मोदी सरकार से वार्ता के बाद बोले किसान नेता, हमारी बस एक ही माँग है- रिपील, रिपील, रिपील...

किसानों नेताओं और सरकार के बीच सातवें दौर की बातचीत बेनतीज़ा खत्म हो गई है. किसान नेता और केंद्र सरकार के बीच अब अगली वार्ता आठ तारीख़ यानी शुक्रवार को होगी.

बातचीत ख़त्म होने के बाद कुलहिंद किसान सभा के नेता बलदेव सिंह निहालगढ़ ने विज्ञान भवन के बाहर मौजूद बीबीसी संवाददाता ख़ुशहाल लाली को एक लाइव प्रोग्राम में बताया, "आज की बातचीत जब शुरू हुई तो सबसे पहले शहीद हुए किसानों को श्रद्धांजलि दी गई. उसके बाद मंत्री जी ने कहा कि आप अपनी बात बताइए. हमने कहा कि हमें कुछ नहीं बताना है. आप बताइए कि इन तीन कृषि क़ानूनों को आप रद्द कर रहे हैं या नहीं? इसके बारे में आप क्या विचार कर रहे हैं. उन्होंने कहा कि आप बताएं कि हम ये कैसे करें. हमने कहा कि हम आख़िरी बार बता चुके हैं कि रिपील, रिपील, रिपील.... हम इसके अलावा कुछ नहीं चाहते हैं. लंच के बाद उन्होंने हमसे पूछा कि आप इससे कम पर नहीं मानेंगे? हमने कहा कि हम इस पर कोई समझौता नहीं करेंगे."

एक तरफ़ जहां किसान क़ानून रद्द करने की माँग को लेकर अड़े हुए हैं, वैसे में ये सवाल उठना लाज़िम है कि आख़िर किसानों के साथ वार्ता में सरकार किस मुद्दे पर बातचीत करना चाहती है?

बलदेव सिंह निहालगढ़ ने इस पर बताया कि "आज की वार्ता में ये स्पष्ट हो गया है कि आठ तारीख़ को होने वाली बातचीत इसी मुद्दे पर होगी कि इन क़ानूनों को रद्द करना है. हमने कहा था कि आप ये स्पष्ट करें कि हम अन्य विकल्पों पर बात नहीं करेंगे. मंत्री जी ने ये बात साफ़ की है कि अगली वार्ता केवल क़ानून रद्द करने पर ही होगी और किसी अन्य मुद्दे पर कोई बात नहीं होगी."

बैठक के बाद कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ने कहा कि किसानों के क़ानून को वापस लेने की ज़िद पर अड़े रहने के कारण कोई नतीजा नहीं निकल सका. तोमर का कहना था, "हमलोग चाहते थे कि किसान नेता तीनों कृषि क़ानूनों के एक-एक क्लॉज़ पर बात करें. हमलोग किसी नतीजे पर नहीं पहुँच सके क्योंकि किसान नेता क़ानून को वापस लिए जाने की अपनी माँग पर अड़े हुए थे."

अगली बातचीत का एजेंडा

न्यूनतम समर्थन मूल्य को लेकर सरकार का क्या रुख़ रहा?

इस पर बलदेव सिंह निहालगढ़ ने कहा, "एमएसपी पर बात होगी लेकिन हमारी माँग थी कि पहले कृषि क़ानूनों को रद्द किए जाने पर ही बात करो. एमएसपी सेकेंडरी है. हम इसको भी क़ानूनी जामा पहनाए जाने पर बात करेंगे. पंजाब-हरियाणा के बाहर एमएसपी नहीं मिल पाती है, इसलिए हम चाहते हैं कि पूरे देश को एमएसपी पर फ़सलों की ख़रीद की गारंटी मिले. और ये गारंटी भी स्वामिनाथन कमेटी के सुझाए फॉर्मूले के आधार पर हो."

बलदेव सिंह निहालगढ़ ने ये साफ़ किया कि वे कृषि क़ानूनों को रद्द किए जाने से कम पर मानने के लिए तैयार नहीं हैं. किसान अपनी माँगों को लेकर अड़े हुए हैं.

सोमवार की बैठक का नतीजा सिर्फ़ यही दिख रहा है कि सरकार इस बात के लिए तैयार हुई है कि हम अगली बातचीत क़ानून रद्द करने को लेकर करेंगे.

