चीन पर लगाम लगाने के लिए सोलोमन आइलैंड्स में फिर दूतावास खोलेगा अमेरिका

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अमेरिका ने कहा है कि वो प्रशांत महासागर में स्थित देश सोलोमन आइलैंड्स में फिर से अपना दूतावास खोलेगा ताकि इस इलाक़े में चीन के बढ़ते प्रभाव को नियंत्रित किया जा सके.
इस क्षेत्र के दौरे पर गए अमेरिका के विदेश मंत्री एंटनी ब्लिंकेन ने फ़िजी में ये एलान किया.
अमेरिका के एक अधिकारी ने कहा कि चीन सोलोमन्स के राजनीतिक और व्यावसायिक नेताओं के साथ "संपर्क साधने की जी-जान से कोशिश कर रहा है" और उसकी हरकतें "वाक़ई चिंताजनक" हैं.
अमेरिका ने सोलोमन आइलैंड्स में अपना पाँच साल तक चला दूतावास 1993 में बंद कर दिया गया था. इसके बाद से अमेरिकी राजनयिक पड़ोसी देश पापुआ न्यू गिनी से ही सोलोमन आइलैंड्स का राजनयिक काम कर रहे थे.
अमेरिका ने ये क़दम ऐसे समय उठाया है जब सोलोमन आइलैंड्स की राजधानी में कुछ महीने पहले चीन-विरोधी भावनाओं की वजह से ज़बरदस्त दंगे हुए थे.
लगभग सात लाख की आबादी वाला सोलोमन आइलैंड्स द्वीपों से समूहों से बना एक छोटा सा देश है जहाँ के कई टापुओं पर विशाल ज्वालामुखी हैं.
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चीन के साथ क़रीबी

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सोलोमन आइलैंड्स की सरकार ने 2019 में ताइवान से अपने कूटनीतिक संबंध तोड़ा और चीन के साथ चले गए.
सोलोमन आइलैंड्स और ताइवान के संबंध 36 साल पुराने थे. मगर चीन कहता रहा है कि यदि कोई देश उसके साथ कूटनीतिक संबंध रखना चाहता है तो उसे ताइवान को औपचारिक तौर पर मान्यता देना बंद करना होगा.
पिछले वर्ष नवंबर में सोलोमन आइलैंड्स में भारी विरोध हुआ और प्रदर्शनकारियों ने संसद पर धावा बोल प्रधानमंत्री को हटाना चाहा. हंगामा तीन दिन तक होता रहा.
इसके एक सप्ताह बाद दिसंबर में वहाँ के प्रधानमंत्री मानासे सोगोवारे के ख़िलाफ़ अविश्वास प्रस्ताव आया जिसमें वो बच गए.
विपक्ष ने तब आरोप लगाया था कि प्रधानमंत्री अपनी राजनीति को मज़बूत करने के लिए चीन से पैसे ले रहे हैं और वो एक "विदेशी ताक़त के लिए काम कर रहे हैं".
वहीं प्रधानमंत्री सोगोवारे का कहना था कि उन्होंने चीन के साथ कूटनीतिक संबंध इसलिए बनाए क्योंकि चीन एक आर्थिक महाशक्ति है.
चीन ने इसके बाद वहाँ की पुलिस को ट्रेनिंग देने के लिए अपने सलाहकारों को भेजा और उन्हें शील्ड, हेलमेट, लाठियाँ जैसे साज़ो-सामान दिए.
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अमेरिकी विदेश मंत्री का दौरा

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एंटनी ब्लिंकेन पिछले चार दशकों में सोलोमन आइलैंड्स का दौरान करने वाले पहले अमेरिकी विदेश मंत्री हैं.
उनका दौरा प्रशांत क्षेत्र के लिए जो बाइडन सरकार की रणनीतिक समीक्षा के बाद हुआ है. इसमें तय किया गया कि इस क्षेत्र में चीन को आगे बढ़ने से रोकने के लिए और ज़्यादा कूटनीतिक और सुरक्षा संसाधन भेजे जाएँगे.
ब्लिंकन ने कहा, "ये केवल ऐसी बात नहीं है कि हम यहाँ पहुँच जाएँ, आते रहें, सुरक्षा कारणों से इलाक़े पर ध्यान दें. ये उससे ज़्यादा बुनियादी ज़रूरत की बात है.
"हम जब भी इस इलाक़े पर ग़ौर करते हैं जिसे हम साझा करते हैं, तो हम इसे ऐसे क्षेत्र की तरह देखते हैं जो भविष्य है."
समाचार एजेंसी एपी के मुताबिक़ अमेरिकी विदेश मंत्रालय ने अमेरिकी संसद को भेजे गए एक नोटिफ़िकेशन में लिखा है कि "चीन वहाँ जाने-पहचाने पैटर्न पर महँगे वादे कर रहा है और बुनियादी ढाँचे के लिए महँगे कर्ज़ दे रहा है".
उसने लिखा है- "सोलोमन आइलैंड्स में अमेरिका की रणनीतिक दिलचस्पी है जो प्रशांत क्षेत्र का सबसे बड़ा द्वीपीय देश है जहाँ अमेरिका का कोई दूतावास नहीं, और अमेरिका उनके साथ राजनीतिक, आर्थिक और वाणिज्यिक संबंध बढ़ाना चाहता है."
बढ़ता असंतोष

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सोलोमन आइलैंड्स में पिछले दिनों जो दंगे भड़के उसके लिए चीन को लेकर बढ़ती क़रीबी वजह ज़रूर थी, मगर वो एकमात्र वजह नहीं थी.
दरअसल वहाँ दो टापुओं को लेकर लंबे समय से विवाद रहा है - गुआडालकनाल और मलइटा.
गुआडालनाल देश का सबसे बड़ा प्रांत है. देश की राजधानी होनियारा वहीं है.
वहीं मलइटा सबसे ज़्यादा आबादी वाला प्रांत है मगर वो वहाँ के सबसे कम विकसित इलाक़ों में गिना जाता है.
मलइटा के बहुत सारे लोग मानते हैं कि वो अलग-थलग हैं, और उन्हें लगता है कि सरकार ने उनके यहाँ की कई बड़ी विकास परियोजनाओं में अड़ँगा लगाया.
इन मतभेदों की वजह से वहाँ 1998 से 2003 के बीच कई बार जातीय हिंसा भड़क चुकी है. देश उस समय हुए गृह युद्ध से अभी तक पूरी तरह नहीं उबर सका है.
ऑस्ट्रेलिया की मदद से वहाँ अक्टूबर 2000 में एक शांति समझौता भी हुआ. मगर इसके बाद भी अराजकता ख़त्म नहीं हुई.
इसके बाद जुलाई 2003 में वहाँ ऑस्ट्रेलिया की अगुआई में एक बहुराष्ट्रीय शांति सेना भेजी गई. ये सेना 2017 में वहाँ से वापस लौटी.
इसके अलावा, अभी सोलोमन आइलैंड्स के लोगों में सरकारी भ्रष्टाचार और बढ़ती आबादी के लिए शिक्षा और नौकरियों में अवसरों की कमी को लेकर भी निराशा है.

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