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एशियाई बाज़ार बुरी तरह लुढ़के
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अमरीका में न्यूयॉर्क शेयर बाज़ार के डाओ जोन्स सूचकांक में 21 साल में सबसे बड़ी गिरावट के बाद गुरुवार को एशियाई बाज़ार भी बुरी
तरह लुढ़क गए.
इससे विश्व में आर्थिक मंदी के और गहराने व बेरोज़गारी बढ़ने की चिंता बढ़ गई है. गुरुवार को बॉम्बे स्टॉक एक्सचेंज़ (बीएसई) के सूचकांक में भी 277.63 अंक यानी 2.11 फ़ीसदी की गिरावट दर्ज की गई.
जापान में टोक्यो का निक्केई सूचकांक एक हज़ार से अधिक अंक गिरकर 8458.45 पर बंद हुआ. इस दौरान निक्केई में कुल 11.4 फ़ीसदी की गिरावट दर्ज की गई. बिकवाली का ज़ोर हांगकांक का हेंगसेंग 7.6 फ़ीसदी गिरकर 14785.60 पर बंद हुआ जबकि ऑस्ट्रेलियाई शेयर बाज़ार में कारोबार के दौरान 6.7 फ़ीसदी की गिरावट आई. कुछ ऐसा ही हाल दक्षिण कोरिया के शेयर बाज़ार का भी रहा. ग़ौरतलब है कि ऐसा न्यूयॉर्क शेयर बाज़ार में 21 साल में सबसे ज़्यादा - आठ फ़ीसदी की गिरावट के बाद हुआ है. जहाँ बुधवार को डाओ जोन्स 7.87 प्रतिशत गिरा है. इससे पहले 26 अक्तूबर 1987 को ऐसी गिरावट हुई थी.
बॉम्बे स्टॉक एक्सचेंज (बीएसई) में सूचीबद्ध हिंडाल्को इंड्रस्ट्रीज़ में 13.35 फ़ीसदी, टाटा मोटर्स में 11.29 फ़ीसदी, महिंद्रा एंड महिंद्रा में 9.09 फ़ीसदी और जयप्रकाश एसोसिएट्स में 5.91 फ़ीसदी की गिरावट आई. बैंकिंग सेक्टर में एचडीएफ़सी में 6.27 और स्टेट बैंक ऑफ़ इंडिया के शेयरों में 3.53 फ़ीसदी की गिरावट दर्ज की गई. ग़ौरतलब है कि भारतीय रिज़र्व बैंक के हाल के उठाए कदमों और वित्तीय बाज़ार में लगभग 65 हज़ार करोड़ रुपए डालने की घोषणा के बावजूद बीएसई में गिरावट देखने को मिली है. रिज़र्व बैंक ने जहाँ 40 हज़ार करोड़ बैंकिग व्यवस्था में सीआरआर यानी कैश-रिज़र्व-रेशो घटाने के रूप में डाला है, वहीं बैंकों के कृषि संबंधी कर्ज़ माफ़ करने के लिए भी 25 हज़ार करोड़ रिज़र्व बैंक उपलब्ध करा रहा है. बीबीसी संवाददाता जॉन सडवर्थ ने टोक्यों से भेजी अपनी रिपोर्ट में कहा है हाल में शेयर बाज़ार में कुछ सुधार के जो संकेत नज़र आए थे और लोगों ने इस बीच जो मुनाफ़ा कमाया था, वह लगभग नष्ट हो गया है. डाओं ने 21 साल का रिकॉर्ड तोड़ा बुधवार को डाओ जोन्स 7.87 प्रतिशत गिरा है. इससे पहले 26 अक्तूबर 1987 को ऐसी गिरावट हुई थी.
अमरीकी केंद्रीय बैंक फ़ेडरल रिज़र्व के चेयरमैन बेन बरनानके का कहना था, "वित्तीय बाज़ार में जो खलबली मची हुई है और वित्तीय कंपनियों को जो पैसे का दबाव झेलना पड़ रहा है, वह आर्थिक विकास के लिए गंभीर ख़तरा है. पिछले दशक ने दिखाया है कि जब बुलबुला फटता है तो ये अमरीकी अर्थव्यवस्था के लिए बहुत ख़तरनाक और ख़र्चीली प्रक्रिया हो सकती है." इस बीच जी-8 देशों के नेता वैश्विक वित्तीय सुधारों पर चर्चा के लिए एक सम्मेलन करने पर राज़ी हो गए हैं. महत्वपूर्ण है कि इससे पहले ब्रितानी प्रधानमंत्री गॉर्डन ब्राउन ने अंतरराष्ट्रीय वित्तीय कोष (आईएमएफ़) को दोबारा आकार देने की बात कही थी. आर्थिक मंदी के डर और शेयर बाज़ारों की गिरावट से अनुमान लगाया जा रहा है कि तेल की माँग में कमी आएगी और इसीलिए तेल की क़ीमत भी गिरी है. |
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