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बिन्यामिन नेतन्याहू: इसराइली प्रधानमंत्री पर भ्रष्टाचार के आरोप
इसराइल के अटॉर्नी जनरल ने प्रधानमंत्री बिन्यामिन नेतन्याहू पर तीन अलग-अलग मामलों में रिश्वत लेने, धोखाधड़ी करने और भरोसा तोड़ने का आरोप लगाया है.
नेतन्याहू पर आरोप है कि उन्होंने धनी व्यापारियों से उपहार लिए और अपने पक्ष में ज़्यादा प्रेस कवरेज हासिल करने के लिए पक्षपात किया.
नेतन्याहू ने इन आरोपों से इनकार किया है और कहा है कि वो 'विचहंट' का शिकार हुए हैं. नेतन्याहू का कहना है कि उन्हें वामपंथी विरोधियों और मीडिया ने निशाना बनाया है.
उन्होंने ज़ोर देकर कहा है कि वह इस्तीफ़़ा नहीं देंगे और ऐसा करने के लिए वो कानूनी रूप से बाध्य नहीं हैं.
नेतन्याहू ने ये भी कहा कि उन्हें पद से हटाने के लिए तख़्तापलट की साज़िश की जा रही है.
उन्होंने कहा, "आज शाम को हम एक प्रधानमंत्री के ख़िलाफ़ तख़्तापलट की साज़िश के ग़वाह बने हैं. से सब झूठे आरोपों और दोषपूर्ण जांच प्रक्रिया के तहत हो रहा है...लेकिन मुझे लगता है कि अगर जांचकर्ताओं और पुलिस कुछ ग़लत कर रही है और आप उसे नहीं देख पा रहे हैं तो आप अंधे हैं..."
नेतन्याहू पर ये आरोप ऐसे वक़्त में लगे हैं जब इसराइल में पहले से ही राजनीतिक गतिरोध की स्थिति बनी हुई है. यहां अप्रैल और सितंबर में हुए दो आम चुनाव बेनतीजा रहे थे.
बुधवार को नेतन्याहू के प्रतिद्वंद्वी और उनके ख़िलाफ़ प्रधानमंत्री पद की दौड़ में शामिल बेनी गैंट्ज़ ने कहा था कि वो संसद में बहुमत होने के बावजूद गठबंधन सरकार बनाने में नाकाम रहे.
इसराइल के राष्ट्रपति रूवेन रिवलिन ने मंत्रियों से कहा था कि वो 21 दिनों के भीतर प्रधानमंत्री पद के लिए किसी एक नाम पर सहमति बना लें ताकि देश में एक ही साल में तीन आम चुनाव होने से रोका जा सके.
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नेतन्याहू पर क्या आरोप हैं?
अटॉर्नी जनरल अविख़ाई मंडोब्लिट ने फ़रवरी में ही कहा था कि वो तीन मामलों के सिलसिलों में नेतन्याहू पर मुक़दमा करना चाहते हैं.
अपने फ़ैसले की जानकारी देते हुए उन्होंने कहा, ''मैंने आज प्रधानमंत्री बिन्यामिन नेतन्याहू को अपने फ़ैसले के बारे में बताया. मैंने बताया कि उन पर तीन आरोपों में मुकद़मा चलाया जाएगा. जिस दिन कोई अटॉर्नी जनरल किसी पदस्थ प्रधानमंत्री पर भ्रष्टाचार के गंभीर मामलों में मुक़दमा चलाने की बात करता है, वो दिन दुखद होता है. आज मेरे लिए और इसराइल के लोगों के लिए दुख का दिन है.''
नेतन्याहू के ख़िलाफ़ चल रहे इन मामलों को केस 1,000, 2,000 और 3,000 के नाम से जाना जाता है. ये सभी मामले लंबित थे और पिछले महीनें इन तीनों पर आख़िरी सुनवाई हुई.
