापस जा रहे हैं. लेकिन, मेसी अचानक फिर मुड़े और अपनी रफ़्तार तेज़ करते हुए गोल से अपनी आख़िरी कुछ मीटर की दूरी नापने लगे. उनकी रफ़्तार देखकर ग्वारडियोल हैरान रह गए.
मेसी ने जूलियन अल्वारेज़ को जो क्रॉस दिया, वो दाहिने पैर से दिया था. इसके चलते जूलियन अल्वारेज़, मेसी के जादुई कमाल का फ़ायदा उठाने वाले एक और खिलाड़ी बन गए.
फुटबॉल खेलने के अपने फन से मेसी ने रविवार को फ्रांस के ख़िलाफ़ खेले जाने वाले वर्ल्ड कप फ़ाइनल में अर्जेंटीना की जगह पक्की कर दी थी. फ़ाइनल में इतिहास रचते हुए अर्जेंटीना ने वर्ल्ड कप अपने नाम कर लिया.
खेल के मैदान में बिजली की रफ़्तार से लगातार सही चुनाव करने के चलते ही मेसी आज अपने करियर में उस ऊंचाई पर पहुंच चुके हैं, जहां कोई और खिलाड़ी अब तक नहीं पहुंच सका है. मैचों के बीच में मेसी के ख़ूब आराम करने की वजह भी यही है.
35 बरस की उम्र में लियोनेल मेसी, आज कुछ लम्हों के पहले से कहीं ज़्यादा पलों वाले खिलाड़ी हैं. जो हर मिले मौक़े को भुनाने से कभी नहीं चूकते.
जिस तरह उन्होंने बीच मैदान से अर्जेंटीना के समर्थकों को नचाया- वैसे ही जैसे वो गेंद के साथ कमाल करते हैं- उस पल मेसी का जादू देखते ही आपको एहसास हो जाता है कि वो लम्हा मैच के लिए कितना अहम था.
जिस खिलाड़ी ने खेल में लगभग सब कुछ हासिल कर लिया हो, उसके लिए वर्ल्ड कप जीतना मानो महानता का आख़िरी मकाम था.

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मेसी का नया रूप
"तुम क्या देख रहे हो बोबो (मूर्ख लड़के) तुम्हारी नज़र किस पर है? जाओ यहां से."
मेसी ने ये व्यंग्यबाण नीदरलैंड के खिलाड़ी वोउट वेगहॉर्स्ट पर तब चलाए थे, जब क्वार्टर फ़ाइनल में अर्जेंटीना ने एक नाटकीय और ग़ुस्से भरे पेनाल्टी शूटआउट के ज़रिए नीरदलैंड्स पर जीत हासिल की थी.
स्ट्राइकर वेग हॉर्स्ट, मैच के बीच में अपनी टीम के लिए खेलने उतरे थे और दो गोल दाग़ दिए थे. इससे नीदरलैंड की टीम को एक्स्ट्रा टाइम मिल गया था.
मैच के बाद मेसी ने सफ़ाई दी कि, "जब से वो मैदान में उतरे थे, तब से ही उनके 19वें नंबर के खिलाड़ी हमें उकसा रहे थे. हमसे ज़बरदस्ती टकरा रहे थे और ऊट-पटांग बातें बोल रहे थे- और मुझे ऐसा लगता है कि ऐसी बातें फ़ुटबॉल का हिस्सा नहीं हैं. मैं हमेशा सबका सम्मान करता हूं. लेकिन मैं वही सम्मान दूसरों से भी चाहता हूं. उनके कोच भी हमारे प्रति सम्मान का भाव नहीं रखते थे."
अब सात बार बैलॉन डोर जीतने वाले खिलाड़ी से हमें ये उम्मीद तो नहीं थी.
बोबो एक पुराना शब्द है, जो बच्चे अक्सर स्कूल में इस्तेमाल करते हैं. निश्चित रूप से मेसी ने भी 12 साल की उम्र में ये शब्द बोला होगा. उसके बाद तो वो दक्षिण अमेरिका छोड़कर यूरोप के बार्सिलोना में एक अलग ही दुनिया में रहने चले आए थे.
