फ़ीफ़ा विश्व कप: पुर्तगाल पर मोरक्को की जीत को इस्लाम से जोड़ने पर छिड़ी बहस

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फ़ीफ़ा विश्व कप में शनिवार की रात मोरक्को ने इतिहास रच दिया है. वह पहला अफ्रीकी देश बन गया है, जो टूर्नामेंट में सेमीफ़ाइनल तक पहुँचा है.
मोरक्को ने उस पुर्तगाल को हरा कर सेमीफ़ाइनल में जगह बनाई है, जिसमें क्रिस्टियानो रोनाल्डो, पेपे, ब्रूनो फ़र्नांडीज़, बर्नाडो सिल्वा और रूबन डियास खेल रहे थे.
शनिवार को दोहा के अल-थमामा स्टेडियम में मोरक्को की जीत के साथ ही अरब और अफ़्रीकी देशों में जश्न का माहौल छा गया. ये जश्न था फ़ीफ़ा विश्व कप के 92 साल के इतिहास में पहली बार किसी अफ्रीकी देश के टॉप-4 में पहुँचने का.
शनिवार को मोरक्को ने क्वॉर्टर फ़ाइनल में पुर्तगाल को 1-0 से हरा दिया था. इस जीत के साथ ही मोरक्को पहला अफ़्रीकी देश बन गया जो सेमीफ़ाइनल मैच खेलेगा. मोरक्को के स्ट्राइकर यूसफ़ एन-नसारी के फर्स्ट-हाफ़ में किए गए गोल ने टीम को सेमीफ़ाइनल में पहुँचाया.
मोरक्को की जीत के बाद जश्न के कई नज़ारे सामने आ रहे हैं लेकिन जिस एक दृश्य की चर्चा सबसे ज़्यादा है वो है मोरक्को के विंगर सोफ़ियान बोफ़ाल और उनकी माँ के मैदान पर ख़ुशी से झूमने का.

