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एआईजी को बचाएगी अमरीकी सरकार
 
एआईजी
एआईजी के संकट से पूरी दुनिया के बाज़ार में भारी चिंता थी
अमरीका के केंद्रीय बैंक फ़ेडरल रिज़र्व ने घोषणा की है कि वो दुनिया की सबसे बड़ी बीमा कंपनी अमेरिकन इनवेस्टमेंट ग्रुप (एआईजी) को बचाने के लिए उसे 85 अरब डॉलर का कर्ज़ दे रहा है.

दूसरी ओर ब्रितानी बैंक बार्कलेज़ ने लीमैन ब्रदर्स के निवेश और पूंजी बाज़ार के कारोबार को ख़रीदने की घोषणा की है.

बार्कलेज़ बैंक एआईजी का न्यूयॉर्क स्थित मुख्यालय और न्यूजर्सी स्थित दो डेटा सेंटर भी ख़रीद रहा है.

सोमवार को दुनिया के कई शेयर बाज़ारों में भारी गिरावट देखी गई थी लेकिन इन दो ख़बरों के बाद बाज़ार की गति बदलती दिखाई पड़ी.

मंगलवार को अमरीका का डाओ जोन्स 142 अंक ऊपर बंद हुआ.

इसके बाद टोक्यो, ताइवान, सिंगापुर और सिओल के शेयर बाज़ार तेज़ी के साथ शुरु हुए हैं. हालांकि हांगकांग में शुरुआती तेज़ी के बाज फिर गिरावट दिखाई पड़ रही है.

टोक्यो के निक्केई में तो सूचकांक 250 अंक उछला.

मंगलवार को एशियाई पूंजी बाज़ारों में भारी गिरावट देखी गई थी और इससे विश्व बाज़ार में चिंता बढ़ गई थी. वैसे भारतीय शेयर बाज़ार में भी गिरावट आई थी लेकिन बाद में बाज़ार बिल्कुल संभल गया था.

बीबीसी के आर्थिक मामलों के संवाददाता एंड्रू वॉकर का कहना है कि एक अंदाज़ के मुताबिक एआईजी कई देशों से ज़्यादा पैसा संभालती है – ये कंपनी लगभग 400 अरब डॉलर की कंपनी है और इसे बचे रहने के लिए ही करीब 80 अरब डॉलर चाहिए थे.

पहले ये ख़बर आई थी कि अमरीका का वित्त मंत्रालय एआईजी को बचाने के लिए गुपचुप बातचीत शुरू कर चुका है. इससे बाज़ारों को कुछ संबल मिला और बाज़ार 107.50 के दिन के सबसे निचले स्तर से उछलकर 142 अंक ऊपर बंद हुआ.

लेकिन बाद में फ़ेडरल रिज़र्व की ओर से 85 अरब डॉलर की सहायता देने की घोषणा ही कर दी गई.

एआईजी को मदद क्यों

अब सवाल ये है कि लीमैन ब्रदर्स और मेरिल लिंच की मुश्किलों के लिए अमरीकी सरकार आगे नहीं आई तो एआईजी को मदद क्यों कर रही है.

लीमैन ब्रदर्स
लीमैन ब्रदर्स के दिवालिया होने की ख़बर ने दुनिया भर के पूँजी बाज़ार को हिला के रख दिया

इसका एक कारण तो यही है कि बड़ी मुश्किल से दुनिया के बाज़ार लीमैन ब्रदर्स के झटके को सहन कर सके हैं. दुनिया की सबसे बड़ी बीमा कंपनी अब अगर बैठ गई तो उसका झटका लीमैन ब्रदर्स से भी बड़ा होगा और बाज़ार ये दोहरा झटका शायद सहन न कर पाएँ.

दूसरा और उससे भी महत्वपूर्ण कारण ये है कि एआईजी अमरीका के हाउसिंग यानी मकानों के कर्ज़ों का बीमा करती थी.

पहले से ही मकानों के दाम अमरीका में बहुत गिर चुके हैं अब अगर उस क्षेत्र की सबसे बड़ी बीमा कंपनी भी बंद हो गई तो घरों के दाम कितने गिर जाएँगे इसका अंदाज़ा लगाना भी मुश्किल है.

तो ज़ाहिर है अमरीका सरकार को आगे आना पड़ा है पर अब भी यह कहना मुश्किल है कि संकट टल गया है.

दुनिया भर में असर

मॉस्को से बीबीसी संवाददाता जेम्स रॉजर्स का कहना है कि वहाँ के शेयर बाज़ार में पिछले दस साल की सबसे बड़ी गिरावट देखी गई है. मॉस्को के स्टॉक एक्सचेंज में इस रिकॉर्ड गिरावट के बाद कारोबार को रोक देना पड़ा. ये गिरावट थी लगभग 16 प्रतिशत की. इसे भारत के सूचकांक सेंसेक्स के हिसाब से देखें तो ये लगभग दो हज़ार अंकों की गिरावट के बराबर है.

जापान, हांगकांग, चीन और दक्षिण कोरिया में भी शेयर बाज़ार नीचे गिर गए थे.

भारत में शेयर बाज़ार भी पिछले दो दिनों से गिरता हुआ दिख रहा है.

एशियाई पूंजी बाज़ार
एशियाई पूंजी बाज़ार ने मंगलवार को गहरा गोता लगाया था

हालांकि मंगलवार को कारोबार की शुरूआत में 3.5 प्रतिशत का गोता खाने के बाद बाज़ार दोबारा संभल गया और कारोबार के अंत में सोमवार की तुलना में कोई बहुत अधिक गिरावट नहीं आई.

मुंबई शेयर बाज़ार का तीस शेयरों का सूचकांक 12 अंकों की गिरावट के साथ 13518 पर बंद हुआ है, जबकि मंगलवार को ऐसा समय भी आया था जब सेंसेक्स 13051 तक जा पहुँचा था.

लेकिन अमरीका के 142 अंक ऊपर बंद होने के बाद आज ये देखना होगा कि भारत का बाज़ार कुछ उछाल लेता है या नहीं.

इस बीच, अमरीका की राजनीति में भी इसका प्रभाव दिख रहा है.

राष्ट्रपति पद के लिए डेमोक्रैटिक पार्टी के उम्मीदवार बराक ओबामा ने आरोप लगाया है.

वो कहते हैं, "जॉन मेकेन और राष्ट्रपति बुश की नीतियों में कोई फ़र्क नहीं है और दुनिया इन ख़राब नीतियों का नतीजा भुगत रही है."

जहाँ रिपब्लिकन पार्टी के उम्मीदवार जॉन मेकेन के समर्थक ओबामा के इन आरोपों को बेबुनियाद ठहराते हैं वहीं मेकेन ख़ुद मान रहे हैं कि ये अमरीका के लिए एक नाज़ुक घड़ी है, लोग डरे हुए हैं.

वो कहते हैं, "अमरीका की अर्थव्यवस्था अब भी अच्छी है, सुदृढ़ है लेकिन ये बहुत, बहुत कठिन समय है."

लोगों को अब मैकेन से उम्मीद है कि वो बुश प्रशासन पर कुछ और ठोस कदम उठाने के लिए दबाव बनाएंगे क्योंकि– अर्थव्यवस्था किस हाल में है ये तो दुनिया न केवल देख रही है बल्कि इस समय उसके नतीजे भुगत रही है फिर वो चाहे न्यूयॉर्क हो, लंदन हो, मॉस्को या मुंबई.

 
 
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