हम जिस मेसी को देख रहे हैं, वो कोई नया इंसान नहीं है. असल में ये उसी किशोर उम्र लड़के का पुनर्जन्म है, जो रोज़ारियो को पीछे छोड़ आया था. ये सब 2019 में सामने आना शुरू हुआ था.
2018 में रूस में हुए विश्व कप में मिली निराशा के बाद लियोनेल स्कैलोनी जैसे विनम्र और खिलाड़ियों से खुलकर बात करने वाले कोच अपने साथ एक मुख्य नुस्खा लेकर आए- मेसी के लिए एक सटीक माहौल तैयार करना.
इसमें उस कप्तान के नेतृत्व में युवा खिलाड़ियों का नया समूह तैयार करना भी शामिल था, जिसके वो नौजवान मुरीद हैं.

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अब हर मैच में मेसी राष्ट्रगान गाते नज़र आते हैं
बार्सिलोना में अपने भविष्य को लेकर अनिश्चितताओं के बीच, अर्जेंटीना की राष्ट्रीय टीम ने मेसी को संरक्षण दिया, तसल्ली दी और ऐसे वक़्त में कुछ दोस्त मुहैया कराए, जब उन्हें इनकी सख़्त ज़रूरत थी.
विश्व कप की तैयारी कर रही अर्जेंटीना की टीम के प्रशिक्षण शिविर में शामिल होने की ज़रूरत इसलिए और बढ़ गई, क्योंकि इसमें मेसी को आनंद आता था.
प्रशिक्षण के दौरान बार्बेक्यू की दावतें होती थीं. जाना-पहचाना हंसी मज़ाक़ होता था. बहुत से दोस्त थे. दक्षिणी अमरीका के पारंपरिक कैफीन से भरे पेय मिलते थे. बातचीत के विषयों में बदला, जंग, टीम की एकता और हर हाल में जीत हासिल करने जैसे मसले हावी रहते थे. वो अपना घर था.
2019 में कोपा अमेरिका कप के दौरान वेनेज़ुएला के ख़िलाफ़ क्वार्टर फ़ाइनल में पहली बार इस बात के संकेत दिखे थे कि मेसी के साथ कुछ तो नया हो रहा था. उस मैच में पहली बार मेसी ने अर्जेंटीना का राष्ट्रगान गाया था. हालांकि, उसके बाद से मेसी हर मैच में राष्ट्रगान गाते आ रहे हैं.
बेलो होरिज़ोंटे में हुए सेमीफ़ाइनल में अर्जेंटीना को ब्राज़ील ने हरा दिया और उन्हें लगा कि ब्राज़ील के तत्कालीन राष्ट्रपति जायर बोल्सोनारो ने खेल के मुक़ाबले का इस्तेमाल सियासत के लिए किया है- हाफ टाइम के दौरान बोल्सोनारो मैदान में उतरे थे और फैन उस वक़्त 'मीतो, मीतो' (दिग्गज, दिग्गज) चिल्ला रहे थे.
ब्राज़ील से बेहतर टीम होने के बावजूद, अर्जेंटीना के हाथ से पेनाल्टी शूटआउट के दो मौक़े निकल गए. इस बात से अर्जेंटीना की टीम बेहद नाराज़ हुई क्योंकि उन्हें लगता था कि वीडियो देखने वाले रेफ़री को उनके हक़ में फ़ैसला देना चाहिए था.
मेसी मैदान के मिले-जुले क्षेत्र में गए और कहा कि, "मुझे उम्मीद थी कि कॉनमेबोल इस तरह के रेफरी बनने के बारे में कुछ करेंगे. लेकिन मुझे नहीं लगता कि वो कुछ करेंगे क्योंकि सब कुछ ब्राज़ील के नियंत्रण में है."

