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आसिफ़ ज़रदारीः दोस्तों के दोस्त | ||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||
आसिफ़ ज़रदारी के बारे में कहा जाता है कि वे अगर वकील ना होते तो एक नामी भविष्यवक्ता होते. अगस्त 1990 में पाकिस्तान पीपुल्स पार्टी की सरकार के बर्ख़ास्त होने के बाद जब उनको पहली बार गिरफ़्तार किया गया तो उन्होंने पत्रकारों से कहा कि आनेवाले दिनों में वे या तो जेल में रहेंगे या प्रधानमंत्री के घर में. और यही हुआ. 1993 में जेल से बाहर आए वे केंद्र में मंत्री बनने के लिए. कोई तीन साल बिताए होंगे उन्होंने प्रधानमंत्री निवास में कि अक्तूबर 1996 में पाकिस्तान पीपुल्स पार्टी की सरकार गिरी और ज़रदारी दूसरी मर्तबा सलाखों के पीछे चले गए. इस बार उनकी ये जेलयात्रा आठ बरस तक जारी रही. वैसे बहुत कम लोगों को ज़रदारी के इतने ऊपर पहुँचने का अंदाज़ा रहा होगा जो कि एक छोटे व्यवसायी के खुशमिज़ाज़ बेटे ज़रदारी जो कि अपनी बुद्धि और राजनीति से अधिक अपनी प्लेबॉय वाली इमेज के लिए मशहूर थे. मगर ख़ास बात ये थी कि लगातार होनेवाली कोशिशों और तमाम प्रलोभनों के बावजूद वे अपनी पत्नी और पार्टी के साथ बने रहे जबकि कई राजनीतिक मामलों में उनकी दोनों से ही नहीं बनी. आरोप ज़रदारी को जब पहली बार पकड़ा गया था तो उनपर आरोप लगा कि उन्होंन ब्रिटेन में रहनेवाले एक पाकिस्तानी व्यवसायी की पैर से एक रिमोट कंट्रोल बम बाँधकर उसे एक बैंक से ये कहते हुए पैसा लाने को कहा कि अगर किसी से कुछ कहा तो बम उड़ा दिया जाएगा. 1996 में उनको क़ानून-व्यवस्था के नाम पर पकड़ा गया मगर शीघ्र ही उनपर बेनज़ीर के भाई मुर्तज़ा की हत्या का आरोप लगा दिया गया. मधुमेह और रीढ़ की हड्डी के दर्द के शिकार ज़रदारी बिना छड़ी के नहीं चल सकते और जेल में उनका अधिकतर समय उन सैकड़ों लोगों के बारे में सोचने में बीता होगा जिन्होंने उनके अच्छे दिनों में उनसे फ़ायदा उठाया. दोस्तों के दोस्त वे दोस्तों के दोस्त कहे जाते थे और जहाँ एक बार प्रधानमंत्री निवास से बाहर आते ही अधिकतर लोगों ने मुँह फेर लिया, कुछ ऐसे भी लोग थे जिन्होंने उनका साथ नहीं छोड़ा. दोस्तों ने उनके लिए सेलफ़ोन और डीवीडी से लेकर तमाम वे चीज़ें लाकर दीं जिनकी उनको ज़रूरत थी. अपने परिवारवालों का हाल-चाल भी ज़रदारी को दोस्तों के ही माध्यम से मिलता रहा. मगर अब लगता है कि अपने ऊपर चल रहे 15 मुक़दमों में आख़िरी मामले में भी ज़मानत मिलने के बाद ज़रदारी नए सिरे से ज़िंदगी शुरू कर सकते हैं. |
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