अयोध्या में मंदिर शिलान्यास: पीएम मोदी के लाइव प्रसारण का विरोध क्यों?

- Author, सरोज सिंह
- पदनाम, बीबीसी संवाददाता
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी 5 अगस्त को अयोध्या जा रहे हैं. वो राम जन्मभूमि मंदिर का शिलान्यास करेंगे.
इस बात की पुष्टि श्रीराम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र ने 25 जुलाई को आधिकारिक ट्वीटर हैंडल से ट्वीट कर की है. हालाँकि न तो प्रधानमंत्री की तरफ़ से, न ही उनके कार्यालय की तरफ से इस बारे में कोई आधिकारिक सूचना जारी की गई है.
श्रीराम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र की तरफ़ से ये भी बताया गया है कि प्रधानमंत्री के इस कार्यक्रम का सीधा प्रसारण दूरदर्शन पर किया जाएगा. ट्वीट में उन्होंने लिखा है, "उस दिन जब प्रधानमंत्री अयोध्या में होंगे और राम जन्मभूमि मंदिर का शिलान्यास करेंगे, वो आज़ाद भारत के लिए एक ऐतिहासिक दिन होगा. इस पूरे कार्यक्रम को दूरदर्शन पर लाइव प्रसारित किया जाएगा. बाकी चैनल भी इसका सीधा प्रसारण करेंगे. यह ट्वीट 25 जुलाई को किया गया है, जिसमें प्रधानमंत्री मोदी को टैग भी किया गया है.
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सीधे प्रसारण पर विवाद
सीपीआई के राज्यसभा सांसद विनॉय विश्वम ने सूचना-प्रसारण मंत्री प्रकाश जावड़ेकर को चिट्ठी लिखी है. उस पत्र में उन्होंने लिखा है कि एक ऐसा चैनल जिसका नियंत्रण सरकार के पास है, दूरदर्शन का इस्तेमाल अयोध्या के धार्मिक समारोह का सीधा प्रसारण करने के लिए नहीं होना चाहिए. सूचना-प्रसारण मंत्री के नाते आपको ये सुनिश्चित करना चाहिए कि हमारी ऐसी संस्थाएँ आपकी देखरेख में उन संवैधानिक मूल्यों का पालन करें जिनसे देश चलता है.
राज्यसभा सांसद विनॉय विश्वम ने ये चिट्ठी 27 जुलाई को लिखी है, जिसका जवाब उन्हें अभी तक नहीं मिला है.

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इस चिट्ठी में उन्होंने प्रसार भारती एक्ट का हवाला दिया है. प्रसार भारती एक्ट 1990 में बनाया गया है, जिसके तहत आकाशवाणी और दूरदर्शन दोनों आते हैं. प्रसार भारती एक्ट की धारा 12 2(a) में साफ़ लिखा है कि देश की एकता और अखंडता और संविधान में निहित मूल्यों को बनाए रखने की ज़िम्मेदारी इन दोनों ब्रॉडकास्टर की होगी.