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जब मेसी पर लगा था तीन महीने का प्रतिबंध
इन शब्दों के चलते दक्षिण अमेरिका में फ़ुटबॉल के प्रशासनिक संगठन ने मेसी पर तीन महीने के लिए प्रतिबंध लगा दिया था. उसके बाद हुए चिली के ख़िलाफ़ तीसरे स्थान के लिए मुक़ाबले में मेसी को एक 'विपक्षी खिलाड़ी से उलझने' के आरोप में मैदान से बाहर कर दिया गया था.
राष्ट्रीय टीम से खेलते हुए 14 में ये दूसरा मौक़ा था, जब मेसी को रेड कार्ड दिखाया गया था.
हो सकता है कि नीदरलैंड के कोच वान गाल ने शायद नहीं सुना था कि मेसी अपने व्यक्तित्व का एक नया पहलू दिखाने लगे हैं. या शायद उन्होंने सुना भी हो और फिर भी वो मेसी को उकसाने का मौक़ा तलाश रहे हों.
हो सकता है कि शायद इसीलिए उन्होंने मेसी पर आरोप लगाया हो कि वो सबसे अहम मैच खेलने के लिए नहीं उतरे. मैच में दिलचस्पी नहीं ली, क्योंकि उन्हें एक बार मैदान से बाहर का रास्ता दिखा दिया गया था.
हालांकि, मेसी को इन बातों से कोई फ़र्क़ नहीं पड़ा और हमने क़तर में वर्ल्ड कप के फाइनल में उनके व्यक्तित्व के हर पहलू के दीदार किए.
उन्होंने नीदरलैंड के ख़िलाफ़ मैच में अर्जेंटीना को 2-0 से आगे करने के बाद, जश्न मनाने के लिए नीदरलैंड की बेंच की ओर दौड़ लगाई.
फिर मेसी ने रुककर अपने कान पर हाथ रखे और टोपो गिगियो नाम के कठपुतली चूहे की तस्वीर बनाने की कोशिश की, जो अर्जेंटीना के पूर्व खिलाड़ी योआन रोमन रिक़्वेल्म का जश्न मनाने का पसंदीदा अंदाज़ था.

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गली फ़ुटबॉल की जीत का जश्न
ये तरीक़ा वान गाल को याद दिलाने के लिए था कि उन्होंने अपने दोस्त के साथ उस वक़्त कितने भद्दे तरीक़े का बर्ताव किया था, जब दोनों बार्सिलोना में एक साथ थे. उसके बाद मेसी ने वान गाल और उनके सहायक एडगार डेविड्स का रुख़ किया और उन्हें बताया कि वो कुछ ज़्यादा ही बोल रहे थे.
उन इशारों के ज़रिए मेसी, रिक़्वेल्म की उस रचनाशीलता का जश्न मना रहे थे, जिसने यूरोपीय फुटबॉल व्यवस्था और अनुशासन के ऊपर धाक जमाई थी. तब मेसी सिखाए जाने वाले फ़ुटबॉल के ऊपर गलियों में खेले जाने वाले फ़ुटबॉल की जीत का जश्न मना रहे थे.
ये क्वार्टर फाइनल मैच ही था, जिसमें मेसी अपने जज़्बात पर क़ाबू पाने की लड़ाई नहीं लड़ रहे थे बल्कि उनके साथ क़दमताल कर रहे थे. ये एक लड़ाई ही थी.
कैटेलोनिया में जहां अपने जज़्बात का खुलकर इज़हार करने को बुरा माना जाता है, वहां मेसी आम तौर पर ख़ामोश रहते थे और अपने काम पर ध्यान केंद्रित रखते थे. मेसी की किंवदती की इबारत, फुटबॉल के ईंट-गारे से लिखी गई थी.
उन्होंने अपनी शोहरत कुछ बोलने के बजाय अपने खेल से बनाई थी. लेकिन लियो- ये लियो- हमेशा ही उनके भीतर छुपा हुआ था. आख़िरकार वो अर्जेंटीना के रोज़ारियो में जो पैदा हुए थे.

