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मऊ पहुँचा बीबीसी का कारवाँ | ||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||
मऊनाथ भंजन के सोनीथापा मैदान में जब सोमवार को बीबीसी का कारवाँ पहुँचा तो फ़रवरी की गुनगुनी धूप में सैकड़ों श्रोता इंतज़ार कर रहे थे. कारवाँ सोमवार को मऊ पहुँचा और वहाँ जो श्रोता मिले उसमें कई शायर भी निकले. हमारा स्वागत कुछ शायराना लहज़े में हुआ. एक श्रोता ने कहा,"बीबीसी का अपना नाम, कौन करे इसे बदनाम?". एक और बोले,"बीबीसी की बातें सच्ची, बीबीसी की हिंदी अच्छी". एक और कुछ यूँ रहा,"है यकीं शहरे मऊ में आएँगे वो एक बार, राह में आँखें बिछाए कर रहे थे इंतज़ार, आपको इस बात का होगा तो अंदाज़ा ज़रूर, सामइने बीबीसी को बीबीसी से है कितना प्यार".
अन्य स्थानों की तरह बीबीसी ने यहाँ भी परिचर्चा रखी थी जिसका विषय था- इक्कीसवीं शताब्दी और मऊ. परिचर्चा एक बुज़ुर्ग श्रोता रियाज़ अहमद ने चर्चा शुरू करते हुए कहा,"60-70 साल पहले आमदनी कम थी मगर सुकून बहुत ज़्यादा था, आज आमदनी दस गुना हो गई है मगर सुकून कम होता जा रहा है." बुनकरों के शहर मऊ में राजनेताओं के आश्वासनों पर भी लोग बरसे. एक युवा श्रोता शिव सिंह ने कहा,"जब-जब चुनाव नज़दीक आता है ये तरह-तरह के चुनावी वादे करते हैं मगर चुनाव बीतते ही इनके सभी प्रलोभन झूठे साबित होते हैं". परिचर्चा में भाग लेने आए कुछ श्रोताओं ने मऊ में भ्रष्टाचार का प्रश्न भी उठाया. श्रोताओं को रास्ता सुझाया स्थानीय पार्षद अरशद जमाल ने. उन्होंने कहा,"जिसे जिताया है उससे जाकर हिसाब लीजिए कि आपने कितना काम किया है और जो काम ना करे उसे पकड़ कर कहो कि आप कुर्सी छोड़ो आप इस लायक नहीं हो". बीबीसी का कारवाँ अपनी यात्रा के अगले चरण में मंगलवार को बलिया जा रहा है जहाँ भी श्रोताओं के साथ परिचर्चा आयोजित होगी. परिचर्चा का विषय है- अगर मैं बलिया का सांसद होता/होती. |
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