हांगकांगः क्या चीन ने अपने वादे तोड़े?

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हांगकांग के चार इलाक़ों को घेरकर बैठे युवा प्रदर्शनकारी सामंजस्य बनाकर गर्मजोशी से सार्वभौमिक मताधिकार की माँग के नारे लगा रहे हैं.
हांगकांग का नया नेता चुनने के लिए 2017 में होने वाले चुनाव में उम्मीदवारी के लिए चीन ने नियम निर्धारित कर दिए हैं.
नए नियमों के चीन के अनुमोदन के बाद ही कोई उम्मीदवार चुनाव लड़ सकता है.
इन्हीं के विरोध में लोकतंत्र समर्थक प्रदर्शन कर रहे हैं. काली टी-शर्ट और पीले रिबन इन प्रदर्शनों का प्रतीक बन गए हैं.
हांगकांग के लोगों का आरोप है कि चीन सच्चा लोकतंत्र स्थापित करने के अपने वादे से पीछे हट रहा है.
इस बात को लेकर व्यापक ग़ुस्सा है कि चीन ने समझौते की भावना का उल्लंघन किया है लेकिन इस बात पर भी गंभीर बहस हो रही है कि क्या वाक़ई चीन ने समझौते का उल्लंघन किया है?
संवैधानिक क़ानून
शहर के संविधान 'बेसिक लॉ' के विशेषज्ञ बेरिस्टर एलन हू मानते हैं कि चीन ने कोई वादा नहीं तोड़ा है.

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वह कहते हैं, "मुझे लगता है कि उसकी स्थिति को बहुत ग़लत समझा गया है." वह कहते हैं, "सबसे पहले तो यह कोई वादा नहीं है, यह एक क़ानूनी दायित्व है. एक संवैधानिक दायित्व जिसे उन्होंने मूल क़ानून में निर्धारित किया है."
बेसिल लॉ इंस्टीट्यूट के चेयरमैन और चीन समर्थक एलन हू बेसिल लॉ के अनुच्छेद 45 का उल्लेख कर रहे हैं जो विशेषतौर पर एक व्यक्ति एक वोट के संदर्भ में है.
ये कहता है, "अंतिम उद्देश्य सार्वभौमिक मताधिकार से मुख्य कार्यकारी अधिकारी का चुनाव करना है जिसे मोटे तौर पर लोकतांत्रिक प्रक्रियाओं के तहत प्रतिनिधि नामांकन समिति ने नामित किया हो."
चीन ने इस वाक्य की जो रूढ़िवादी व्याख्या की है उसी के बाद हज़ारों प्रदर्शनकारी हांगकांग की सड़कों पर हैं.
अगस्त के अंत में चीन की संसद की स्थाई समिति ने जो नियम पारित किए हैं उनके तहत उम्मीदवारों को नामांकन समिति में बहुमत से समर्थन हासिल करना होगा.
सिर्फ़ दो या तीन उम्मीदवार ही चुनाव लड़ सकते हैं.

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माँग
हांगकांग के नेता सीवाई लियुंग ने स्पष्टीकरण देते हुए कहा है कि नामांकन समिति को मौजूदा चुनाव समिति के आधार पर ही गठित किया जाएगा. 2012 में जिस समिति ने लियुंग को नामित किया था उसमें अधिकतर सदस्य चीन समर्थक हैं.
सड़कों पर मौजूद प्रदर्शनकारी नेता को नामित करने के अधिकार की मांग कर रहे हैं.
एलन हू कहते हैं कि सार्वभौमिक मताधिकार के तहत चुनने या चुने जाने का तो अधिकार होता है लेकिन नामित करने का अधिकार नहीं होता है.
इस तर्क का विरोध करने वालों में हांगकांग के पूर्व गवर्नर क्रिस पैटन भी हैं जो कहते हैं कि चीन की सरकार लचीली क़ानूनी भाषा का सहारा लेकर अपने दायित्वों से पीछे हट रही है.
पुराने वादे

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1997 में ब्रिटेन के अपने पूर्व उपनिवेश हांगकांग को चीन को सौंपने से वर्षों पहले से ही चीनी नेताओं ने हांगकांग के लोगों से एक व्यक्ति-एक वोट का वादा किया था.
मार्च 1993 में चीन के आधिकारिक अख़बार पीपल्स डेली में प्रकाशित एक टिप्पणी में हांगकांग और मकाऊ मामलों के तत्कालीन निदेशक लू पिंग ने कहा था, "हांगकांग भविष्य में अपने लोकतंत्र को कैसे विकसित करता है यह पूरी तरह से हांगकांग की स्वायत्तता में रहेगा."
1984 में लिखे एक पत्र में चीन के तत्कालीन प्रधानमंत्री झाओ ज़ियांग ने हांगकांग की यूनिवर्सिटी के छात्रों से वादा किया था कि लोगों का लोकतांत्रिक अधिकार सरकार का मूल सिद्धांत है.
उन्होंने वादा किया था कि एक दिन हांगकांग में लोकतांत्रिक शासन होगा.
लेकिन सिर्फ़ पाँच साल बाद ही उदारवादी नेता झाओ को तिएनएनमन चौक पर छात्रों के प्रदर्शनों का समर्थन करने के जुर्म में आजीवन नज़रबंद कर दिया गया.
हांगकांग की डेमोक्रेटिक पार्टी की मुखिया एमिली लाऊ का कहना है कि पुराने वादों का अब भी सम्मान किया जाना चाहिए.
सार्वभौमिक मताधिकार

उनका कहना है कि सार्वभौमिक मताधिकार का मतलब यह होना चाहिए की मतदाताओं को तमाम राजनीतिक विचारधाराओं के उम्मीदवारों में से अपना नेता चुनने का अधिकार हो.
वह कहती हैं कि उत्तरी कोरिया और ईरान में भी एक व्यक्ति-एक वोट का अधिकार है लेकिन वहाँ भी उम्मीदवारों की सूची बेहद सीमित होती है.
एमिली लाऊ कहती हैं, "क्या हम उत्तरी कोरिया या ईरान जैसा बनने जा रहे हैं. नहीं, हम हांगकांग हैं और हम अंतरराष्ट्रीय मानकों पर चलते हुए जनता को सही विकल्प देना चाहते हैं."
लोकतंत्र समर्थकों का कहना है कि प्रदर्शनों को कम करने के लिए हांगकांग और चीन की सरकार को लोगों की आवाज़ को सुनना होगा.
उनका तर्क है कि सामान्य लोग दिल से व्यावहारिक लोग हैं जो समझते हैं कि अंततः वे चीनी नागरिक ही हैं.
एमिली लाऊ कहती हैं, "मुझे विश्वास है कि हांगकांग के लोग जिसे भी अपना नेता चुनेंगे वो चीन और हांगकांग दोनों को प्यार करेगा और हांगकांग के लोगों के हितों की रक्षा कर सकेगा और चीन के साथ मिलकर काम कर सकेगा."
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