फिजी, समोआ जैसे दक्षिणी प्रशांत द्वीपों में चीन की दिलचस्पी से क्यों बढ़ी ऑस्ट्रेलिया और अमेरिका की चिंता

फिएम नाओमी मताफ़ा

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इमेज कैप्शन, चीन के विदेश मंत्री वांग यी के साथ समोआ की प्रधानमंत्री फिएम नाओमी मताफ़ा

चीन के विदेश मंत्री वांग यी गुरुवार से दक्षिण प्रशांत द्वीप के आठ देशों की आधिकारिक यात्रा पर हैं. 26 मई से 4 जून तक चलने वाली इस 10 दिवसीय यात्रा में सोलोमन द्वीप, किरिबाती, समोओ, फिजी, टोंगा, वनुआतु, पापुआ न्यू गिनी और पूर्वी तिमोर की यात्राएं शामिल हैं.

दक्षिण प्रशांत क्षेत्र में ये ऐसे छोटे द्वीप देश हैं जो चीन के लिए रणनीतिक तौर पर बेहद महत्वपूर्ण हैं. ये देश दक्षिण प्रशांत महासागर तक पहुंच देने और ज़रूरी समुद्री रास्तों की रक्षा करने में सक्षम हैं.

जानकार मानते हैं कि दशकों से इस क्षेत्र के ये छोटे देश यहां के पारिस्थिति तंत्र की रक्षा करते रहे हैं और अपना जीवन बिताने के लिए इस पर निर्भर रहे हैं. लेकिन इस क्षेत्र पर दुनिया के कुछ बड़े देश अपना वर्चस्व स्थापित करना चाहते हैं और इसके लिए संघर्ष में उलझे हैं. इस संघर्ष में एक तरफ चीन है तो दूसरी तरफ ऑस्ट्रेलिया और अमेरिका.

बताया जा रहा है कि इसी कोशिश के तहत चीन के विदेश मंत्री वांग यी इस क्षेत्र का दौरा कर इन देशों के साथ निवेश, सुरक्षा समझौतों, बुनियादी ढांचे के निर्माण के लिए बातचीत कर रहे हैं.

चीन का कहना है कि इन देशों की यात्रा का मकसद उनके साथ संबंधों को गहरा करना है. लेकिन ऑस्ट्रेलिया और अमेरिका का आरोप है कि इसके ज़रिए चीन शक्तिप्रदर्शन कर रहा है और इस क्षेत्र में अपना प्रभुत्व बढ़ाने की कोशिश कर रहा है.

वांग यी ने गुरुवार को सोलोमन द्वीप से अपनी यात्रा शुरू की. समाचार एजेंसी एसोसिएटेड प्रेस के मुताबिक़ चीन के विदेश मंत्री वांग यी शुक्रवार को किरिबाती में थे. जहां से रात को वे समोआ के लिए निकले.

समोआ में उन्होंने प्रधानमंत्री फिएम नाओमी मताफ़ा से मुलाक़ात की. इस दौरान चीन ने समोआ के साथ व्यापार और सुरक्षा संबंधी द्विपक्षीय समझौतों पर हस्ताक्षर किए हैं.

समोआ के बाद वांग यी शनिवार की दोपहर फिजी के लिए रवाना हो गए.

मैप

लेकिन इस क्षेत्र को लेकर तनातनी इस बात से साफ़ दिखती है कि अपनी स्थिति को मज़बूत करने के लिए ऑस्ट्रेलिया ने चीन से पहले शुक्रवार को अपने नए विदेश मंत्री पेनी वोंग को फिजी भेजा था.

इससे एक दिन पहले ये ख़बर आई कि फिजी हाल में बने इंडो पैसिफिक इकोनॉमिक फ्रेमवर्क में शामिल हो रहा है. फाइनेन्शियल टाइम्स की एक रिपोर्ट के अनुसार फिजी इंडो पैसिफिक इकोनॉमिक फ्रेमवर्क का 14वां और पहला दक्षिण प्रशांत द्वीप होगा.

फिलहाल इंडो पैसिफिक इकोनॉमिक फ्रेमवर्क में 13 देश हैं. इनमें अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया, ब्रूनेई, भारत, इंडोनेशिया, जापान, दक्षिण कोरिया, मलेशिया, न्यूज़ीलैंड, फिलीपींस, सिंगापुर, थाईलैंड और वियतनाम शामिल हैं.