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बीबीसी से बातचीत में विनॉय विश्वम ने कहा है कि चूँकि ये ढाँचा विवादों में रहा है इसलिए दूरदर्शन अगर इसकी रिपोर्ट दिखाए तो कोई दिक्कत नहीं, "लेकिन सीधा प्रसारण नहीं होना चाहिए."
केंद्रीय गृह राज्य मंत्री जी. किशन रेड्डी ने इस मुद्दे पर इंडियन एक्सप्रेस में एक लेख लिखा है. वे लिखते हैं, "भारत में लंबे समय से धर्मनिरपेक्षता के नाम पर हिंदू विरोध की नेहरूवादी राजनीति चलती रही है. लालकृष्ण आडवाणी की रथयात्रा इस ज़हरीली धर्मनिरपेक्षता के अंत की शुरूआत थी. पाँच अगस्त के कार्यक्रम का यही महत्व है कि वह छद्म धर्मनिरेपक्षता की नीति के अंत का प्रतीक है."
बीबीसी ने इस बारे में दूरदर्शन के महानिदेशक मयंक अग्रवाल से संपर्क किया. उन्होंने इस पर टिप्पणी करने से यह कहते हुए इनकार कर दिया कि वो मीडिया से बात करने के लिए अधिकृत नहीं है. उन्होंने प्रसार भारती के सीईओ से सम्पर्क करने का आग्रह किया.
बीबीसी ने इस बारे में प्रसार भारती के सीईओ से सम्पर्क करने की कोशिश की. प्रसार भारती के सीईओ शशि शेखर को किए फोन कॉल और मैसेज का जवाब नहीं मिला है.
दूरदर्शन स्वायत्त पब्लिक सर्विस ब्राडकास्टर है. भारत सरकार के सूचना-प्रसारण मंत्रालय के अंतर्गत आता है और प्रसार भारती के दो डिविजन में से एक है.
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ओवैसी का विरोध
इससे पहले एआईएमआईएम सांसद असदुद्दीन ओवैसी और एनसीपी नेता शरद पवार ने प्रधानमंत्री के अयोध्या जाने को लेकर सवाल भी उठाए हैं. लेकिन दूरदर्शन पर लाइव कवरेज पर सवाल फिलहाल सीपीआई सांसद ने ही उठाया है.
इस बार के लाइव कवरेज पर विवाद क्यों हो रहा है? यही समझने के लिए हमने बात की सेवंती नैनेन से. सेवंती नैनेन मीडिया पर लिखती रही हैं.
सेवंती का भी मानना है कि दूरदर्शन का ऐसे समारोह का सीधा प्रसारण ग़लत है. इसके पीछे वो अपने तर्क भी देती हैं. उनका मानना है कि दूरदर्शन सरकार के अधीन आने वाला एक पब्लिक ब्राडकास्टर है. धर्मनिरपेक्षता और तमाम धर्मों में सदभावना बनाए रखना उसके उद्देश्य हैं, जैसे सांसद महोदय ने अपने पत्र में भी लिखा है. किसी त्यौहार की रिपोर्टिंग करना अलग बात है. लेकिन अयोध्या में होने वाले 5 अगस्त के समारोह का सीधा प्रसारण अलग बात है.
वो ये भी जोड़ती हैं कि इस बात से फ़र्क नहीं पड़ता कि देश के अधिकांश लोग उस धर्म को मानने वाले हैं या फिर कम लोग उस धर्म को मानने वाले हैं.
इससे पहले प्रधानमंत्री मोदी कई बार देश और दुनिया के मंदिरों मस्जिदों का दौरा कर चुके हैं और धार्मिक जगहों पर उनके जाने का सीधा प्रसारण दूरदर्शन ने पहले भी किया है.

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2015 में प्रधानमंत्री मोदी प्रधानमंत्री रहते हुए अबूधाबी के शेख जायद मस्जिद में गए थे. वहाँ का भी सीधा प्रसारण दूरदर्शन पर किया गया था.
सेवंती इस पर कहती हैं, "दूसरे देश में प्रधानमंत्री के दौरे का सीधा प्रसारण एक डिप्लोमेटिक इवेंट होता है. भारत में अयोध्या में जो हो रहा है वो एक राजनैतिक और धार्मिक समारोह है. ना तो ये कोई राष्ट्रीय धार्मिक समारोह ही है. इसलिए दोनों में फ़र्क है."
वो आगे कहती हैं कि इसी सरकार के आने के बाद ही सरसंघचालक के दशहरा समारोह का लाइव टेलिकास्ट शुरू हुआ है. और पहले भी ऐसे प्रसारणों पर सवाल उठे हैं.
2014 में जब मोहन भागवत के दशहरा भाषण का सीधा प्रसारण दूरदर्शन पर हुआ था, तब प्रसिद्ध इतिहासकार रामचंद्र गुहा समेत कांग्रेस पार्टी के कई नेताओं ने इसकी आलोचना की थी, जिसके बाद दूरदर्शन के डीजी को इस पर सफाई देनी पड़ी थी.
ये सवाल पूछे जाने पर कि अगर मस्जिद बनने पर प्रधानमंत्री वहाँ भी जाएंगे तो क्या ये विवाद तब भी होगा?

