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इसराइल: नेतन्याहू जीत के बाद भी सरकार क्यों नहीं बना रहे
इसराइल के प्रधानमंत्री बिन्यामिन नेतन्याहू ने 9 अप्रैल को हुए आम चुनाव में रिकॉर्ड पांचवी बार जीत दर्ज की.
इससे पहले वो एक दशक तक इसराइल के प्रधानमंत्री रह चुके हैं. एक बार फिर वो ऐसे वक़्त में चुनाव जीते हैं, जब उन पर भ्रष्टाचार के तीन मामले चल रहे हैं. हालांकि वो इन आरोपों को ख़ारिज करते रहे हैं.
ऐसे में नेतन्याहू की इस जीत को उनके नेतृत्व पर लोगों के जनमत संग्रह की तरह देखा जा रहा है.
9 अप्रैल को आम चुनाव जीतने के बाद क़रीब एक महीने का वक़्त हो चुका है, लेकिन उन्होंने अब तक सरकार का गठन नहीं किया है.
ऐसे में सवाल उठ रहे हैं कि आख़िर क्या वजह है कि नेतन्याहू सरकार बनाने में इतना वक़्त ले रहे हैं?
क़ानून क्या कहता है
इसराइल के क़ानून के मुताबिक़ शुरू में नेतन्याहू को सरकार बनाने के लिए 28 दिन का वक़्त मिला. इसे 14 दिन के लिए और बढ़ाया जा सकता है.
28 दिन का शुरुआती वक़्त बुधवार को ख़त्म हो रहा है. अगर राष्ट्रपति रूवेन रिवलिन उन्हें 14 दिन का और वक़्त दे देते हैं तो उनकी आख़िरी डेडलाइन 29 मई होगी.
नेतन्याहू के प्रवक्ता ने कहा है कि सरकार के गठन के लिए नेतन्याहू और वक़्त मांगने वाले हैं.
प्रवक्ता ने सरकार के गठन में देरी के पीछे कई कारण बताए हैं.
उन्होंने कहा, "पहले से तय कार्यक्रमों की वजह से देरी हो रही है. इस दौरान कई छुट्टियां और राष्ट्रीय दिवस पड़ रहे हैं. इसके अलावा गज़ा पट्टी में फ़लस्तीनी चरमपंथियों के साथ लड़ाई तेज़ हो गई है. ये कुछ प्रमुख कारण हैं."
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नई सरकार के सामने चुनौती
इस बीच बिन्यामिन नेतन्याहू उन सभी दक्षिणपंथी, राष्ट्रवादी और धार्मिक पार्टियों से बातचीत कर रहे हैं, जो उनकी निवर्तमान सरकार में शामिल हैं.
इसराइल की 120 सीटों वाली संसद नेसेट में आज तक किसी भी पार्टी को स्पष्ट बहुमत नहीं मिला है. इसलिए बातचीत के ज़रिए गठबंधन सरकार बनाई जाती है.
सरकार गठन के बाद नई सरकार के सामने जो सबसे बड़ा मसला होगा वो है फ़लस्तीनी-इसराइल विवाद को ख़त्म करने के लिए अमरीका के राष्ट्रपति डोनल्ड ट्रंप की मध्य पूर्व शांति योजना.
इस योजना के मसौदे को तैयार कर रहे ट्रंप के मध्य पूर्व मामलों के सलाहकार और उनके दामाद जेरेड कशनर ने कहा है कि ये योजना जून में जारी की जाएगी और सभी पार्टियों को इसमें समझौता करना होगा.
हालांकि अब तक शांति समझौते की संभावना कम ही लग रही है.
इसराइल का एक दक्षिणपंथी गठबंधन फ़लस्तीनियों को किसी भी तरह की प्रस्तावित क्षेत्रीय रियायत दिए जाने का विरोध कर सकता है.
ये गठबंधन ट्रंप प्रशासन का बहिष्कार कर चुका है और इसे इसराइल समर्थित पूर्वाग्रह बताता है.
वहीं बिन्यामिन नेतन्याहू ने ख़ुद चुनाव अभियान के वक़्त ये वादा किया था कि अगर वो चुनाव जीतते हैं तो क़ब्ज़े वाले वेस्ट बैंक में बसाई गई यहूदी बस्तियों को इसराइल में शामिल कर देंगे.
प्रधानमंत्री पर लगे आरोपों का क्या होगा
माना ये भी जा रहा है कि अगर भ्रष्टाचार के मामले में नेतन्याहू को दोषी ठहराया जाता है तो उनका गठबंधन उन पर इस्तीफ़ देने का दबाव नहीं बनाएगा.
दोष सिद्ध होने के बाद प्रधानमंत्री पर इस्तीफ़ा देने की कोई क़ानूनी बाध्यता नहीं है.
नेतन्याहू का कहना है कि उन्होंने कुछ भी ग़लत नहीं किया और वो इसराइल की और भी कई सालों तक सेवा करना चाहते हैं.
प्री-ट्रायल सुनवाई में वो घूस और उनके खिलाफ लगे अन्य आरोपों पर बहस कर सकते हैं. इस सुनवाई की तारीख़ फ़िलहाल तय नहीं है.
नेतन्याहू के संभावित गठबंधन में एक सहयोगी पार्टी नेशनल-रिलिजियस राइट विंग यूनियन के नेता ने एक ऐसे क़ानून की पैरवी की है, जिसके तहत नेतन्याहू को अभियोग से छूट मिल जाएगी.
कब हुए चुनाव
इसराइल में नौ अप्रैल को आम चुनाव हुए थे.
बीते कई सालों में ऐसा पहली बार हुआ जब बिन्यामिन नेतन्याहू को विपक्ष से कड़ी चुनौती मिली.
इस चुनाव में दक्षिणपंथी लिकूड पार्टी के नेता बिन्यामिन नेतन्याहू को मध्यमार्गी ब्लू एंड व्हाइट गठबंधन के नेता और पूर्व सैन्य प्रमुख बेन्नी गंट्ज़ से कड़ी टक्कर मिली.
देश में कुल मतदाताओं की संख्या 63 लाख है. चुनावों में सामाजिक, धार्मिक और जनजातियों के अलग-अलग समूह प्रमुख भूमिका होती है.
इस चुनाव में जीत के साथ ही बिन्यामिन नेतन्याहू ने इसराइल के संस्थापक डेविड बेन गूरिओन के सबसे अधिक समय तक प्रधानमंत्री रहने के रिकॉर्ड को तोड़ दिया.
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