कन्नौज में असीम अरुण को जिताना बीजेपी के लिए बन गया है प्रतिष्ठा का मुद्दा- ग्राउंड रिपोर्ट

कन्नौज, असीम अरुण

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    • Author, अनंत झणाणे
    • पदनाम, बीबीसी संवाददाता, कन्नौज से

इत्र की नगरी कन्नौज में इस बार ज़बरदस्त सियासी घमासान देखने को मिल रहा है. चुनाव से ठीक पहले इत्र कारोबारियों पर कार्रवाई और छापेमारी ने इस शहर की राजनीतिक प्रोफ़ाइल बढ़ाने में ख़ासी भूमिका निभाई है.

"समाजवादी इत्र" के निर्माता और पार्टी के एमएलसी पुष्पराज जैन उर्फ़ पंपी जैन पर हुई छापेमारी ने बीजेपी को सपा के ख़िलाफ़ भ्रष्टाचार के आरोप से हमला करने का एक नया हथियार दिया है, जिसका प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से लेकर सभी बड़े नेता भरपूर इस्तेमाल कर रहे हैं.

भ्रष्टाचार से जुड़ी राजनीति के बीच में भाजपा ने कानपुर के कमिश्नर और उत्तर प्रदेश के आतंक विरोधी दस्ते के पूर्व प्रमुख असीम अरुण को वीआरएस दिलवा कर कन्नौज से मैदान में उतारा है.

असीम अरुण एक वरिष्ठ पुलिस अधिकारी होने के साथ साथ दलित बिरादरी से भी हैं. ऐसे में एक पुलिस अधिकारी को इस माहौल में मैदान में उतार कर भाजपा दलितों से जुड़ी अपनी राजनीति को नयी दिशा देने की कोशिश में लगी है.

कन्नौज कैसे बना हाई प्रोफ़ाइल?

शनिवार को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कन्नौज में रैली कर समाजवादी पार्टी पर इत्र को भ्रष्टाचार से जोड़ने का आरोप लगाया.

उन्होंने कहा, "घोर परिवारवादियों की कुनीति का एक गवाह कन्नौज का इत्र उद्योग भी है. इन्होंने अपने भ्रष्टाचार से, अपने काले कारनामों से यहां के इत्र कारोबार को बदनाम किया. इन्होंने इत्र को करप्शन से जोड़ा."

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कन्नौज में भ्रष्टाचार के आरोपों की शुरुआत चुनाव के ठीक पहले तब हुई, जब पीयूष जैन नाम के एक केमिकल व्यापारी के कानपुर और कन्नौज के ठिकानों पर जांच एजेंसियों ने कई दिनों तक छापेमारी की. उस छापेमारी से 196 करोड़ रुपये नकद बरामद हुए. पीयूष जैन को गिरफ़्तार कर जेल भेज दिया गया.

ठीक उसके बाद समाजवादी पार्टी के एमएलसी और समाजवादी इत्र के निर्माता पुष्पराज जैन पर भी छापेमारी हुई, लेकिन अभी तक उनके यहाँ से क्या बरामद हुआ, इसकी औपचारिक जानकारी जांच एजेंसियों ने नहीं दी है. और न ही पुष्पराज जैन से बरामद हुई राशि का चुनावी मंचों से कोई ज़िक्र ही होता है.

लेकिन छापेमारी के इस अभियान से इत्र से जुड़ा विवाद पूरी तरह से कन्नौज की चुनावी फ़िज़ा में घुल गया है. अमित शाह जैसे भाजपा के नेता इस विवाद को लगातार चुनावी मंचों से हवा देते रहते हैं.

एक रैली में अमित शाह ने कहा, "समाजवादी इत्र वाले के पास से ढेरों नोटों की गड्डी मिली है. अखिलेश जी कहने लगे कि प्रधानमंत्री मोदी जी ने रेड क्यों कराई. अखिलेश जी, अगर टैक्स नहीं भरा तो रेड तो होगी. आपका इस इत्र वाले से आख़िर रिश्ता क्या है?"

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इत्र का इस्तेमाल कर भ्रष्टाचार का माहौल बनाने की कोशिश की और इस बीच भाजपा ने एक पुलिस अधिकारी असीम अरुण को अपना चेहरा बना कर मैदान में उतार दिया.

कन्नौज, असीम अरुण

'भ्रष्टाचार' के माहौल में "ईमानदार" पुलिस अफ़सर की एंट्री

जब पीयूष जैन के कानपुर घर पर मशीनें लगाकर करोड़ों रुपये गिने जा रहे थे, तब कानपुर के पुलिस कमिश्नर असीम अरुण ही थे. हालांकि कानपुर पुलिस की छापेमारी और उससे जुड़ी जांच में उनकी कोई भूमिका नहीं थी. वो महज़ जांच में जुटी एजेंसियों की पुलिसिया मदद कर रहे थे.