ये घोषणा अमेरिका ने चीन के विदेश मंत्री के फिजी पहुंचने से ठीक पहले की है. फाइनेन्शियल टाइम्स के अनुसार फिजी पर भी अपना प्रभाव मजबूत करने के लिए चीन और अमेरिका दोनों लगातार कोशिश कर रहे हैं.

समाचार एजेंसी रॉयटर्स के अनुसार इस बारे में व्हाइट हाउस ने कहा, "आईपीईएफ़ में अब उत्तरपूर्व, दक्षिणपूर्वी एशिया, ओशियानिया और पेसिफ़िक आइलैंड्स के प्रतिनिधि शामिल हैं. हम इंडो पेसिफ़िक क्षेत्र को आज़ाद और समृद्ध बनाने के लिए प्रतिबद्ध हैं."

एंथनी अल्बनीस

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इमेज कैप्शन, ऑस्ट्रेलिया के प्रधानमंत्री एंथनी अल्बनीस

ऑस्ट्रेलिया के लिए क्या है मुश्किल?

बीबीसी के एशिया प्रशांत क्षेत्रीय संपादक माइकल ब्रिस्टो का कहना है कि बीते महीने चीन ने सोलोमन द्वीप के साथ इसी तरह का समझौता किया था. इसमें व्यापार, मछली पकड़ने समेत कुछ महत्वपूर्ण सुरक्षा समझौते शामिल थे.

उनका कहना है कि वांग यी की इस दस दिवसीय यात्रा पर अमेरिका और ऑस्ट्रेलिया नज़र बनाए हुए हैं क्योंकि दोनों को ये डर है कि इसके ज़रिए चीन दक्षिण प्रशांत सागर में अपनी सैन्य उपस्थिति बढ़ाने के लिए आधार तैयार कर सकता है और इससे वो इस क्षेत्र में अपनी पहुंच को मज़बूत कर सकता है.

एल पेरिस न्यूज वेबसाइट के मुताबिक़ इन समझौतों के तहत चीनी सुरक्षाबलों को सरकार के अनुरोध पर निजी संपत्ति की रक्षा करने के लिए भेजा सकता है. साथ ही चीनी सैन्य जहाज द्वीपों का दौरा करने और लॉजिस्टिक रिप्लेसमेंट भी कर पाएंगे.

इन समझौतों ने ऑस्ट्रेलिया और अमेरिका को चिंता में डालने की एक और वजह ये भी है कि ये क्षेत्र ऑस्ट्रेलिया से दो हज़ार किलोमीटर से भी कम की दूरी पर है.

हालांकि चीन कहता रहा है कि पेसिफ़िक के देशों के साथ उसके संबंध बेहतर करने की कोशिशों से किसी और देश के के लिए कोई ख़तरा पैदा नहीं होता.

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इसी साल मार्च में ऑस्ट्रेलियन इंस्टीट्यूट ऑफ इंटरनेशनल अफेयर्स के प्रोफ़ेसर एलन गिनगेल ने बीबीसी संवाददाता फ्रांसिस माओ को बताया था कि इस डील के बारे में अभी भी पूरी जानकारी नहीं है लेकिन अगर ये संभावित सैन्य अड्डे से कम है तो ये प्रशांत क्षेत्र में चीन का पहला क़दम होगा."

ऑस्ट्रेलिया और अमेरिका ने प्रशांत महासागर के इन छोटे देशों को चीन के साथ समझौता करने को लेकर चेतावनी दी है.

समाचार एजेंसी एसोसिएटेड प्रेस की एक रिपोर्ट के अनुसार सोलोमन द्वीप के साथ हुआ समझौता आंशिक रूप से पूरा हुआ तो भी चीन को इससे पेसिफ़िक में ऐसी जगह मौजूदगी मिल सकती है जो हवाई, ऑस्ट्रेलिया, न्यूज़ीलैंड और अमेरिका के गुआम से ज़्यादा दूर नहीं है.

ऑस्ट्रेलिया के नए प्रधानमंत्री एंथनी अल्बनीस ने कहा है कि चीन उस क्षेत्र में अपने प्रभाव का विस्तार करने की कोशिश कर रहा है जहां ऑस्ट्रेलिया द्वितीय विश्व युद्ध के बाद से पहला सुरक्षा भागीदार रहा है.

