श्रीलंका: आर्थिक संकट, तेल की कमी और कर्फ़्यू के बीच क्या कह रहा है वहां का मीडिया

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आर्थिक संकट से जूझ रहे श्रीलंका में तीन अप्रैल को होने वाले विरोध प्रदर्शनों से पहले पूरे देश में आपातकाल लगा दिया गया है.
सिलोन टुडे के अनुसार डिपार्टमेंट ऑफ़ गवर्नमेंट इंफ़ोर्मेशन ने 36 घंटों का कर्फ़्यू लगाया है, जो दो अप्रैल की शाम 6.00 बजे से लेकर चार अप्रैल सवेरे 6.00 बजे तक लागू रहेगा.
अख़बार के अनुसार देश में खाने के सामान, ईंधन और ज़रूरी दवाओं की कमी के बाद तीन अप्रैल को बड़े पैमाने पर सरकार विरोधी प्रदर्शनों की अपील की गई थी.
लेकिन इससे पहले राष्ट्रपति गोटाबाया राजपक्षे ने एक नोटिस जारी कर लोगों के सड़कों, पार्क, ट्रेन, समुद्र तट जैसी सार्वजनिक जगहों पर निकलने को लेकर पाबंदी लगा दी थी. हालांकि नोटिस के अनुसार जिन लोगों को प्रशासन ने पास जारी किया है वो बाहर निकल सकते हैं.
कोलंबो में मौजूद अमेरिकी दूतावास ने कहा था, "रविवार को देश में अलग-अलग जगहों पर विरोध प्रदर्शनों की अपील की गई है. कोलंबो के भीतर इंडिपेन्डेंस मेमोरियल हॉल में भी विरोध प्रदर्शन हो सकते हैं, इसलिए श्रीलंका में मौजूद अमेरिकियों से अपील है कि वो इस इलाक़े से दूर रहें."
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कई सोशल मीडिया वेबसाइट किए गए ब्लॉक
बीबीसी संवाददाता नरेश कौशिक के अनुसार देश में मुख्य सोशल मीडिया वेबसाइटों को प्रतिबंधित कर दिया गया है.
कौशिक का कहना है कि ट्विटर, व्हाट्सऐप, फ़ेसबुक और यूट्यूब के यूज़र्स ने कहा है कि आधी रात के बाद से वो इन सोशल मीडिया साइट्स का इस्तेमाल नहीं कर पा रहे हैं.
इस पर अब तक सरकार की तरफ़ से कोई बयान जारी नहीं किया गया है लेकिन इंटरनेट कंपनियों ने कहा है कि सोशल मीडिया साइटों के इस्तेमाल में भारी गिरावट देखी गई है.
नरेश कौशिक कहते हैं, "इस तरह के कोई संकेत नहीं मिल रहे हैं कि देश में तेल और अन्य ज़रूरी सामान की कमी को लेकर लोगों का गुस्सा कम हो रहा है. लोगों की नाराज़गी सत्ताधारी राजपक्षे परिवार से भी है. वो कहते हैं कि सत्ताधारी परिवार के द्वारा आर्थिक अव्यवस्था के कारण देश फिलहाल संकट के दौर से गुज़र रहा है. "
मोबाइल फ़ोन यूज़र्स को अपने फ़ोन पर एक संदेश मिला है जिसमें लिखा है कि "टेलिकम्यूनिकेशन्स रेगुलेटरी कमिशन के आदेश के अनुसार" व्हाट्सऐप सेवाएं बाधित हैं.