हालांकि इस घटना के तुरंत बाद असीम अरुण ने पुलिस की नौकरी से त्यागपत्र दे दिया और भाजपा में शामिल हो गए. कन्नौज सदर से असीम अरुण की उम्मीदवारी घोषित कर भाजपा ने 'ईमानदार बनाम भ्रष्ट' के मुक़ाबले का माहौल बनाना शुरू कर दिया.

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भाजपा की कन्नौज के लिए यह रणनीति असीम अरुण के बयानों में भी साफ़ झलकती है.

बीबीसी हिंदी से वे कहते हैं, "फ़र्क साफ़ है. ईमानदार पुलिसवाला बनाम अपराधी वाला कोई नैरेटिव बनाने की ज़रूरत नहीं है, ये तो सामने है. मैं यह अपना बहुत बड़ा सौभाग्य समझता हूँ कि मुझको भाजपा ने देखा और आमंत्रित किया. इसलिए नहीं कि मैं क्या हो सकता हूँ, इसलिए कि मैं क्या हूँ."

कन्नौज में क्या हैं अरुण की चुनौतियाँ?

भाजपा ने कन्नौज से अखिलेश यादव और समाजवादी पार्टी को निशाना बनाकर पार्टी की यहाँ से जीत को एक प्रतिष्ठा की लड़ाई बना दिया है.

भ्रष्टाचार की भूमिका के बावजूद असीम अरुण के लिए यहाँ से जीतना आसान नहीं है. असीम अरुण के सामने चुनौतियों को समझने के लिए बीबीसी ने कन्नौज से भाजपा के पुराने नेता बनवारी लाल दोहरे से बात की. दरअसल बनवारी लाल दोहरे का टिकट काटकर असीम अरुण को दिया गया है.

कन्नौज, असीम अरुण

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इमेज कैप्शन, कुछ का कहना है कि इलाक़े में कहते हैं कि वे असीम अरुण को पहचानते नहीं.

बनवारी लाल दोहरे कहते हैं, ''असीम अरुण को कन्नौज में अपनी पहचान बनाने के लिए मेहनत करनी होगी. लोग कहते हैं कि हम लोग असीम अरुण को पहचानते नहीं हैं, हमारे सामने आना चाहिए. यह भी कठिन है कि हम कौन कौन गांव जाएं, क्योंकि भौगोलिक स्थिति में ऐसा लगता है कि वे दोनों अनभिज्ञ हैं."

इसके बावजूद बनवारी लाल दोहरे कहते हैं कि असीम अरुण के साथ पार्टी का संगठन खड़ा हुआ है और "संगठन के आधार पर पहचान होती चली जाती है."

बीबीसी हिंदी से बात करते करते बनवारी लाल दोहरे के घर भाजपा के उत्तर प्रदेश के प्रभारी धर्मेंद्र प्रधान आ जाते हैं. चाय नाश्ता करते हैं और बीबीसी से बात करने से इनकार करते हुए इलाक़े में निकल जाते हैं.

धर्मेंद्र प्रधान जैसे कद्दावर नेता का बनवारी लाल दोहरे के घर आकर मुलाक़ात करना इस बात का संकेत है कि पार्टी कन्नौज के चुनाव को लेकर कोई जोख़िम नहीं उठाना चाहती.

धर्मेंद्र प्रधान से मुलाक़ात के बाद दोहरे कहते हैं, "मैंने तो खुलेआम कहा है कि भारतीय जनता पार्टी में जी रहा था पहले भी और भाजपा ने टिकट अगर असीम अरुण को दिया है, तब भी भाजपा में रहकर उन्हें आशीर्वाद दे रहा हूँ और भाजपा को जिताने का काम कर रहा हूँ."

बनवारी लाल दोहरे के घर भाजपा के उत्तर प्रदेश के प्रभारी धर्मेंद्र प्रधान
इमेज कैप्शन, इस सीट से बीजेपी की ओर से पहले चुनाव लड़ते रहे बनवारी लाल दोहरे के घर भाजपा के पार्टी के प्रदेश प्रभारी धर्मेंद्र प्रधान

'कन्नौज जीतना आसान नहीं'

कन्नौज में हिंदुस्तान अख़बार के ब्यूरो चीफ़ तारिक़ इक़बाल कहते हैं कि कन्नौज सदर अब भी भाजपा के लिए चुनौतियों वाली सीट बनी हुई है.

