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पश्चिम बंगाल: रथयात्रा के भविष्य के साथ धुंधलाते बीजेपी के सपने
- Author, प्रभाकर एम.
- पदनाम, कोलकाता से बीबीसी हिंदी के लिए
पश्चिम बंगाल में बीजेपी की महत्वाकांक्षी रथयात्रा के पहिए क़ानूनी दाव-पेंच में फंस गए हैं. ब्लूप्रिंट बनने के समय से ही विवादों में रही यह यात्रा शुरू से ही प्रशासनिक और क़ानूनी उलझनों से घिरी हुई है.
बीजेपी ने इस रथयात्रा के ज़रिये अगले साल होने वाले आम चुनावों में बंगाल की 42 में से आधी सीटें जीतने के लक्ष्य तक पहुंचने का सपना देखा था. लेकिन, 'लोकतंत्र बचाओ रैली' के नाम से राज्य के तीन अलग-अलग हिस्सों से निकलने वाली रथयात्राओं का भविष्य फिलहाल अधर में लटक गया है.
कलकत्ता हाईकोर्ट की एकल पीठ ने अभी गुरुवार को ही कुछ शर्तों के साथ इन रथ यात्राओं की अनुमति दी थी. तब पार्टी के नेताओं और समर्थकों ने मिठाइयां बांटकर अपनी ख़ुशी का इज़हार किया था. लेकिन, उनकी यह ख़ुशी चौबीस घंटे भी नहीं टिकी.
ममता बनर्जी सरकार की अपील पर शुक्रवार को उसी अदालत की एक खंडपीठ ने रथयात्रा निकालने पर रोक लगाते हुए इस मामले को दोबारा एकल पीठ के पास भेज दिया.
बीजेपी ने अपना कार्यक्रम बदलते हुए 22 दिसंबर को कूच बिहार के बजाय बीरभूम जिले में तारापीठ मंदिर से पहली रथयात्रा निकालने की तैयारियां कर ली थीं. इस मौके पर पार्टी अध्यक्ष अमित शाह को भी मौजूद रहना था.
अब इस पर रोक लगते ही कम से कम जनवरी के लिए तो यह यात्रा टल ही गई है. इसकी वजह यह है कि शनिवार से हाईकोर्ट क्रिसमस और नए साल के लिए बंद हो जाएगा.
बीजेपी के लिए अहमियत
आम चुनाव के लिए वोटरों की नब्ज़ पकड़ने के मकसद से पार्टी ने राज्य के तमाम 42 लोकसभा क्षेत्रों में रथयात्रा निकालने की महत्वाकांक्षी योजना बनाई थी. तीन अलग-अलग इलाक़ों से निकलने वाली इन रथयात्राओं के दौरान बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह को मौजूद रहना था.
यही नहीं, सात दिसंबर को कूचबिहार से शुरू होने वाली पहली रथयात्रा के दौरान ही 16 दिसंबर को सिलीगुड़ी में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की रैली भी होनी थी. लेकिन, अदालती गतिरोध में रथ के पहिए फंसने की वजह से यात्रा तो अधर में लटकी ही, मोदी का दौरा भी रद्द हो गया.
इस रथयात्रा के दौरान होने वाली रैलियों के लिए पार्टी ने राजनाथ सिंह, योगी आदित्यनाथ, बिप्लब कुमार देब समेत कई शीर्ष नेताओं के बंगाल दौरे की योजना बनाई थी. इसी से समझा जा सकता है कि पार्टी के लिए इस कार्यक्रम की कितनी अहमियत थी.
सात दिसंबर के बाद पार्टी की दूसरी व तीसरी रथयात्रा क्रमशः काकद्वीप व बीरभूम से 9 और 14 दिसंबर को होनी थी. लेकिन, कूचबिहार के पुलिस अधीक्षक ने सांप्रदायिक सद्भाव बिगड़ने का अंदेशा जताते हुए इसकी अनुमति देने से इंकार कर दिया था.
इसके बाद बीजेपी ने अदालत की शरण ली थी. लेकिन, कलकत्ता हाईकोर्ट की एकल पीठ ने भी बीजेपी को पश्चिम बंगाल में रथयात्रा की अनुमति नहीं दी और इस पर 9 जनवरी तक रोक लगा दी थी.
बाद में इस फैसले के ख़िलाफ़ पार्टी ने खंडपीठ का दरवाज़ा खटखटाया था. खंडपीठ ने राज्य सरकार को 12 दिसंबर तक बीजेपी नेताओं के साथ बैठक कर गतिरोध दूर करने की सलाह दी थी. खंडपीठ ने एकल पीठ की ओर से रथयात्रा पर नौ जनवरी तक लगी रोक को भी ख़ारिज़ कर दिया था.
