कांग्रेस-एनसीपी से क़रीब हो रहे हैं राज ठाकरे?

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महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना के प्रमुख राज ठाकरे ने बीते रविवार मुंबई में आयोजित उत्तर भारतीय महापंचायत कार्यक्रम में पहली बार हिंदी भाषा में लोगों को संबोधित किया.
इस कार्यक्रम में उन्होंने एक बार फिर मुंबई में आकर रहने वाले उत्तर भारतीयों को लेकर अपने राजनीतिक रुख़ को सामने रखा.
लेकिन सवाल ये है कि राज ठाकरे को इस मुद्दे को लेकर उत्तर भारतीयों के बीच क्यों जाना पड़ा.
बीबीसी मराठी ने इस मुद्दे पर राज ठाकरे की राजनीति पर नज़र रखने वाले वरिष्ठ राजनीतिक विश्लेषकों से बात की.
उत्तर भारतीय वोट बैंक
मराठी अख़बार दैनिक लोकमत से जुड़े वरिष्ठ पत्रकार संदीप प्रधान कहते हैं कि राज ठाकरे को महाराष्ट्र में रहने वाले उत्तर भारतीय लोगों की अहमियत का अहसास हो रहा है जो कि एक बड़ी बात है.
"पहले उद्धव ठाकरे अयोध्या पहुंचकर राम मंदिर के मुद्दे पर लोगों का दिल जीतने की कोशिश करते हैं. फिर राज ठाकरे उत्तर भारतीय महापंचायत के कार्यक्रम में शामिल होते हैं और पहली बार हिंदी में भाषण देते हैं. ये अपने आप में ख़ास है."
"भाषण के आख़िर में वह बोलते हैं, ''मराठी लोगों के हितों की रक्षा करना उनका मुख्य काम है, लेकिन तीन चार पीढ़ियों से मुंबई में रह रहे उत्तर भारतीय भी अपने ही हैं. साल 2000 में उद्धव ठाकरे ने 'मी मुंबईकर' नाम का अभियान चलाया था जिसमें उन्होंने मुंबई में रहने वाले सभी समुदायों को एक साथ लाने की कोशिश की थी. राज ठाकरे जो अब कर रहे हैं, ये उस अभियान जैसा ही है."

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संदीप प्रधान इस रणनीति को समझाते हुए बताते हैं, "साल 1995 में, जब महाराष्ट्र में बीजेपी-शिवसेना की सरकार थी. तब उस गठबंधन सरकार ने झुग्गियों में रहने वाले लोगों को मुफ़्त में घर देने का ऐलान किया था. इस योजना की वजह से उत्तर भारत से कई लोग मुंबई में आकर बसने लगे. राज ठाकरे ने उस योजना को लेकर अपनी नारज़गी ज़ाहिर की है."
"उस दौर में राज ठाकरे शिव सेना के प्रभावशाली नेताओं में से एक थे. अपने हालिया भाषण में उन्होंने इस योजना का ज़िक्र करते हुए इसके प्रति नाराज़गी जताई जो कि एक बड़ी बात है. उद्धव और राज ठाकरे को एक बात समझ में आ गई है कि मुंबई, ठाणे और नासिक में मराठी मानुष का मुद्दा उन्हें राजनीतिक प्रगति नहीं दे सकता. इन्हें ये पता चल गया है कि देश के अलग-अलग हिस्सों से महाराष्ट्र में कमाने-खाने आए लोगों के वोट भी मराठी समुदाय के वोटों जितने ही अहम हैं."


मराठी मानुष का मुद्दा रहेगा लेकिन...
वरिष्ठ राजनीतिक विश्लेषक मृणालिनी नानिवडेकर उद्धव ठाकरे के अयोध्या जाने और राज ठाकरे के इस भाषण को दोनों नेताओं के बीच प्रतिस्पर्धी राजनीति का हिस्सा मानती हैं.
राज ठाकरे इस मुद्दे पर अब तक जो बात मराठी में कहते आए हैं, वही बात उन्होंने हिंदी भाषा में कही है.
"राज ठाकरे ने अपने भाषण में इंदिरा गांधी और राजेंद्र प्रसाद जैसे बड़े नेताओं का ज़िक्र करते हुए कहा है कि उन्होंने भी क्षेत्रीय संघर्ष की बात मानी थी. उन्होंने कहा कि दूसरे प्रदेशों से लोगों के आने की वजह से होने वाले संघर्ष की बात सिर्फ़ वह नहीं कह रहे हैं. राज ठाकरे इस तरह का भाषण देकर क्षेत्रीय राजनीति में अपनी पैठ बनाने की नई कोशिश कर रहे हैं."

