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इन वजहों से तेलंगाना में पूरे नहीं हुए कांग्रेस-बीजेपी के सपने...
- Author, प्रवीण कसम
- पदनाम, बीबीसी संवाददाता
तेलंगाना राष्ट्रीय समिति (टीआरएस) ने राज्य के विधानसभा चुनाव में 88 सीटों के साथ ज़बरदस्त जीत हासिल की है.
राज्य में सात दिसंबर को चुनाव हुए थे, जिनमें टीआरएस को कांग्रेस के गठबंधन की ओर से कड़ी टक्कर मिलने की बात कही गई थी.
लेकिन मंगलवार को जब नतीजे आए तो टीआरएस के प्रमुख के चंद्रशेखर राव का जादू चलता दिखा.
राज्य विधानसभा को भंग कर समय से पहले चुनाव कराने का टीआरएस प्रमुख का फ़ैसला काम कर गया.
किसानों और दूसरे कमज़ोर तबकों के लिए लागू की गई कल्याणकारी योजनाओं ने केसीआर को जीत दिलाने में अहम भूमिका निभाई.
ग्रामीण सीटों पर मिला फ़ायदा
टीआरएस पार्टी की जीत का श्रेय किसानों और ग्रामीण मतदाताओं को जाता है. तेलंगाना की ग्रामीण सीटों पर पार्टी को मिले वोट प्रतिशत से ये बात साफ दिखती है.
टीआरएस सरकार ने किसानों के लिए रैयत बंधु और रैयत भीम जैसी कल्याणकारी योजनाएं लागू कीं. इन योजनाओं के चलते केसीआर को किसानों के बीच काफी लोकप्रियता मिली.
इसके अलावा किसानों को 24 घंटे बिजली मुहैया कराना, मिशन काकटेय और कालेश्वरम जैसी बड़ी सिंचाई परियोजनाओं को लागू करना भी टीआरएस के लिए फायदेमंद साबित हुआ.
विधवाओं और बुज़ुर्गों को मिली सुविधाएं
सत्ताधारी टीआरएस पार्टी ने मिशन भागीरथ चलाकर घर-घर पीने का पानी मुहैया कराया. अपनी इस योजना से टीआरएस सरकार ने लोगों का विश्वास जीता. विधवाओं और बुज़ुर्गों के लिए पेंशन योजना ने भी टीआरएस की जीत में मदद की है.
हालांकि जनता टीआरएस के कई मौजूदा विधायकों से नाराज़ थी, लेकिन केसीआर ने उन लोगों को इस चुनाव में दोबारा सीटें दे दी थीं. लेकिन जब पार्टी को जिताने की बात आई तो जनता ने टीआरएस के लिए खुले दिल से वोट किया.
इन विधायकों के लिए लोगों का गुस्सा इतना ज़्यादा तो नहीं था कि पार्टी की हार का कारण बन जाए, लेकिन इससे पिछले विधानसभा चुनावों के मुकाबले इस बार बहुमत का प्रतिशत कम हुआ है.
केसीआर को उनकी अच्छी छवि का फायदा भी मिला.
तेलंगाना आंदोलन के नेता रहे केसीआर का करिश्मा उन्हें लगातार दूसरी बार सत्ता में लाने पर कामयाब रहा.
100 से ज़्यादा की रैलियां
उनकी जीत की एक वजह ये भी रही कि उन्होंने 100 से ज़्यादा निर्वाचन क्षेत्रों में खुद जाकर रैलियां कीं. इससे वो चुनाव में पार्टी का चेहरा बनकर उभरे.
टीआरएस ने उन इलाकों में भी जीत हासिल की, जहां आंध्र प्रदेश के लोग ज़्यादा रहते हैं. यहां पार्टी उम्मीदवार ने कांग्रेस, टीडीपी, तेलंगाना जन समिति और सीपीआई के गठबंधन के उम्मीदवार को हरा दिया.
इन नतीजों ने ये साबित कर दिया कि टीआरएस ने तेलंगाना के आंध्र आबादी वाले इलाकों का विश्वास भी हासिल कर लिया है.
राज्य विधानसभा चुनाव के नतीजों से समझा जा सकता है कि लोगों को टीआरएस के सिंचाई, फंड और रोज़गार संबंधी वादों पर यक़ीन है.
2014 में हुए चुनाव के दौरान टीआरएस ने वादा किया था कि लोगों को दो कमरे का घर दिया जाएगा, बेरोज़गार लोगों के लिए एक लाख नौकरियां पैदा की जाएंगी.
केजी से पीजी तक मुफ्त शिक्षा और दलितों को कृषि के लिए तीन एकड़ की ज़मीन देने का वादा भी किया गया था.
कहा जा रहा था कि लोग इन वादों के पूरा ना होने से नाराज़ हैं, जिसका मुक़सान टीआरएस को उठाना पड़ेगा.
लेकिन अब ऐसा लग रहा है कि ऐसा कुछ नहीं हुआ. लोगों ने इन बातों पर ध्यान ही नहीं दिया.
टीआरएस का दोबारा सत्ता में आने का एक कारण विपक्ष में नेतृत्व की कमी भी है.
कांग्रेस ने लंबे समय से अपनी प्रतिद्वंदी रही तेलुगुदेशम पार्टी के साथ गठबंधन कर जो दांव चला था, वो काम नहीं कर पाया और गठबंध का ये आइडिया नाकाम रहा.
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