नितिन गडकरी और दत्तात्रेय होसबाले क्या मोदी सरकार को आईना दिखा रहे हैं?

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- Author, रजनीश कुमार
- पदनाम, बीबीसी संवाददाता
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ को बीजेपी का मातृ संगठन कहा जाता है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी समेत कई बड़े नेता आरएसएस से बीजेपी में आए हैं.
2014 में नरेंद्र मोदी के प्रधानमंत्री बनने के बाद शायद ही कोई मौक़ा आया है, जब आरएसएस ने उन सवालों को उठाया, जिन सवालों के ज़रिए वामपंथी नेता बीजेपी को घेरते रहे हैं.
आरएसएस के महासचिव दत्तात्रेय होसबाले ने रविवार को गंभीर चिंता जताते हुए कहा था कि देश में अब भी 20 करोड़ लोग ग़रीबी रेखा से नीचे रह रहे हैं.
उन्होंने कहा था कि ग़रीबी और भयावह विषमता जैसी समस्या से लड़ने के लिए ठोस और विकेंद्रीकृत नीति की ज़रूरत है.
स्वदेशी जागरण मंच की ओर से आयोजित एक कार्यक्रम में होसबाले ने कहा था कि भारत ने हाल में प्रगति की है, लेकिन ग़रीबी और विषमता अब भी बनी हुई है.
होसबाले ने कहा था, ''एक तरफ़ तो भारत दुनिया की छठी बड़ी अर्थव्यवस्थाओं में से एक है और दूसरी तरफ़ यहाँ के 23 करोड़ लोग हर दिन 375 रुपए से भी कम कमाते हैं. शीर्ष के एक फ़ीसदी लोगों के पास राष्ट्र की 20 फ़ीसदी आय है. दूसरी तरफ़ देश की 40 फ़ीसदी आबादी के पास राष्ट्र की महज़ 13 फ़ीसदी आय है.''
लेकिन यह केवल दत्तात्रेय होसबाले की बात नहीं है. 29 सितंबर को केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी ने भी कहा था कि भारत दुनिया की पाँचवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था के तौर पर उभरा है, लेकिन भारत के लोग ग़रीब हैं.

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गडकरी ने कहा था कि भारत के लोग भुखमरी, बेरोज़गारी, जातिवाद, छुआछूत और बढ़ती महंगाई से जूझ रहे हैं. गडकरी ने कहा था कि अमीर और ग़रीब के बीच का फासला लगातार बढ़ रहा है और इसे कम करने के लिए एक सेतु बनाने की ज़रूरत है.
गडकरी ने ये बातें आरएसएस से प्रेरित संगठन भारत विकास परिषद को संबोधित करते हुए कही थी. भारत एक अमीर देश है लेकिन भारतीय ग़रीब हैं, यह बात आज़ादी के बाद से ही कही जा रही है लेकिन फिर भी विषमता की खाई कम होने के बजाय बढ़ती ही जा रही है.
ऑक्सफैम इंटरनेशनल की रिपोर्ट के अनुसार, भारत की 10 फ़ीसदी आबादी के पास राष्ट्रीय संपत्ति का कुल 77 फ़ीसदी हिस्सा है. 2017 में देश की 73 फ़ीसदी आय एक प्रतिशत सबसे अमीर लोगों के पास गई.
दत्तात्रेय होसबाले के सवाल उठाने के बाद कर्नाटक के पूर्व मुख्यमंत्री एचडी कुमारस्वामी ने पूछा है कि केंद्र सरकार जो अच्छे दिन का दावा कर रही थी, उस पर अपने लोग ही सवाल उठाने लगे हैं.
कुमारस्वामी ने ट्वीट कर कहा है, ''होसबाले ने जो तथ्य पेश किया है, वह हैरान करने वाला है. देश के 23 करोड़ लोग हर दिन 375 रुपए ही कमा पा रहे हैं जबकि एक उद्योगपति प्रति घंटे 42 करोड़ रुपए बना रहा है. यह प्रति हफ़्ते 6000 करोड़ रुपए हो जाते हैं. वर्तमान समय में भारत की यह असली तस्वीर है. इससे ज़्यादा हैरान करने वाला और क्या हो सकता है कि एक प्रतिशत लोगों के पास देश की 20 फ़ीसदी संपत्ति है.''

