कैसे ख़त्म हुई सिंधु घाटी सभ्यता, नई रिसर्च ने क्या बताया?

सिंधु घाटी सभ्यता में ईंटों से बना एक कुआं

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इमेज कैप्शन, सिंधु घाटी सभ्यता के पतन के बारे में कई सिद्धांत पेश किए जा चुके हैं
    • Author, अवतार सिंह
    • पदनाम, बीबीसी संवाददाता

सिंधु घाटी सभ्यता का अंत कैसे और कब हुआ, यह हमेशा से एक रहस्य रहा है, जिसका समय-समय पर अध्ययन किया गया है.

हाल ही में किए गए एक अध्ययन से पता चला है कि "सिंधु घाटी सभ्यता का हिस्सा रही हड़प्पा का पतन किसी एक विनाशकारी घटना के कारण नहीं हुआ था, बल्कि सदियों तक बार-बार और लंबे समय तक नदी के सूखे रहने के कारण हुआ था."

अतीत में, सिंधु घाटी सभ्यता के पतन के बारे में कई सिद्धांत पेश किए गए हैं. ऐसा कहा जाता है कि यह सभ्यता युद्ध से नष्ट हो गई थी, यह संभावना भी जताई गई है कि प्राकृतिक आपदाओं के बाद शहर ढह गए हों या सिंधु नदी में बाढ़ आ गई हो और उसने अपना मार्ग बदल दिया हो.

एक सिद्धांत यह भी है कि उस समय एक और नदी यानी घग्गर सूख गई थी, जिसके कारण इसके आसपास रहने वाले लोग विस्थापित होने लगे.

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ताज़ा शोध आईआईटी गांधीनगर के शोधकर्ताओं और अंतरराष्ट्रीय वैज्ञानिकों की एक टीम का है जो 'कम्युनिकेशंस: अर्थ एंड एनवायरनमेंट' (नेचर प्रकाशन) पत्रिका में प्रकाशित हुआ है.

इस अध्ययन के अनुसार, सिंधु नदी प्राचीन सिंधु घाटी सभ्यता के विकास के लिए मुख्य धुरी थी, जिसने कृषि, व्यापार और संचार के लिए एक स्थिर जल स्रोत प्रदान किया. यह सभ्यता लगभग 5000 साल पहले सिंधु नदी और उसकी सहायक नदियों के आसपास फली-फूली और समय के साथ विकसित हुई.

हड़प्पा काल (आज से 4500-3900 वर्ष पहले) के दौरान सिंधु घाटी सभ्यता को सुनियोजित शहरों, अच्छे जल प्रबंधन और लेखन की अच्छी कला के लिए जाना जाता था. हालांकि, हड़प्पा सभ्यता का पतन 3900 साल पहले शुरू हुआ और आख़िरकार यह ढह गई.

यह सभ्यता वर्तमान पाकिस्तान और उत्तर-पश्चिमी भारत में पाई गई थी.

सूखे पर शोध से क्या पता चला?

सिंधु घाटी सभ्यता में ईंटों से बने रास्ते और ढांचे

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इमेज कैप्शन, ताज़ा शोध के मुताबिक़ तीन अकालों ने 85 प्रतिशत सभ्यता को प्रभावित किया था

प्रारंभिक हड़प्पा काल पर आधारित 11 पृष्ठ के इस अध्ययन के अनुसार, सिंधु घाटी सभ्यता को चार प्रमुख सूखे का सामना करना पड़ा.

शोध पत्र के मुताबिक़, "हड़प्पा के चरम और अंतिम अकाल के दौरान हुए चार गंभीर सूखे की पहचान की गई है."

"अब से 4445-4358 साल पहले, 4122-4021 साल पहले और 3826-3663 साल की अवधि के दौरान तीन बड़े अकाल पड़े थे. चौथा सूखा 3531 और 3418 साल पहले पड़ा था. तीन अकालों ने 85 प्रतिशत सभ्यता को प्रभावित किया."