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इस पर सेवंती कहती हैं, "भारत में सेकुलरिज्म की परिभाषा है- सभी धर्मों को एक समान मानना जबकि बाहर के देशों में सेकुलरिज्म की परिभाषा होती है धर्म और सरकार को अलग रखना. भारत के सेकुलरिज्म की परिभाषा में भी कोई दिक्कत नहीं है क्योंकि भारत में बहुत से अलग-अलग धर्म मानने वाले लोग हैं. लेकिन बैलेंस करने के लिए आप बाद में मस्जिद भी जाओ ये सही नहीं है. वैसे भी सभी धर्मों के लिए प्रधानमंत्री ऐसा कर नहीं पाएंगे और उनकी मंशा भी ऐसी नहीं दिखती इसलिए बेहतर होगा कि किसी भी धार्मिक समारोह का सीधा प्रसारण न हो."
वो आगे जोड़ती हैं कि सीपीआई के अलावा किसी और राजनीतिक दल की तरफ से सीधा प्रसारण पर सवाल नहीं उठाए गए हैं. इसका मतलब ये है कि दूसरी पार्टियों को ये गलत नहीं लगता है या फिर उस ख़ास वर्ग से पार्टी ख़ुद को अलग नहीं करना चाहती है. ये भी हो सकता है कि अब देशवासियों और पार्टियों को इसकी आदत सी हो गई है.
राजनीतिक पार्टियों का रुख
सेवंती की इस बात में थोड़ा दम भी दिखता है. केवल एआईएमआईएम सांसद असदुद्दीन ओवैसी और एनसीपी नेता शरद पवार ने ही अयोध्या में प्रधानमंत्री के जाने को लेकर सवाल उठाए हैं. दूसरे राजनैतिक दल की तरफ से प्रधानमंत्री के दौरे पर कोई विरोध के सुर नहीं उठे हैं.
एनसीपी नेता शरद पवार ने राम मंदिर, कोरोना संक्रमण और अर्थव्यवस्था के मुद्दों को लेकर इशारों ही इशारों में सरकार पर निशाना साधा था. 19 जुलाई को सोलापुर में पत्रकारों से बातचीत में उन्होंने कहा, "कुछ लोगों को लगता है कि राम मंदिर बनने से कोरोना ख़त्म हो जाएगा. हमें अपनी प्राथमिकता तय करनी होगी. यह तय करना होगा कि महत्वपूर्ण क्या है." उन्होंने कहा कि सरकार को देश की आर्थिक हालत पर ध्यान देना चाहिए.

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एआईएमआईएम सांसद असदुद्दीन ओवैसी ने कहा है कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी उस समारोह में शिरकत ना करें. अगर बतौर प्रधानमंत्री वो उस समारोह में हिस्सा लेते हैं तो एक संदेश जाएगा कि प्रधानमंत्री एक धर्म के मानने वालों को सपोर्ट करते हैं. अगर वो कह दें कि वो अपनी निजी हैसियत से जा रहे हैं तो उन पर कोई सवाल नहीं उठाएगा. प्रधानमंत्री को किसी भी मज़हब को मानने का पूरा हक़ है, लेकिन वो एक संवैधानिक पद पर होते हैं. प्रधानमंत्री संविधान से जुड़े हैं. हमारे संविधान में धर्मनिरपेक्षता की भी बात कही गई है".
भारत की मुख्य विपक्षी पार्टी कांग्रेस ने इस मुद्दे पर अभी तक खुलकर कोई प्रतिक्रिया नहीं रखी है. एक प्रेस कॉन्फ्रेंस के दौरन जब उनसे इस बारे में सवाल पूछा गया तो कांग्रेस के प्रवक्ता जयवीर शेरगिल ने कहा, "कांग्रेस पार्टी अयोध्या में राम मंदिर बनने के सुप्रीम कोर्ट के फैसले का स्वागत करती है. इस समय जो भूमि पूजन के समारोह की जो तैयारी चल रही है उसमें कौन हिस्सा लेगा कौन नहीं लेगा, ये निर्णय सिर्फ़ और सिर्फ़ ट्रस्ट का है. जो भी वो निर्णय लेंगे हम उसका समर्थन करते हैं."
हालाँकि कांग्रेस के हुसैन दलवई ने भी हाल ही में एक बयान दिया था जिसके बाद थोड़ा विवाद को हवा मिली. उन्होंने कहा था कि जिसको जाना है जाए, लेकिन नेहरू ने राजेन्द्र प्रसाद को सोमनाथ मंदिर जाने से रोका था. बीबीसी से बातचीत में उन्होंने इस बात को स्वीकार भी किया.
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