भारतीय अर्थव्यवस्था के विरोधाभास
- भारत दुनिया की पाँचवीं बड़ी अर्थव्यवस्था
- दूसरी तरफ़ मानव विकास सूचकांक में श्रीलंका से भी नीचे
- विषमता का आलम यह कि 23 करोड़ लोग हर दिन 375 रुपए ही कमा पा रहे हैं
- भारत का व्यापार घाटा लगातार बढ़ रहा है, क़रीब 30 अरब डॉलर प्रति महीना
- भारत का विदेशी मुद्रा भंडार पिछले दो सालों में सबसे निचले स्तर पर


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वामपंथियों के सवाल?
आरएसएस के सह प्रचार प्रमुख नरेंद्र ठाकुर से पूछा कि क्या होसबाले मोदी सरकार को वामपंथियों की तरह घेर रहे हैं?
नरेंद्र ठाकुर कहते हैं, ''ऐसा नहीं है. हम किसी सरकार को घेर नहीं रहे हैं. होसबाले जी ने जो स्थिति बताई है, वो पिछले आठ सालों में नहीं बनी है. यह स्थिति लंबे समय से है. हम ये कहना चाह रहे हैं कि हर काम सरकार ही नहीं कर सकती. हमें स्वावलंबी बनना होगा. ग्रामीण अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाना होगा. ख़ाली होते गाँव को रोकना होगा. सरकार कोई भी रहे लेकिन हम राह तो दिखा ही सकते हैं.''
एएन सिन्हा इंस्टीट्यूट ऑफ सोशल स्टडीज में अर्थशास्त्र के प्रोफ़ेसर रहे डीएम दिवाकर कहते हैं, ''2014 से 2019 तक नरेंद्र मोदी ने सपने बेचने का काम किया, लेकिन अभी असल चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है. आरएसएस या नितिन गडकरी की ओर से असहज करने वाली बात आती है तो इसे मतभेद के तौर पर नहीं देखा जाना चाहिए. मुझे लगता है कि यह बीजेपी की रणनीति का हिस्सा है कि विपक्ष जो सवाल पूछे उसे अपने ही लोगों से पूछवा लेना चाहिए.''
भारत की अर्थव्यवस्था मुश्किलों में समाती दिख रही है. भारत का व्यापार घाटा लगातार बढ़ रहा है. फ़रवरी 2021 के बाद सितंबर महीने में भारत के निर्यात में गिरावट दर्ज की गई है और एक साल पहले की तुलना में व्यापार घाटा 19 प्रतिशत ज़्यादा हो गया है.
सितंबर महीने में भारत का निर्यात 32.62 अरब डॉलर का रहा, जबकि आयात 59.35 अरब डॉलर का रहा. आयात का यह डेटा एक साल पहले की तुलना में 5.44% ज़्यादा है. सितंबर में भारत का व्यापार घाटा 26.73 अरब डॉलर रहा.

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विरोधाभास
सितंबर महीने में ब्रिटेन को पीछे छोड़ भारत दुनिया की पाँचवीं बड़ी अर्थव्यवस्था बन गया था, लेकिन इस उपलब्धि को लेकर भी कई तरह के सवाल हैं. संयुक्त राष्ट्र डेवलपमेंट प्रोग्राम ने मानव विकास सूचकांक यानी एचडीआर रिपोर्ट 2021-22 जारी की है. एचडीआर की वैश्विक रैंकिंग में भारत 2020 में 130वें पायदान पर था और 2021 में 132वें पर आ गया है.
मानव विकास सूचकांक का आकलन जीने की औसत उम्र, पढ़ाई, और प्रति व्यक्ति आय के आधार पर होता है. कोविड-19 महामारी में भारत का इसमें नीचे जाना कोई हैरान करने वाली बात नहीं है, लेकिन वैश्विक स्तर पर एचडीआर में जितनी गिरावट दर्ज की गई, उससे ज़्यादा भारत में गिरावट आई है.
2021 में भारत के एचडीआर में 1.4% की गिरावट आई जबकि वैश्विक स्तर पर यह 0.4% थी. 2015 से 2021 के बीच भारत एचडीआर रैंकिंग में लगातार नीचे गया जबकि इसी अवधि में चीन, श्रीलंका, बांग्लादेश, यूएई, भूटान और मालदीव ऊपर जा रहे थे.
यूक्रेन पर रूस के हमले के कारण भारत के लिए आने वाला साल और मुश्किल होने वाला है. ऊर्जा मामलों के विशेषज्ञ नरेंद्र तनेजा कहते हैं कि दिसंबर से जी-7 देश रूस के तेल पर प्राइस कैप लगाने जा रहे हैं.
ऐसे में भारत के लिए रूस से सस्ता तेल ख़रीदना और मुश्किल होगा. भारत अपनी ऊर्जा ज़रूरतों का 80 फ़ीसदी हिस्सा आयात करता है. तेल, गैस और कोयले की क़ीमत में पहले से ही आग लगी है.