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"एक जीनियस के साथ कैसे रहते हैं"
ज़्यादातर नौजवान खिलाड़ियों वाला स्कैलोनी का समूह केवल एक इंसान को नेता के तौर पर देखता है- मेसी.
अर्जेंटीना के विश्व कप विजेता योर्ग वाल्डानो ने द गार्जियन को बताया था, "जब वो डाइनिंग रूम में दाख़िल होते हैं, तो सबकी नज़रें मेसी पर ही होती हैं. खिलाड़ी, कर्मचारी, शेफ़, किटमेन, पूरा का पूरा हुजूम उन्हीं पर नज़रें गड़ाए रहता है. और ये वो लोग हैं, जो मेसी को जानते हैं.... (उन्हें) मालूम होना चाहिए कि एक जीनियस के साथ कैसे रहते हैं. लंबे समय से अर्जेंटीना की टीम ऐसी नहीं थी, अब उन्होंने ये सीख लिया है. ये विचार सही नहीं है कि सब कोई बराबर है."
राष्ट्रीय टीम के ड्रेसिंग रूम की दीवारों में वो यादें पैबस्त हैं कि अगुवाई कैसे की जाती है.
आज लियोनेल मेसी मारियो केंपेस, रिकार्डो बोशिनी, डेनियल पस्सारेला डिएगो मराडोना, ऑस्कर रुग्गेरी, हैवियर माश्चेरानो और युआन सेबास्टियन वेरोन सबका मिला-जुला रूप बन गए हैं.
ये वो खिलाड़ी हैं, जिन्हें ये पता था कि खेल सिर्फ़ मैदान पर नहीं जीता जाता, बल्कि इस जीत में वो बातें भी शामिल होती हैं, जो आप अपने साथी खिलाड़ियों से करते हैं, रेफरी को बोलते हैं. विरोधियों से करते हैं.

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अर्जेंटीना के कप्तान के लिए सटीक माहौल
मेसी ने इस भूमिका को अपनाने का फ़ैसला किया था. अब तो ये सब बेहद सहज लगता है.
जो लोग अपनी मातृभूमि छोड़ देते हैं, वो कई बार ये भूल जाते हैं कि उनके भीतर धधकते जज़्बे के पीछे वो कौन सी बात थी, जिसने बचपन में उन्हें राह दिखाई थी. लेकिन, जब उन्हें बचपन की वो बातें याद आ जाती हैं, तो जज़्बात बेहद प्रचंड हो जाते हैं. मेसी इसी प्रक्रिया से होकर गुज़रे हैं.
मेसी 30 दिनों तक उन नौजवान खिलाड़ियों से घिरे रहे, जो बचपन में उनके जैसे ही रहे थे. चुनौती देने वाले, आक्रामक और ज़बरदस्त फ़ुटबॉल खेलने वाले ये नौजवान जिन्हें पता था कि मैदान पर उन्हें क्या भुगतना है. उनका ख़्याल सड़कों पर खेल दिखाने वाले जोकर रोड्रिगो डे पॉल रखते थे.
अब मेसी ने दुनिया में अपनी असल जगह हासिल कर ली थी.
वाल्डानो की बात बिल्कुल सटीक है, जब वो ये कहते हैं, "मुझे लगता है कि अर्जेंटीना ने बिल्कुल सही इकोसिस्टम पा लिया है. मैंने एक तस्वीर देखी, जो बिल्कुल हॉलीवुड फ़िल्म ओशंस इलेवन जैसी दिखती है. खिलाड़ी बस से उतर रहे हैं. मेसी उनकी अगुवाई कर रहे हैं. बाक़ी खिलाड़ी उनके पीछे पाबंद हैं और एक त्रिकोण बनाकर उनके पीछे चल रहे हैं."
मेसी को लगता है कि वो अपने दोस्तों के साथ स्कूल के मैदान में हैं.
सेमीफ़ाइनल के बाद मेसी ने अपनी टीम के बारे में कहा था कि, "सच तो ये है कि ये बहुत ताक़तवर समूह है. बेहद मज़बूत. हमने ये बात तब कही जब हम अपना पहला मैच हार गए थे- हममें से किसी को भी इसकी उम्मीद नहीं थी. हमें एक दूसरे पर भरोसा था. क्योंकि हमें ये पता है कि इस समूह में वो जज़्बा है, जो जिताता है."
