अतीक़-अशरफ़ के मौत की ओर वो सात क़दम और अनसुलझे सवाल: प्रेस रिव्यू

पूर्व सांसद अतीक़ अहमद और उनके भाई अशरफ़ अहमद की मौत को अब 24 घंटे से ज़्यादा वक़्त बीत चुके हैं. अख़बार और टीवी चैनल इस सनसनीख़ेज हत्याकांड से जुड़े तमाम पहलुओं को धीरे-धीरे सामने ला रहे हैं.

इसी सिलसिले में अंग्रेज़ी अख़बार इंडियन एक्सप्रेस ने टीवी कैमरों पर रिकॉर्ड हुए इस हत्याकांड को लेकर उत्तर प्रदेश पुलिस पर सवाल उठाती हुई ख़बर प्रकाशित की है.

ख़बर में बताया गया है कि किस तरह पुलिस की वैन से उतरकर अस्पताल की ओर सिर्फ़ सात क़दम चलते ही अतीक़ अहमद और उनके भाई की सिर में गोली मारकर हत्या कर दी गयी.

प्रयागराज (इलाहाबाद) स्थित कॉल्विन अस्पताल के मुख्य द्वार से बमुश्किल सात क़दम दूर ज़मीन पर ब्लीचिंग पाउडर के दो सफेद चकते देखे जा सकते हैं. ब्लीचिंग पाउडर को ज़मीन पर बहे ख़ून के धब्बों को छिपाने के लिए डाला गया है.

इसी जगह पर चॉक से बनाए 29 गोले दिखाई देते हैं जिन्हें इस हत्याकांड के दौरान चलायी गयी गोलियों के छर्रे मिलने की जगह रेखांकित करने के लिए बनाया गया है.

13 क़दमों की दूरी

इस जगह से अस्पताल की दूरी मात्र 13 क़दम थी. लेकिन अतीक़ अहमद और उनके भाई अशरफ़ बीते शनिवार की शाम ये दूरी तय नहीं कर सके.

यूपी पुलिस के सूत्रों के मुताबिक़, लगभग बीस पुलिसकर्मियों की एक टीम अतीक़ अहमद और उनके भाई को नियमित मेडिकल जांच के लिए रात लगभग दस बजे धूमलगंज पुलिस स्टेशन से लेकर निकली थी.

पुलिस की दो गाड़ियों में सवार इस टीम को कॉल्विन अस्पताल तक पहुंचने के लिए मात्र 7 किलोमीटर का सफ़र तय करना था. इसे लगभग बीस मिनट में पूरा किया गया.

इस दौरान मीडियाकर्मियों की गाड़ियां पुलिस वैन के आगे-पीछे चल रही थीं. और जैसे ही अतीक़ अहमद और उनके भाई को पुलिस की वैन से बाहर निकाला गया, वैसे ही मीडियाकर्मियों ने उनसे सवाल पूछना शुरू कर दिया.

पुलिसकर्मियों के इशारे पर अतीक़ अहमद और उनके भाई ने कुछ और क़दमों का सफर तय किया. कुछ क़दमों बाद ही मीडियाकर्मियों ने एक बार फिर उनसे सवाल पूछना शुरू कर दिया.

इसके बाद अशरफ़ ने एक सवाल का जवाब देना शुरू किया ही था कि तीन हमलावरों ने अतीक़ अहमद के सिर पर सटाकर गोली चला दी. इसके बाद अशरफ़ के सिर पर भी गोली मारकर उनकी हत्या कर दी.

'जय श्री राम' के नारे और आत्मसमर्पण

लगातार कई राउंड गोलियां चलाने के बाद इन हमलावरों ने 'जय श्री राम' के नारे लगाते हुए अपने हथियार ज़मीन पर फेंककर पुलिस के सामने आत्मसमर्पण कर दिया.

लेकिन यूपी पुलिस जिस तरह से अतीक़ अहमद और उनके भाई अशरफ़ अहमद को मेडिकल जांच के लिए देर शाम अस्पताल लेकर गयी, उस पर गंभीर सवाल खड़े किए जा रहे हैं.

पुलिस ने देर रात अस्पताल लेकर जाने के फ़ैसले की वजह बताते हुए कहा है कि अतीक़ अहमद डायबिटीज़ और हायपरटेंशन के मरीज़ थे और उन्हें शुक्रवार को भी अस्पताल लेकर जाया गया था.

एक पुलिस अधिकारी ने बताया है कि 'शनिवार सुबह अतीक़ अहमद ने तबीयत ख़राब होने की बात कही जिसके बाद हमने लॉकअप में डॉक्टर भी बुलाया.'

वहीं, अस्पताल में डॉक्टरों का कहना है कि दोषियों की मेडिकल जांच उसी सूरत में की जाती है जब इसके लिए लिखित आदेश मिलें जो अदालत के मुताबिक़ अनिवार्य है.

हालांकि, यूपी पुलिस से जुड़े सूत्रों ने कहा है कि दोषियों को हमेशा अस्पताल ले जाना ज़रूरी नहीं होता है और संवेदनशील मामलों में डॉक्टरों को ज़रूरी उपकरणों के साथ लॉक-अप बुलाया जाता है.

एक अधिकारी ने कहा है कि कई मामलों में दोषियों को इतनी गोपनीयता के साथ अस्पताल ले जाया जाता है कि किसी को दोषियों की मूवमेंट की ख़बर नहीं लग पाती है.

