ईरान में पानी के लिए कोहराम, आख़िर क्यों सूखे में समा रहा मुल्क

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- Author, जैक गुडमैन
- पदनाम, बीबीसी रियलिटी चेक
ईरान इस समय भयंकर रूप से पानी की कमी और बिजली कटौती से जूझ रहा है.
आम लोग बिजली और पानी के लिए सड़क पर विरोध-प्रदर्शन कर रहे हैं. इन प्रदर्शनों ने देश में गहराते जल संकट की ओर ध्यान खींचा है.
विशेषज्ञों ने कई सालों से ख़राब होती स्थिति की ओर ध्यान दिलाया था और चिंता जताई थी. ईरान के जल संकट के लिए क्या ज़िम्मेदार है?
अप्रैल में ईरानी मौसम विज्ञान संगठन ने चेताया था कि एक 'अभूतपूर्व सूखा' और बारिश में भारी कमी रहने वाली है, जो कि वास्तव में लंबी अवधि के औसत से काफ़ी नीचे था.
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सड़कों पर लोग
तेल उत्पादन वाले प्रांत ख़ुज़ेस्तान में पानी की कमी के कारण लोग सड़कों पर उतर आए और दूसरे शहरों में हाइड्रो इलेक्ट्रिक बिजली की कमी के ख़िलाफ़ प्रदर्शन हुए थे.
सरकार ने अधिक प्रभावित इलाक़ों में आपातकालीन सहायता मुहैया कराई थी.
ईरान इस समय कई प्रकार की पर्यावरण की चुनौतियों से जूझ रहा है, जिनमें बढ़ती गर्मी, प्रदूषण, बाढ़ और झीलों का सूख जाना शामिल है.
कई दशकों के सबसे ख़राब आँकड़े
ऊर्जा मंत्रालय की वेबसाइट के आँकड़ों के अनुसार, ईरान की मुख्य नदी बेसिन में सितंबर 2020 और जुलाई 2021 के बीच हुई बारिश इसी दौरान पिछले साल हुई बारिश के मुक़ाबले में काफ़ी कम थी.
इससे पीछे के सरकारी आँकड़े हमें नहीं मिले लेकिन अमेरिका के शोधकर्ताओं ने सैटेलाइट के ज़रिए डेटा इकट्ठा किया है.
इन आँकड़ों में मार्च में हुई बारिश का बीते 40 साल के औसत से तुलना की गई है. यूनिवर्सिटी ऑफ़ कैलिफ़ोर्निया अरविन के सेंटर फोर हाइड्रोमेट्रोलॉजी के अनुसार, साल 2021 के पहले तीन महीने उस औसत से काफ़ी कम थे.
- 1983 के बाद जनवरी सबसे सूखा महीना बीता
- मार्च में भी सबसे अधिक सूखा रहा
- नवंबर में थोड़ी बरसात हुई लेकिन अक्टूबर बीते 40 सालों में सबसे अधिक सूखा रहा
संयुक्त राष्ट्र के खाद्य और कृषि संगठन ने अनुमान लगाया है कि ईरान में अनाज की एक-तिहाई खेती की भूमि के लिए सिंचाई की ज़रूरत है. इसलिए बारिश न होना महंगा साबित हो सकता है.
ख़ुज़ेस्तान में क्या हुआ?
इस प्रांत में सूखे का एक लंबा वक़्त बीतने के बाद स्थानीय लोगों ने प्रदर्शन किए हैं. कुछ लोग नारे लगा रहे थे कि 'हम प्यासे हैं.'
स्टुटगार्ट यूनिवर्सिटी के शोधकर्ताओं के डेटा के अनुसार, एक ऐसा क्षेत्र जहाँ भारी मात्रा में पानी हुआ करता था, वहाँ पर बहुत महत्वपूर्ण करुन नदी अब सूखी रहती है.
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सैटेलाइट की तस्वीरें दिखाती है कि बीते सालों में उसका पानी का स्तर तेज़ी से गिरा है.
इसमें साल 2019 में तब बढ़ोतरी हुई थी जब भारी बाढ़ आई थी.
दशकों से पैदा हो रही थी समस्या?
ख़ुज़ेस्तान के प्राधिकरणों के सूत्रों से मिले मैप में जुलाई 2021 के समय क्षेत्र के बांधों के पानी का स्तर दिखाया गया है. नीली रेखा पानी का स्तर दिखा रही है.

