जलवायु परिवर्तन: IPCC रिपोर्ट से हम ये 5 बातें सीख सकते हैं

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- Author, मैट मैकग्रॉ
- पदनाम, पर्यावरण संवाददाता
जलवायु परिवर्तन बहुत व्यापक स्तर और तेज़ी से हो रहा है. लेकिन भविष्य में क्या होगा, ये हमपर निर्भर है.
जो लोग पश्चिम में रहते हैं, उनके लिए हमारे ग्रह के गर्म होने से पैदा होने वाले ख़तरे का असर अब बहुत दूर नहीं है और ये सिर्फ दूर-दराज के लोगों पर असर नहीं डालेगा.
ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय के डॉ फ्राइडेरिक ओटो जो कि जलवायु परिवर्तन पर संयुक्त राष्ट्र के आईपीसीसी के कई लेखकों में से हैं, कहते हैं, "जलवायु परिवर्तन भविष्य की समस्या नहीं है, ये मौजूदा समस्या है और सारी दुनिया पर असर डाल रही है."
डॉ फ्राइडेरिक ओटो का इस विश्वास के साथ दावा करना ही इस नए रिपोर्ट की असली ताकत है.
यूनिवर्सिटी कॉलेज लंदन के प्रोफेसर आर्थर पीटरसन ने बीबीसी न्यूज़ से कहा, "मुझे लगता है कि एक भी तरह की नई आश्चर्यजनक बात सामने नहीं आई है, यह अत्यधिक दृढ़ता है जो इसे अब तक की सबसे मजबूत आईपीसीसी रिपोर्ट बनाती है."
प्रो. पीटरसन आईपीसीसी में डच सरकार के पूर्व प्रतिनिधि हैं, और इस रिपोर्ट को तैयार करने वाले अनुमोदन सत्र में पर्यवेक्षक थे. वो कहते हैं, " यह आरोप नहीं लगा रहा है, यह सिर्फ धमाका, धमाका, धमाका है, एक के बाद एक स्पष्ट बिंदु."
इनमें से सबसे स्पष्ट बिंदु जलवायु परिवर्तन के लिए मानवता की जिम्मेदारी के बारे में है.

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अब कोई ज़िम्मेदार नहीं है, हम हैं
1.5 डिग्री सेल्सियस की तापमान वृद्धि की सीमा लाइफ़ सपोर्ट पर है.
जब जलवायु परिवर्तन के विज्ञान पर आखिरी आईपीसीसी रिपोर्ट 2013 में प्रकाशित हुई थी, तब 1.5 डिग्री सेल्सियस की वार्मिंग सुरक्षित सीमा पर विचार किया गया था.
लेकिन राजनीतिक वार्ताओं में कई विकासशील देशों और द्वीप राज्यों ने कम तापमान बढ़त पर ज़ोर दिया, ये तर्क देते हुए कि यह उनके लिए ये अस्तित्व का मामला था.
2018 में 1.5 डिग्री सेल्सियस पर एक विशेष रिपोर्ट ने दिखाया कि 2 डिग्री की बढ़त की सीमा की तुलना इसके कई फ़ायदे हैं.
लेकिन इसे हासिल करने के लिए अनिवार्य रूप से 2030 तक कार्बन उत्सर्जन को आधा करना होगा और 2050 तक नेट ज़ीरो उत्सर्जन तक पहुंचना होगा.

यह नई रिपोर्ट इस बात की पुष्टि करती है. यदि उत्सर्जन पर लगाम नहीं लगाई जाती है, तो लगभग एक दशक में 1.5 डिग्री तक तापमान बढ़ सकता है.
नेट ज़ीरो तक पहुंचने के लिए क्लीन टेक्नॉलॉजी का उपयोग करके जितना संभव हो सके ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन कम करना होगा, बाकी बचे हुए को हटाने के लिए पेड़ लगाने जैसे उपाय करने होंगे.
स्थिति बहुत गंभीर है, लेकिन अभी आपदा नहीं आई है
लीड्स विश्वविद्यालय की डॉ अमांडा मेकॉक, जो नई रिपोर्ट के लेखकों में से एक हैं, उन्होंने बताया" 1.5C थ्रेशहोल्ड राजनीतिक रूप से एक महत्वपूर्ण सीमा है, लेकिन जलवायु के दृष्टिकोण से, यह एक चट्टान का आखिरी छोर नहीं है - कि एक बार जब हम 1.5 डिग्री से अधिक पर जाएंगे तो अचानक सब कुछ बहुत विनाशकारी हो जाएगा,"
"इस रिपोर्ट में हम जब सबसे कम उत्सर्जन परिदृश्य का आकलन करते हैं, उससे पता चलता है कि बाद में सदी में वार्मिंग का स्तर 1.5 डिग्री के आसपास या नीचे स्थिर हो जाता है. यदि हम सही कदम उठाते हैं तो बुरे प्रभावों से काफी हद तक बचा जा सकता है."