ये काफ़ी हद तक ठीक उसी तरह का जज़्बा है, जैसा 1986 में डिएगो मराडोना की वर्ल्ड कप विजेता टीम ने दिखाया था. उसी तरह अर्जेंटीना की इस टीम ने भी बार्बेक्यू के इर्द-गिर्द एक टीम भावना जुटा ली है.
अर्जेंटीना की टीम क़तर यूनिवर्सिटी में चार बड़े ग्रिल और एक चूल्हा लेकर आई थी. मांस के बड़े बड़े टुकड़े टांगने के लिए बड़ी सी जगह बनाई गई थी. एल पैस के मुताबिक़, पूरे टूर्नामेंट के लिए अर्जेंटीना की टीम के पास 2600 किलो मांस था. अर्जेंटीना में 'असाडो' उतना भोजन नहीं, जितनी कोई धार्मिक परंपरा है. वहीं पर टीम भावना के जज़्बात जुटाए जाते हैं.

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मेसी 'वो नाम' जो पूरे देश को जोड़ता है
अर्जेंटीना से फ़ुटबॉल के लगभग 40 हज़ार फैन, वर्ल्ड कप देखने क़तर पहुंचे हैं. हर मैच के दौरान स्टेडियम नीली और सफ़ेद जर्सी से भरा नज़र आता था.
पहले मुक़ाबले में सऊदी अरब से हार का सदमा मिलने के बाद से फाइनल तक का हर मैच मानो वर्ल्ड कप की छोटी छोटी ट्रॉफी जमा करने वाला मुक़ाबला बन गया था.
अर्जेंटीना में वर्ल्ड कप सब कुछ है; फ़ुटबॉल सब कुछ है. देश में सब कुछ इसी खेल के इर्द गिर्द चक्कर लगाता है, क्योंकि यही एक तरीक़ा है, जिससे अर्जेंटीना दुनिया को ये दिखाता है कि वो ख़ास है.
1970 के दशक में एक दौर वो भी था, जब ये माना जाता था कि अर्जेंटीना और जापान दुनिया के सबसे अमीर और ताक़तवर देश बनने वाले हैं.
उसके बाद से अर्जेंटीना के लोग कहते हैं कि दुनिया में चार तरह के देश होते हैं- विकसित, कम विकसित, जापान और उनका देश. जापान इसलिए क्योंकि कुछ न होने पर भी उन्होंने सब कुछ हासिल कर दिखाया और अर्जेंटीना इसलिए क्योंकि सब कुछ होने पर भी वो कुछ नहीं कर पाया. वो तरक़्क़ी की गाड़ी पर सवार होने में नाकाम रहे.
देश की आर्थिक ताक़त में भरोसे की कमी- ज़बरदस्त महंगाई, आधे से ज़्यादा मुल्क का ग़रीब माना जाना, राजनेता और देश को दो हिस्सों में विभाजित करने वाली व्यवस्था के चलते अर्जेंटीना के नागरिक आज ख़ुद को एक सूत्र में बांध पाने वाला कोई ज़रिया नहीं देखते हैं.
आज भी फ़ुटबॉल ही इकलौता खेल है जो पूरे अर्जेंटीना को एक धागे में पिरो देता है. हमने ब्यूनेस आयर्स और पूरे देश में मनाए जा रहे जश्न के तौर पर इसकी मिसाल देखी है.
ये मांग तब और बढ़ जाती है, जब फ़ुटबॉल का कोई खिलाड़ी नीली और सफ़ेद जर्सी पहनता है. उनके लिए बस एक चीज़ क़ीमती होती है, एक और जीत. मेसी के ऊपर यही दबाव होता है.