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बोफाल ने अपनी माँ के साथ एक तस्वीर शेयर करते हुए लिखा- सब देने वाला ख़ुदा है, अलहमदुल्लिलाह.
इससे पहले ग्रुप मैच में बेल्जियम को हराने के बाद मोरक्को के स्टार अशरफ़ हकीमी का स्टेडियम में अपनी माँ को गले लगाता वीडियो सोशल मीडिया पर ख़ूब चर्चा में छाया रहा था.
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मोरक्को की जीत एक अंडरडॉग देश की जीत है और ऐसी टीमें अपने कंधों पर देश को पहचान और खेल में वैद्यता दिलाने का वज़न भी ढोती हैं.
इस फ़ीफ़ा टूर्नामेंट में मोरक्को ही अकेला मुस्लिम बहुल आबादी वाला देश है, जो यहाँ तक पहुँचा है. ऐसे में मोरक्को के लिए शनिवार को जमकर 'एटलस लायन' के नारे लगे. मोरक्को की टीम को एटलस लायन भी कहते हैं क्योंकि ये शेरों की एक ख़ास प्रजाति है जो उत्तरी अफ़्रीका में पाई जाती है.
मोरक्को की जीत को इस्लाम से जोड़ने पर बहस
उत्तरी अफ्रीकी देश मोरक्को की 97 फ़ीसदी से अधिक आबादी मुस्लिम है. इसे अरब-अफ़्रीकी देश इसलिए कहते हैं क्योंकि यहाँ रहने वाले लोग बड़ी तादाद में अरब सुन्नी मुसलमान हैं. साथ ही 7वीं सदी लेकर 11वीं सदी तक यहाँ अरब ने राज किया जिसके परिणामस्वरूप मोरक्को के लोगों में अरब की संस्कृति गहरे तक पैठी हुई है. मोरक्को क्षेत्रफल के लिहाज से 7 लाख 10 हज़ार वर्ग किलोमीटर में फैला है. देश की आबादी लगभग साढ़े तीन करोड़ है.
पाकिस्तान के पूर्व प्रधानमंत्री इमरान ख़ान ने मोरक्को की जीत पर ट्वीट करते हुए कहा, "पुर्तगाल पर मोरक्को की जीत और सेमीफ़ाइनल में पहुँचने के लिए उन्हें बधाई. पहली बार अरब, अफ़्रीकी देश और एक मुस्लिम टीम फ़ीफ़ा के सेमीफ़ाइनल तक पहुँची है. सेमीफ़ाइनल और उससे भी आगे जाने के लिए मोरक्को को शुभकामनाएं."
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यह जश्न अंडरडॉग टीम के इतने आगे तक आ जाने का तो है ही लेकिन अरब और इस्लामिक देश इस बात का भी जश्न बना रहे हैं कि एक मुसलमान बहुल देश टूर्नामेंट में इतना आगे आया है. लेकिन कई लोग इसे धर्म से जोड़ कर ना देखने की बात भी कर रहे हैं.
मिशिगन की वेन स्टेट यूवनिवर्सिटी में लॉ प्रोफ़ेसर ख़ालिद बिदुन ने ट्वीट किया, "मोरक्को एक मुसलमान देश है. 98 फ़ीसदी इसकी आबादी इस्लाम धर्म मानती है. इसके खिलाड़ियों ने हर गोल और जीत के बाद इबादत में सिर झुकाया है. ये दुनिया के दो अरब मुसलमानों की जीत है."
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लेकिन मध्य-पूर्व के पत्रकार करीम शाहीन लिखते हैं, "मुझे नहीं पता कि ये किसे सुनने की ज़रूरत है. लेकिन आज मोरक्को की जीत हुई है, एक अरब और अफ़्रीकी देश की जीत, ना कि इस्लाम की जीत. बर्शते साल 1930 से विश्व कप में ईसाइयों की जीत हो रही हो."
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पड़ोसी मुल्क पाकिस्तान में लोग मोरक्को की जीत पर ख़ूब चर्चा कर रहे हैं. वहां मोरक्को को लेकर लाखों ट्वीट किए जा रहे हैं और ये टॉप ट्रेंड में बना हुआ है.
जर्मनी के पूर्व फ़ुटबॉलर मेसुत ओज़िल ने भी मोरक्को की जीत पर लिखा है, "गर्व है, क्या बेहतरीन टीम है! अफ़्रीकी महाद्वीप और मुस्लिम दुनिया के लिए बड़ी उपलब्धि है. आधुनिक फ़ुटबॉल में इस तरह की परिकथा देखना अब भी संभव है - यह बहुत से लोगों को शक्ति और आशा देगा."
डॉक्टर ओमार सुलेमान नाम के यूज़र लिखते हैं, "माशाअल्लाह मोरक्को की जीत से अफ्रीका को गर्व है, फ़लस्तीन को गर्व है! मुसलमानों को गर्व है! हम सभी को इससे गौरवान्वित महसूस कर रहे हैं. अल हम्दुलिल्लाह! "
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कनाडा की एक यूनिवर्सिटी में प्रोफ़ेसर गाद साद ट्विटर पर लिखते हैं, "मैं आज मोरक्को की जीत का जश्न मना रहा था, मैंने एक बार भी इस्लाम का जिक्र नहीं किया. मैं पूछ रहा हूं कि मोरक्को की जीत को फ़लस्तीन से क्यों जोड़ा जा रहा है."
दुबई के क्राउन प्रिंस शेख हमदान बिन मोहम्मद बिन राशिद अल मकतूम ने मोरक्को की जीत पर कहा, "एटलस के शेरों को बधाई,. आप एक बार फिर अपने प्रशंसकों और दुनिया भर के हर अरब परिवार के लिए ख़ुशी लेकर आए हैं. आज, आपके दृढ़ संकल्प के साथ हमने क़तर में एक असाधारण मुकाम हासिल किया है. हमारा सपना अब और बड़ा होता जा रहा है. ताकी हम एक नया मील का पत्थर हासिल कर सकें."
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जब ग्रुप मैच में बेल्जियम को मोरक्को ने हराया था तो इसके बाद टीम के कुछ खिलाड़ियों ने मैदान में ही सजदा किया. इस तस्वीर को ख़ूब शेयर किया गया.
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फ़लस्तीन में मोरक्को के लिए जश्न
अल-जज़ीरा की रिपोर्ट के मुताबिक़ अरब देशों के साथ-साथ फ़लस्तीन में भी मोरक्को की जीत का जश्न मनाया गया. गज़ा पट्टी के एक स्पोर्ट्स हॉल में हज़ारों की संख्या में लोग जुटे और ये सभी इस मैच के दौरान मोरक्को का समर्थन कर रहे थे.
अल-जज़ीरा की रिपोर्ट कहती है कि ये जीत किसी एक देश की जीत नहीं सभी अरब देशों की जीत है. फ़लस्तीनी लोग मोरक्को के लिए नारे लगा रहे थे, तालियां बजा रहे थे, ड्रम बजा रहे थे और जैसे ही खेल ख़त्म करने वाली आख़िरी सीटी बजी तो हज़ारों की संख्या में फ़लस्तीनी फैंस सड़कों पर आ गए. पूरी सड़क मानो प्रशंसकों से भर गई हो.
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जो घाना और सेनेगल नहीं कर सके मोरक्को ने कर दिखाया
वर्ल्ड रैंकिंग में 22वें नंबर की टीम मोरक्को शनिवार से पहले भी कई बड़े उलट फ़ेर किए हैं. ग्रुप मैच में मोरक्को ने बेल्जियम को हाराया और राउंड ऑफ़ 16 में 2010 की विश्व विजेता स्पेन को हराया.
इससे पहले तीन अफ्रीकी देश कैमरून, सेनेगल और घाना फ़ीफ़ा विश्व कप के क्वॉर्टर फ़ाइनल में पहुँच चुके हैं. लेकिन कोई भी टीम सेमीफ़ाइनल तक अपना रास्ता नहीं बना पाई.