"दूसरा और तीसरा सूखा क्रमशः लगभग 102 और 164 वर्षों तक चला."

शोध पत्र में कहा गया है कि "तीसरे सूखे के दौरान सालाना होने वाली बारिश में 13 प्रतिशत की कमी आई थी."

अध्ययन के प्रमुख लेखक हिरेन सोलंकी ने कहा, "पहले भी कई अध्ययन किए जा चुके हैं. वे साइट पर जाते हैं, वहां से डेटा इकट्ठा करते हैं. उदाहरण के लिए, मिट्टी और पुराने पेड़. इससे पता चलता है कि बारिश कम या ज़्यादा हुई थी. इससे क्वालिटी पता चलती है, लेकिन हमें पता चला कि उस समय कितने परसेंट बारिश कम हुई थी या कब सूखा पड़ा था, तो वह कौन सा समय था."

हिरेन सोलंकी का कोट
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पीएचडी के छात्र हिरेन सोलंकी के मुताबिक़, "पहले हड़प्पा सभ्यता पश्चिमी क्षेत्र में थी, लेकिन जैसे-जैसे सूखा पड़ा, सभ्यता सिंधु नदी के क़रीब आ गई. उसके बाद मध्य क्षेत्र यानी सिंधु नदी के किनारे भी सूखा पड़ गया. इसके बाद लोग सौराष्ट्र (गुजरात) और हिमालय के दूसरे निचले इलाकों में चले गए, जहां नदियां नीचे की ओर आती हैं. "

पेपर के सह-लेखक प्रोफे़सर विमल मिश्रा कहते हैं, "जैसा कि अतीत में कई सिद्धांत रहे हैं कि सिंधु घाटी सभ्यता का पतन एकदम से हो गया, हमने इस शोध में दिखाया है कि ऐसा नहीं था, लेकिन सूखे की एक श्रृंखला थी जो कई सौ सालों तक चली."

"ये सूखा बहुत लंबे समय तक चला. औसतन, एक सूखा 85 से अधिक सालों तक चला. हालांकि, कुछ औसतन 100 साल या 120 साल तक चले."

प्रोफ़ेसर विमल मिश्रा ने कहा, "पहले के अधिकतर अध्ययन कोर्स रेज़ोल्यूशन (लो रेज़ोल्यूशन वाला डेटा) और गुफाओं आदि के अध्ययन पर आधारित थे. यह पहली बार है जब हमने नदियों के प्रवाह का अध्ययन किया है. यह देखा गया है कि पानी प्राप्त करने के स्थानों में कैसे बदलाव आया. पलायन को भी इससे जोड़ा गया था."

तापमान बढ़ने से पानी की कमी

पहाड़ों के बीच से बहती हुई नदी

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इमेज कैप्शन, सूखे के दौरान इस क्षेत्र के तापमान में लगभग 0.5 डिग्री सेल्सियस की बढ़ोतरी हुई

सिंधु घाटी सभ्यता पर यह शोध पर्यावरण की दृष्टि से किया गया है. इस शोध में समय-परिवर्ती जलवायु अनुकरण मॉडल को जल-वैज्ञानिक मॉडलिंग के साथ जोड़ा गया है.

वैज्ञानिकों ने पाया कि लंबे समय तक सूखे के दौरान इस क्षेत्र के तापमान में लगभग 0.5 डिग्री सेल्सियस की वृद्धि हुई, जिससे पानी की कमी और अधिक गंभीर हो गई.

हिरेन सोलंकी के मुताबिक़, "हमने देखा कि उस समय तापमान बढ़ गया था. इससे ग्लेशियर पिघल गया, जिससे नदियों को पानी मिल जाता. इस तरह पानी की उपलब्धता के कारण लोग हिमालय की ओर बढ़ गए. दूसरी ओर, सौराष्ट्र जाने का कारण यह था कि यहां अन्य क्षेत्रों की तुलना में थोड़ी बेहतर बारिश हुई. इसके अलावा सौराष्ट्र में व्यापार का भी एक नेटवर्क था."