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'मुचाचोस'
क्रोएशिया के ख़िलाफ़ मैच के बाद, मेसी ने कहा था कि, "आपको जीतना ही है, ये एहसास लेकर हर बार मैदान में उतरना आसान नहीं होता. क्योंकि अगर आप ये नहीं सोचते तो आप खेल से बाहर हो जाते हैं. और हम ऐसा दूसरे मैच से करते आ रहे हैं. ये दिमाग़ी तौर पर बेहद थकाऊ होता है और हमारी टीम को पता है कि इस थकान पर जीत कैसे हासिल की जाए. हमने पांच फ़ाइनल खेले हैं और अब एक और बचा है."
2021 में अर्जेंटीना के कोपा अमेरिका जीतने के बाद से दबाव से मुक्त होकर, मेसी को ये एहसास है कि इस सफ़र का अंत क़रीब है. इसीलिए उन्होंने ख़ुद को अपने आस पास के माहौल में बह जाने की इजाज़त दे दी है.
वो हर उस जज़्बे को गले लगा रहे हैं, जिसके लिए वर्ल्ड कप जाना चाहता है. इसमें वो अदृश्य धागा भी है, जिससे उन्हें मैराडोना से जोड़ा जाता है. वो मैच के बाद अपने फैन्स के साथ गाते रहे हैं. ख़ास तौर से 'मुचाचोस' जिसमें मैराडोना स्वर्ग से मेसी का हौसला बढ़ाते हैं.
"मैं अर्जेंटीना में पैदा हुआ था, जो डिएगो और लियोनेल, मल्विनास के बच्चों की धरती है. जिसे मैं कभी भूल नहीं सकता. मैं इसे आपको नहीं समझा सकता क्योंकि आप समझेंगे ही नहीं, जो फ़ाइनल हमने हारे हैं उनके बाद मैं कितने बरस तक रोया हूं. लेकिन अब वो बीती बात है. क्योंकि अब माराकाना में ब्राज़ुकास के ख़िलाफ़ फ़ाइनल फिर से जीता गया (कोपा अमेरिका का फाइनल जो अर्जेंटीना ने जीता था). यारो, हम फिर उत्साहित हैं. मैं तीसरा विश्व कप जीतना चाहता हूं; मैं फिर विश्व चैंपियन बनना जाता हूं और हम देख सकते हैं कि स्वर्ग में डिएगो, डॉन डिएगो और ला टोटा के साथ मिलकर लियोनेल का हौसला बढ़ा रहे हैं."
सेमीफ़ाइनल में पहुंचने के एक दिन बाद मेसी ने क़तर यूनिवर्सिटी की सुविधाओं के बीच एक दिन अपनी पत्नी एंटोनेला और अपने तीन बच्चों के साथ बिताया था. उन्होंने थोड़ा वक़्त जिम में गुज़ारा था और ख़ुद को फ़िज़ियोथेरेपिस्ट के हवाले कर दिया था.
उसके बाद के दिनों में मेसी ने ख़ुद पर बहुत ज़्यादा बोझ डाले बग़ैर अभ्यास किया और दोपहर बाद का वक़्त, अपनी टीम के साथ ताश का खेल 'ट्रुको' खेलते हुए गुज़ारा था. ये मुक़ाबला भी वैसा ही था, जिसकी आप उम्मीद लगा सकते हैं.
क्रोएशिया को हराने के बाद मेसी ने अपने परिवार के साथ ज़्यादा समय बिताया. दो दिनों की छुट्टी का फ़ायदा उठाने से उन्हें अपने करियर में, राष्ट्रीय टीम के साथ छठे फ़ाइनल में पहुंचने के चलते आसमान छू रहे जज़्बातों से निजात हासिल करके हक़ीक़त के धरातल पर आने में मदद मिली थी.

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रिटायरमेंट पर मेसी
सेमीफ़ाइनल में क्रोएशिया को हराने के बाद मेसी ने कहा था, "ज़ाहिर है कि मुझे ये सोचकर बहुत ख़ुशी होती है कि मैं वर्ल्ड कप में अपने करियर को फ़ाइनल खेलते हुए विराम दूंगा. अगले वर्ल्ड कप से पहले कई बरस होंगे और मुझे नहीं लगता कि मैं अगले विश्व कप में खेल पाऊंगा और इसीलिए इस तरह अपना सफ़र ख़त्म करना बेहद शानदार होगा."
