टूलकिट क्या होती है जिसे दिल्ली पुलिस ने बताया 'विदेशी साज़िश'

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- Author, प्रशांत चाहल
- पदनाम, बीबीसी संवाददाता
किसानों के आंदोलन से कथित तौर पर जुड़ी एक 'टूलकिट' की दिल्ली पुलिस ने जाँच शुरू कर दी है.
ये वही टूलकिट है जिसे स्वीडन की जानी-मानी पर्यावरण कार्यकर्ता ग्रेटा थनबर्ग ने ट्विटर पर शेयर करते हुए लिखा था कि "अगर आप किसानों की मदद करना चाहते हैं तो आप इस टूलकिट (दस्तावेज़) की मदद ले सकते हैं."
लेकिन दिल्ली पुलिस ने इसे "लोगों में विद्रोह पैदा करने वाला दस्तावेज़" बताया है और इसे जाँच के दायरे में ले लिया है.
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पुलिस इस टूलकिट को लिखने वालों की तलाश कर रही है. पुलिस ने इसे लिखने वालों के ख़िलाफ़ आईपीसी की धारा-124ए, 153ए, 153, 120बी के तहत केस दर्ज किया है. हालांकि दिल्ली पुलिस की एफ़आईआर में किसी का नाम शामिल नहीं है.
समाचार एजेंसी एएनआई ने सूत्रों के हवाले से लिखा है कि "पुलिस गूगल को एक पत्र लिखने वाली है ताकि इस टूलकिट को बनाकर सोशल मीडिया पर अपलोड करने वाले लोगों का आईपी एड्रेस निकाला जा सके."
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दिल्ली पुलिस के स्पेशल कमिश्नर प्रवीर रंजन का कहना है कि "हाल के दिनों में लगभग 300 सोशल मीडिया हैंडल पाये गए हैं, जिनका इस्तेमाल घृणित और निंदनीय कंटेंट फैलाने के लिए किया जा रहा है. कुछ वेस्टर्न इंटरेस्ट ऑर्गनाइजेशन द्वारा इनका इस्तेमाल किया जा रहा है, जो किसान आंदोलन के नाम पर भारत सरकार के ख़िलाफ़ ग़लत प्रचार कर रहे हैं.''
केंद्रीय मंत्री प्रकाश जावड़ेकर ने इसे 'विदेशी साज़िश' बताया है. उन्होंने प्रेस से बात करते हुए कहा, "जो टूलकिट का मामला है, वो बहुत गंभीर है. इससे साफ़ होता है कि कुछ विदेशी ताक़तें भारत को बदनाम करने की साज़िश कर रही हैं."
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दिल्ली पुलिस ने 4 फरवरी को अपनी प्रेस कॉन्फ्रेस में कहा था कि "ये टूलकिट खालिस्तानी समर्थक संगठन पोएटिक जस्टिस फाउंडेशन के द्वारा बनाया गया है. इसे पहले अपलोड किया गया और फिर कुछ दिन बाद इसे डिलीट कर दिया गया."
कुछ मीडिया रिपोर्ट्स में दिल्ली पुलिस के सूत्रों का हवाला देकर यह दावा किया गया है कि "इस संस्था के सह-संस्थापक मो धालीवाल ख़ुद को ख़ालिस्तान समर्थक बताते हैं और कनाडा के वैंकूवर में रहते हैं."
हालांकि सत्तारूढ़ राजनीतिक दल के सदस्य बार-बार ये कहते रहे हैं कि "किसानों का मौजूदा आंदोलन एक प्रायोजित कार्यक्रम है और ख़ालिस्तानी समर्थक इस आंदोलन का हिस्सा हैं."

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टूलकिट आख़िर होती क्या है?
मौजूदा दौर में दुनिया के अलग-अलग हिस्सों में जो भी आंदोलन होते हैं, चाहे वो 'ब्लैक लाइव्स मैटर' हो, अमेरिका का 'एंटी-लॉकडाउन प्रोटेस्ट' हो, पर्यावरण से जुड़ा 'क्लाइमेट स्ट्राइक कैंपेन' हो या फ़िर कोई दूसरा आंदोलन हो, सभी जगह आंदोलन से जुड़े लोग कुछ 'एक्शन पॉइंट्स' तैयार करते हैं, यानी कुछ ऐसी चीज़ें प्लान करते हैं जो आंदोलन को आगे बढ़ाने के लिए की जा सकती हैं.