सोलोमन द्वीप और ऑस्ट्रेलिया लंबे समय से आपस में जुड़े रहे हैं. द्वितीय विश्व युद्ध के बाद से ऑस्ट्रेलिया दक्षिणी प्रशांत सागर में मौजूद देशों की वित्तीय रूप से सहायता के साथ सुरक्षा भी करता रहा है.

ऑस्ट्रेलिया का कहना है कि चीन सोलोमन की आंतरिक राजनीति में दख़ल दे रहा है. चीन काफी समय से क़र्ज़ और आर्थिक निवेश को भी यहां बढ़ा रहा है. इसे देखते हुए ऑस्ट्रेलिया ने फिर से सोलोमन पर ध्यान केंद्रित करना शुरू किया था.

वांग यी

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क्या है अमेरिका की रणनीति?

दक्षिण प्रशांत महासागर में चीन के बढ़ते प्रभाव से अमेरिका भी चिंतित है. इसी के मद्देनज़र 29 साल के बाद अमेरिका ने सोलोमन में अमेरिकी दूतावास को फिर से खोलने की घोषणा की. इस क्षेत्र के दौरे पर गए अमेरिका के विदेश मंत्री एंटनी ब्लिंकेन ने फ़िजी में ये एलान किया था.

अमेरिका ने सोलोमन आइलैंड्स में अपना पांच साल तक चला दूतावास 1993 में बंद कर दिया गया था. इसके बाद से अमेरिकी राजनयिक पड़ोसी देश पापुआ न्यू गिनी से ही सोलोमन आइलैंड्स का राजनयिक काम कर रहे थे.

अमेरिका ने ये क़दम ऐसे समय उठाया जब सोलोमन आइलैंड्स की राजधानी में कुछ महीने पहले चीन-विरोधी भावनाओं की वजह से ज़बरदस्त दंगे हुए थे.

अमेरिका के विदेश मंत्री एंटनी ब्लिंकेन भी सोलोमन आइलैंड्स का दौरा कर चुके हैं. चार दशकों में दौरा करने वाले वे पहले अमेरिकी विदेश मंत्री हैं. उनका दौरा प्रशांत क्षेत्र के लिए जो बाइडन सरकार की रणनीतिक समीक्षा के बाद हुआ था. इसमें तय किया गया कि इस क्षेत्र में चीन के बढ़ते कदम रोकने के लिए और ज़्यादा कूटनीतिक और सुरक्षा संसाधन भेजे जाएंगे.

मानासे सोगोवारे

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इमेज कैप्शन, बीजिंग में 9 अक्तूबर 2019 को चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग के साथ सोलोमन आइलैंड के प्रधानमंत्री मानासे सोगोवारे

पेसिफ़िक क्षेत्र ऑस्ट्रेलिया और अमेरिका के लिए कितना महत्वपूर्ण है इसका अंदाज़ा जो बाइडन के उस भाषण से भी मिलता है जो उन्होंने शुक्रवार को अमेरिका के मैरीलैंड में दिया.

यहां अमेरिकी नेवल अकाडमी के छात्रों को संबोधित करते हुए जो बाइडन ने कहा था, "दक्षिण चीन सागर और उससे आगे समुद्र में नेविगेशन की आज़ादी को सुनिश्चित करना ज़रूरी और इसके लिए समुद्री मार्ग मुक्त होने चाहिए. ये समुद्री रास्तों से जुड़े वो सिद्धांत है जो वैश्विक अर्थव्यवस्था के मूल में है. अमेरिकी इसमें यूरोप और इंडो पेसिफ़िक में अपने मित्रों की मदद करेगा."

इंडो-पेसिफ़िस स्ट्रेटेजी नाम की व्हाइट हाउस की एक रिपोर्ट में कहा गया है कि "तेज़ी से बदलते परिदृश्य में हम मानते हैं कि अपने नज़दीकी सहयोगियों और मित्रों के साथ मिलकर इंडो-पेसिफ़िक के क्षेत्र में मज़बूती से पैर जमाना और इस क्षेत्र को सशक्त करने से ही अमेरिकी हित सार्थक हो सकते हैं."

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