एक किसान नेता ने सरकार से बातचीत के बाद बताया, "इस मीटिंग में कुछ नहीं हुआ. हम लोगों ने पहले की तरह अपना स्टैंड क्लीयर कर दिया कि सरकार क़ानून वापस ले, हम इस माँग से पीछे नहीं हटेंगे. हमें ख़रीद की गारंटी का क़ानून भी चाहिए. हमने सरकार को दोनों ही बातें बता दी हैं. सरकार ने कहा है कि अब वे आठ तारीख़ को इस बारे में बताएंगे. लेकिन किसानों ने अपना रुख़ साफ़ कर दिया कि हम जब से दिल्ली आए हैं, पहले दिन से हमारा यही जवाब है और आज भी हमारा यही जवाब है कि क़ानून वापस लिए जाएं. जब तक बिल वापस नहीं लिए जाएंगे, हम यहीं रहेंगे. चाहे छह महीने लग जाएं."

गतिरोध की स्थिति

इन कृषि क़ानूनों के मुद्दे पर पिछले एक महीने से केंद्र सरकार और प्रदर्शनकारी किसानों के बीच गतिरोध की स्थिति बनी हुई है.

सरकार की तरफ़ से सोमवार को भी केंद्रीय कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर, रेलवे, वाणिज्य और खाद्य मंत्री पीयूष गोयल और वाणिज्य राज्य मंत्री सोम प्रकाश ने दिल्ली के विज्ञान भवन में 40 किसान संगठनों के प्रतिनिधियों से बातचीत की. सोम प्रकाश पंजाब राज्य से ही सांसद भी हैं.

वहां मौजूद बीबीसी पंजाबी संवाददाता ख़ुशहाल लाली के अनुसार बातचीत के दौरान किसान नेता बलबीर सिंह रजेवाल और मंत्रियों के बीच ख़ूब बहस हुई. मंत्री बिल के हर क्लॉज़ पर बातचीत करना चाहते थे लेकिन किसानों का कहना था कि सरकार को पूरा बिल ही रद्द करना होगा.

सोमवार की बैठक आंदोलन के दौरान जान गंवाने वाले किसानों को श्रद्धांजलि देने के साथ शुरू हुई.

इससे पहले 30 दिसंबर को किसान नेताओं और केंद्र सरकार के बीच छठे दौर की वार्ता हुई थी जिसमें कुछ साझा मुद्दों पर सहमति बनती दिखी थी. इसमें बिजली सब्सिडी को जारी रखने और पराली जलाने को आपराधिक गतिविधि न माने जाने पर सहमति बनी थी.

तीन कृषि क़ानूनों के ख़िलाफ़ प्रदर्शन

सातवें दौर की इस बातचीत से एक दिन पहले कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर और रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह की रविवार शाम को मुलाक़ात हुई थी. माना जा रहा है कि दोनों नेताओं की इस मुलाक़ात के दौरान मौजूदा जारी संकट को सुलझाने की सरकारी रणनीति पर चर्चा हुई ताकि कोई बीच का रास्ता निकाला जा सके लेकिन सोमवार को भी कोई बात नहीं बनी.

पंजाब, हरियाणा और पश्चिमी उत्तर प्रदेश के हज़ारो किसान दिल्ली बॉर्डर पर पिछले 40 दिनों से इन तीन कृषि क़ानूनों के ख़िलाफ़ प्रदर्शन कर रहे हैं. भारी बारिश, जलजमाव और भीषण सर्दी के बावजूद ये किसान दिल्ली के बॉर्डर पर डटे हुए हैं.

सितंबर, 2020 से लागू किए गए इन क़ानूनों को केंद्र सरकार प्रमुख कृषि सुधार और किसानों की आमदनी बढ़ाने की दिशा में उठाया गया क़दम बता रही है. लेकिन इन क़ानूनों का विरोध कर रहे किसानों का कहना है कि इसे न्यूनतम समर्थन मूल्य और मंडी की व्यवस्था कमज़ोर होगी और उन्हें बड़े कारोबारी प्रतिष्ठानों की दया पर छोड़ दिया जाएगा.

हालांकि सरकार का ये कहना है कि किसानों की ये आशंकाएं ग़लतफ़हमी की वजह से हैं और ये क़ानून वापस नहीं लिए जाएंगे.

(बीबीसी हिन्दी के एंड्रॉएड ऐप के लिए आप यहां क्लिक कर सकते हैं. आप हमें फ़ेसबुक, ट्विटर, इंस्टाग्राम और यूट्यूब पर फ़ॉलो भी कर सकते हैं.)