कई महत्वपूर्ण बांधों में अभी पानी काफ़ी कम है और लगातार पानी छोड़ने की मांग उठ रही है ताकि धान उगाने वाले किसानों और जानवर पालने वाले लोगों की मुश्किलें हल की जा सकें.
कुछ लोग स्थानीय पारिस्थितिकी तंत्र में इतने संकट की वजह तेल उद्योग को बताते हैं.
इन इलाक़ों से पानी को देश के केंद्र में मौजूद मरुस्थल क्षेत्रों में भी ले जाया जाता है जो कि तनाव की एक और वजह है.
येल विश्वविद्यालय में तैनात और ईरानी पर्यावरण विभाग के पूर्व उप-प्रमुख कावेह मदनी कहते हैं, "यहाँ पर जलवायु परिवर्तन और सूखा कारण हैं."
"लेकिन यह समस्या दशकों से जड़ें जमा रही थीं, जिनमें बुरा प्रबंधन, ख़राब पर्यावरण व्यवस्था, दूरदर्शिता की कमी और पहले से इस परिस्थिति के लिए तैयार नहीं होना शामिल है."
पानी को लेकर और गंभीर होंगी चुनौतियां?
ईरान अपने सिकुड़ते पानी के स्रोतों पर बहुत अधिक निर्भर है.
वो लगातार सूखे का सामना कर रहा है और जलवायु परिवर्तन के कारण उसे अधिक विकट परिस्थितियों का सामना करना पड़ रहा है.
अधिक गर्मी और सूखे का मौसम हाइड्रोपावर जनरेशन पर अधिक प्रभाव डालेगा, जिसके कारण पहले ही गर्मियों में ईरान में गंभीर बिजली की कमी देखी गई है.
बिजली न आने के कारण तेहरान और दूसरे शहरों में भारी विरोध प्रदर्शन हो चुके हैं. बिजली की कमी के कारण टेलिकॉम्युनिकेशन और ट्रैफ़िक लाइट तक पर असर पड़ा है.
गर्मी में एयर-कंडिशन के इस्तेमाल के कारण भी बिजली की मांग बढ़ी, जिसने पावर ग्रिड पर काफ़ी बोझ डाला.
हालांकि, देश में बिजली की सप्लाई की कमी के लिए क्रिप्टो-करेंसी की माइनिंग को भी ज़िम्मेदार ठहराया जा चुका है. कहा गया था कि इसमें काफ़ी बिजली का इस्तेमाल होता है.

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जल प्रबंधन की लंबी समस्याएं
सूखा जहाँ पर्यावरण के आगे चुनौतियां खड़ी कर रहा है, वहीं ईरान के जल संकट की वजहें और गहराती जा रही हैं.
2015 में एक पर्यावरण विशेषज्ञ ने चेताया था कि अगर ईरान जल संकट का हल नहीं खोजता है तो लाखों लोगों का सामूहिक पलायन भी हो सकता है.
ईरान के पर्यावरण विभाग के प्रमुख मासूमेह एब्तेकार कहते हैं कि कृषि में 'क्रांति' की ज़रूरत है.
ईरान में पानी का मुख्य स्रोत भूजल है लेकिन पूरी दुनिया में जिन-जिन देशों में तेज़ी से भूजल कम हो रहा है उनमें भारत, अमेरिका, सऊदी अरब और चीन के साथ-साथ ईरान भी शामिल है.
खाद्य के मामले में देश को आत्मनिर्भर बनाने की दिशा में किसान भारी मात्रा में भूजल का इस्तेमाल करते रहे हैं.
भूजल तेज़ी से निकालने के कारण ज़मीन में नमक की मात्रा भी बढ़ सकती है जिसके कारण अन्न पैदा करने वाले क्षेत्रों में ज़मीन की उर्वरकता पर भी असर पड़ सकता है.
प्रोसिडिंग्स ऑफ़ द नेशन एकेडमी ऑफ़ साइंसेज़ के एक शोध के अनुसार, कई क्षेत्रों में सिंचाई के पानी में अधिक नमक होने का ख़तरा है.
भूजल के लिए गहरी ख़ुदाई के कारण शहरों के धंसने का भी ख़तरा बरक़रार है.
विलुप्त होतीं झीलें
इसके साथ ही उन इलाक़ों और नदियों के लिए काफ़ी चिंताएं उठ खड़ी हुई हैं, जहाँ पर काफ़ी पानी रहा है लेकिन अब वहाँ पर धूलभरी आंधी उठने का ख़तरा मंडरा रहा है.
उर्मिया झील कभी दुनिया की सबसे बड़ी खारे पानी की झील हुआ करती थी जो कि अब पर्यावरण विनाश का एक प्रतीक बन चुकी है. कभी 1,930 स्क्वेयर मील में फैली यह झील 2015 में अपने आकार के दसवें हिस्से तक सिकुड़ गई थी.
90 के दशक में क्षेत्र में तेज़ी बढ़ती कृषि गतिविधियों और सूखे के बीच लोगों ने अपनी फसलों के लिए भूजल का इस्तेमाल किया और कई बांध बनाए गए.
जनता के हंगामे, राष्ट्रपति से वादे और बेहतर सिंचाई के बाद झील की क़िस्मत पलटती नज़र आ रही है.
इतिहास के अपने आकार के मुक़ाबले में झील अब आधी बढ़ चुकी है और अच्छे आकार में है लेकिन यह अभी साफ़ नहीं है कि यह सुधार के कारण है या ठीक हुई बारिश के कारण. लंबे सूखे के कारण इसकी वापसी मुश्किल हो सकती है.
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