केस 1,000: इस मामले में नेतन्याहू पर धोखाधड़ी करने और भरोसा तोड़ने के आरोप हैं. उन पर आरोप हैं कि उन्होंने अपने एक अमीर दोस्त से किसी काम के बदले कई महंगे तोहफ़े जैसे पिंक शैंपेन और सिगारें लीं. नेतन्याहू का कहना है कि ये सभी तोहफ़े सिर्फ़ दोस्ती की वजह से मिले और उन्होंने तोहफ़ों को ग़लत तरीके से किसी काम के बदले में नहीं लिया. नेतन्याहू के दोस्त ने ऐसे किसी भी आरोप से इनकार किया है.
केस 2,000: ये मामला भी धोखाधड़ी और भरोसा तोड़ने का है. इसमें नेतन्याहू पर आरोप है कि उन्होंने एक प्रमुख अख़बार के प्रकाशक को अपनी पार्टी के बेहतरीन कवरेज और अपनी प्रतिद्वंदी पार्टी को कमज़ोर करने के लिए एक डील पर मंज़ूरी दी थी. इस मामले में भी नेतन्याहू और अख़बार के प्रकाशक ने भी आरोपों से इनकार किया है.
केस 3,000: तीनों मामलों में ये सबसे संगीन मामला है और इसमें नेतन्याहू पर रिश्वत लेने का आरोप है. इसके अलावा उन पर भरोसा तोड़ने और धोखाधड़ी करने के आरोप भी हैं.
आरोप है कि नेतन्याहू ने एक प्रमुख टेलीकम्युनिकेशन कंपनी के पक्ष में नियामक फ़ैसले को बढ़ावा दिया ताकि वो कंपनी अपनी वेबसाइटों पर नेतन्याहू के समर्थन वाली और सकारात्मक ख़बरों को जगह थे.
हालांकि नेतन्याहू का कहना है कि कंपनी के पक्ष में फ़ैसले को विशेषज्ञों ने अपना समर्थन दिया था और कंपनी ने किसी भी तरह के अनुचित कदम के आरोपों से इनकार किया है.
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अब आगे क्या होगा?
अभी यह स्पष्ट नहीं है कि इन मामलों का नेतन्याहू के भविष्य पर क्या असर पड़ेगा. जब तक वो दोषी करार नहीं दिए जाते तब तक उन्हें निर्दोष ही माना जाएगा और उनके प्रधानमंत्री बने रहने के रास्ते में अभी कोई क़ानूनी अड़चन भी नहीं है.
इन मामलों को अदालत में लाए जाने महीनों का वक़्त लगेगा और दोषी करार दिए जाने के बात भी नेतन्याहू को तुरंत पद से इस्तीफ़ा देने की नौबत नहीं आएगी. इस पूरी प्रक्रिया में वर्षों लग सकते हैं.
हालांकि पत्रकारों का कहना है कि इन सबसे से नेतन्याहू की नेतत्व क्षमता और मामले संभालने की क्षमता पर सवाल ज़रूर खड़े होंगे.
ऐसे आसार हैं कि कुछ ग़ैर सरकारी संस्थाएं नेतन्याहू को इस्तीफ़ा देने के लिए मजबूर किए जाने के लिए सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर करेंगी.
इससे पहले इसराइल के सुप्रीम कोर्ट ने अपने एक फ़ैसले में कहा था कि अगर किसी कैबिनेट मंत्री पर आपराधिक मुक़दमा चलता है तो उसे इस्तीफ़ा देना होगा. अब सुप्रीम कोर्ट को ये देखना होगा कि उसका ये फ़ैसला प्रधानमंत्री पर लागू होगा या नहीं.
वहीं, नेतन्याहू के सहयोगी संसद में कोई ऐसा बिल पास कराने की कोशिश कर रहे हैं जिससे उनके पद पर हुए मुक़दमा चलाए जाने से रोका जा सके.
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