खंडपीठ ने कहा था कि 12 दिसंबर तक राज्य के मुख्य सचिव, गृह सचिव और पुलिस महानिदेशक बीजेपी के तीन-सदस्यीय प्रतिनिधिमंडल के साथ बैठक कर इस मुद्दे पर सहमति बनाने का प्रयास करें. लेकिन, उस बैठक के बावजूद सरकार ने अनुमति देने से इनकार कर दिया था.
उसके बाद पार्टी एक बार फिर अदालत की शरण में गई. उसकी याचिका के आधार पर हाईकोर्ट की एकल पीठ ने उसे कुछ शर्तों के साथ रथयात्रा की अनुमति दे दी थी.
अमित शाह ने बंगाल में पार्टी नेतृत्व को कम से कम 22 सीटें जीतने का लक्ष्य दिया है. वैसे, प्रदेश नेताओं ने अति उत्साह में यह लक्ष्य बढ़ाकर 25-26 कर दिया था. लेकिन, अब सबकुछ खटाई में पड़ता नजर आ रहा है.
पार्टी के एक नेता निजी बातचीत में मानते हैं कि पहले रथयात्रा रद्द होने और उसके बाद हाल के विधानसभा चुनावों के नतीजों ने पूरी रणनीति पर दोबारा विचार करने पर मजबूर कर दिया है.
उत्तर बंगाल के एक कॉलेज में राजनीति विज्ञान पढ़ाने वाले सोमेश्वर मंडल कहते हैं, "बीजेपी के लिए यह रथयात्रा काफी अहम थी. पार्टी महीनों से इसकी तैयारियां कर रही थी. वह रथ पर सवार होकर बंगाल की 22 लोकसभा सीटों की अपनी मंजिल तक पहुंचना चाहती थी. लेकिन, राज्य सरकार के सख्त रवैये और अदालती फैसले ने उसके सपनों पर पानी फेर दिया है."
'क़ानून के दायरे में निकालेंगे यात्रा'
प्रदेश बीजेपी उपाध्यक्ष जयप्रकाश मजूमदार कहते हैं, "हम अदालत के निर्देश का सम्मान करेंगे. क़ानून के दायरे में रह कर ही लोकतंत्र बचाओ रैली आयोजित की जाएगी." मजूमदार का आरोप है कि सरकार शुरू से ही येन-केन-प्रकारेण इस रथयात्रा को रोकने का प्रयास कर रही थी.
पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष दिलीप घोष कहते हैं, "हमें अदालत पर पूरा भरोसा है. उसके निर्देश पर ही लोकतंत्र बचाओ रैली और रथयात्रा आयोजित की जाएगी."
मजूमदार बताते हैं, "हमने कल बीरभूम से रथयात्रा की तैयारी कर ली थी. अमित शाह को वहां आना था. लेकिन अब अदालत की रोक के बाद वह कार्यक्रम स्थगित हो गया है." वह इसे लोकतंत्र बनाम तानाशाही की लड़ाई बताते हैं.
मुख्यमंत्री ममता बनर्जी पहले ही बीजेपी की प्रस्तावित रथयात्रा के लिए उसकी खिंचाई करते हुए इसे एक राजनीतिक नौटंकी बता चुकी हैं. तृणमूल कांग्रेस प्रमुख का कहना है कि यह रथयात्रा नहीं बल्कि रावण यात्रा है और वह कोई रथ नहीं, पंचतारा होटल है.
दूसरी ओर, विश्व हिंदू परिषद ने ममता की टिप्पणी के लिए उन पर निशाना साधा है. संगठन के प्रवक्ता जिष्णु बसु कहते हैं, "ममता जैसी महिला से और क्या उम्मीद की जा सकती है? वे हिंदू भावनाओं को कुचलने पर आमादा हैं. उन्होंने अल्पसंख्यकों के साथ नमाज़ पढ़ी है और मुस्लिम त्योहारों के शांतिपूर्ण आयोजन के लिए दुर्गा पूजा पर बंदिशें लगाने का प्रयास कर चुकी हैं."
बसु कहते हैं कि ममता का दोहरा रवैया अब साफ हो चुका है और बंगाल के लोग उन्हें कड़ा सबक सिखाएंगे.
वहीं तृणमूल कांग्रेस भाजपा पर सांप्रदायिकता के आरोप दोहरा रही है. पार्टी महासचिव पार्थ चटर्जी कहते हैं, "बीजेपी को आम लोगों की कोई चिंता नहीं है. वह महज़ सांप्रदायिक भावनाओं को उकसाने का प्रयास कर रही है. उसका मकसद राज्य में सांप्रदायिक अशांति पैदा करना है."
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