अयोध्या में राम मंदिर निर्माण न्यास पर किसका कितना विश्वास?

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- Author, फ़ैसल मोहम्मद अली
- पदनाम, बीबीसी संवाददाता
सोमवार दोपहर बाद श्रीराम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र के महामंत्री चंपत राय ने ऐलान किया कि वो कार्यक्रम को और भव्य बनाना चाहते थे. लेकिन कोरोना महामारी के कारण 5 अगस्त के शिलान्यास कार्यक्रम में 'भारत की मिट्टी में जन्मी 36 प्रमुख परंपराओं के 135 पूज्य संत-महात्माओं एवं अन्य विशिष्ट व्यक्तियों'समेत क़रीब पौने दो सौ लोगों को ही आमंत्रण भेजा गया है.
चंपत राय ने शिलान्यास कार्यक्रम में बाबरी मस्जिद मामले के एक पैरोकार इक़बाल अंसारी और अयोध्यावासी पद्मश्री मोहम्मद शरीफ़ को भी निमंत्रण भेजे जाने की बात कही और कहा कि नेपाल के जानकी मंदिर से भी लोग कार्यक्रम में शामिल होने आ रहे हैं क्योंकि सीता के जनकपुर से अयोध्या का पुराना नाता है.
दूसरी ओर, राम मंदिर आंदोलन से लंबे समय से जुड़े रहे ऐसे कई लोग हैं जिन्हें शिलान्यास कार्यक्रम का न्यौता नहीं मिला है, ज़ाहिर है, कोरोना की वजह से सीमित संख्या में लोगों को आमंत्रित किया गया है लेकिन अतिथि सूची को लेकर तरह-तरह की चर्चाएँ हो रही हैं.
शिलान्यास प्रधानमंत्री मोदी करेंगे जबकि मुख्य अतिथि राष्ट्रीय स्वयंसेवक के सरसंघचालक मोहन भागवत होंगे.
बुधवार के कार्यक्रमों की घोषणा के समय चंपत राय के अलावा कई और लोग मंच पर दिखे लेकिन नहीं नज़र आए तो तीर्थ क्षेत्र के अध्यक्ष महंत नृत्यगोपाल दास.
अयोध्या के सबसे बड़े अखाड़ों में से एक, मनी रामदास जी छावनी के पीठाधीश्वर, महंत नृत्यगोपाल दास दशकों से राम जन्मभूमि आंदोलन से जुड़े रहने के अलावा सालों राम जन्मभूमि न्यास के प्रमुख रहे हैं लेकिन हाल के दिनों में ट्रस्ट के कामों को लेकर उनका बयान कम ही सुनने को मिला है.
नृत्यगोपाल दास वीएचपी से जुड़े रहे हैं लेकिन वो आरएसएस या वीएचपी के कार्यकर्ता या नेता नहीं रहे हैं.

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सरकार ने राममंदिर के निर्माण के लिए जिस ट्रस्ट का गठन किया है उसका नाम है श्रीराम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट, इसके एक सदस्य डॉक्टर अनिल मिश्र ने बीबीसी से बातचीत में महंत नृत्यगोपाल दास की ग़ैर-मौजूदगी के बारे में चल रही चर्चाओं पर यही कहा कि मीडिया वाले तरह-तरह की बातें बनाते रहते हैं. उनका कहना था, "नृत्यगोपाल दास जी अपने आश्रम में थे क्योंकि उन्हें चलने-फिरने में दिक्क़त होती है".
अयोध्या और हिंदुत्व पर कई किताबें लिख चुके धीरेंद्र झा कहते हैं, "राम मंदिर आंदोलन के समय के डर्टी जॉब अब ख़त्म हो गया है, अब चीज़ें क़ानूनी तौर पर हो रही हैं, सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर, तो राष्ट्रीय स्वंयसेवक संघ (आरएसएस) चीज़ों को अपने कंट्रोल में ले रहा है. चंपत राय उसी का चेहरा हैं".
विश्व हिंदू परिषद राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का एक अंग है जिसे संघ की शब्दावली में अनुषांगिक संगठन कहते हैं. विश्व हिंदू परिषद के उपाध्यक्ष चंपत राय मंदिर निर्माण के लिए बने ट्रस्ट के महामंत्री भी हैं.
नौ नवंबर, 2019 को पांच जजों की एक खंडपीठ ने अपने फ़ैसले में बाबरी मस्जिद की विवादित 2.77 एकड़ ज़मीन श्रीराम जन्मभूमि को देने का फ़ैसला सुनाते हुए, मुसलमानों को राम जन्मभूमि परिसर से अलग मस्जिद के लिए पांच एकड़ ज़मीन देने, और राम मंदिर निर्माण के लिए तीन माह में ट्रस्ट बनाने का आदेश दिया था.
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पांच फ़रवरी, 2020 को 'देश के लिए बहुत ही महत्वपुर्ण' राम मंदिर के निर्माण के लिए एक स्वायत्त ट्रस्ट श्रीराम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र न्यास की घोषणा लोकसभा में की थी.
तीन दावेदार