वे कहते हैं, "अगर सीट आसान होती तो, जो पहले के प्रत्याशी होते उन्हीं को फिर से टिकट मिलता, क्योंकि पहले के प्रत्याशी चार बार चुनाव लड़ने के बाद भी जीत नहीं पाए. पिछले इलेक्शन में भी मोदी जी की लहर थी, उसमें भी वो कम मार्जिन से हार गए."

तारिक़ इक़बाल के मुताबिक़, कन्नौज सीट भाजपा ने तीन ही बार जीती है. पहली बार 1991 में, राम मंदिर की लहर के दौरान भाजपा ने यह सीट सिर्फ़ 47 वोट से जीती थी. वो कांटे की टक्कर थी.

कन्नौज सदर के सामाजिक समीकरण ने भी भाजपा का साथ नहीं दिया है. पत्रकार तारिक़ इक़बाल कहते हैं, "यहाँ पर एससी वोट में बंटवारा रहा है. जिसकी जितनी एप्रोच होती है वो उतने वोट पा लेता है. उसके अलावा मुसलमान वोट 18 से 20 फ़ीसदी हैं. उसके बाद यादव वोट हैं. तीसरे नंबर पर ग़ैर यादव पिछड़े लोग हैं.''

वे कहते हैं, ''यहां लड़ाई हमेशा ग़ैर यादव ओबीसी की हो जाती है. जो ब्राह्मण हैं, क्षत्रिय हैं और कायस्थ हैं, वो कुल मिला कर 10 से 12 प्रतिशत वोट है. नॉन यादव ओबीसी में भी मौर्य, बढ़ई बिरादरी और कुर्मी वोटर हैं. तो जो समीकरण हैं, वो भाजपा के पक्ष में नहीं रहता यहाँ पर. लेकिन असीम अरुण को उतार कर एक नए चेहरे से चुनाव लड़ने जा रही है, तो भाजपा के कैडर में इसे लेकर उत्साह है."

कन्नौज, अनिल दोहरे
इमेज कैप्शन, इस सीट से समाजवादी पार्टी के मौजूदा विधायक अनिल दोहरे

हारी तो क्या कन्नौज में ख़त्म हो जाएगी सपा?

कन्नौज सदर एक आरक्षित सीट है. असीम अरुण के सामने यहाँ लगातार तीन बार सपा विधायक रहे अनिल दोहरे 2007 से ही चट्टान बन कर खड़े हैं. 2017 में भाजपा की लहर के बावजूद अनिल दोहरे अपना चुनाव जीत गए. दोहरे को विश्वास है कि वो इस बार फिर अपना प्रदर्शन दोहराएंगे.

वे कहते हैं, "चुनाव कितना भी हाई प्रोफ़ाइल किया जाए, चुनाव जनता लड़ती है. और जनता एकतरफ़ा सपा के पक्ष में मतदान करने के लिए बैठी है."

लेकिन भाजपा सपा के ख़िलाफ़ राजनीति का नया केंद्र कन्नौज को बनाने में लगी हुई है. इसलिए निशाना सीधे पार्टी के एमएलसी पुष्पराज जैन पर रेड करके साधा गया. बीबीसी ने जब पुष्पराज जैन से बात करने की कोशिश की तो उन्होंने कहा कि वे लखनऊ में हैं.

अगर इन छापों से वाक़ई सपा को कोई फ़र्क नहीं पड़ता, तो एमएलसी होने की हैसियत से क्या पुष्पराज जैन विधायक अनिल दोहरे का प्रचार करेंगे? इस पर अनिल दोहरे कहते हैं, "वो प्रचार कर रहे हैं और आगे भी करेंगे. अखिलेश यादव की रैली में भी रहेंगे."

सपा पुष्पराज जैन का प्रचार में इस्तेमाल करे या न करे, भाजपा उनके यहाँ हुई छापेमारी को कन्नौज में खूब इस्तेमाल कर रही है.

मंगलवार को कन्नौज में हुई अपनी जनसभा में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने कहा, "चुनाव के पहले इन्होंने समाजवाद के नाम पर एक इत्र भी लॉन्च किया. और आपने देखा होगा अपनी आंखों से कि इत्र में प्रदेश की जनता की गाढ़ी कमाई को कैसे क़िले और भवन में क़ैद करके रख दिया था. वह सब आपने अपनी आंखों से देखा है. समाजवाद इत्र की बदबू ने कैसे कन्नौज को पूरी दुनिया में बदनाम करके रख दिया."