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जी-7 दुनिया के सबसे धनी देशों का समूह है. इसमें अमेरिका, जापान, जर्मनी, ब्रिटेन, फ़्रांस, इटली और कनाडा हैं. जी-7 की इस योजना के साथ ईयू भी खड़ा है. जी-7 देश चाहते हैं कि चीन और भारत को रूस से सस्ता तेल ना मिले.
अर्थशास्त्री स्वामीनाथन अय्यर ने लिखा है, ''भारत का व्यापार घाटा हर महीने 30 अरब डॉलर के आसपास रहा है. यह बहुत बड़ी रक़म है और भारत इस घाटे के साथ अपनी अर्थव्यवस्था दुरुस्त नहीं रख सकता. केवल यूरोप नहीं बल्कि भारत भी बुरी तरह से प्रभावित होगा. अगर यही स्थिति 12-13 महीनों तक लगातार रही तो भारत का विदेशी मुद्रा भंडार बुरी तरह से दबाव में आएगा. ऐसे में भारत को संकट से बचाना आसान नहीं होगा.''
भारत का विदेशी मुद्रा भंडार पिछले दो सालों में सबसे निचले स्तर पर पहुँच गया है. अभी भारत का विदेशी मुद्रा भंडार 550 अरब डॉलर से नीचे आ गया है. भारतीय मुद्रा रुपया भी डॉलर की तुलना में लगातार कमज़ोर हो रहा है. अभी एक डॉलर के लिए लगभग 80 रुपए देने पड़ रहे हैं.

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उम्मीद क़ायम
लेकिन भारत की अर्थव्यवस्था में क्या सब कुछ ख़राब ही चल रहा है?
कोलंबिया यूनिवर्सिटी में अर्थशास्त्र के प्रोफ़ेसर और नीति आयोग के पूर्व उपाध्यक्ष अरविंद पनगढ़िया ने चार अक्तूबर को टाइम्स ऑफ इंडिया में लिखा है कि भारतीय अर्थव्यवस्था की कई चीज़ें बेहतर हैं. उनका कहना है कि 2027-28 तक भारत दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन सकता है.
पनगढ़िया ने लिखा है, ''पहली तिमाही में भारतीय अर्थव्यवस्था में वृद्धि दर 13.5 फ़ीसदी थी. पूरे साल वृद्धि दर 8 फ़ीसदी तक रहेगी. पिछले चार-पाँच सालों में हमने देखा है कि भारत की अर्थव्यवस्था में संरचनात्मक स्तर पर बदलाव हो रहा है जो पहले नहीं हो पा रहा था.''
पनगढ़िया ने लिखा है, ''इन्फ़्रास्ट्रक्चर में भारी निवेश किया जा रहा है. यहाँ तक कि कोविड संकट के दौरान भी भारत की अर्थव्यवस्था बिखरी नहीं. भारत अपने सभी बड़े कारोबारी साझेदार देशों के साथ मुक्त व्यापार समझौता कर रहा है. इसके साथ ही निजीकरण की प्रक्रिया भी तेज़ी से चल रही है.''
विदेशी मीडिया में कहा जा रहा है कि मोदी भारत की मज़बूती का फ़ायदा उठाने पर ध्यान फ़ोकस कर रहे हैं. कोविड-19 महामारी, यूक्रेन पर रूसी हमला और चीन के विस्तारवाद के कारण वर्ल्ड ऑर्डर बाधित हुआ है.
मोदी इसे मौक़े के तौर पर ले रहे हैं और भारत को अपनी शर्तों पर स्थापित करने में लगे हैं. कई देशों से भारत ट्रेड डील कर रहा है. भारत के पास बड़ी युवा आबादी है. इसके साथ ही भारत टेक्नॉलजी इन्फ़्रास्ट्रक्चर बढ़ा रहा है. भारत को चीन के काउंटर के तौर पर भी देखा जा रहा है.
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