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भारत श्रीलंका के लिए नहीं भेज रहा अपने सैनिक
श्रीलंका की न्यूज़ वेबसाइट इकोनॉमी नेक्स्ट के अनुसार कोलंबो में मौजूद भारतीय हाई कमीशन ने कहा है कि इस बात में कोई सच्चाई नहीं है कि भारत श्रीलंका के लिए सैनिक भेजने वाला है.
वेबसाइट के अनुसार हाई कमीशन ने कहा, "मीडिया के कुछ हलकों में इस तरह की ख़बरें आ रही हैं कि भारत अपने सैनिकों को श्रीलंका भेज रहा है. ये ख़बरे झूठी और बेबुनियाद हैं, हम इस तरह की फर्जी ख़बरों का खंडन करते हैं."
वेबसाइट पर छपी एक और ख़बर के अनुसार एक सरकारी अधिकारी ने कहा है कि श्रीलंका को भारत की तरफ से मदद के तौर पर 40 हज़ार मेट्रिक टन डीज़ल भेजा गया है. ये मदद 50 करोड़ डॉलर के क्रेडिट लाइन के ज़रिए दी गई है.
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इस बीच सरकार के सिलोन बिजली बोर्ड ने कहा है कि भारत से तेल की आपूर्ति होने के बाद आने वाले वक्त में बिजली की कटौती में कुछ घंटों की कमी आ सकती है.
श्रीलंका इस समय गंभीर विदेशी मुद्रा संकट से घिरा हुआ है और चीज़ों की कीमतें आसमान छू रही हैं. क्योंकि बीते दो सालों से देश का सेंट्रल बैंक 'लचीली नीति' के तहत नोटों की छपाई कर रहा है.
वेबसाइट ने लिखा है कि श्रीलंका में बीते 72 सालों से आर्थिक समस्या, सामाजिक अशांति और नागरिकों के देश छोड़ने की परेशानी बनी हुई है और इसकी वजह है यहां की मुद्रा की कीमत का लागातार गिरना. कई बार तो देश के व्यापारी वर्ग ने जानबूझ कर मुद्रा को कमज़ोर किया क्योंकि उनका तर्क था कि इससे आख़िर में समृद्धि ही आएगी.
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संयुक्त राष्ट्र ने श्रीलंका में हुई हिंसा पर जताई चिंता
श्रीलंकाई अख़बार संडे आईलैंड में छपी ख़बर के मुताबिक़ संयुक्त राष्ट्र की श्रीलंका की रेज़िडेंट कोऑर्डिनेटर हाना सिंगर-हम्दी ने देश में हिंसा की ख़बरों पर शुक्रवार को चिंता व्यक्त की.
एक ट्वीट में सिंगर-हम्दी ने सभी से संयम बरतने की अपील की. उन्होंने लिखा, "हम घटनाक्रम पर नज़र बनाए हुए हैं और श्रीलंका में हिंसा की खबरों से चिंतित हैं. सभी समूहों से संयम बरतने चाहिए."
श्रीलंका की सरकार ने विपक्षी दलों से जुड़े "चरमपंथी" तत्वों पर विरोध प्रदर्शन को हाईजैक करने और इसे हिंसक बनाने का आरोप लगाया है.

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अराजकता की ओर बढ़ता देश?
श्रीलंका के अंग्रेज़ी अख़बार डेली एफ़टी में पत्रकार तेनाकुन रुसरीपाला ने एक लेख लिखा है जिसमें उन्होंने कहा है कि जनता का इस तरह प्रदर्शन करना, सड़कों पर उतरना न्यायसंगत है क्योंकि उन पर इस आर्थिक संकट से आने वाला बोझ और कठिनाइयां बेहद असहनीय होती जा रही हैं और इन समस्याओं का कोई व्यावहारिक समाधान नज़र नहीं आ रहा है.
लेख में वो श्रीलंका की सरकार के उस दावे को ख़ारिज करते हैं जिसमें कहा गया कि ये विरोध प्रदर्शन राजनीतिक पार्टियों से प्रेरित हैं.
वह कहते हैं, ऐसा लगता है कि ये प्रदर्शन लोगों का ही है ना कि पार्टियों की राजनीति से प्रेरित है. काफ़ी हद तक प्रदर्शन कर रहे लोगों के बर्ताव आम जनता के बर्ताव ही हैं जो सरकार से मिली ना-उम्मीदी और सरकार के अपने कामों में फ़ेल होने के फलस्वरूप आ रहे हैं.
लेख में वो इस सवाल का भी जवाब देने की कोशिश करते हैं कि आख़िर प्रदर्शन कर रहे लोग चाहते क्या है. वो लिखते हैं कि बड़ी संख्या में प्रदर्शनकारी चाहते हैं कि वो सभी लोग जो अब तक सत्ता में रहे या विपक्ष में रहे उन्होंने देश के लोगों को फ़ेल किया है, वे लोग अपने कार्यकाल में जनता के प्रति कर्तव्यों के निर्वहन में विफल हुए हैं, उन्हें अपना पद छोड़ देना चाहिए. ऐसे में वर्तमान समय में लोगों के गुस्से का समाधान वह लोग नहीं दे सकते जो संसद में बैठे हैं क्योंकि जनता का ग़ुस्सा उन्हीं लोगों से हैं.
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