जिस दस्तावेज़ में इन 'एक्शन पॉइंट्स' को दर्ज किया जाता है, उसे टूलकिट कहते हैं.
'टूलकिट' शब्द इस दस्तावेज़ के लिए सोशल मीडिया के संदर्भ में ज़्यादा इस्तेमाल होता है, लेकिन इसमें सोशल मीडिया की रणनीति के अलावा भौतिक रूप से सामूहिक प्रदर्शन करने की जानकारी भी दे दी जाती है.
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टूलकिट को अक्सर उन लोगों के बीच शेयर किया जाता है, जिनकी मौजूदगी आंदोलन के प्रभाव को बढ़ाने में मददगार साबित हो सकती है.
ऐसे में टूलकिट को किसी आंदोलन की रणनीति का अहम हिस्सा कहना ग़लत नहीं होगा.
टूलकिट को आप दीवारों पर लगाये जाने वाले उन पोस्टरों का परिष्कृत और आधुनिक रूप कह सकते हैं, जिनका इस्तेमाल वर्षों से आंदोलन करने वाले लोग अपील या आह्वान करने के लिए करते रहे हैं.
सोशल मीडिया और मार्केटिंग के विशेषज्ञों के अनुसार, इस दस्तावेज़ का मुख्य मक़सद लोगों (आंदोलन के समर्थकों) में समन्वय स्थापित करना होता है. टूलकिट में आमतौर पर यह बताया जाता है कि लोग क्या लिख सकते हैं, कौन से हैशटैग इस्तेमाल कर सकते हैं, किस वक़्त से किस वक़्त के बीच ट्वीट या पोस्ट करने से फ़ायदा होगा और किन्हें ट्वीट्स या फ़ेसबुक पोस्ट्स में शामिल करने से फ़ायदा होगा.
जानकारों के अनुसार, इसका असर ये होता है कि एक ही वक्त पर लोगों के एक्शन से किसी आंदोलन या अभियान की मौजूदगी दर्ज होती है, यानी सोशल मीडिया के ट्रेंड्स में और फिर उनके ज़रिये लोगों की नज़र में आने के लिए इस तरह की रणनीति बनायी जाती है.
आंदोलनकारी ही नहीं, बल्कि तमाम राजनीतिक पार्टियाँ, बड़ी कंपनियाँ और अन्य सामाजिक समूह भी कई अवसरों पर ऐसी 'टूलकिट' इस्तेमाल करते हैं.
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3 फ़रवरी को ग्रेटा थनबर्ग ने किसानों के समर्थन में एक ट्वीट किया था. उसी दिन एक अन्य ट्वीट में ग्रेटा ने एक टूलकिट भी शेयर की थी और लोगों से किसानों की मदद करने की अपील की थी. मगर बाद में उन्होंने वो ट्वीट डिलीट कर दिया और बताया कि 'जो टूलकिट उन्होंने शेयर की थी, वो पुरानी थी.'
4 फ़रवरी को ग्रेटा ने एक बार फिर किसानों के समर्थन में ट्वीट किया. साथ ही उन्होंने एक और टूलकिट शेयर की, जिसके साथ उन्होंने लिखा, "ये नई टूलकिट है जिसे उन लोगों ने बनाया है जो इस समय भारत में ज़मीन पर काम कर रहे हैं. इसके ज़रिये आप चाहें तो उनकी मदद कर सकते हैं."
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इस टूलकिट में क्या है?
तीन पन्ने की इस टूलकिट में सबसे ऊपर एक नोट लिखा हुआ है, जिसके अनुसार "यह एक दस्तावेज़ है जो भारत में चल रहे किसान आंदोलन से अपरिचित लोगों को कृषि क्षेत्र की मौजूदा स्थिति और किसानों के हालिया प्रदर्शनों के बारे में जानकारी देता है."
नोट में लिखा है कि "इस टूलकिट का मक़सद लोगों को यह बताना है कि वो कैसे अपने विवेक का इस्तेमाल करते हुए किसानों का समर्थन कर सकते हैं."
इस नोट के बाद, टूलकिट में भारतीय कृषि क्षेत्र की मौजूदा स्थिति पर बात की गई है. बताया गया है कि भारत में छोटे और सीमांत किसानों की संख्या सबसे अधिक है और उनकी स्थिति वाक़ई ख़राब है.