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प्रधानमंत्री मोदी का कहना था कि ये फ़ैसला मंत्रिमंडल की एक बैठक में लिया गया है. श्री राम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र न्यास में सरकार के प्रतिनिधियों को मिलाकर 15 सदस्य हैं.
मंदिर के निर्माण और देख-रेख पर किसका नियंत्रण रहेगा इसको लेकर सुप्रीम कोर्ट के फ़ैसले के चंद दिनों बाद से ही राम जन्मभूमि न्यास, रामाल्या ट्रस्ट और मंदिर निर्माण न्यास की तरफ़ से अपने-अपने दावों को लेकर ख़बरें आईं थीं.
राम जन्मभूमि न्यास विश्व हिंदू परिषद (आरएसएस) से जुड़ा है और मंदिर निर्माण को लेकर जो कार्यशाला कारसेवकपुरम् में 1990 के दशक से काम करता रहा है वो इसी की देख-रेख में होता रहा है.
वहीं रामाल्या ट्रस्ट का गठन पूर्व प्रधानमंत्री नरसिम्हा राव की पहल पर हुआ था और इसमें द्वारकापीठ के शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद के अलावा और कई संत शामिल थे.
तीसरे संगठन 'मंदिर निर्माण न्यास' के किसी व्यक्ति को सरकार की ओर से गठित न्यास--श्रीराम जन्मभूमि तीर्थक्षेत्र--में कोई प्रतिनिधित्व नहीं मिला है, इस संगठन की माँग रही है कि मंदिर निर्माण से जुड़े सभी संगठनों को प्रतिनिधित्व दिया जाए, न कि सिर्फ़ राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से जुड़े लोगों को.
राम जन्मभूमि के लिए दशकों से आंदोलन कर रहे निर्मोही अखाड़ा और हिंदू महासभा का तो निर्माण और नियंत्रण का हक़ दिए जाने के अपने तर्क रहे हैं.
निर्मोही अखाड़ा के दीनेंद्र दास को श्रीराम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र न्यास में रखा गया है लेकिन निर्मोही अखाड़े के प्रवक्ता कार्तिक चोपड़ा ने बीबीसी संवाददाता सलमान रावी से एक बातचीत में कहा कि अखाड़े की तरफ़ से जिन्हें शामिल किया गया है वो उससे बिना किसी तरह की चर्चा के हुआ है और वो संगठन के प्रतिनिधि नहीं हैं.
कार्तिक चोपड़ा ने आरोप लगाया कि इस आयोजन को "केंद्र और राज्य सरकार ने आरएसएस, वीएचपी, भारतीय जनता पार्टी और उद्योगपतियों तक सीमित कर दिया है".
शिव सेना का रुख़