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"बीते कुछ सालों में मुंबई में हिंदी भाषी राज्यों से आने वाले लोगों की आबादी में बढ़ोतरी हुई है. बीजेपी ने बीएमसी चुनावों में हिंदी भाषी लोगों के वोटों को हासिल करने में सफलता हासिल की थी. ऐसे में अब राज ठाकरे इसी वोट बैंक को ध्यान में रखते हुए अपनी राजनीति के स्वरूप में परिवर्तन करना चाहते हैं."
"राज ठाकरे ने एक बार फिर यूपी-बिहार से आने वाले लोगों को बाहरी बताने वाली राजनीति शुरू की है. लेकिन ये तो वक़्त ही बताएगा कि उन्हें इस राजनीति की वजह से क्या फ़ायदा मिलेगा. एक बात ये भी है कि अगर राज ठाकरे के सामने गठबंधन राजनीति एक विवशता है तो सवाल ये है कि उनके इस रुख़ को कौन स्वीकार करेगा."


एनसीपी-कांग्रेस से नज़दीकियां बढ़ाने की कोशिश
महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना के विधायकों की संख्या 13 से कम होते-होते शून्य पहुंच चुकी है.
राज ठाकरे चाहते हैं कि अगले साल उनकी पार्टी के विधायकों की संख्या एक बार फिर 13 तक पहुंच जाए. क्योंकि अगर ऐसा नहीं होगा तो उनकी पार्टी का अस्तित्व ख़तरे में पड़ सकता है.
सकाल टाइम्स के संपादक रोहित चंदावरकर बताते हैं, "मतदाता अभी भी उनकी पार्टी के विधायकों से नाराज़ हैं लेकिन वे अपनी छवि सुधारने की कोशिश कर रहे हैं. वे विपक्षी पार्टियों जैसे कांग्रेस और एनसीपी से भी अपनी नज़दीकियां बढ़ा रहे हैं. यही नहीं, वे अपनी पार्टी की ख़ातिर मतदाताओं का दिल जीतने की कोशिश कर रहे हैं.


संवाद की ज़रूरत क्यों है?
नवभारत टाइम्स से जुड़े वरिष्ठ पत्रकार मनीष झा राज ठाकरे के इस क़दम का स्वागत करते हैं.
"मैं राज ठाकरे के इस बयान का स्वागत करता हूं कि लोगों को रोज़गार मिलना चाहिए. लेकिन इसके साथ ही ये भी ज़रूरी है कि उन्हें मुंबई में ही बड़े होने वाले उत्तर भारतीयों के मन में डर पैदा करने वाली राजनीति नहीं करनी चाहिए."

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महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना में पुरानी दिक़्क़त
कांग्रेस प्रवक्ता सचिन सावंत कहते हैं कि वे हमेशा से मनसे को समस्याजनक पार्टी मानते हैं.
वे कहते हैं, "मनसे की राजनीतिक योजनाएं हमेशा से ग़लत रही हैं. उन्हें गंभीरता से नहीं लिया जा सकता. जब साल 2009 में पार्टी का गठन हुआ था तब मराठी मानुष का कोई इश्यू नहीं था. लेकिन दो साल बाद उन्होंने इस मुद्दे को उठाकर उत्तर भारतीयों और बिहारियों को पीटना शुरू कर दिया. इसके बाद नरेंद्र मोदी का समर्थन करना शुरू कर दिया. फिर मोदी के प्रधानमंत्री बनने के कुछ समय बाद मोदी का विरोध करना शुरू कर दिया."


भाषण का राजनीतिक मतलब
महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना के प्रवक्ता संदीप देशपांडे ने कहा है कि वह चाहते हैं कि इस भाषण से किसी तरह का राजनीतिक मतलब न निकाला जाए.
"उत्तर प्रदेश महापंचायत के कुछ सदस्यों से हमारी मुलाक़ात हुई थी. वे राज ठाकरे से मिलना चाहते थे. अक्सर राज ठाकरे के मराठी भाषा में दिए गए भाषण का ग़लत मतलब निकाला जाता है. ऐसे में राज ठाकरे ने हिंदी में भाषण दिया."
दूसरी पार्टियों के साथ गठबंधन पर देशपांडे कहते हैं कि राज ठाकरे गठबंधन से जुड़ा कोई फ़ैसला लेंगे. लेकिन फिलहाल उन्होंने किसी तरह का निर्णय नहीं किया है."
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