उत्तर प्रदेश चुनाव: RLD की कांग्रेस में ‘सेंधमारी’ से हापुड़ में दिलचस्प मुक़ाबला, BJP-BSP पर कितना असर - ग्राउंड रिपोर्ट

- Author, वात्सल्य राय
- पदनाम, बीबीसी संवाददाता
बजट पर चर्चा के लिए जुटे हापुड़ के किसानों में से एक ने कहा, 'सबसे बुरा तो कांग्रेस के साथ हुआ.'
'पूरे इलाके में यहीं तो सेहरा सजने (जीत) की उम्मीद थी.'
कांग्रेस के एक युवा नेता की ओर इशारा करते हुए वो बोले, "बारात पूरे उत्साह में थी लेकिन दूल्हा दूसरे शामियाने में चला गया."
वो हापुड़ (सुरक्षित) विधानसभा सीट से राष्ट्रीय लोकदल और समाजवादी पार्टी के संयुक्त उम्मीदवार गजराज सिंह का ज़िक्र कर रहे थे.

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गजराज सिंह चार बार कांग्रेस की टिकट पर विधायक रह चुके हैं. साल 2017 के विधानसभा चुनाव में वो दूसरे नंबर पर थे.
कांग्रेस नेता अंकित शर्मा दावा करते हैं, "हमने पांच साल संघर्ष किया है. सरकार की नीतियों से नाराज़ लोग बदलाव के मूड में हैं और हमें लग रहा था कि इस बार हापुड़ में फिर से कांग्रेस का झंडा लहराएगा."
राष्ट्रीय लोकदल के प्रमुख चौधरी जयंत सिंह ने बीती 13 जनवरी को जब गजराज सिंह के साथ हाथ मिलाते हुए तस्वीर ट्वीट की तो अंकित शर्मा जैसे कई कार्यकर्ताओं को झटका लगा.

उलट-पलट गए समीकरण
अंकित शर्मा कहते हैं, "नेताओं का आना- जाना तो लगा रहता है लेकिन हमारे बहुत से साथी तैयारी में जुटे थे और इस स्थिति लिए तैयार नहीं थे."
''ये सबकुछ अचानक हुआ. गजराज सिंह हापुड़ में कांग्रेस के पर्याय थे. यहां के सबसे बड़े नेता थे.''
इलाक़े की राजनीति पर नज़र रखने वालों का दावा है कि गजराज सिंह के एक फ़ैसले ने विधानसभा सीट के सारे समीकरण उलट-पुलट कर दिए हैं.
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मुक़ाबले में कौन?
हापुड़ की राजनीति की अच्छी समझ रखने वाले विपिन शिवाला के मुताबिक़, "गजराज सिंह जब तक कांग्रेस में थे, तब तक यहां मुख्य मुक़ाबला बीजेपी प्रत्याशी और मौजूदा विधायक विजय पाल सिंह 'आढ़ती' और बहुजन समाज पार्टी के मनीष सिंह 'मोनू भइया' के बीच माना जा रहा था. लेकिन अब तस्वीर बदल रही है. गजराज सिंह ने (सपा-लोकदल) गठबंधन और अपनी उम्मीद बहुत मज़बूत कर ली है."
हापुड़ में करीब साढ़े तीन लाख वोटर हैं. इनमें मुसलमानों और दलितों की बड़ी संख्या है और उन्हें निर्णायक माना जाता है.
समाजवादी पार्टी और राष्ट्रीय लोकदल के नेता दावा करते हैं कि दोनों दलों के साथ आने से 'गठबंधन के पक्ष में लहर चल पड़ी है.'