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कैमरून, 1990: साल 1990 के फ़ीफ़ा विश्व कप मुक़ाबले में कैमरून ने ग्रुप मैच में अर्जेंटीना को 1-0 से हाराया और ये उस वक्त एक शॉक जैसा था. कैमरून की ओर से फ्रेंकोइस ओमैम-बियिक के हेडर से ये जीत कैमरून को मिली थी.
इस टूर्नामेंट में उन्होंने रोमानिया को 2-1 से और फिर सोवियत यूनियन को 4-0 से हराया.
इसके बाद क्वॉर्टर फ़ाइनल में कैमरून का मुक़ाबला हुआ इंग्लैंड से. इस मुक़ाबले में इंग्लैंड ने कैमरून को रिकॉर्ड बनाने से रोक दिया और कैमरून क्वॉर्टर फ़ाइनल में 3-2 से हार गया.

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सेनेगल, 2002: साल 2002 में सेनेगल ने भी एक बड़ा उलटफेर करते हुए फ्रांस को 1-0 से हरा दिया था ठीक वैसे ही जैसे कैमरून ने अर्जेंटीना के हराया था. राउंड ऑफ़ 16 में सेनेगल ने स्वीडन को हाराया.
लेकिन क्वॉर्टर फ़ाइनल में अफ्रीक़ी देश का सपना तुर्की ने तोड़ दिया. इस मुक़ाबले में तुर्की की ओर से इल्हान मनसुस ने एक गोल दाग कर तुर्की को सेमीफ़ाइनल में पहुंचाया था.
घाना, 2010: साल 2010 में पहली बार अफ़्रीकी देश विश्व कप का आयोजन कर रहा था. ऐसे में इस अफ्रीकी देशों से उम्मीदें काफ़ी थीं. 2010 में घाना ने सर्बिया पर जीत के साथ टूर्नामेंट का आगाज़ किया. इसके बाद ऑस्ट्रेलिया के साथ ड्रॉ और जर्मनी से मिली हार के बाद घाना ने ग्रुप में रनर-अप की जगह बनाई. राउंड ऑफ़ 16 में घाना अमेरिका से जीत गया. मुक़ाबला हुआ घाना और उरूग्वे का क्वॉर्टर फ़ाइनल में.

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घाना की ओर से सुली मुंतारी ने पहले गोल किया औऱ टीम बढ़त की स्थित में आ गई लेकिन इसके बाद उरूग्वे की ओर से डिएगो फॉरलेन ने एक गोल करके दोनों टीमों को बराबरी के स्कोर पर खड़ा कर दिया.
इसके बाद ये मैच पेनल्टी शूट की ओर बढ़ गया और यहां उरूग्वे ने 4-2 से घाना का सफ़र क्वार्टर फ़ाइनल पर ही ख़त्म कर दिया.
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