|
'लश्कर की मदद से हुए धमाके'
|
||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||
दिल्ली पुलिस ने दावा किया है कि दिल्ली समेत पिछले कुछ समय से भारत में हुए हमलों के पीछे सिमी और इंडियन मुजाहिदीन का हाथ है
और उन्हें लश्करे तैयबा का पूरा समर्थन मिला है.
दिल्ली दुलिस के संयुक्त आयुक्त करनैल सिंह ने शनिवार को दिल्ली में एक पत्रकार वार्ता की और धमाकों के सिलसिले में जानकारी दी. उन्होंने बताया, "इसमें दो गुट मिले हुए हैं-सिमी और इंडिनय मुजाहिदीन. लश्करे तैयबा का पूरा समर्थन मिला है. पिछले तीन-चार साल में ये पता चला है कि जब लश्कर के पाकिस्तानी लोग पकड़े जाते हैं तो आईएसआई को दिक्कत होती है. इसलिए इन्होंने रणनीति बदली और ये ज़्यादा से ज़्यादा भारतीय मूल के लोगों को शामिल करना चाहते थे. इस रणनीति के तहत सिमी और दूसरे इंडियन मुजाहिदीन से बात की गई."
दिल्ली में पिछले हफ़्ते हुए धमाकों के बारे में करनैल सिंह ने कहा, "आतिफ़ और जुनैद ने ग्रेटर कैलाश में बम रखे थे, बाराखंबा रोड पर साजिद (उसकी मौत हो गई है)और ज़ीशान ने बम रखा था, चिल्ड्रंस पार्क में शहज़ाद और मलिक, रीगल में सैफ और ख़ालिद ने रखा था. गफ़्फ़ार मार्केट में शकील नाम का लड़का था. सेंट्रल पार्क में भी साजिद नाम के शख़्स ने रखा था." इससे पहले दिल्ली की एक अदालत ने शुक्रवार को पकड़े गए दो संदिग्ध चरमपंथियों मौहम्मद सैफ़ और ज़ीशान अहमद को 14 दिनों की पुलिस हिरासत में भेज दिया. दिल्ली पुलिस ने दावा किया है कि पिछले हफ़्ते दिल्ली में हुए सिलसिलेवार बम धमाकों में मोहम्मद सैफ़ और ज़ीशान अहमद भी शामिल थे. मोहम्मद सैफ़ को जामिया नगर इलाक़े से और ज़ीशान अहमद को झंडेवालाँ से पकड़ा गया था. जबकि एक अन्य संदिग्ध चरमपंथी मोहम्मद आतिफ़
मुठभेड़ में मारा गया था. |
इससे जुड़ी ख़बरें
सुराग़ का दावा, इंस्पेक्टर की अंत्येष्टि20 सितंबर, 2008 | भारत और पड़ोस
दिल्ली की सुरक्षा पर उच्चस्तरीय बैठक19 सितंबर, 2008 | भारत और पड़ोस
फिर सुर्खियों में आया जामिया नगर19 सितंबर, 2008 | भारत और पड़ोस
'रुक-रुक कर चल रही थीं गोलियाँ'19 सितंबर, 2008 | भारत और पड़ोस
जामिया नगर में है दहशत का माहौल19 सितंबर, 2008 | भारत और पड़ोस
'चरमपंथी इंडियन मुजाहिदीन का था'19 सितंबर, 2008 | भारत और पड़ोस
दो 'चरमपंथी' और एक इंस्पेक्टर की मौत19 सितंबर, 2008 | भारत और पड़ोस
पोटा जैसा क़ानून नहीं, कई नए उपाय18 सितंबर, 2008 | भारत और पड़ोस
|
||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||
|
|||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||