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समाचार एजेंसी पीटीआई ने ख़बर दी है कि शिव सेना प्रमुख और महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे मंदिर की नींव रखे जाने के कार्यक्रम में शामिल नहीं होंगे. उद्धव ठाकरे पिछले कुछ सालों में कई बार अयोध्या का दौरा कर चुके हैं और उनकी पार्टी आवाज़ उठा चुकी है कि राम मंदिर आंदोलन किसी एक राजनीतिक दल तक सीमित नहीं था और उनके नेता को अयोध्या के कार्यक्रम में बुलाया जाना चाहिए था.
शिव सेना के नेता प्रताप सरनाईक ने तो प्रधानमंत्री मोदी को चिट्ठी लिखकर इस बात की मांग की थी कि राम जन्मभूमि ट्रस्ट में शिव सेना का प्रतिनिधि शामिल होना चाहिए.
प्रताप सरनाईक ने याद दिलाया था कि शिव सेना के संस्थापक बाल ठाकरे ने मंदिर को ढहाने की ज़िम्मेदारी खुलेआम क़बूल की थी, जबकि छह दिसंबर, 1992 को मंदिर के ढहाये जाने के बाद राम मंदिर आंदोलन के हीरो कहे जाने वाले लाल कृष्ण आडवाणी ने इसे "अपने जीवन का सबसे दुखद क्षण" बताया था.
शिव सेना के मुखपत्र 'सामना'ने लिखा है कि उसके लोगों ने "बाबरी मस्जिद के ढहाने में बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया और अपना ख़ून भी बहाया लेकिन कभी इस पर राजनीतिक रोटी सेंकने का काम नहीं किया".
लेख में आरोप लगाया गया था कि ट्रस्ट के अधिकतर चयनित सदस्य या तो प्रधानमंत्री मोदी के क़रीबी हैं या उनका संबंध आरएसएस से जुड़े संगठनों से है और इसका फ़ायदा बीजेपी 2024 के लोकसभा चुनावों में उठाएगी.
आडवाणी और छह दिसंबर को उनके साथ अयोध्या में मौजूद बीजेपी के पूर्व अध्यक्ष मुरली मनोहर जोशी भी शिलान्यास कार्यक्रम में नहीं जा रहे हैं. वहीं आंदोलन की प्रमुख नेताओं ने से एक, उमा भारती को श्रीराम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र ने आमंत्रित किया है.
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लेकिन उमा भारती ने भी ट्विट करके कहा है कि वे शिलान्यास कार्यक्रम में शामिल नहीं होंगी, उन्होंने कहा है कि वे 'प्रधानमंत्री के स्वास्थ्य की चिंता करते हुए' ऐसा कर रही हैं, उन्होंने अपने ट्विट में कहा कि वे सरयू के किनारे मौजूद रहेंगी और "प्रधानमंत्री के चले जाने के बाद रामलला के दर्शन" करेंगी. कार्यक्रम में शामिल न होने की उनकी घोषणा में कई निहितार्थ पढ़े जा रहे हैं और उन्हें नाराज़ बताया जा रहा है.
किसी दलित से शिलान्यास की बात

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कुछ दिनों पहले ट्विटर पर ये चर्चा तेज़ हुई थी कि मंदिर की नींव का पत्थर किसी दलित से रखवाया जाना चाहिए, इसकी वजह ये थी कि 1989 में तब के प्रधानमंत्री राजीव गांधी की सरकार ने अयोध्या में बिहार के एक दलित कामेश्वर चौपाल के हाथों शिलान्यास करवाया गया था.
कामेश्वर चौपाल को इस बार भी श्रीराम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र में सदस्यता दी गई है, चौपाल फिर से ख़बरों में आ गए थे जब उनके हवाले से ख़बर आई कि मंदिर के 200 फ़ीट नीचे एक 'टाइम कैप्सूल' यानी कालपत्र गाड़ा जाएगा ताकि भविष्य में लोगों को इस पवित्र स्थान की सही जानकारी मिल सके.
लेकिन किसी तरह की देरी के बिना, ठीक दूसरे ही दिन, तीर्थक्षेत्र के महामंत्री चंपत राय ने बयान जारी कर टाइम कैप्सूल की बात को न सिर्फ़ 'ग़लत' बताया बल्कि इसे 'मनगढंत' भी क़रार दे दिया.
विश्व हिंदू परिषद के उपाध्यक्ष ने अपने बयान में लोगों से ये भी आग्रह किया कि 'जब राम जन्मभूमि ट्रस्ट की तरफ़ से कोई अधिकृत बयान आए, उसे ही आप सही मानें'.
सोमवार को चंपत राय ने दलितों का मामला उठाए जाने पर कहा भी कि "साधु बनने के बाद व्यक्ति सिर्फ़ ईश्वर का हो जाता है" और इस मामले में इस तरह की बात उठाना ठीक नहीं.
'हमसे कोई सलाह नहीं'
आयोजन के लिए ख़बरों के मुताबिक़ जो मुहूर्त निकाला गया है वो पांच अगस्त को 12 बजकर 15 मिनट और 15 सेकंड का है. मुहूर्त सिर्फ़ 32 सेकंड का है.
इस पूजा के लिए वाराणसी और कुछ दूसरी जगहों से पंडित अयोध्या आ रहे हैं और उन्होंने ही किन-किन देवताओं की पूजा होगी और किन-किन पद्धितियों से होगी ये तय किया है.
रामलला विराजमान और उसके बाद बने अस्थायी मंदिर के तकरीबन 30 सालों तक पुजारी रह चुके सत्येंद्र दास कहते हैं कि बुधवार को जो पूजा-अर्चना हो रही है उसमें उनसे कोई 'सलाह-मशविरा नहीं किया गया' है और भव्य मंदिर बनने के बाद वो राम जन्मभूमि में पुजारी होंगे या नहीं यह तो राम ही जानें.
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