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टूलकिट में किसानों को 'भारतीय अर्थव्यवस्था की रीढ़' बताया गया है. लिखा गया है कि "ऐतिहासिक रूप से हाशिये पर खड़े इन किसानों का पहले सामंती ज़मींदारों ने शोषण किया. उनके बाद उपनिवेशवादियों ने और फिर 1990 के दशक में लायी गईं भूमण्डलीकरण और उदारीकरण की नीतियों ने इनकी कमर तोड़ी. इसके बावजूद, आज भी किसान 'भारतीय अर्थव्यवस्था की रीढ़' हैं."
टूलकिट में आत्महत्या करने को मजबूर हुए भारतीय किसानों का भी ज़िक्र है. साथ ही, कृषि क्षेत्र में प्राइवेटाइज़ेशन (निजीकरण) को वैश्विक स्तर की समस्या बताया गया है.
इसके बाद, टूलकिट में लिखा है कि "लोग फ़ौरी तौर पर इस बारे में क्या कर सकते हैं."
टूलकिट में सुझाव दिया गया है कि लोग #FarmersProtest और #StandWithFarmers हैशटैग्स का इस्तेमाल करते हुए, किसानों के समर्थन में ट्वीट कर सकते हैं." रिहाना और ग्रेटा थनबर्ग ने अपने ट्वीट्स में #FarmersProtest हैशटैग का प्रयोग किया था.
टूलकिट में लिखा है कि "लोग अपने स्थानीय प्रतिनिधियों को मेल कर सकते हैं, उन्हें कॉल कर सकते हैं और उनसे पूछ सकते हैं कि वो किसानों के मामले में क्या एक्शन ले रहे हैं."

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टूलकिट में किसानों के समर्थन में कुछ ऑनलाइन-पिटीशन साइन करने की भी अपील की गई है, जिनमें से एक ऑनलाइन-पिटीशन तीनों कृषि बिल वापस लेने की है.
टूलकिट में लोगों से आह्वान किया गया है कि "वो संगठित होकर, 13-14 फ़रवरी को पास के भारतीय दूतावासों, मीडिया संस्थानों और सरकारी दफ़्तरों के बाहर प्रदर्शन करें और अपनी तस्वीरें #FarmersProtest और #StandWithFarmers के साथ सोशल मीडिया पर डालें."
टूलकिट में लोगों से किसानों के समर्थन में वीडियो बनाने, फ़ोटो शेयर करने और अपने संदेश लिखने का भी आह्वान किया गया है.
इसमें लोगों को सुझाव दिया गया है कि वो किसानों के समर्थन में जो भी पोस्ट करें, उसमें प्रधानमंत्री कार्यालय, कृषि मंत्री और अन्य सरकारी संस्थानों के आधिकारिक ट्विटर हैंडल को शामिल करें.
टूलकिट में दिल्ली की सीमाओं से शहर की ओर किसानों की एक परेड या मार्च निकालने का भी ज़िक्र है और लोगों से उसमें शामिल होने की अपील की गई है. मगर इसमें कहीं भी लाल क़िले का ज़िक्र नहीं मिलता और ना ही किसी को हिंसा करने के लिए उकसाया गया है.
गुरुवार को दिल्ली पुलिस के स्पेशल कमिश्नर प्रवीर रंजन ने टूलकिट में किसानों की परेड वाले पॉइंट पर ख़ासा ज़ोर देते हुए कहा था कि "टूलकिट में पूरा एक्शन प्लान बताया गया है कि कैसे डिजिटल स्ट्राइक करनी है, कैसे ट्विटर स्टॉर्म करना है और क्या फ़िजिकल एक्शन हो सकता है. 26 जनवरी के आसपास जो भी हुआ, वो इसी प्लान के तहत हुआ, ऐसा प्रतीत होता है."
हालांकि, दिल्ली पुलिस अब तक यह जानकारी नहीं दे पायी है कि ये टूलकिट कब से सोशल मीडिया पर शेयर हो रही थी.
किसान संगठनों ने दिसंबर 2019 में यह घोषणा कर दी थी कि वो गणतंत्र दिवस पर ट्रैक्टर रैली आयोजित करेंगे. 7 जनवरी को किसानों ने ईस्टर्न और वेस्टर्न पेरिफ़ेरल एक्सप्रेसवे पर ट्रैक्टर परेड का रिहर्सल भी किया था.
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