कुछ अधिकारियों ने 26/11 हमले के दोषी अजमल कसाब का उदाहरण देते हुए बताया कि जब मुंबई क्राइम ब्रांच कसाब को जेजे अस्पताल लेकर जाती थी तो मीडिया को इसकी भनक भी नहीं लगती थी. ये संभव है कि हमलावर अतीक़ को अस्पताल ले जाए जाने पर नज़र रख रहे हों, और वे घटना के दिन मीडियाकर्मी बनकर कैमरे, फ़र्ज़ी माइक और फ़र्ज़ी आईकार्ड के साथ पूरी तैयारी से आए हों.

यूपी पुलिस के पूर्व डीजीपी प्रकाश सिंह ने कहा है, "पुलिस की पहली चूक ये है कि दोषियों को कभी भी मीडिया से मिलने नहीं देना चाहिए था. अस्पताल पर ये सुनिश्चित करने के लिए कोई व्यवस्था नहीं थी. अगर ये फर्जी रिपोर्टर फर्जी आईडी के साथ आए थे तो उनकी पहचान करना पुलिस का काम था. अगर आप किसी को भी आने-जाने देंगे तो ऐसी घटनाएं होंगी, और जब कोई पुलिस कस्टडी में मरता है तो इसका मतलब ये है कि पुलिस ने क़ानून-व्यवस्था भंग होने दी."

पूर्व डीजीपी ने हमलावरों की तैयारी पर ध्यान खींचते हुए कहा, "ये हमलावर ग़रीब पृष्ठभूमि से आते हैं. लेकिन वे तुर्की में बने हथियार इस्तेमाल कर रहे थे. एक-एक पिस्टल की क़ीमत सात लाख रुपये तक है और एक कारतूस ढाई सौ रुपये का है. वे जिस तरह से गोली चला रहे थे, वो बताता है कि उन्होंने इसका काफ़ी अभ्यास किया होगा."

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पूर्व जनरल बोले - 'पुलवामा में बचाए जा सकते थे जवान'

नब्बे के दशक में शीर्ष सैन्य अधिकारी रहे जनरल शंकर रायचौधरी ने द टेलीग्राफ़ से बात करते हुए कहा है कि पुलवामा में जो कुछ हुआ, उसे बचाया जा सकता है.

ख़बर के मुताबिक़, पूर्व सैन्य अधिकारी ने कहा है, "पुलवामा में जिन लोगों की मौत हुई, उसकी प्राथमिक ज़िम्मेदारी प्रधानमंत्री के नेतृत्व वाली केंद्र सरकार की है जिसे एनएसए सलाह देते हैं. ये एक झटका था और एनएसए को भी इस इंटेलिजेंस फ़ेल्योर के लिए अपने हिस्से की ज़िम्मेदारी लेनी चाहिए."

जनरल ने कहा है कि 'अगर जवानों को हवाई मार्ग से ले जाया गया होता तो ज़िंदगियां बचाई जा सकती थीं. राष्ट्रीय राजमार्ग पर लंबे काफ़िलों पर हमेशा हमले का जोखिम रहता है. और उन्हें एयरलिफ़्ट किया जाना ज़्यादा सुविधाजनक और सहज रहता है."

जम्मू और कश्मीर के पूर्व राज्यपाल सत्यपाल मलिक ने जाने-माने पत्रकार करण थापर को दिए एक इंटरव्यू में 2019 में कश्मीर के पुलवामा हमले के लिए भारत सरकार को ज़िम्मेदार बताते हुए कई दावे किए हैं.

शुक्रवार को प्रसारित इस इंटरव्यू में उन्होंने आरोप लगाया है कि पुलवामा में सीआरपीएफ के काफ़िले पर हुआ हमला सिस्टम की 'अक्षमता' और 'लापरवाही' का नतीजा था.

उन्होंने उस हमले के लिए सीआरपीएफ और केंद्रीय गृह मंत्रालय को ख़ासतौर पर ज़िम्मेदार बताया है.

बीजेपी के साथ क़रीबी की अफ़वाहों पर क्या बोले अजीत पवार

महाराष्ट्र की राजनीति में बदलते समीकरणों पर एनसीपी नेता अजीत पवार ने एक अहम बयान दिया है.

द हिंदू में प्रकाशित ख़बर के मुताबिक़, अजीत पवार ने बीजेपी और एनसीपी के बीच बढ़ती क़रीबी से जुड़ी ख़बरों पर टिप्पणी करते हुए कहा है कि उनकी केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह से कोई मुलाक़ात नहीं हुई है.

अमित शाह 15 अप्रैल को एक कार्यक्रम के सिलसिले में मुंबई पहुंचे थे. उनके मुंबई दौरे को बीएमसी चुनाव के लिहाज़ से काफ़ी अहम माना जा रहा है.

कहा जा रहा है कि इस दौरान अमित शाह और अजीत पवार के बीच एक अहम मुलाक़ात भी हुई है.

इन कयासों पर अजीत पवार ने कहा है, "मेरी उनसे कहां मुलाक़ात हुई है?, बताएं कहां मिला हूं मैं? ये कयास पूरी तरह से आधारहीन हैं. मैं मीडिया समेत दूसरे लोगों से कहना चाहता हूं कि इस तरह की ख़बरें फैलाकर लोगों को भ्रमित न करें."

उन्होंने ये भी कहा कि "शाह के पीछे इतने कैमरे रहते हैं, ऐसे में कैसे संभव है कि मैं उनसे मिल लेता. इस तरह की चीज़ें कभी छिपी नहीं रहती हैं. मीडिया को मेरे बारे में इस तरह की अफ़वाहें उड़ाने में मजा आता है."

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