राज ठाकरे की मार से ग़रीब मराठी भी परेशान

- Author, मयूरेश कोन्नूर
- पदनाम, बीबीसी मराठी संवाददाता
मुंबई में हॉकर्स के मुद्दे को लेकर राज ठाकरे और उनकी पार्टी के कार्यकर्ता काफ़ी आक्रामक रवैया अपनाए हुए हैं.
राज ठाकरे जब हॉकर्स का मुद्दा उठाते हैं, तब आम तौर पर ये समझा जाता है कि लगभग सभी हॉकर्स ग़ैर-मराठी हैं, लेकिन असलियत ये है कि कई हॉकर्स मराठी हैं और कई सालों से मुंबई में ही रहते आए हैं.

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राज ठाकरे का अल्टीमेटम
मुंबई के एल्फ़िंस्टन रोड रेलवे स्टेशन के फुटब्रिज पर हुए हादसे के बाद राज ठाकरे ने फेरी लगाने वालों को घटना के लिए ज़िम्मेदार बताते हुए उन्हें वहां से हटने का अल्टीमेटम दिया था.
राज ठाकरे ने इस घटना के बाद एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में कहा था, ''मैं हमेशा से कहता आया हूं कि जब तक हमारे शहरों में बाहर से आने वाले लोगों की भीड़ नहीं रुकेगी तब तक इन शहरों की हालत ऐसे ही रहेगी.

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कुछ दिनों बाद एमएनएस ने जबरन फेरीवालों को रेलवे स्टेशन से हटाया था, जिसके बाद इन फेरीवालों ने कुछ कार्यकर्ताओं पर हमले भी किए थे.
इस घटना के बाद कांग्रेस के नेता संजय निरुपम ने कहा था कि फेरीवालों को ख़ुद का बचाव करने का पूरा अधिकार है. निरुपम ने इस मुद्दे को लेकर एक विरोध रैली भी निकाली जिससे ये मुद्दा और भी गरम हो गया.

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रोज़ी रोटी छिन जाने का डर
राज ठाकरे के फेरीवालों को दिए गए अल्टीमेटम के बाद जहां उत्तर भारत से आए लोग घबराए हुए हैं वहीं स्थानीय मराठी महिलाओं को भी अपनी रोज़ी रोटी ख़त्म जाने का डर है.
वाशी ट्रॉन्स हार्बर लाइन में कई सालों से कृत्रिम गहनों को लेकर फेरी लगाने वाली छाया नारायणकर पूछती हैं कि यहां बाहर से आने वालों को फेरी लगाने में कौन मदद करता है?
वो पुलिस पर आरोप लगाते हुए कहती हैं, ''इन बाहरी लोगों को धंधा करने में रेलवे अधिकारी और पुलिस वाले मदद करते हैं, लेकिन जब कार्रवाई होती है तो यही अधिकारी उन्हें फ़ोन पर जानकारी देते हैं और भगाने में मदद करते हैं. हम महिलाओं को पकड़ा जाता है. हम पर मामले दर्ज़ किए जाते हैं.''
हाल ही में महाराष्ट्र सरकार नया क़ानून लेकर आयी है, जिसमें रेलवे स्टेशन के बाहर और फुटपाथ पर फेरी लगाने वालों को अलग से जगह देने का प्रावधान है. लेकिन ममता येरवाल इससे ख़ुश नहीं हैं.
वो रेलवे स्टेशन के बाहर गहने बेच कर अपने परिवार को पालती हैं. वो कहती हैं, "हमारे पास कोई नौकरी नहीं है. अब रेलवे स्टेशन के बाहर और फुटपाथ के बाहर धंधा लगाने पर मनाही हो गई है. अब हमारा परिवार कैसे चलेगा?''
उन्होंने कहा, ''ये क़ानून क्यों लाया गया है? जब हम भीख मांगते हैं तो कहा जाता है भीख मत मांगो. चोरी करते हैं तो कहते हैं, मेहनत करो और अब मेहनत कर रहे हैं तो कहा जा रहा है कि इसे बंद करो. अब हम क्या करें? क्या हम पहाड़ पर फेरी लगाएं?''

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क्या कोई मदद को आएगा हमारे पास?
इन महिला फेरीवालों के संगठनों ने इसके विरोध में मोर्चा भी निकाला था.
इस बीच फुटपाथ पर सामान बेचने वाली इंदू जुनगरे एल्फ़िंस्टन घटना से फ़ेरीवालों को जोड़ना गलत मानती हैं.
वो कहती हैं कि जब भगदड़ जैसी घटना होती है तो हमारी जान सबसे ज्यादा जोखिम में होती है. भगदड़ में अगर कोई औरत या बच्चा गिर जाए तो हम भागकर उसे बचाते हैं अपनी जान और सामान की परवाह किए बगैर. जब तक पुलिस नहीं आ जाती हम उन्हें उठाकर अस्पताल ले जाते हैं. क्या इस बारे में कोई सोचता है.

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"पेट कैसे पालूं, मैं क्या करूं..."
रेखा खरटमल जो चिंचपोकली रेलवे स्टेशन के बाहर समोसे का ठेला लगाती है. वो कहती हैं, "ये हमारी वजह से नहीं होता है. अगर हमारे इस काम से दिक़्क़त है तो हमें दूसरा काम दिया जाना चाहिए. मेरा पति अपाहिज है मेरे दो बच्चे हैं, बताइए अपने बच्चों का कैसे पेट पालूंगी. एक महीना हो गया है मुझे घर पर बैठे. आप ही बताओं मैं क्या करूं."
मुंबई में फेरीवालों की समस्या केवल बाहर से आए लोगों तक ही सीमित नहीं है बल्कि ये स्थानीय लोगों की भी समस्या है. क्षेत्रवाद के इस राजनीतिक झगड़े में स्थानीय लोगों की भी रोज़ी रोटी भी जा रही है.

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कानून क्या कहता है हॉकर्स के बारे में?
मई 2014 में लागू किया गया फेरीवाला क़ानून (Livelihood Protection and Regulation Act) हॉकर्स को संरक्षण प्रदान करता है. लेकिन ऐसा हॉकर्स एसोसिएशन का कहना है कि तीन साल होने के बावजूद यह क़ानून लागू नहीं हुआ.
इसलिए उन्होंने मुंबई हाई कोर्ट में याचिका दायर की है.
मुंबई में 90 हज़ार रजिस्टर्ड हॉकर्स हैं. लेकिन हॉकर्स की वास्तविक संख्या 2.5 लाख है. ऐसा हाई कोर्ट मे दायर याचिका में दावा किया गया है.
हाल ही में हाई कोर्ट ने स्पष्ट किया कि रेलवे के पेडेस्ट्रियन फूटब्रिज और स्काई वॉक पर हॉकर्स व्यवसाय नहीं कर सकते. हाई कोर्ट ने कहा है कि रेलवे स्टेशन के 150 मीटर के दायरे में हॉकर्स ना हों.
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