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रविवार, 04 जुलाई, 2004 को 15:52 GMT तक के समाचार
 
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तलाक़ पर मुस्लिम लॉ बोर्ड का सुझाव
 
मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड
मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड भारत में मुसलमानों का प्रतिनिधित्व करनेवाली एक संस्था है
भारत के मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने मुस्लिम समाज में सुधार के लिए अभियान चलाने का फ़ैसला किया है जिनमें निकाह और तलाक़ जैसे संवेदनशील मामले भी शामिल हैं.

बोर्ड ने तय किया है कि वह मुस्लिम समुदाय में सिर्फ़ तीन बार 'तलाक़' शब्द बोलकर तलाक़ लेने की प्रथा को ख़त्म करने के लिए मुस्लिम समुदाय को राज़ी करवाने की कोशिश की जाएगी.

रविवार को कानपुर में मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड की बैठक हुई जिसमें ये फ़ैसले किए गए.

लंबी बैठक के बाद बोर्ड ने एक बयान जारी किया जिसमें कहा गया कि शादी, तलाक़, पति-पत्नी के अधिकार और ज़िम्मेदारियों तथा विरासत के बारे में शरीयत के आधार पर क़ानून को लागू करवाने के लिए व्यापक अभियान चलाया जाएगा.

बोर्ड के सचिव अब्दुर्रहीम क़ुरैशी ने कहा कि बोर्ड के पास क़ानूनी अधिकार नहीं हैं मगर वह मुस्लिम समुदाय से अपील करेगा कि वह तीन बार बोलकर तलाक़ लेने के अनुचित तरीक़े को व्यवहार में नहीं लाए.

ग़लत तरीक़ा

अब्दुर्रहीम क़ुरैशी ने कहा कि इस तरह के तलाक़ पर शरीयत में पाबंदी है लेकिन कोई व्यक्ति अगर इस तरह से तलाक़ देता है तो वो माना तो जाएगा मगर उस व्यक्ति को भारी पाप लगेगा.

 मुख्यतः अनपढ़ लोग इस तरह से तलाक़ का सहारा लेते हैं
 
सैयद निज़ामुद्दीन

बोर्ड के महासचिव मौलाना सैयद निज़ामुद्दीन ने कहा कि मुख्यतः अनपढ़ लोग इस तरह से तलाक़ का सहारा लेते हैं.

बोर्ड के एक और वरिष्ठ सदस्य यूसुफ़ हातिम मुछल्ला ने कहा कि ये स्थिति चिंताजनक है कि इस तरह के तलाक़ ज़्यादा लोकप्रिय होते जा रहे हैं जबकि मुस्लिम क़ानून में तलाक़ लेने के और भी तरीक़े बताए गए हैं.

आदर्श निकाहनामा

मुस्लिम बोर्ड ने ये भी तय किया है कि वह एक आदर्श निकाहनामा बनाएगा जिसमें पति और पत्नी के अधिकारों और दायित्वों का वर्णन होगा.

मगर बोर्ड ने कुछ सदस्यों का ये सुझाव मानने से इनकार कर दिया कि इस निकाहनामे में तलाक़ के बारे में भी सूचना शामिल की जाए.

अब्दुर्रहीम क़ुरैशी ने कहा कि शादी के मौक़े पर तलाक़ का ज़िक्र करना अशुभ होगा.

मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने अयोध्या मामले पर अदालत के निर्णय का सम्मान करने की बात दोहराई है.

बोर्ड के एक सदस्य ज़फ़रयाब जिलानी ने उम्मीद जताई कि अदालत एक साल के भीतर फ़ैसला दे सकती है.

 
 
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