You’re viewing a text-only version of this website that uses less data. View the main version of the website including all images and videos.
बीजेपी आरक्षण पर अपने बयानों से तो नहीं हारी: नज़रिया
- Author, गिरिजाशंकर
- पदनाम, राजनीतिक विश्लेषक, बीबीसी हिंदी के लिए
तीन हिंदी भाषी राज्यों राजस्थान, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में हुए विधानसभा चुनाव जीतने के साथ ही देश की राजनीति में कांग्रेस के रिवाइवल की शुरुआत हो गई है.
तीनों ही राज्यों में सत्तारूढ़ बीजेपी की पराजय हुई है लेकिन तीनों राज्यों में बीजेपी की हार के कारण एक जैसे नहीं दिखते.
कांग्रेस किसानों की कर्ज़ माफ़ी की अपनी घोषणा को जीत का कारण मान रही है लेकिन ये सही प्रतीत नहीं होता क्योंकि तीनों राज्यों में बीजेपी की हार की मात्रा भिन्न-भिन्न है.
छत्तीसगढ़ में बीजेपी का पूरी तरह सफ़ाया हो गया तो मध्य प्रदेश में वो सरकार बनाने में सिर्फ़ सात सीटों से पिछड़ गई.
वहीं राजस्थान में बीजेपी ने उम्मीद से बेहतर प्रदर्शन किया है.
मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में 15 बरस से बीजेपी की सरकारें थीं और क्रमशः 13 और 15 बरस से एक ही मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान और डॉक्टर रमन सिंह बने हुए थे.
आरक्षण और एससी-एसटी क़ानून
छत्तीसगढ़ का चुनाव परिणाम डॉक्टर रमन सिंह के नेतृत्व को नकारता हुआ दिखता है लेकिन मध्य प्रदेश में शिवराज सिंह की लोकप्रियता बनी हुई प्रतीत होती है जिसके चलते उन्हें कांग्रेस के 114 के मुक़ाबले 109 सीटें हासिल होती हैं और वोट भी कांग्रेस से कुछ अधिक मिलते हैं.
मध्य प्रदेश में दो बरस पहले सरकारी नौकरियों में प्रोमोशन में आरक्षण के सरकारी नियम को हाइकोर्ट ने अवैध करार दिया और साल 2002 से अब तक दी गई पदोन्नतियों को निरस्त करने का आदेश दिया गया.
तब राज्य सरकार न केवल इस आदेश के ख़िलाफ़ सुप्रीम कोर्ट में अपील करने गई बल्कि मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने कहा कि "कोई माई का लाल आरक्षण ख़त्म नहीं कर सकता."
इसके बाद एससी-एसटी एक्ट पर सुप्रीम कोर्ट का फ़ैसला आया तब इसके विरोध में मध्य प्रदेश के चंबल इलाके में हिंसक आंदोलन हुआ जिसमें क़रीब पांच लोगों की जानें गईं.
बाद में सुप्रीम कोर्ट के फ़ैसले को नकारने वाला संशोधन विधेयक संसद में लाया गया.
इन दोनों घटनाओं से सामान्य और आरक्षित दोनों ही वर्गों में नाराज़गी देखी गई.
आरक्षण बनी हार की वजह?
ऐसा माना गया कि आरक्षण का ये मुद्दा खासकर मुख्यमंत्री शिवराज का 'माई का लाल' वाला बयान विधानसभा चुनाव में बीजेपी की हार का कारण बना.
हालांकि ये धारणा सही प्रतीत नहीं होती.
मध्य प्रदेश के चुनाव परिणाम को देखें तो चंबल में जहां बीजेपी का सफ़ाया हो गया वहीं विंध्य में बीजेपी ने क्लीन स्वीप किया है.
आरक्षण संबंधी मुद्दे से यही दो इलाके सर्वाधिक प्रभावित थे और दोनों में परस्पर विरोधी परिणाम ये बताते हैं कि इसका कारण आरक्षण तो कम से कम नहीं ही था.
मसला आरक्षण से जुड़ा हो या किसानों की कर्ज़ माफ़ी का, कोई भी मुद्दा इन तीनों राज्यों के चुनाव परिणाम पर एक जैसा प्रभाव नहीं डाल पाया.
इसलिए तीनों राज्यों में बीजेपी की हार की मात्रा में बड़ा अंतर दिखता है.
तीनों राज्यों में बीजेपी की हार के अलग-अलग कारण रहे.
हार-जीत के कारण और वास्तविकता
अब अपनी-अपनी सुविधा के अनुसार जीतने और हारने वाले राजनीतिक दल अपनी हार-जीत के कारण गिना रहे हैं जो वास्तविकता से मेल नहीं खाते.
मध्य प्रदेश में बीजेपी ग़लत प्रत्याशी चयन और चुनावी कुप्रबंधन के बावजूद मुख्यमंत्री शिवराज सिंह की लोकप्रियता के चलते जीत के क़रीब तक पहुंचकर हार गई तो छत्तीसगढ़ में मुख्यमंत्री रमन सिंह की लोकप्रियता घटने और कार्यशैली का खामियाजा पार्टी को भुगतना पड़ा.
राजस्थान में मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे की लोकप्रियता में बहुत गिरावट के बावजूद बेहतर चुनाव प्रबंधन से पार्टी को छत्तीसगढ़ की तुलना में बेहतर सीटें मिल सकी.
देखा जाए तो तीनों राज्यों में बीजेपी के मुख्यमंत्री ही चुनाव में मुख्य मुद्दा बने हुए थे.
जहां तक प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की लोकप्रियता कम होने का सवाल है तो इसके आकलन का कोई वैज्ञानिक आधार नहीं है.
फिर भी इन तीनों राज्यों में नरेंद्र मोदी और अमित शाह की धुंआधार सभाएं और रैलियाँ भी इन राज्यों में बीजेपी को हारने से नहीं बचा पाई.
(बीबीसी हिन्दी के एंड्रॉएड ऐप के लिए आप यहां क्लिक कर सकते हैं. आप हमें फ़ेसबुक, ट्विटर, इंस्टाग्राम और यूट्यूब पर फ़ॉलो भी कर सकते हैं.)