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विराट कोहली को सौरव गांगुली क्या देना चाहते थे कारण बताओ नोटिस- प्रेस रिव्यू
अंग्रेज़ी अख़बार द इंडियन एक्सप्रेस में छपी एक ख़बर के मुताबिक़, बीसीसीआई अध्यक्ष सौरव गांगुली ने विराट कोहली को कारण बताओ नोटिस जारी करने की खबरों पर कहा है कि इस तरह की कोई योजना नहीं है.
द इंडियन एक्सप्रेस से बात करते हुए उन्होंने कहा ये "बिल्कुल सच नहीं है."
अख़बार लिखता है कि बीते कुछ दिनों से मीडिया रिपोर्ट्स सामने आ रही थीं जिसमें सूत्रों के हवाले से ये दावा किया जा रहा था कि सौरभ गांगुली विराट कोहली को दक्षिण अफ़्रीका दौरे के पहले किए गए प्रेस कॉन्फ्रेंस पर कारण बताओ नोटिस जारी करना चाहते थे. इस कॉन्फ्रेंस में विराट कोहली ने बोर्ड के दावे से बिलकुल इतर बातें कहीं थीं.
विराट कोहली ने कहा था कि टी20 कप्तानी ना छोड़ने को लेकर उन्हें कभी रोका नहीं गया. उन्होंने कहा, "टी20 की कप्तानी छोड़ने से पहले, मैंने बीसीसीआई से संपर्क किया था और अपने फ़ैसले का कारण बताया था."
उन्होंने कहा था, "मेरे इस्तीफ़े को सकारात्मकता से लिया गया. किसी तरह की हिचकिचाहट नहीं दिखाई गई. मुझे ये नहीं कहा गया कि आप टी20 की कप्तानी ना छोड़िए. बल्कि इसे एक प्रगतिशील और सही दिशा में उठाए गए क़दम के तौर पर लिया गया. मैंने उस समय कहा था कि मैं टेस्ट और वनडे कप्तान के रूप में काम जारी रखना चाहूंगा जब तक कि पदाधिकारियों और चयनकर्ताओं को यह नहीं लगता कि मुझे यह ज़िम्मेदारी नहीं निभानी चाहिए. मेरा बीसीसीआई से संवाद स्पष्ट था."
कोहली ने पिछले साल टी20 विश्व कप के बाद टी20 कप्तानी छोड़ने का फैसला किया और इस संबंध में उन्होंने टूर्नामेंट से पहले बीसीसीआई के शीर्ष अधिकारियों और चयन समिति के साथ बैठक की.
मुख्य चयनकर्ता चेतन शर्मा ने कहा था, "जब सितंबर में टी20 टीम के लिए बैठक शुरू हुई तो विराट के इस फ़ैसले ने सबको चौंका दिया. उस बैठक में जो लोग भी शामिल थे सबने विराट से कहा कि वह अपने फ़ैसले पर फिर से विचार करें. हमें लगा कि ये फ़ैसला पूरी टीम को प्रभावित करेगा और हमने विराट से कहा कि आप टीम के लिए कृपया अपने पद पर बने रहें. सबने ये बात विराट से कही थी. उस बैठक में कन्वेनर मौजूद थे, बोर्ड के अधिकारी मौजूद थे. लेकिन उन्होंने ये फ़ैसला लिया और हमने उसका सम्मान किया."
कॉस्टेमिट उत्पादों पर वेज-नॉनवेज के लेबल ज़रूरी नहीं
हिंदुस्तान टाइम्स में छपी एक रिपोर्ट के मुताबिक़, केंद्रीय औषधि मानक नियंत्रण संगठन (सीडीएससीओ) ने दिल्ली हाईकोर्ट को बताया कि सौंदर्य प्रसाधन उत्पादों को शाकाहारी और मांसाहारी के रूप में लेबल करना निर्माताओं के लिए अनिवार्य नहीं बनाया जा सकता है और वे स्वेच्छा से या अपने विवेक पर ऐसा कर सकते हैं.