वह कहते हैं, "हम यह भी नहीं कहते कि साइट पूरी तरह से ग़ायब हो गई, लेकिन लोग जलवायु परिवर्तन के अनुकूल होने के लिए एक स्थान से दूसरे स्थान पर जाने लगे."

लोगों ने अपनी फ़सलें बदल लीं

प्रोफ़ेसर विमल मिश्रा का कोट

अध्ययन के मुताबिक़, मॉनसून की कमी और नदियों के प्रवाह की कमी के कारण कृषि बुरी तरह प्रभावित हुई थी. "लोग गेहूं और जौ की फसलों के बजाय दूसरी फसलें उगाने लगे". यानी पानी की कमी के कारण हड़प्पा वासियों को कम पानी से होने वाली फसलों की ओर रुख़ करना पड़ा.

प्रोफे़सर मिश्रा के अनुसार, सर्दियों की बारिश ने हड़प्पा पूर्व काल और हड़प्पा काल के चरम तक सूखे के प्रभाव को काफ़ी हद तक रोक दिया था, लेकिन पिछले हड़प्पा काल में शीतकालीन मानसून की कमी ने मध्य क्षेत्रों में कृषि के लिए अंतिम उपाय को भी समाप्त कर दिया था.

सोलंकी बताते हैं, "लोगों ने अपनी खेती बदलनी शुरू कर दी, उन्होंने बाजरे की खेती की ओर रुख़ किया. यानी ऐसी फसलें जो सूखे का सामना कर सकें. "

वह कहते हैं, "शुरुआती सूखे में लोगों ने इसी तरह की रणनीति का इस्तेमाल किया था, लेकिन जैसे-जैसे सूखा बढ़ता गया और पानी कम होता गया, साइट बड़े से छोटे कस्बों में बदलने लगी. यानी लोग छोटी-छोटी जगहों पर जा बसे."

प्रशासन की भूमिका क्या थी?

ईंटों से बनी एक गोलाकार आकृति

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इमेज कैप्शन, विश्लेषक आज की स्थिति को ज़्यादा ख़तरनाक मानते हैं

सिंधु घाटी सभ्यता अपने समय की अच्छी योजना के लिए जानी जाती है.

लेकिन सूखे के दौरान प्रशासन की क्या भूमिका रही होगी?

सोलंकी कहते हैं, "हर जगह सूखा था, लेकिन जहां सिस्टम अच्छा था, वहां लोग रहने में सक्षम थे, लेकिन जब तीसरा और चौथा सूखा पड़ा तो लोग एक जगह से दूसरी जगह जाने लगे."

हिरेन सोलंकी के अनुसार, "हमने देखा है कि कैसे हड़प्पा सभ्यता एक स्थान से दूसरे स्थान पर चली गई? इसके पतन या विलुप्त होने के क्या कारण थे? लेकिन सभ्यता के पतन का एकमात्र कारण पर्यावरण नहीं था. इसके और भी कई कारण थे क्योंकि बीच के वर्षों में भी सूखा पड़ा था."

साउथ एशिया नेटवर्क ऑन डैम्स, रिवर एंड पीपल के कोऑर्डिनेटर हिमांशु ठक्कर कहते हैं, "यह शोध उस प्राकृतिक घटना की बात करती है जिसमें कई दशकों में चार सूखे पड़े."

वह कहते हैं, "आज, हमारे भूजल, नदियों और जंगलों का तेज़ी से क्षरण हो रहा है. तब जो हुआ वह प्राकृतिक था लेकिन आज जो हो रहा है वह मानव निर्मित स्थिति है. यह ज़्यादा ख़तरनाक है."

बीबीसी के लिए कलेक्टिव न्यूज़रूम की ओर से प्रकाशित.

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