मेसी अब वर्ल्ड कप में अर्जेंटीना की ओर से सबसे ज़्यादा गोल दाग़ने वाले खिलाड़ी बन चुके हैं और पांचवां विश्व कप उनके लिए बेहतरीन रहा है. वो गोल और मदद करने वाली फेहरिस्त में शिखर पर हैं, और किसी दूसरे खिलाड़ी की तुलना में मेसी ने अपने पैरों के जादू से गोल करने के सबसे ज़्यादा मौक़े बनाए हैं.
जब रविवार को फ्रांस के ख़िलाफ़ मेसी वर्ल्ड कप फ़ाइनल खेलने उतरे थे, तो ये उनका 26वां विश्व कप मैच था. इस तरह उन्होंने जर्मन खिलाड़ी लोथार मथाएस के सबसे ज़्यादा विश्व कप मैच खेलने के रिकॉर्ड को भी ध्वस्त कर दिया है.
स्कैलोनी ने एक ऐसी टीम खड़ी की है, जो मेसी की ताक़त बढ़ाने का काम करती है. वो चाहते हैं कि मेसी के इर्द-गिर्द खिलाड़ियों की फौज लगाएं, जो उनसे मिले मौक़े का फ़ायदा उठा सके और दूसरे खिलाड़ियों को मौक़ा देकर भी मेसी ख़ुद गोल करने का सिलसिला जारी रखें. वो चाहते हैं कि मेसी आख़िरी फ़ैसले को प्रभावित करें, और वो स्ट्राइकर भी बने रहें. टीम का हर खिलाड़ी उनके हिसाब से ख़ुद को ढालता है.

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उन्हें टीम को एकजुट करना है. ऐसा न हो कि सबसे ज़्यादा मेहनत ख़ुद मेसी को करनी पड़े. मेसी को अपनी सीमाओं का भी एहसास है और इसीलिए वो ऑस्ट्रेलिया के ख़िलाफ़ अपने 1000वें खेल में भी 100 मिनट से ज़्यादा देर तक मैदान में डटे रहे और नीदरलैंड के ख़िलाफ़ 131 मिनट तक मैदान में रहे.
अब आगे क्या? ऐसा लगता है कि वो पेरिस सेंट जर्मेन क्लब के प्रस्ताव को स्वीकार कर लेंगे, जिससे वो 2025 तक इस क्लब से जुड़े रहेंगे. इसके बाद 2024 में कोपा अमेरिका का मुक़ाबला है और हो सकता है कि इंटर मयामी भी कुछ वर्षों के लिए अपने दरवाज़े उनके लिए खोल दे.
स्कैलोनी और अर्जेंटीना की फुटबॉल फेडरेशन की योजना तो ये है कि वो ये फ़ैसला ख़ुद मेसी पर छोड़ दें. लेकिन, वो ये ज़रूर चाहें कि मेसी कोपा अमेरिका तक तो टीम के साथ बने रहें. इस बीच वो अपनी पसंद के मुक़ाबले खेलते रहें, और फिर स्कैलोनी और फेडरेशन को ये उम्मीद है कि जब मेसी 39 बरस के होंगे, तो उन्हें अर्जेंटीना के लिए अगला वर्ल्ड कप खेलने के लिए राज़ी कर लिया जाए.
टीम के बाक़ी खिलाड़ी भी मेसी से यही गुज़ारिश करेंगे. न ही वो खिलाड़ी और न ही हमारे जैसे लोग- कोई नहीं चाहेगा कि मेसी फुटबॉल को इस मोड़ पर अलविदा कहें, जब खेल में रचनाशीलता के लिए बहुत कम गुंजाइश बची है और मेसी जैसे खिलाड़ियों के अस्तित्व की तो मैदान में इजाज़त ही नहीं है.
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