असीम अरुण

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क्या अरुण बन पाएंगे भाजपा का दलित चेहरा?

असीम अरुण बिरादरी से दलित जाटव हैं. वो एक पढ़े लिखे पुलिस अधिकारी भी रहे हैं. इन दोनों पहचान के मिश्रण का एक राजनीतिक आकर्षण हो सकता है और उस नज़रिए से असीम अरुण के राजनीतिक करियर की शुरुआत से भाजपा भी कुछ बड़ा हासिल करने की कोशिश कर रही है.

लेकिन अगर असीम अरुण को दलितों से जुड़ी राजनीति करनी थी तो वो भाजपा की जगह बसपा में क्यों नहीं शामिल हुए?

इस पर अरुण कहते हैं, "मेरे मूलभूत सिद्धांत हैं ईमानदारी, सबको साथ लेकर चलना, शिष्टाचार के साथ रहना और अपना काम मुकम्मल तरीके से पूरा करना. भाजपा में मुझे एक महीना होने जा रहा है, तो मैं अपने मूल सिद्धांतों के साथ बहुत ही कंफ़र्टेबेल हूँ."

तो क्या बसपा ईमानदार पार्टी नहीं है? इस पर असीम अरुण कहते हैं, "भाजपा का नारा है- सोच ईमानदार, काम दमदार. ईमानदारी तो भाजपा की रग रग में है."

कन्नौज सदर से पूर्व भाजपा विधायक और असीम अरुण के लिए अपना टिकट त्यागने वाले बनवारी लाल दोहरे कहते हैं, "जहाँ तक क़द काठी की बात है, तो उनका प्रोफ़ाइल बड़ा है. और बड़ा प्रोफ़ाइल होने की वजह से सेंटर सोचता होगा कि बड़ी जगह पर पहुंचना चाहिए. हो सकता है कि उन्हें कैबिनेट में या साथ में एडजस्ट करने के बारे में पार्टी और सेंटर सोच रहा हो."

मंत्री बनने की संभावना और दलितों का चेहरा बन कर उभरने के सवाल पर असीम अरुण कहते हैं, "मुश्किल लगता है मुझको और यह मायने भी नहीं रखता. मुझे अभी पार्टी में एक महीना भी नहीं हुआ है. मेरे पास काम बहुत बड़ा है कि कन्नौज जीतूं और बहुत अच्छे मार्जिन से. मेरे सामने सिर्फ़ यही एक लक्ष्य है."

कन्नौज, असीम अरुण

'दलित नहीं बेहतर काम के ज़रिए जीतने की कोशिश'

असीम अरुण को भाजपा के टिकट से चुनाव लड़ने को ग़ैर-मामूली बताते हुए उत्तर प्रदेश के वरिष्ठ पत्रकार रतन मणि लाल ने बीबीसी हिंदी से बात की.

वे कहते हैं, "भाजपा ने ऐसे व्यक्ति को चुना है, जो दलित होने से ज़्यादा एक बेहतर अधिकारी है. मुझे लगता है कि इस तर्क की ज़्यादा अहमियत है. भाजपा एक दलित को इसलिए नहीं उतार रही हैं क्योंकि वो दलित है, बल्कि इसलिए कि वो एक अच्छा अधिकारी भी रहा है. ऐसा निर्णय दलित बिरादरी के प्रति लोगों को ज़्यादा संवेदनशील बनाती है. असीम अरुण का चुनाव लड़ना दलितों के लिए तो मायने रखता ही है, ग़ैर-दलित बिरादरियों के लिए भी मायने रखता है कि ये दलित अधिकारी रहा, लेकिन इसने कोई दलित एजेंडा नहीं चलाया."

इस बारे में उत्तर प्रदेश के वरिष्ठ पत्रकार शीतला प्रसाद सिंह का कहना है कि असीम अरुण में भाजपा की ओर जाटव दलितों को लुभाने की कोशिश उन्हें नज़र आ रही है.

उनके मुताबिक, "भाजपा का टारगेट ये है कि बसपा इस चुनाव में कमज़ोर हो रही है तो दलितों में हम पोचिंग शुरू करें. पिछली बार उन्होंने ग़ैर-यादव ओबीसी में पोचिंग की थी. अबकी बार बहुत प्लान करके उन्होंने यह काम शुरू किया है. निश्चित तौर पर वो ऐसे लोगों को ढ़ूंढ़ रही है, जो ऐसी कम्युनिटी से आते हों और भाजपा में भी फिट हो सकें."

वीडियो कैप्शन, जब मुलायम सिंह और कांशीराम ने मिलकर कल्याण सिंह को चित्त किया

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