'वोटर हैं मेरे भगवान'
तो क्या गजराज सिंह ने इसी वजह से कांग्रेस से क़रीब चार दशक पुराना नाता तोड़ लिया, इस सवाल के जवाब में वो कहते हैं, "मैं चोरी से नहीं गया. मैं अपने समर्थकों और वोटरों को भगवान के रूप में देखता हूं. मैंने समर्थकों का सम्मान करते हुए ये फ़ैसला किया."
गजराज सिंह दावा करते हैं कि उनके कांग्रेस छोड़ने की बड़ी वजह मौजूदा 'सरकार की किसान विरोधी नीतियां' और किसान आंदोलन' बना.
वो बताते हैं, "मैंने अपनी नेता प्रियंका गांधी जी को टेलीफ़ोन किया. उन्होंने कहा आप मिस्टर (दीपेंद्र) हुड्डा जी के पास जाइए. मैं गया. मैंने कहा, अब मैं किसानों की पार्टी से चुनाव लड़ूंगा. लोकदल को मैं किसानों की पार्टी मानता हूं. "
गजराज सिंह ने कहा, "मैं मानता हूं कि पिछले 30 वर्षों से कांग्रेस की हालत हल्की चल रही थी लेकिन अपने समर्थकों को लेकर मैं पार्टी के अंदर काम करता था."
गजराज सिंह ने आगे कहा, "पिछले पांच साल में किसान और मज़दूरों के साथ जो अत्याचार मौजूदा सरकार ने किए, 13 महीने तक किसान राजा के दरबार के बाहर बैठे रहे. राजा ने उनकी बात को नहीं सुना, "
उन्होंने कहा, "मेरे समर्थकों का कहना था कि गजराज सिंह साहब किसानों के साथ जो ज़ुल्म हो रहा है, अगर आप उसमें साथ नहीं देंगे, तो एक काम कीजिए या तो चुनाव लड़ना बंद कीजिए या फिर आठ बार जैसे आप चुनाव लड़े और हम आपके साथ रहे, वैसे नवीं बार आप हमारे साथ रहेंगे. मैंने मन बनाया क्यों ना मैं किसानों के साथ काम करूं?"
कांग्रेस से किनारा करते ही गजराज सिंह का उत्साह भी बढ़ गया है.
वो दावा करते हैं, "यहां बिल्कुल एकतरफ़ा चुनाव है. तमाम किसान जाति-बिरादरी से हटकर मेरा साथ दे रहे हैं. "

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बीजेपी का दावा
हालांकि, मौजूदा विधायक और बीजेपी उम्मीदवार विजय पाल सिंह उनके दोनों ही दावों को ख़ारिज करते हैं. वो दावा करते हैं कि ना तो किसानों को कोई शिकायत है और ना ही बीजेपी के अलावा किसी और पार्टी की जीत की संभावना है.
विजय पाल सिंह ने बीबीसी से कहा, "मुझे हापुड़ में कोई असर नहीं लग रहा. सब किसान लोग मेरे साथ हैं. बहुत बड़ा सैलाब है हमारे साथ. "
वो आगे कहते हैं, "ये तो (राष्ट्रीय लोकदल) राजनीतिक पार्टी हैं, किसान इनमें एक दो ही हैं. बाकी सब किसान ख़ुश हैं."
विजय पाल सिंह ये भी बताते हैं कि वो अपनी जीत का दावा किस आधार पर कर रहे हैं.
वो कहते हैं, "भरोसा है हमें. हमने पांच साल काम किया है. सरकार ने पांच साल काम किया है. हमें कोई ख़तरा नहीं है. इस बार हम और अच्छे वोटों से जीतेंगे. "

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बीएसपी ने क्या कहा?
जीत का दावा बहुजन समाज पार्टी भी कर रही है. पार्टी ने आख़िरी बार ये सीट साल 2007 में जीती थी. पार्टी के ज़िलाध्यक्ष देवेंद्र भारती दावा करते हैं कि इस बार भी वही नतीजा दोहराया जाएगा.
भारती ने बीबीसी से कहा, " मनीष सिंह मोनू को सर्व समाज का वोट मिल रहा है. हम सिर्फ़ हापुड़ ही नहीं ज़िले की दो अन्य सीट गढ़ और धौलाना भी जीत रहे हैं. "
साल 2017 में धौलाना सीट पर बीएसपी ने ही जीत हासिल की थी. साल 2017 में हापुड़ ज़िले की गढ़ विधानसभा सीट पर बीजेपी ने जीत हासिल की थी लेकिन इस बार पार्टी ने मौजूदा विधायक को टिकट नहीं दिया है.
हापुड़ विधानसभा सीट के लिए बीएसपी नेता दावा करते हैं कि मनीष सिंह को अपने पिता धर्मपाल सिंह की विरासत का भी लाभ मिल रहा है. वो यहां दो बार (2002 और 2007 में) विधायक रहे थे.
बीएसपी के देवेंद्र भारती गजराज सिंह के जीत के दावे को भी ख़ारिज करते हैं.
वो कहते हैं, "गजराज सिंह का तो कहीं नंबर भी नहीं है. वो तो तीसरे नंबर के कैंडिडेट हैं. मनीष सिंह मोनू और बीजेपी की फ़ाइट है. "
गजराज सिंह इस पर जवाब देते हैं.
वो कहते हैं, "मैं हमेशा अव्वल रहा या दो दोयम रहा. चार बार हारा तो चार बार जीता भी हूं. मैं थर्ड नंबर पर कभी नहीं रहा."

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अब किस हाल में कांग्रेस?
इस बीच कांग्रेस ने भावना वाल्मीकि को टिकट दिया है लेकिन इस मुक़ाबले में उनकी जीत की कितनी संभावना है?
कांग्रेस नेता अंकित शर्मा इस सवाल पर कहते हैं, "बीते पांच साल से हम ही सड़क पर संघर्ष कर रहे थे. पार्टी अब भी मेहनत कर रही है. आप तो बस नतीजे देखिएगा. "
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