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शनिवार, 07 फ़रवरी, 2004 को 20:33 GMT तक के समाचार
 
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क्या महिलाएँ समर्थ हैं?
 

 
 
बीबीसी हिंदी के कारवाँ में भीड़
बीबीसी हिंदी के कारवाँ में भीड़
हूँ तो मैं अभी फ़ैज़ाबाद में मगर बात करूँगी अकबरपुर की जहाँ से हम थोड़ी ही देर पहले लौटे हैं.

फ़ैज़ाबाद से कोई 70 किलोमीटर दूर अकबरपुर जिसे डॉक्टर राममनोहर लोहिया की जन्मभूमि के रूप में जाना जाता रहा है.

लेकिन 80 के दशक से उसे एक नई पहचान भी मिली.

अकबरपुर दलित राजनीति के प्रभाव का प्रतीक बन गया.

मायावती दो बार वहाँ से चुनाव जीतीं और उम्मीद की जा रही है कि शायद इस बार भी वे वहीं से चुनाव लड़ें.

तो सवाल उठा कि ऐसा स्थान जो नव राजनीतिक जागरूकता और एक महिला उम्मीदवार को मुख्यमंत्री के पद पर बिठाने का सेहरा बाँधे हो वो महिलाओं के विकास के बारे में आख़िर क्या सोचता है?

क्या महिलाएँ समर्थ हैं?

 महिलाएँ ख़ासकर 19वीं शताब्दी के बाद बहुत ज़्यादा समर्थ हुई हैं. अगर पुरूष उन्हें मात्र भोग की वस्तु ना समझ उनके साथ कंधे से कंधे मिलाकर चलें तो महिलाएँ धरती से आसमान तक अपना क़दम पहुँचाने के लिए तत्पर हैं
 
प्रेमप्रकाश शर्मा, बीबीसी श्रोता

ये विषय था आपकी बात बीबीसी के साथ के अकबरपुर विचारमंच का.

सैकड़ों श्रोता भाग लेने को उत्सुक थे और पैनल में थीं एक महिला सरपंच, एक स्कूल प्रिंसिपल, एक वकील और एक रिक्शाचालक.

महिलाओं की स्थिति पर अच्छा विचारमंथन हुआ.

समाज की मानसिकता कैसे बदली जाए इसपर भी कई ठोस बातें हुईं.

अकबरपुर निवासी प्रेमप्रकाश शर्मा ने कहा,"महिलाएँ ख़ासकर 19वीं शताब्दी के बाद बहुत ज़्यादा समर्थ हुई हैं. अगर पुरूष उउन्हें मात्र भोग की वस्तु ना समझ उनके साथ कंधे से कंधे मिलाकर चलें तो महिलाएँ धरती से आसमान तक अपना क़दम पहुँचाने के लिए तत्पर हैं".

कार्यक्रमों में श्रोताओं की अच्छी भागीदारी

अकबरपुर के ही वकील बृजेंद्र श्रीवास्तव की राय थी,"महिलाएँ आगे बढ़ सकती हैं मगर इनके आड़े आता है रूढ़िवाद अगर ये ना रहे तो महिलाएँ काफ़ी आगे जा सकती हैं".

मेडिकल पढ़ाई कर रहीं एक महिला छात्रा ने कहा,"महिलाओं की स्थिति भारत में बहुत ही ख़राब है और इसका कारण समाज है. बाधक तो वैसे परिवार के लोग भी होते हैं क्योंकि अगर वो लड़की को पूरी तरह से शिक्षा देना चाहते हैं तो उन्हें स्वतंत्रता दे सकते हैं".

दयाशंकर मिश्रा ने कहा,"महिलाओं के बारे में जहाँ पर ये सोच आ जाती है कि महिलाएँ कमज़ोर है वही ग़लत है".

साथ ही अकबरपुरवासियों की एक तकलीफ़ भी उजागर हुई जिसका कारण है जनवरी माह में मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव का उन नौ नए ज़िलों को ख़त्म कर देने का फ़ैसला जिन्हें पूर्व मुख्यमंत्री मायावती के शासनकाल में बनाया गया था.

उस फ़ैसले के बाद अकबरपुर भी अभी अस्तित्व संकट का शिकार बना नज़र आता है.

अकबरपुर के बाद बीबीसी का कारवाँ अब रविवार को सुल्तानपुर पहुँचेगा जहाँ चर्चा का विषय है -'युवा भारत- सबसे बड़ा मुद्दा क्या'.

 
 
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