बुरी खबर: हम कुछ भी कर लें, समुद्र का जलस्तर बढ़ेगा.
पहले समुद्र के जलस्तर में वृद्धि के जोखिम का आकलन सही तरीके से नहीं करने को लेकर आईपीसीसी की आलोचना की गई थी. स्पष्ट शोध की कमी ने पिछली रिपोर्टों में ग्रीनलैंड और अंटार्कटिक के बर्फ की चादरों के पिघलने के संभावित प्रभावों को बाहर कर दिया. लेकिन इस बार ऐसा नहीं है.
रिपोर्ट से पता चलता है कि वर्तमान परिदृश्यों में समुद्र के स्तर संभावित सीमा से ऊपर उठ सकते हैं, इस सदी के अंत तक 2 मीटर तक और 2150 तक 5 मीटर तक जा सकते हैं.
हालांकि ऐसा होने की आशंका कम है लेकिन इतने कम समय में बढ़ते ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन के बीच इन्हें ख़ारिज नहीं किया जा सकता है.
यह काफी बुरा है - लेकिन अगर हम उत्सर्जन पर नियंत्रण कर लेते हैं और 2100 तक तापमान की बढ़त 1.5 डिग्री के आसपास तक रखते हैं, तो भी भविष्य में पानी के स्तर का बढ़ना जारी रहेगा.

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अच्छी खबर: वैज्ञानिक को पता है कि क्या करना है
चेतावनियां स्पष्ट और अधिक भयानक हैं - लेकिन इस रिपोर्ट के में आशा की किरण भी है.
वैज्ञानिक लंबे समय से चिंता व्यक्त कर रहे हैं कार्बन डाइऑक्साइड का असर जितना अबतक सोचा गया है उससे अधिक हो सकता है.
वे एक वाक्य का उपयोग करते हैं - संतुलन जलवायु संवेदनशीलता यानी वार्मिंग की सीमा को कार्बन डाइऑक्साइड की मात्रा दोगुनी होने की स्थिति में समझना.
2013 की रिपोर्ट 1.5 डिग्री से 4.5 डिग्री तक की बात कही गई थी, लेकिन कोई सटीक अनुमान नहीं था.
इस बार, लिमिट कम हो गई है और वैज्ञानिकों के अनुसार सबसे संभावित आंकड़ा 3डिग्री है.

यह महत्वपूर्ण क्यों है?
यूनिवर्सिटी ऑफ लीड्स के प्रोफेसर और रिपोर्ट के एक लेखकों में से एक पियर्स फोर्स्टर ने कहा, "अब हम निश्चितता के साथ यह बताने में सक्षम हैं और फिर हम इसका उपयोग सटीक भविष्यवाणियां करने के लिए करते हैं."
"तो, इस तरह, हम जानते हैं कि नेट ज़ीरो तक पहुंचने से बदलाव आएंगे."
रिपोर्ट में एक और बड़ी आश्चर्यजनक बात एक और गर्म करने वाली गैस मीथेन की भूमिका के बारे में है.

आईपीसीसी के अनुसार, 1.1 डिग्री तापमान, जो पहले ही दुनिया का बढ़ चुका है, उसमें लगभग 0.3 डिग्री का योगदान मीथेन का है.
तेल और गैस उद्योग, कृषि और चावल की खेती से होने वाले इन उत्सर्जन पर काबू पाने से बहुत फ़ायदे हो सकते हैं.
यूएस एनवायर्नमेंटल डिफेंस फंड के फ्रेड क्रुप ने कहा, "रिपोर्ट मीथेन प्रदूषण से जुड़ी किसी भी शंका को खारिज करती है, ख़ासतौर पर तेल और गैस जैसे क्षेत्रों से, जहां इसे सबसे तेज़ी से और सस्ते में कम किया जा सकता है.
"जब हमारे अत्यधिक गर्म होने वाले ग्रह की बात आती है, तो डिग्री का हर अंश मायने रखता है - मीथेन उत्सर्जन में कटौती से बेहतर वार्मिंग की दर को कम करने का कोई तरीका नहीं है."

राजनेता घबराएंगे, अदालतें रहेंगी व्यस्त
ग्लासगो में महत्वपूर्ण COP26 जलवायु सम्मेलन से कुछ महीने पहले इस रिपोर्ट के आने का मतलब है कि संभवतः वार्ता इसी पर आधारित होगी.
2013 और 2014 के आकलन ने पेरिस जलवायु समझौते का रास्ता दिखाया था.
यह नया अध्ययन कहीं अधिक मजबूत, स्पष्ट है और इस बारे बताता है कि यदि राजनेता कार्रवाई नहीं करते हैं तो क्या होगा.

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यदि वे जल्दी से पर्याप्त कदम नहीं उठाते हैं और COP26 एक असंतोषजनक रुप समाप्त होता है, तो अदालतों की भूमिका बढ़ेगी.
हाल के वर्षों में, आयरलैंड और नीदरलैंड में पर्यावरण प्रचारक अदालत गए हैं ताकि सरकारों और कंपनियों को जलवायु पर कार्य करने के लिए मजबूर किया जा सके.
ग्रीनपीस नॉर्डिक के वरिष्ठ राजनीतिक सलाहकार कैसा कोसोनन ने कहा, "हम निष्क्रियता से इस रिपोर्ट को ठंडे बस्ते में नहीं जाने देंगे. इसके बजाय हम इसे अपने साथ अदालतों में ले जाएंगे."
"मानव उत्सर्जन और मौसम के बीच वैज्ञानिक साक्ष्य को मजबूत करके, आईपीसीसी ने हर जगह जीवाश्म ईंधन उद्योग और सरकारों को जलवायु आपातकाल के लिए सीधे जिम्मेदार ठहराने के लिए नए, शक्तिशाली साधन प्रदान किए हैं."
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