जस्टिस विपिन सांघी और जस्टिस जसमीत सिंह की पीठ के सामने दायर एक हलफ़नामे में सीडीएससीओ ने कहा कि औषधि तकनीकी सलाहकार बोर्ड (डीटीएबी) हर पैकेट पर हरा (शाकाहारी के लिए) या लाल (मांसाहारी के लिए) बिंदु अनिवार्य करने के लिए सहमत नहीं है. हर पैकेट पर यह जानकारी नियमन को जटिल बना सकता है.
हालांकि, बोर्ड का मानना है कि सोप्स, शैंपू, टूथपेस्ट और अन्य सौंदर्य प्रसाधन और प्रसाधन सामग्री जैसे लेबलिंग आइटम को स्वैच्छिक बनाया जा सकता है और निर्माता को निर्णय लेने के लिए स्वतंत्र छोड़ा जा सकता है.
मनोहर पार्रिकर के बेटे को नहीं दी गई टिकट, छोड़ी बीजेपी
अंग्रेज़ी अख़बार द हिंदू के अनुसार, गोवा के दिवंगत मुख्यमंत्री, देश के रक्षा मंत्री रह चुके बीजेपी के दिग्गज नेता मनोहर पर्रिकर के बेटे उत्पल पर्रिकर ने शुक्रवार को बीजेपी से इस्तीफ़ा दे दिया और घोषणा की है कि वह पणजी विधानसभा क्षेत्र से निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में चुनाव लड़ेंगे.
उन्होंने कहा कि पार्टी के शीर्ष नेताओं ने उन्हें टिकट नहीं दिया, इसलिए उन्हें पार्टी छोड़ने का फ़ैसला लेना पड़ा.
पणजी में पत्रकारों से बात करते हुए उत्पल पर्रिकर ने कहा कि उन्होंने चुनाव लड़ने का फ़ैसला किया था क्योंकि वह लोगों को एक विकल्प देना चाहते थे, और यह समय उन मूल्यों के लिए खड़े होने का था जो वर्तमान बीजेपी में लगातार कम हो रहे हैं.
उन्होंने कहा, "इन सालों में मेरे पिता (मनोहर पर्रिकर) ने पणजी के लोगों के साथ एक बड़ा रिश्ता बनाया. मैंने भी उनके साथ यहां के लोगों से वो रिश्ता बनाया है. लेकिन मुझे पणजी की उम्मीदवारी नहीं मिल पाई. इसके बजाय, यह किसी ऐसे व्यक्ति को दिया गया है जो पिछले दो वर्षों में अवसरवादी रूप से बीजेपी में शामिल हुआ है."
उत्पल पर्रिकर ने पणजी के मौजूदा विधायक और पूर्व कांग्रेस नेता अतानासियो 'बाबुश' मोनसेरेट पर निशाना साधते हुए ये बात कही, जिन्हें बीजेपी टिकट दे रही है.
हरक सिंह रावत आख़िरकार कांग्रेस में शामिल
हिंदी अख़बार जनसत्ता में छपी एक रिपोर्ट के अनुसार, हरक सिंह रावत अब वापस कांग्रेस में आ गए हैं. इसके साथ ही पिछले कई दिनों से चली आ रही हरक सिंह रावत की राजनीतिक यात्रा पर जारी अटकलें भी अब थम गई हैं.
16 जनवरी को बीजेपी ने हरक सिंह रावत के बगावती तेवर को देखते हुए पार्टी से उन्हें छह सालों के लिए निष्कासित कर दिया था. इसके साथ ही उनसे मंत्री पद भी छीन लिया गया रावत अपने क्षेत्र में एक मेडिकल कॉलेज के लिए अड़े हुए थे, जिसका उन्होंने पिछले चुनाव के समय वादा भी किया था, लेकिन सरकार से पूरा नहीं करवा पाए. इस मांग को लेकर पहले भी उनकी सीएम के साथ तकरार हो चुकी थी, लेकिन तब बीजेपी हाईकमान ने उन्हें मना लिया था. हालांकि बाद में बीजेपी की ओर से कहा गया कि वो अपने परिवार के लिए टिकट मांग रहे थे, जो संभव नहीं था, इसलिए उन्हें पार्टी से निकाल दिया गया.
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